आपका अखबार ब्यूरो।

‘पद्म श्री’ मालती जोशी (4 जून 1934 – 15 मई 2024) उन साहित्यकारों में से थीं, जिन्होंने धारा के विपरीत लिखने का साहस किया। जब साहित्य में सम्बंधों में बिखराव, अलगाव, निराशा, हताशा की कहानियों का दौर चलन में था और पारिवारिक मूल्यों का ह्रास सहज ही देखने को मिल रहा था, तब मालती जी ने परिवार को केन्द्र में रखकर कहानियां कहीं। अपनी बात स्पष्टता और दृढ़ता से कहते हुए उन्होंने सामाजिक व्यवस्था पर सवाल भी उठाए, लेकिन भारतीय मूल्यों को कभी छोड़ा नहीं। उन्होंने लगभग 60 पुस्तकों की रचना की। वह मराठी और हिन्दी साहित्य जगत में समान रूप से समादृत थीं।

उनकी कहानियों में भारतीय मध्यवर्ग का जीवन अपनी संपूर्णता में प्रकट हुआ है। उनकी कहानियों का कथ्य, उनके पात्र आम आदमी को अपने-से लगते हैं। लगता है कि ये कहानियां और इनमें उपस्थित पात्र अपने आसपास के ही हैं। उनकी कहानियों में सामान्य तौर पर स्त्रियां केन्द्रबिन्दु में हैं, लेकिन उनकी स्त्री दृष्टि पूरी तरह से भारतीय है, पश्चिम से प्रभावित नहीं है।

मालती जी को उनके 91वें जन्मदिन पर याद करते हुए इंदौर के जाल सभागृह में दो दिवसीय आत्मीय साहित्यिक आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन मालती जी के सुपुत्रों- ऋषिकेश और सच्चिदानंद जोशी द्वारा किया गया। इस अवसर पर साहित्य, कला और सामाजिक क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियां उपस्थित थी। दिन और स्थान दोनों का चयन महत्वपूर्ण था, क्योंकि 4 जून को मालती जी का जन्मदिन था और इंदौर शहर से उन्हें विशेष लगाव था। इसी अवसर पर मालती जी की स्मृतियों पर आधारित पुस्तक ‘स्मृति कल्प’ का भी लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम की रूपरेखा मालती जी के छोटे सुपुत्र डॉ सच्चिदानंद जोशी, जो इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव और जाने माने साहित्यकार हैं, ने बनाई और उसे मूर्तरूप दिया जोशी परिवार और इंदौर के साहित्यकारों, रंगकर्मियों और मित्र-परिवार ने। दोनों ही दिन के कार्यक्रम मालती जी के साहित्य पर केन्द्रित थे।

पहले दिन कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और लगातार आठ बार इंदौर की सांसद रहीं सुमित्रा ताई महाजन। विशेष अतिथि थे प्रख्यात पत्रकार और कवि प्रो, सरोज कुमार और वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नगर। स्वागत और आयोजन की भूमिका बांधी मालती के बड़े पुत्र ऋषिकेश जोशी ने। उन्होंने मालती जी की स्मृति में ट्रस्ट की स्थापना की भी घोषणा की।

मालती जी के अनुज श्री चंद्रशेखर दिघे ने भी अपने संस्मरण सुनाए। तीन प्रतिष्ठित साहित्यकारों- सुश्री अनीता सक्सेना, सुश्री अनीता सिंह और श्री संजय पटेल ने मालती जी की कथाओं का पाठ कर ‘कथा कथन’ की मालती जी की परम्परा को आगे बढ़ाया। ख्यातनाम रंगकर्मी श्रीराम जोग के निर्देशन में नाट्य भारती, इंदौर के कलाकारों ने मालती जी की दो कथाओं का मंचन किया, जो श्रोताओं के लिए अनूठा अनुभव था। ज्ञात हो कि मालती जी अपनी कहानियों का पाठ बिना देखे करके श्रोताओं को चमत्कृत कर देती थीं।

दूसरे दिन, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक और मीडिया गुरु के रूप में विख्यात प्रो संजय द्विवेदी। विशेष अतिथि थीं वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक निर्मला भुराड़िया और कथाकार ज्योति जैन। स्वागत वक्तव्य और मालती जी के कृतित्व पर प्रकाश डाला  मालती जी के छोटे पुत्र सच्चिदानंद जोशी ने। उन्होंने मालती जी के साथ के अपने कुछ नायब, अनसुने अनुभव भी साझा किए।

तीन प्रतिष्ठित साहित्यकारों, कलाकारों श्री संतोष मोहंती, सुश्री अर्चना मंडलोई और श्री मिलिंद देशपांडे ने मालती जी की कथाओं का ‘कथा कथन’ किया। ख्यातनाम रंगकर्मी और फिल्म कलाकार विवेक सावरीकर  के निर्देशन में रंग मोहिनी, भोपाल के कलाकारों ने मालती जी की दो कथाओं का मंचन किया। यह भी एकदम अलग तरह की प्रस्तुति थी। ख्यातिलब्ध अभिनेता ज्योति सावरीकर ने अपने अभिनय से मालती को सजीव कर दिया। लगभग तीन सौ की क्षमता वाला ‘जाल सभागृह’ दोनों ही दिन हॉल पूरा भरा था, जो मालती जी के प्रति उनके पाठकों के प्रेम को दर्शाता है।

धन्यवाद देने का काम मालती जी की दोनों बहुओं- मालविका और अर्चना जोशी ने किया। कार्यक्रम का संचालन शांतनु जोशी ने किया। मालती जी की कविताओं का सुरीला गायन तन्वी जोशी ने किया। दुष्यंत जोशी ने मालती जी के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी का आयोजन किया, जिसमें मालती जी के सादगी भरे जीवन की बानगी प्रस्तुत की गई थी।