प्रदीप सिंह ।
कांग्रेस पार्टी को हिंदू धर्म से वितृष्णा हो गई है और उसका यह भाव दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। सदी का सबसे बड़ा कुंभ 144 साल बाद आया– महाकुंभ। पूरा देश उसकी ओर टकटकी लगाए देख रहा है। करोड़ों लोग स्नान कर चुके, संगम में डुबकी लगा चुके, लेकिन इससे कांग्रेस पार्टी को बड़ी पीड़ा हो रही है– बहुत दुख हो रहा है– बड़ी समस्या हो रही है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का एक बयान आया है। उन्होंने पूछा कि क्या संगम में डुबकी लगाने से त्रिवेणी में डुबकी लगाने से बेरोजगारी खत्म हो जाएगी, लोगों को काम मिल जाएगा, महंगाई खत्म हो जाएगी। तमाम इस तरह के सवाल उठाए। अब आस्था के प्रश्न को इस तरह से उठाना! यह दरअसल हिंदुओं के सबसे बड़ी आस्था के त्यौहार, समारोह के समय उसका अपमान करने जैसा है। उनको मालूम था कि वह अपमान कर रहे हैं, इसलिए साथ में उन्होंने जोड़ा कि अगर किसी की भावना को ठेस पहुंचे तो माफी मांगते हैं। यह वैसे ही है कि किसी की हत्या करके उसके घर वालो से कहिए कि हम माफी मांगते हैं।
हिंदू धर्म के खिलाफ यह जो घृणा का भाव कांग्रेस में पैदा हुआ है वह नया दौर है। और पहले की बात कर लेते हैं। यही प्रश्न अगर मल्लिकार्जुन खरगे से पहले के नेताओं ने जवाहरलाल नेहरू से पूछा होता– या पूछना चाहिए था, जब वह संगम में डुबकी लगाने गए– तो उनसे पूछते कि भाई इससे देश का विकास हो जाएगा, बेरोजगारी खत्म हो जाएगी। तब किसी ने नहीं पूछा।
यह सवाल मल्लिकार्जुन खरगे को तब पूछना चाहिए था, जब जनवरी 2001 में सोनिया गांधी संगम गई और उन्होंने डुबकी लगाई। तब तो वह काफी सीनियर हो गए थे, वरिष्ठ थे। उस समय सोनिया गांधी को समझाना चाहिए था कि वहां डुबकी लगाने से बेरोजगारी नहीं दूर होने वाली है, देश को कोई फायदा नहीं होने वाला, गरीबों का कोई फायदा नहीं होने वाला। लेकिन यह सोनिया गांधी से कहने की हिम्मत आज भी मल्लिकार्जुन खरगे में नहीं आ सकती। तो सोनिया गांधी क्यों गई थीं? इसलिए कि आपको याद होगा कि 1999 में जब वह कांग्रेस की अध्यक्ष बनी तो उनके विदेशी मूल का मुद्दा पूरे देश में छाया हुआ था। शरद पवार ने पार्टी तोड़ दी थी। पार्टी से निकल गए थे। शरद पवार और उनके साथियों ने कांग्रेस से निकलकर 1999 में ही एनसीपी बनाई थी। पूरे देश में यह मुद्दा छाया हुआ था। तो सोनिया गांधी अपने को हिंदू दिखाने के लिए, इस देश की संस्कृति में विश्वास करने वाली महिला के रूप में दिखाने के लिए संगम गई थीं।
उसके अलावा 1998 के चुनाव के पहले वह तिरुपति देवस्थानम भी गई। तिरुपति में दर्शन करने गई। वहां लिखना पड़ता है कि आप हिंदू धर्म को मानते हैं कि नहीं, किस धर्म को मानते हैं। सुबी रामी रेड्डी जो कांग्रेस के नेता थे, वह उस समय तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट के चेयरमैन थे। उन्होंने अरेंजमेंट किया और वहां पर सोनिया गांधी ने रजिस्टर में यह नहीं लिखवाया कि वह किस धर्म को मानने वाली हैं। उन्होंने लिखवाया कि वह अपने पति और अपनी सास के धर्म का अनुसरण करती हैं। अपने को हिंदू नहीं लिखा, हालांकि क्रिश्चियन भी नहीं लिखा। सोनिया गांधी को संगम ले जाने की बाकायदा योजना बनाई गई थी। जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, जिनको एक तरह से कांग्रेस शंकराचार्य माना जाता था, उनका दिग्विजय सिंह पर विशेष स्नेह था। दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी और माखन लाल फोतेदार ने उनसे मिलकर सोनिया गांधी को संगम ले जाने की योजना बनाई ताकि उनको भारतीय दिखाया जा सके। उनके तिरुपति के दौरे के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की एक बैठक हुई जिसमें प्रस्ताव पास किया गया और कहा गया कि भारत में सेकुलरिज्म की सबसे बड़ी गारंटी अगर कोई है तो वह हिंदू धर्म है।
