स्मरण: रतन टाटा (28 दिसंबर 1937 – 9 अक्टूबर 2024)।

असीम अरुण।
वाकया 2007 या 2008 का होगा, जब मैं एसपीजी में प्रधानमंत्री जी की सुरक्षा में था। स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) का ध्येय वाक्य है, ‘जीरो एरर’ यानि ‘त्रुटि शून्य’ और एसपीजी में इसके लिए हमेशा विचार मंथन और उस पर कार्रवाई चलती भी रहती है। इसी क्रम में एक लेक्चर आयोजित किया गया जिसमें श्री रतन टाटा जी को वक्ता के रुप में आमंत्रित किया गया था।

एसपीजी में ऐसे अवसरों पर सामान्य शिष्टाचार होता है कि एक अधिकारी मुख्य अतिथि को लेने के लिए जाता है और सौभाग्य से उस दिन यह जिम्मेदारी मिली, मुझे। निश्चित समय पर मैं उन्हें एस्कार्ट करने के लिए ताज मान सिंह होटल, नई दिल्ली पहुंच गया। मालूम हुआ कि टाटा जी जब भी दिल्ली में होते हैं तो यहीं रुकते हैं। प्रेसिडेंशियल सुइट में नहीं, बल्कि एक सामान्य कमरे में। उनको ले कर जब हम निकलने लगे तो उन्होंने, मुझे अपनी गाड़ी में ही बिठा लिया और यहां शुरु हुआ मेरे जीवन का एक सुंदर पन्ना। करीब 50 साल पुरानी मर्सिडीज और केवल ड्राइवर, ऐसे चलते थे वे। मैंने पूछा सर आपके साथ कोई सुरक्षा क्यों नहीं है तो सहजता से बोले मुझे भला किससे ख़तरा हो सकता है? मैंने फिर पूछा कि सर कोई सहयोगी कर्मी तो होना चाहिए जो आपके फोन संभालने जैसे काम करे तो बोले मुझे कभी ऐसी आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई।

रास्ता दिखाने के लिए, पायलट करने के लिए उनकी गाड़ी के आगे एक एसपीजी की टाटा सफारी मैंने लगा रखी थी। जब उनका ध्यान इस गाड़ी पर गया तो बहुत असहज हो गए और बोले इसे हटवा दीजिए। मेरी बुद्धि कह रही थी कि एसपीजी का पायलट पा कोई भी आदमी अपना कालर खड़ा कर लेगा लेकिन जब तक पायलट हटा नहीं टाटा जी को चैन नही आया।

लेक्चर का विषय था ‘Developing Excellence in an Organization’ या ‘संस्था में उत्कृष्टता का विकास’। लेक्चर समाप्त हुआ, टाटा जी अपनी 50 साल पुरानी मर्सिडीज में बैठे तो मैंने पूछा कि सर, क्या आपके साथ एयरपोर्ट तक चलूं। “ If you have nothing better to do, please join”. यदि आपके पास कोई और काम नहीं है तो चलिए। एक घंटे मैं उनके साथ रहा, हर तरह के सवाल पूछे। उनके जवाबों में गज़ब की सरलता थी और मुद्दों को समझने और हल करने की क्षमता।

मैंने उनसे पूछा, “एक्सीलेंस यानि उत्कृष्टता विकसित करने का क्या फार्मूला है?”

वो बोले, “आपकी कंपनी या विभाग जो काम करता है उसे ‘sub-processes’ में बांटे और हर अंश को पक्का करें, प्रक्रिया बनाएं और क्वालिटी कंट्रोल का सशक्त सिस्टम बनाएं। अंतिम परिणाम तभी मुकम्मल होगा जब उसको फीड करने वाले अंग भी पर्फेक्ट होंगे।”

टाटा मोटर्स ने एसपीजी के लिए ख़ास बुलेट प्रूफ कार और एस्कार्ट कार तैयार की थीं। अनुसंधान पर बहुत खर्च भी किया था, लेकिन उस समय एसपीजी ने बीएमडब्लू भी खरीदना शुरू कर दिया था। मैंने पूछा, “सर आपको इससे निराशा होगी क्या”?

बोले, “नहीं, मुझे बिल्कुल निराशा नहीं होगी। अगर टाटा मोटर्स को मार्किट में रहना है तो प्रतियोगिता में शामिल रहना होगा। एसपीजी बेस्ट कार ही लेगी। मुझे अपनी सफारी को बेस्ट बनाना होगा। मैं अपनी टीम को तुरंत लगाऊंगा कि बीएमडब्लू को स्टडी करें, उनके फीचर्स को सफारी में शामिल करें और आगे बढ़ें। उत्कृष्टता की यात्रा निरंतरता की है।”

कुछ और भी रोचक बातें उन्होंने शेयर कीं जिन्हें फिर कभी मैं आपके साथ साझा करूंगा। इतने महान व्यक्ति का सानिध्य मिलना बहुत बड़ा सौभाग्य था। सौभाग्य और बढ़ गया जब कुछ दिन बाद उनका यह धन्यवाद पत्र मुझे मिला। जिसे संजो कर मैंने रखा है और हमेशा रखूंगा, पत्र भी और उनकी सीख भी।

ईश्वर से प्रार्थना है कि रतन टाटा जी की आत्मा को शांति मिले। वैसे शांति तो उन्हें जीते जी भी पर्याप्त थी, जिसका व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त करने का बहुमूल्य अवसर मुझे मिला था।

(लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) समाज कल्याण हैं। आलेख सोशल मीडिया से साभार)

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