बेटियां शेख हसीना और रेहाना जर्मनी में थीं इसलिए बच गईं।
सुरेंद्र किशोर।
बेटियां शेख हसीना और रेहाना जर्मनी में थीं अन्यथा उस दिन बांग्ला देश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान का पूरा परिवार साफ हो जाता। शेख हसीना बाद में बांग्ला देश की प्रधान मंत्री बनीं। देश में बड़े पैमाने पर विद्रोह के बाद उन्हें पांच अगस्त 2024 को उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद देश छोड़कर जाना पड़ा।
15 अगस्त, 1975… बांग्ला देश सेना के कुछ बागी युवा अफसर को टैंक लेकर ढाका स्थित राष्ट्रपति आवास पहुंचे थे। एक तरह से वह सैनिक विद्रोह था। हथियारबंद दस्ते ने पहले बंगबंधु मुजीबुर रहमान के बेटे शेख कमाल को मारा। बाद में मुजीबुर रहमान और उनके अन्य परिजनों की हत्या की। मुजीब के सभी तीन बेटे और उनकी पत्नी की बारी-बारी से हत्या कर दी गई। इस हमले में कुल 20 लोग मारे गये थे।
बगावती सेना के जवान हमले के समय कई दस्तों में बंटे थे। दस्तों ने राष्ट्रपति आवास की कई तरफ से मोर्चे बंदी कर ली थी। हमले में मुजीब परिवार का कोई पुरुष सदस्य नहीं बचा।
अपने पिता की हत्या के बाद शेख हसीना ब्रिटेन में रहने लगी थीं। वहीं से उन्होंने बांग्ला देश के नये शासकों के खिलाफ अभियान चलाया। सन 1981 में वह बांग्लादेश लौटीं और सर्वसम्मति से अवामी लीग की अध्यक्ष चुन ली गईं।
15 अगस्त 1975 की सुबह तब भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी चल रही थी। उसी समय मुजीबुर रहमान और उनके परिजनों की हत्या की यह दुःखद खबर मिली। ढाका रेडियो पर फौजी आवाज में एक मेजर ने यह समाचार दिया। उन दिनों भारत में आपातकाल था। तब इंदिरा गांधी यहां की प्रधानमंत्री थीं। सैनिक विद्रोह के समय बांग्ला देश का संपर्क बाकी दुनिया से काट दिया गया था। ढाका रेडियो ही खबरों का एकमात्र जरिया था।
यही नहीं, बांग्ला देश की बागी सेना ने पश्चिम बंगाल से लगी सीमा की नाकेबंदी भी कर दी थी। उसे डर था कि मुजीब के मित्र देश भारत से कोई हस्तक्षेप न हो जाए! मुजीबुर रहमान की मौत की खबर से भारत की सरकार व आम जनता सन्न रह गई थी। भारत का बंग बंधु से एक विशेष तरह का लगाव था। याद रहे कि भारत सरकार ने बांग्ला देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मुजीबुर रहमान की काफी मदद की थी। पर, भारत सरकार ने हत्या पर दुःख प्रकट करने के बावजूद यह कहा कि यह बांग्ला देश का अंदरूनी मामला है।
भारत के मित्र रहे मुजीब की हत्या के बाद दो कारणों से इस देश की सत्ताधारी राजनीति में भी उदासी छा गई थी। एक तो एक भरोसेमंद मित्र नहीं रहा। दूसरी बात यह भी थी कि हत्यारों ने बंगबंधु पर बांग्ला देश में तानाशाही कायम करने का आरोप लगाया था। यानी, बांग्ला देश सेना की नजरों में एक कथित ‘तानाशाह’ की हत्या हुई थी। तब यह अफवाह भी उड़ी थी कि उस घटना के बाद नई दिल्ली में कुछ कांग्रेसी नेता डर गये थे। क्योंकि कांग्रेस सरकार पर भी तब इस देश में तानाशाही कायम करने का आरोप लग रहा था। तब इस देश के लगभग सारे प्रतिपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था। पर, बाद में उन्हें यह समझ कर राहत मिली कि भारत की सेना पूरी तरह गैर राजनीतिक है। यहां ऐसे विद्रोह की कोई आशंका नहीं है।
ढाका की उस घटना में यह एक आश्चर्यजनक बात भी हुई। वह यह कि मुजीबुर रहमान के धानमंडी स्थित आवास पर जब बागी सैनिकों ने हमला किया तो राष्ट्रपति आवास के सुरक्षा प्रहरियों ने उनका प्रतिरोध नहीं किया। हमलावरों के कई दस्ते थे।
बांग्ला देशी सेना के पांच मेजर उन हमलावर दस्तों का नेतृत्व कर रहे थे। मेजर स्तर के उन अफसरों में अब्दुर रशीद ,सैयद फारुख रहमान और शरफुल हक शामिल थे। इस हत्याकांड में आठ लोगों को बाद में फांसी दे दी गई थी। इस विद्रोह में मुजीब मंत्रिमंडल के एक प्रमुख सदस्य मुश्ताक अहमद और सेना के मेजर जनरल जियाउर रहमान का हाथ बताया गया था। इस खूनी सैनिक विद्रोह के बाद खुंदगार मुश्ताक अहमद राष्ट्रपति बने। मेजर जनरल जियाउर रहमान सेना प्रमुख बने।
बंगबंधु मुजीबुर रहमान ने 26 मार्च, 1971 को पाकिस्तान से स्वतंत्रता हासिल करने के बाद प्रधान मंत्री का पद संभाला था। कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक ठाक चला। पर अपनी हत्या के कुछ ही समय पहले मुजीब ने सत्ता के स्वरूप में भारी परिवर्तन कर दिया था। ये परिवर्तन क्या था?
-वे प्रधान मंत्री से राष्ट्रपति बन गये।
-उन्होंने एकदलीय शासन प्रणाली लागू कर दी।
-चार सरकारी प्रकाशनों को छोड़कर सारे अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
-इतना ही नहीं,सन 1975 में एक संवैधानिक संशोधन के जरिए उन्होंने खुद को आजीवन राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
मुजीबुर रहमान ने कहा कि हमने देश को अराजकता और भुखमरी से बचाने के लिए ऐसा किया गया है। पर इसे सेना और नेताओं के एक हिस्से ने नापंसद किया। नतीजा सैनिक क्रांति के रुप में सामने आया।
तख्ता पलटने के बाद नये राष्ट्रपति मुश्ताक अहमद ने रेडियो पर राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि भूतपूर्व शासकों ने सत्ता में बने रहने का षड्यंत्र कर रखा था। जन साधारण की हालत बहुत खराब हो गई थी। देश की संपत्ति कुछ लोगों के हाथों में सिमट गई थी। लाखों लोगों ने देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। लेकिन उनके सपने अधूरे ही रहे। आर्थिक स्थिति गिर गई थी। प्रमुख उद्योग जूट की हालत भी बहुत बिगड़ गई थी।
मुश्ताक अहमद ने यह भी कहा कि मानव अधिकारों की रक्षा की जाएगी। हर जाति, धर्म और संप्रदाय के लोगों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी। मुश्ताक ने यह भी कहा कि बांग्ला देश सभी देशों के साथ दोस्ताना संबंध बनाना चााहेगा। उन्होंने दुनिया के देशों से अपील की कि वे बंगला देश की नई सरकार को मान्यता दें। सबसे पहले पाकिस्तान ने मान्यता दे दी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)