देखिए कांग्रेस पार्टी का सफर। बात बहुत पुरानी नहीं सोनिया गांधी के जमाने से लेकर राहुल गांधी के जमाने तक की है। और उन्हीं सोनिया गांधी ने यूपीए शासन के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से सैफरन टेरर की बात कहलाकर यह स्थापित करने की कोशिश की कि हिंदू भी आतंकवादी होते हैं, हिंदू आतंकवाद भी है देश में। और राहुल गांधी ने तो खैर अमेरिकी एंबेसडर से यहां तक कह दिया था कि इस्लामिक टेरर से ज्यादा खतरनाक है हिंदू टेरर। जनवरी 1999 में दिल्ली में सोनिया गांधी रामकृष्ण मिशन में गई। लगभग पूरा दिन रही और वहां से एक सर्टिफिकेट लेकर आई। सर्टिफिकेट मतलब वहां आरके मिशन के स्वामी गोकुलानंद महाराज ने कहा सोनिया गांधी अनुशासित जीवन का पालन करती हैं और उनके विदेशी मूल का मुद्दा कोई महत्त्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। तो उस समय सारी कांग्रेस पार्टी यह साबित करने में लगी हुई थी कि सोनिया गांधी भारतीय और सनातन संस्कृति में विश्वास करती हैं। क्योंकि विदेशी मूल का जो ठप्पा लगा हुआ था, जो वास्तविकता थी, उसको डाइल्यूट करना था। उससे लोगों का ध्यान हटाना था। इसलिए यह सब खेल किया जा रहा था।
अब भी परंपरा है महिलाएं डुबकी लगाती है तो उनकी फोटो नहीं खींची जाती है। लेकिन सोनिया गांधी जब संगम गई तो उनकी फोटो खींची गई और देश भर में पत्र पत्रिकाओं, अखबारों को बांटी गई। उसका खूब प्रचार हुआ। जो आज बोल रहे हैं कि महाकुंभ को इवेंट बनाया जा रहा है वे वो दिन भूल गए। यह अलग बात है कि उस समय सोशल मीडिया का ऐसा प्रभाव नहीं था। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर उस समय सोशल मीडिया होता तो वह सोशल मीडिया पर कितना बड़ा वह इवेंट बना होता। फिर भी कांग्रेस पार्टी ने उसको इवेंट बनाने की कोशिश की जबकि कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं थी, लेकिन उसका इको सिस्टम इतना तगड़ा था, इतना स्ट्रांग था, कि उसको मुद्दा बनाया। पूरी पार्टी और उसका इकोसिस्टम लगा था कि किसी तरह से सोनिया गांधी को असली भारतीय साबित किया जाए। मुझे लगता है कि मल्लिकार्जुन खरगे को कुछ स्मृतिभ्रंश हो गया है। उनको अपनी ही पार्टी, अपनी ही पार्टी के नेताओं का अतीत…और अतीत भी क्या हाल का वर्तमान उसको कह सकते हैं… वह भी याद नहीं है। राहुल गांधी जिस तरह से संसद में हिंदुत्व के खिलाफ, हिंदुओं के खिलाफ सनातन धर्म के खिलाफ बोलते हैं उससे पता चलता है कि हिंदुत्व को लेकर उनके मन में क्या भाव है? वह अपने को शिव भक्त बताते हैं लेकिन उनको मालूम नहीं है कि भगवान शिव हैं क्य? भगवान शंकर के बारे में उन्होंने कुछ पढ़ा हो उनकी बातों से ऐसा नजर नहीं आता है, ऐसा एहसास नहीं होता है। यह जो दिखावे का और चुनाव के समय का हिन्दुत्व है, उसकी परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। कई चुनाव में आप देख चुके हैं कि चुनाव का समय आता है तो मंदिर जाने लगते हैं। आजकल सब छोड़ दिया है। उनको एक बात शायद समझ में