आरएसएस विचारक सुरेश सोनी ने कहा, यूरोपीय जहां गए वहां की संस्कृति को नष्ट किया।

आपका अखबार ब्यूरो ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सह सरकार्यवाह और प्रख्यात चिंतक श्री सुरेश सोनी ने कहा कि जब भारतीय संस्कृति के हिन्द महासागर क्षेत्र, दक्षिण-एशिया और दुनिया के दूसरे देशों पर प्रभाव की बात करते हैं, तो वह यूरोप के प्रभाव की तरह नहीं है। यूरोपीय देश जहां गए, उन्होंने वहां की संस्कृति को, वहां के लोगों की स्वतंत्रता को नष्ट कर दिया। लेकिन भारतीय जहां गए, उन्होंने अपनी ज्ञान परम्परा से वहां के लोगों के जीवन को, उनकी संस्कृति को समृद्ध किया। वहां की किसी चीज का विनाश नहीं किया। इसलिए वहां के लोगों में आज भी भारत के प्रति आदर का भाव दिखाई देता है।

सुरेश सोनी ने यह बात नई दिल्ली में गुरुवार 13 फरवरी को केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय की अंतरराष्ट्रीय पहल प्रोजेक्ट मौसम के तहत इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार मानसून: द स्फीयर ऑफ कल्चरल एंड ट्रेड इन्फ्लुएंस के समापन समारोह में कही। सेमिनार का आयोजन एसजीटी विश्वविद्यालय के एडवांस स्टडी इंस्टीट्यूट ऑफ एशिया के सहयोग से किया गया। समापन सत्र में आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी और ‘एशिया’ के शोध निदेशक प्रो. अमोघ राय भी उपस्थित रहे।

सुरेश सोनी ने कहा, एक बार नोबल पुरस्कार विजेता वी.एस. नायपॉल जीवन में पहली बार दक्षिण-पूर्व एशिया की यात्रा करते हुए भारत आए और जो कुछ वहां (दक्षिण-पूर्व एशिया) उन्होंने देखा, उसका उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने दिल्ली में एक मीटिंग में कहा कि आमतौर पर सारा विश्व भारत को जो समझता है, वह पिछले ढाई सौ साल में जो लिखा गया है, उसके आधार पर समझता है। और, उसमें ज़्यादातर जो लिखा गया है, वह भारत की सही छवि नहीं पेश करता। लेकिन पिछले ढाई हज़ार साल में जो लिखा गया है, उसको अगर सामने लाया जाता है, तो उसमें से भारत का सही चित्र उभरकर सामने आएगा।

उन्होंने कहा कि वैदिक काल से हमारी जितनी प्रार्थनाएं हैं, उनमें पूरे विश्व के कल्याण की कामना की गई है। सिर्फ मनुष्य के कल्याण की नहीं, सृष्टि के सभी जीवों के कल्याण की प्रार्थना की गई है। आज स्पेशलाइजेशन का ज़माना आ गया है। व्यापार वाला कर रहा है, तो व्यापार का ही अध्ययन कर रहा है। संस्कृति वाला केवल संस्कृति का कर रहा है। उन्होंने कहा कि जब भारत के अन्य देशों पर प्रभाव का अध्ययन करते हैं, तो विषयों को अलग-अलग करके न देखें। आवश्यकता इस बात की है कि अगर व्यापार के प्रभाव का अध्ययन करें, तो केवल व्यापार का अध्ययन न करें। कृषि का या मंदिर स्थापत्य का अध्ययन करें, तो समग्रता में करें, क्योंकि भारतीय संस्कृति में चीजें एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। भारत में एकात्म अध्ययन है। उदाहरण के लिए मंदिर केवल एक संरचना नहीं है, उसका एक दर्शन भी है, तो केवल संरचना का अध्ययन करने से मंदिर को नहीं समझा जा सकता। इस संदर्भ में उन्होंने मंदिरों की बनावट का उदाहरण देते हुए कहा कि नींव के अंदर पत्थर होते हैं, फिर जैसे ऊपर प्लेटफॉर्म आएगा, तो वहां भिन्न-भिन्न प्रकार के पशुओं का चित्रण दिखाई देगा। और ऊपर आएंगे, तो खजुराहो के मंदिरों में देखेंगे कि मनुष्य के अंदर जो श्रृंगार का भाव है, उसका चित्रण है। उससे थोड़ा ऊपर जाएंगे, तो कला-संस्कृति, किन्नर, गंधर्व आदि का चित्रण दिखाई देगा। उसके ऊपर देवता दिखाई देंगे, फिर उसके ऊपर जाएंगे तो निर्गुण आएगा। मंदिरों में जीवन का क्रमिक विकास- जड़त्व से पशुत्व, पशुत्व से मनुष्यत्व और मनुष्यत्व से देवत्व का विकास दिखाई देगा। इसी तरह जब हम खेती का अध्ययन करते हैं, उसमें केवल फसल, खेती के तरीके आदि का अध्ययन न करें। कृषि के साथ कुछ अनुष्ठान भी जुड़े होते हैं, अध्ययन में उनको भी शामिल करें। भारतीय संस्कृति में कृषि हो, व्यापार हो, संस्कृति हो, सब देवत्व से जुड़े हैं।

गौरतलब है कि इस सेमिनार ने समुद्री संपर्कों के माध्यम से हिंद महासागर के देशों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की खोज करते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार, परंपराओं और संबंधों को आकार देने में भारत की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित किया। इस दो दिवसीय सेमिनार का शुभारम्भ केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने किया था। दो दिनों में कुल 38 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। इस दौरान तीन शोधपत्रों को पुरस्कृत भी किया गया। डॉ. सहेली चटराज को उनके शोध पत्र ‘झेंग हे’ज वॉयोजेज अक्रॉस द सीः कनेक्टिंग ट्रेड रूट्स इन एशिया एंड अफ्रीका’ के लिए ऑनरेरी मेंशन अवॉर्ड दिया गया। वहीं कीर्तना गिरीश को उनके पेपर ‘हार्मोनीज ऑफ हाइब्रिड कल्चरः द रोल ऑफ साउथ इंडियन म्यूजिक इन शेपिंग साउथ-ईस्ट एशियन कल्चरल लैंडस्केप’ और जूही माथुर को उनके शोध पत्र ‘मल्टीफेसेटेड रामायण इन साउथ-ईस्ट एशियन हिस्ट्री ऑफ मास्क्स इन रामायण प्लेज’ के लिए सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र का पुरस्कार दिया गया।

कार्यक्रम के अंत में आईजीएनसीए के प्रोजेक्ट मौसम के निदेशक डॉ. अजीत कुमार ने अतिथियों, वक्ताओं और आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।