कवि गुरु की चेतावनी नजरअंदाज करने का नतीजा है ‘‘मुर्शिदाबाद’’।
सुरेंद्र किशोर।
प्रमुख भारतीय नेता गोपालकृष्ण गोखले ने सौ साल पहले कहा था कि ‘‘बंगाल आज जो सोचता है, भारत वैसा कल सोचता है।’’ तब की यह उक्ति तो सकारात्मक थी। पर, इसे उल्टा करके देखिए। बंगाल ने पहले जेहादियों का मनोबल सर्वाधिक बढ़ाया। अब पूरा देश बढ़ा रहा है।
आज जो कुछ पीड़ा-पलायन मुर्शिदाबाद झेल रहा है, वह सब कल पूरा देश नहीं झेलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों के रुख-रवैये और अदालतों की इस समस्या के प्रति बेरुखी के कारण कल देश भर में कुछ भी हो सकता है।
ऐसी ही अनजानी स्थिति से निपटने के लिए संविधान निर्माताओं ने संविधान में अनुच्छेद-142 के जरिए सुप्रीम कोर्ट को असीमित अधिकार दे रखा है। पर, उसका इस्तेमाल अभी सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निदेश देने में कर रहा है।
मुर्शिदाबाद जैसी विपदा का एक कारण यह भी है कि ‘‘बंगाली भद्र जन ’’ ने जेहादी मानसिकता के बारे में न तो डा. आम्बेडकर की बातों पर ध्यान दिया, न ही अपने कवि गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर की चेतावनी पर। नतीजतन घुसपैठ कराकर देश में जेहादियों की आबादी बेशुमार बढ़ा देने का काम दशकों से पश्चिम बंगाल से बड़े पैमाने पर हो रहा है। घुसपैठिए मुख्यतः बंगाल की सीमा से घुस कर पूरे देश में फैलते हैं। जहां -जहां 40 से 50 प्रतिशत मुस्लिम आबादी होती जाएगी, वहां -वहां से गैर मुस्लिमों का पलायन होता जाएगा। फिर तो गृह युद्ध की योजना है। सन 2047 लक्ष्य जो है।
दो धर्म बाकी धर्मों को नष्ट करने के लिए दृढ़
रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था- ‘‘पृथ्वी पर दो धर्म हैं जो सभी अन्य धर्मों के प्रति स्पष्ट शत्रुता रखते हैं। ये दो हैं ईसाई धर्म और इस्लाम। वे केवल अपने धर्मों का पालन करने से संतुष्ट नहीं हैं, बल्कि अन्य सभी धर्मों को नष्ट करने के लिए दृढ़ हैं। इसलिए उनके साथ शांति बनाने का एकमात्र तरीका उनके धर्माें को अपनाना है।’’ (रवींद्रनाथ टैगोर की मूल रचनाएं- खंड 24, पृष्ठ–375, विश्व भारती, 1982) इस तरह के और भी कटु सत्य पढ़ना हो तो रवींद्र नाथ टैगौर लिखित ‘‘कालांतर’’ पुस्तक पढ़िए। विडंबना यह है कि आज मुख्यतः कवि गुरु के ही प्रदेश के वोट लोलुप नेतागण करोड़ों घुसपैठियों को बंगाल के रास्ते भारत में ढकेल कर इस देश को अस्थिर करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।
इस्लाम का भ्रातृ भाव, मानवता का भ्रातृ भाव नहीं
अब जरा डा. आम्बेडकर की चेतावनी पढ़िए… ‘‘इस्लाम एक बंद निकाय है जो मुसलमानों और गैर मुसलमानों के बीच के जो भेद करता है, वह बिलकुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृ भाव, मानवता का भ्रातृ भाव नहीं है। मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव है। यह बंधुत्व है, परंतु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है। जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा और शत्रुता ही है।… इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है जो स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता। क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती। बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है,जिसका कि वे एक हिस्सा है। …एक मुसलमान के लिए उसके विपरीत या उल्टे मोड़ना अत्यंत दुष्कर है। जहां कहीं इस्लाम का शासन है, वहीं उसका अपना विश्वास है। दूसरे शब्दों में इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबंधी मानने की इजाजत नंहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे महान भारतीय परंतु सच्चे मुसलमान ने अपने शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए जेरूशलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।’’ (डा. बी.आर. आम्बेडकर की पुस्तक ‘‘पाकिस्तान और भारत का विभाजन’’, पृष्ठ संख्या-367 से)
दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राज्य सभा सदस्य मनोज कुमार झा कहते हैं कि ‘‘मुसलमानों को हिन्दुओं की आदत पड़ गई है और हिन्दुओं को मुसलमानों की आदत पड़ गई है।’’ …जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के एक मुस्लिम नेता का हाल में यह बयान पढ़ा- ‘‘भारत में इस्लामी फैलाव के लिए जोर-जबर्दस्ती नहीं की गई थी।’’ …ऐसी टिप्पणियां ‘‘कवर फायर’’ की तरह हैं।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से ही नहीं- बल्कि कश्मीर तथा इस देश के अन्य हिस्सों में भी जहां भी मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हो जा रही है- वहां से गैर मुस्लिमों को भगा दिया जाता है या उनका धर्मांतरण करा दिया जाता है। सन 1978 में उत्तर प्रदेश के संभल में यही हुआ था। इस प्रक्रिया में वोट बैंक के सौदागर नेतागण जेहादियों के मददगार होते हैं। आज भी हो रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों को शरण देने का काम पहले वाम मोर्चा सरकार ने किया। बाद में रही-सही कसर ममता सरकार पूरी कर रही है। मरीचझांपी में बड़ी संख्या में शरण लिए हिन्दू बांग्लादेशी शरणार्थियों को 1979 में ज्योति बसु की पुलिस ने गोली मार दी। दूसरी ओर मुस्लिम घुसपैठियों के नाम पश्चिम बंगाल की मतदाता सूचियों में दर्ज करवा दिया। इस समस्या को खुद ममता बनर्जी ने लोकसभा में 2005 मेें उठाया था। अब तो ममता खुद उस वोट बैंक की लाभुक हो गयी है। देश का दुर्भाग्य है।
वैसे तो प्रतिबंधित जेहादी संगठन पी.एफ.आई. ने लक्ष्य रखा है कि हम हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देंगे। पर, अब लगता है कि पी.एफ.आई. जल्दीबाजी में है। मुर्शिदाबाद में भी पी.एफ.आई. की मौजूदगी की खबर मिली है। पूरे देश में इन दिनों पी.एफ.आई. जैसे संगठन अपने लक्ष्य का रिहर्सल कर रहे हैं। टारगेट किलिंग के लिए पी.एफ.आई. का किलर दस्ता सक्रिय है।
वक्फ विवाद का मुख्य कारण
वक्फ बोर्ड विवाद तो बहाना है। इस बहाने देश को गरमाना है। हाल में मशहूर मुस्लिम नेता व सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश में एक लाख 21 हजार वक्फ की संपत्तियां हैं। पर, उनमें से एक लाख 12 हजार संपत्तियों का वक्फ बोर्ड के पास कोई कागजी सबूत नहीं है।’’ दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस संबंध में कहा है कि जिस वक्फ जमीन का मालिकाना हक सन 1952 के राजस्व रिकाॅर्ड में दर्ज है, उसी को वक्फ की संपत्ति माना जाएगा। पर, मुस्लिम पक्ष, जिसके साथ तथाकथित सेक्युलर दल हैं, चाहता है हम जिस जमीन पर अंगुली रख चुके हैं, (वक्फ बाई पोजेशन) वे सब जमीन हमारी होनी चाहिए।
अब देखना है सुप्रीम कोर्ट राजस्व रिकाॅर्ड वाले तर्क को महत्व देता है या ‘‘कागज नहीं दिखाएंगे’’ वाले पक्ष को। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद देश का कैसा ‘‘दृश्य’’ सामने आएगा,उसका कई लोग सांस रोक कर इंतजार कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)