देश-दुनिया के इतिहास में 26 अगस्त की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारत के स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख अध्याय में याद की जाती है। इसी तारीख को 1914 में क्रांतिकारियों ने कोलकाता में अंग्रेजों के हथियार लूट लिए थे। इन लूटे हथियारों का इस्तेमाल काकोरी कांड से लेकर गदर आंदोलन में भी किया गया।दरअसल 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का बंटवारा कर दिया था। इस बंटवारे के पीछे गोरों की चाल भारत के हिन्दू-मुस्लिम को बांटने की थी और भारतीय इस बात को समझ चुके थे। पूरे भारत में इस फैसले का विरोध होने लगा और इसका केंद्र बंगाल था। बंगाल विभाजन के बाद से ही कई ब्रिटिश ऑफिसर्स की हत्या हो चुकी थी। 1911 में ब्रिटिशर्स ने राजधानी को कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट कर दिया था। इसके पीछे एक वजह बंगाल में बढ़ता विद्रोह भी था। 1914 में विश्वयुद्ध शुरू हुआ और ब्रिटिशर्स का ध्यान युद्ध पर लग गया। क्रांतिकारियों के लिए विद्रोह का यह बढ़िया मौका था, लेकिन इसके लिए हथियार चाहिए थे।

मुक्ति संघ और आत्मोन्नति समिति नाम के दो संगठनों ने हथियार जुटाने के लिए हाथ मिलाया। बिपिन बिहारी गांगुली के एक दोस्त कोलकाता की रोडा एंड कंपनी में काम करते थे। रोडा एंड कंपनी एक ब्रिटिश कंपनी थी और भारत में गोरों को बंदूक और हथियार सप्लाई करती थी। गांगुली ने अपने दोस्त से बात कर क्रांतिकारी शिरीष चंद्र मित्रा को रोडा कंपनी में नौकरी दिलवाई। मित्रा को खबर मिली कि माउजर पिस्टल का बड़ा जखीरा कोलकाता आ रहा है। इस जखीरे को पोर्ट से कंपनी के गोदाम तक लाने की जिम्मेदारी मित्रा की ही थी। मित्रा ने ये जानकारी साथी क्रांतिकारियों को दी और क्रांतिकारी लूट की तैयारी में जुट गए। कोलकाता में ही क्रांतिकारियों ने कई मीटिंग की जिसमें लूट की योजना बनी।

26 अगस्त, 1914 को सुबह 11 बजे मित्रा खेप लेने पोर्ट की ओर निकले। मित्रा ने खेप लेने के लिए छह बैलगाड़ी अपने साथ ली। क्रांतिकारियों ने प्लान के मुताबिक अपनी बैलगाड़ी को भी खेमे में शामिल कर दिया। इस बैलगाड़ी को क्रांतिकारी हरिदास दत्ता चला रहे थे। कुल 202 बक्सों में माउजर पिस्टल और गोलियां लोड थीं। इनमें से 10 बक्से दत्ता की बैलगाड़ी में रखे गए। सभी बैलगाड़ियां गोदाम की तरफ निकलीं। दत्ता की बैलगाड़ी सबसे आखिर में थी जिसके आसपास शिरीष चंद्र पाल और खगन दास कंपनी के कर्मचारी बनकर चल रहे थे।

हरिदास दत्ता की बैलगाड़ी कंपनी के गोदाम पहुंचने की जगह मलंग लेन पहुंच गई और यहां हथियार उतार लिए गए। प्लान के मुताबिक मित्रा भी सातवीं बैलगाड़ी को ढूंढने के बहाने से मलंग लेन पहुंचे और यहीं से रंगपुर भाग निकले। हथियारों को मलंग लेन से भुजंग भूषण धर के घर ले जाया गया। क्रांतिकारियों के हाथ 50 माउजर और 46 हजार कारतूस लगे।(एएमएपी)