आ गई है कि इस नाटक को लोग स्वीकार नहीं कर रहे। इस नाटक की असलियत लोग समझने लगे हैं। तो अब कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी दोनों खुलकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति पर आ गए हैं और वह उस भाषा को बोलने लगे हैं– दुर्भाग्य की बात यह है। आप किसी समाज, किसी मजहब के लोगों के समर्थन में खड़े हों उनका साथ लेना चाहे इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन राहुल गांधी उनकी पार्टी के नेता वह भाषा बोलने लगे हैं जो आजादी से पहले जिन्ना बोलते थे, मुस्लिम लीग बोलती थी। राहुल गांधी अगर यह कहते हैं कि उनकी लड़ाई बीजेपी और आरएसएस से ही नहीं इंडियन स्टेट से भी है तो इंडियन स्टेट से तो वही लड़ सकता है जो इस इंडियन स्टेट के खिलाफ हो। यानी वह भारत राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहते हैं। सनातन संस्कृति से जैसी वितृष्णा राहुल गांधी और उनके साथी दिखाते हैं कांग्रेस के इतिहास में उसका दूसरा उदाहरण आपको देखने को नहीं मिलेगा। राहुल गांधी अयोध्या नहीं गए। यह वही कांग्रेस पार्टी है यूपीए शासन के दौरान जिसने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया कि भगवान राम तो काल्पनिक हैं। वास्तव में भगवान राम का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसलिए राम सेतु को भगवान राम से जोड़ना गलत होगा। ये एफिडेविट है कांग्रेस का सुप्रीम कोर्ट में और अयोध्या में राम मंदिर ना बनने पाए इसके लिए हर उपाय किया कांग्रेस पार्टी ने।
राहुल गांधी के भाषण और।मल्लिकार्जुन खरगे का यह जो ताजा बयान से लगता है कि कांग्रेस ने यह मान लिया है कि हिंदुत्व का रास्ता उनका नहीं हो सकता। हिंदुत्व के मुद्दे पर वह भाजपा से मुकाबला कर ही नहीं सकते। तो उन्होंने कहा जहां भाजपा नहीं है वहां अपनी जमीन तैयार करो– यानी मुस्लिम समाज में। और मुस्लिम समाज में उनकी लड़ाई क्षेत्रीय दलों से है तो क्षेत्रीय दलों को कमजोर करना है, उनसे मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस को छीनना है। इसके लिए उनको हिंदुत्व के खिलाफ जितना जाना पड़े, जहां तक जाना पड़े, उसके लिए तैयार है। मल्लिकार्जुन खरगे का यह बयान बताता है कि देश में जैसे-जैसे हिंदू जागृत हो रहा है, सनातन संस्कृति की जैसे-जैसे पुनर स्थापना हो रही है। अपनी सनातन विरासत को लेकर जैसे-जैसे लोग सजग और सचेत हो रहे हैं– कांग्रेस की बेचैनी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जा रही है और कांग्रेस उतनी ही ज्यादा दूसरे खेमे में, यानी हिंदू विरोधी खेमे में, खड़ी होती नजर आ रही है।
राहुल गांधी जिस रास्ते पर जा रहे हैं उससे केवल एक काम हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी पॉलिटिकली तो सरवाइव करती रहेगी– कांग्रेस पार्टी खत्म नहीं होगी– लेकिन कांग्रेस पार्टी सत्ता में आ जाएगी ऐसा होने वाला नहीं है। वह जिस रास्ते पर है उसमें बीजेपी से लड़ाई तो उनकी वैसे भी है, उस रास्ते पर ना होते तो भी थी, अब उनकी अगली लड़ाई क्षेत्रीय दलों से होने वाली है क्योंकि उनके वोट पर डाका डालने की कोशिश कर रहे हैं। क्षेत्रीय दल ऐसा क्यों होने देंगे? तो आने वाले समय में देखिए कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की मुश्किल किस तरह से बढ़ने वाली है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आपका अखबार के संपादक हैं)