(आजादी विशेष)
जब पिता ही क्रांतिकारी विचारधारा के थे तो बेटा कैसे पीछे रह सकता था। पिता के दिखाए नक्शे कदम पर आशुतोष बाल्यकाल से ही चल पड़े थे और विद्युत वाहिनी में शामिल हो गए थे। मशहूर इतिहासकार नागेंद्र सिन्हा ने अगस्त क्रांति के बलिदानियों में आशुतोष का नाम शामिल किया है। सिन्हा लिखते हैं कि 9 अगस्त 1942 से गांधीजी के आह्वान पर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ की शुरूआत हुई, जिसे अगस्त क्रांति कहते हैं। इस क्रांति में देशभर में अंग्रेजो के खिलाफ हिंसक हमले शुरू हो गए थे। मेदिनीपुर में आशुतोष के नेतृत्व में विद्युत वाहिनी एक छोटे से दस्ते ने भी 29 सितंबर, 1942 को महिषादल पुलिस थाने पर हमले की योजना बनाई गई। यह मध्य बंगाल में अंग्रेजी हुकूमत का केंद्र बिंदु था और बड़ी संख्या में यहां अस्त्र-शस्त्र मौजूद थे।
महिषादल थाने पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा लहराता था जो क्रांतिकारियों को कांटे की तरह चुभ रहा था। जैसे ही आशुतोष के नेतृत्व में विप्लवियों का दल थाने का घेराव करने पहुंचे, अंग्रेज सिपाहियों को इसकी भनक लग गई। हमलावर क्रांतिकारियों से खुद को घिरा देख ब्रिटिश सिपाहियों ने फायरिंग शुरू कर दी। अंधाधुंध गोलियां चलीं जिसमें आशुतोष घायल हो गए। तब उनकी उम्र महज 18 साल थी। घायल होते ही वह यह बात समझ गए अब सीधे हमले की बजाय कुछ और करना होगा। उन्होंने खुद जान की बाजी लगाकर ब्रिटिश सिपाहियों का ध्यान अपनी तरफ ही खींचे रखा, उन्हें उलझा लिया, ताकिउनके बाकी के साथी आसानी से थाने में घुसकर न केवल अस्त्र-शस्त्र लूट लें बल्कि अंग्रेजी हुकूमत का प्रतीक भी उतारकर तिरंगा लहरा दें।
इसीलिए गोली लगने के बाद भी वह डटे रहे और फायरिंग करने वाले सिपाहियों का ध्यान अपनी तरफ मोड़ कर रखा। जैसे ही गोलीबारी थमती थी, आशुतोष कुछ ना कुछ ऐसा करते कि फिर उनकी ओर फायरिंग होने लगती है। इससे उनके साथियों को थाने के अंदर घुसने का मौका मिल गया और अंग्रेजी झंडा को उतारकर तिरंगा लहरा दिया गया। अस्त्र-शस्त्र लूट लिए गए। इधर गोली लगने से खून से लथपथ आशुतोष ने मां भारती के चरणों में अपना जीवन सुमन अर्पित कर दिया।
आशुतोष के बलिदान होने के बावजूद क्रांतिकारियों और आसपास के गांव के लोगों की भीड़ थाने से पीछे नहीं हटी बल्कि जमकर मुकाबला किया और थाने पर कब्जा करने के बाद दरोगा के सरकारी क्वार्टर को भी आग के हवाले कर दिया गया। आशुतोष के इस बलिदान के बाद में मेदिनीपुर क्षेत्र में क्रांति की ज्वाला और भड़क उठी तथा अनेक युवकों ने विद्युत वाहिनी का हिस्सा बनकर देश को आजादी मिलने तक अंग्रेजों के दांत खट्टे किए। थाने पर हुए इस हमले से अंग्रेजों की चूलें हिल गई थीं और यहां तैनाती से अधिकारी डरने लगे थे। यह इस क्षेत्र से अंग्रेजों के पलायन की एक बड़ी वजह बनी थी।(एएमएपी)