देश-दुनिया के इतिहास में 21 अक्टूबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख आजाद हिंद फौज और देश की आजादी के लिए बेहद खास है। वैसे तो आजाद हिंद फौज का विचार आने से लेकर इसके गठन तक कई स्तरों पर मंथन हुआ। जापान में रहने वाले रासबिहारी बोस ने इसकी अगुवाई की। जुलाई 1943 में सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से जापान के नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुंचे। वहां उन्होंने दिल्ली चलो और जय हिंद का नारा दिया।

बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार-आजाद हिंद सरकार बनाई। इसके राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष तीनों सुभाषचंद्र बोस थे। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता भी दी। फौज को आधुनिक युद्ध के लिए तैयार करने में जापान ने बड़ी मदद की। इंफाल और काहिमा के मोर्चे पर कई बार भारतीय ब्रिटिश सेना को आजाद हिंद फौज ने युद्ध में हराया। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमलों के बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया और यहीं से आजाद हिंद फौज का पतन शुरू हुआ। सैनिकों पर लाल किले में मुकदमा चला। इस मुकदमे ने भारत में क्रांति की लौ को और तेज प्रज्ज्वलित किया।

आज़ाद हिंद सरकार में हर क्षेत्र के लिए थी योजना

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्‍व में आज़ाद हिंद सरकार ने हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई थीं। इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्तचर तंत्र था। नेताजी ने देश के बाहर रहकर, सीमित संसाधनों के साथ, शक्तिशाली साम्राज्‍य के खिलाफ व्‍यापक तंत्र विकसित किया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने बैंक और स्वाधीन भारत के लिए अपनी मुद्रा के निर्माण के आदेश दिए। आजाद हिंद सरकार की अपनी बैंक थी, जिसका नाम आजाद हिंद बैंक था। आजाद हिंद बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये का नोट जारी किया था। एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी।

सुभाष चंद्र बोस ने जापान और जर्मनी की मदद से आजाद हिंद सरकार के लिए नोट छपवाने का इंतजाम किया था। जर्मनी ने आजाद हिन्द सरकार के लिए कई डाक टिकट जारी किए थे, जिन्हें आजाद डाक टिकट कहा जाता था।  ये टिकट आज भारतीय डाक के स्वतंत्रता संग्राम डाक टिकटों में शामिल हैं। आजाद हिंद सरकार सशक्त क्रांति का अभूतपूर्व उदाहरण था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजी हुकूमत यानी एक ऐसी सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट किया, जिसका सूरज कभी अस्‍त नहीं होता था, दुनिया के एक बड़े हिस्‍से में जिसका शासन था।

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नेताजी थे आज़ाद हिंद सरकार के प्रधानमंत्री

आज़ाद हिंद सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगा को चुना था, रवींद्र नाथ टैगोर रचित ‘जन-गण-मन’ को राष्ट्रगान बनाया था। एक दूसरे से अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करने की परंपरा शुरू की गई थी। 21 मार्च 1944 को ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ आज़ाद हिंद सरकार का हिंदुस्तान की धरती पर आगमन हुआ। आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते हुए नेताजी ने ऐलान किया था कि लाल किले पर एक दिन पूरी शान से तिरंगा लहराया जाएगा। आजाद हिंद सरकार ने देश से बाहर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। इस सरकार ने अंग्रेजों को बता दिया कि भारत के लोग अब अपनी जमीन पर बाहरी हुकूमत को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे।आजाद हिंद सरकार की स्थापना के 75वीं वर्षगांठ पर 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराया था।

‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’

‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा बुलंद करने वाले महान देशभक्त सुभाष चंद्र बोस एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने न सिर्फ देश के अंदर बल्कि देश के बाहर भी आज़ादी की लड़ाई लड़ी। राष्ट्रीय आंदोलन में नेताजी का योगदान कलम चलाने से लेकर आज़ाद हिंद फौज का नेतृत्व कर अंग्रेज़ों से लोहा लेने तक रहा है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपने कॉलेज के शुरुआती दिनों में ही बंगाल में क्रांति की वो मशाल जलाई, जिसने भारत की आज़ादी की लड़ाई को एक नई धार दी। (एएमएपी)