नई दिल्‍ली । यरूशलेम का इतिहास समृद्ध और जटिल है, जो सदियों से विभिन्न धार्मिक और राजनीतिक विकासों से चिह्नित है। एक विस्तृत अवलोकन प्रदान करने के लिए, हम यरूशलेम की बसावट, इसके शुरुआती निवासियों, इसके नियंत्रण के लिए लड़े गए युद्ध, इसके पहले मंदिर के निर्माण और अल-अक्सा मस्जिद के निर्माण से संबंधित प्रमुख घटनाओं का पता लगाएंगे।

जेरूसलम की बसावट

जेरूसलम की कहानी सहस्राब्दियों तक फैली हुई है, जिसकी उत्पत्ति सभ्यता की शुरुआत से होती है। हम पता लगाएंगे कि यह प्राचीन शहर कैसे बसा था, इसके शुरुआती निवासियों और इसकी समृद्ध टेपेस्ट्री में उनके योगदान की जांच करेंगे।

प्राचीन निवासी

यरूशलेम का इतिहास इसके प्राचीन निवासियों की कहानियों से जटिल रूप से जुड़ा हुआ है। शहर की यात्रा चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के आसपास कनानियों के आगमन के साथ शुरू होती है। इन प्रारंभिक निवासियों ने यरूशलेम के भविष्य के महत्व के बीज बोते हुए, क्षेत्र के पहले समुदायों में से एक की स्थापना की। 1800 ईसा पूर्व के आसपास, यबूसियों ने उस स्थान पर एक शहर का निर्माण करके एक अमिट छाप छोड़ी जो बाद में यरूशलेम बन गया। जेबस के नाम से मशहूर इस शहर ने शहर के शुरुआती विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके अनूठे चरित्र में योगदान दिया।

इज़राइली शासन और पहला मंदिर

यरूशलेम के इतिहास के इतिहास को महत्वपूर्ण रूप से इज़राइली शासन द्वारा आकार दिया गया था। 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व में राजा डेविड की शहर पर विजय एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। शहर का नाम बदलकर “डेविड का शहर” कर दिया गया और राजा सोलोमन के शासनकाल में, यहूदियों का प्रसिद्ध प्रथम मंदिर, जिसे अक्सर सोलोमन का मंदिर कहा जाता है, का निर्माण किया गया था। इस प्रतिष्ठित संरचना ने इज़राइली पूजा के केंद्र के रूप में कार्य किया और वाचा के पवित्र सन्दूक को रखा, जिसने मूल रूप से शहर की पहचान और धार्मिक महत्व को प्रभावित किया।

नियंत्रण के लिए युद्ध

पूरे इतिहास में, यरूशलेम की रणनीतिक स्थिति और आध्यात्मिक महत्व ने इसे एक प्रतिष्ठित पुरस्कार बना दिया है। युद्धों और विजयों की एक श्रृंखला ने इसका मार्ग परिभाषित किया। बेबीलोनियाई विजय (587/586 ईसा पूर्व): शहर बेबीलोनियों के कब्जे में आ गया, जिसके परिणामस्वरूप प्रथम मंदिर का दुखद विनाश हुआ और अनगिनत यहूदियों का निर्वासन हुआ। फ़ारसी युग: फ़ारसी शासन के तहत, यरूशलेम में यहूदी समुदाय की वापसी हुई और दूसरे मंदिर सहित शहर का पुनर्निर्माण हुआ। हेलेनिस्टिक प्रभाव: सिकंदर महान की विजय ने यरूशलेम में हेलेनिस्टिक तत्वों को पेश किया, जिससे हेलेनिस्टिक शासकों और स्थानीय यहूदी आबादी के बीच तनाव बढ़ गया। मैकाबीन विद्रोह (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व): मैकाबीज़, एक यहूदी विद्रोही गुट, ने सेल्यूसिड शासन से सफलतापूर्वक स्वतंत्रता हासिल की, जिससे यहूदी स्वशासन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

रोमन विजय और उससे आगे

निर्णायक मोड़ 63 ईसा पूर्व में आया जब रोमन जनरल पोम्पी ने यरूशलेम पर कब्ज़ा कर लिया और शहर पर रोमन प्रभुत्व के एक नए युग की शुरुआत की। यरूशलेम की ऐतिहासिक यात्रा विभिन्न साम्राज्यों और राजवंशों के प्रभाव में आगे बढ़ती रही।

अल-अक्सा मस्जिद का जन्म

अल-अक्सा मस्जिद, इस्लामी विरासत का एक प्रतिष्ठित प्रतीक, टेम्पल माउंट के ऊपर स्थित है। इस्लामिक परंपरा के अनुसार, यह पवित्र मस्जिद 7वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान बनाई गई थी। उमय्यद खलीफा अल-वालिद इब्न अब्द अल-मलिक ने 705 ईस्वी में इसका निर्माण कराया, जिससे यह अस्तित्व में सबसे पुरानी इस्लामी संरचनाओं में से एक बन गई। मुसलमानों के लिए, अल-अक्सा मस्जिद को मक्का में काबा और मदीना में पैगंबर की मस्जिद के बाद इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल होने का गौरव प्राप्त है।

विरासत और महत्व

विविध निवासियों और विजेताओं द्वारा परिभाषित यरूशलेम के इतिहास की समृद्ध टेपेस्ट्री ने शहर की सांस्कृतिक, वास्तुकला और ऐतिहासिक पहचान को अमिट रूप से चिह्नित किया है। उनकी सामूहिक विरासतें शहर के धार्मिक, स्थापत्य और सांस्कृतिक स्थलों के माध्यम से गूंजती रहती हैं, प्रत्येक इसकी जटिल कथा में एक परत जोड़ता है। यरूशलेम यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम सहित कई धर्मों के लिए गहन धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का स्थान बना हुआ है। सदियों से, इसकी संप्रभुता और नियंत्रण पर बहस और संघर्ष जारी रहे हैं, जो इस प्राचीन शहर के स्थायी महत्व को दर्शाते हैं।

कौन से चार हिस्से?

आज यरूशलम अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच विभाजन और संघर्ष की वजह से सुर्ख़ियों में रहता है. लेकिन इस शहर का इतिहास इन्हीं लोगों को आपस में जोड़ता भी है।

शहर के केंद्र बिंदू में एक प्राचीन शहर है जिसो ओल्ड सिटी कहा जाता है. संकरी गलियों और ऐतिहासिक वास्तुकला की भूलभुलैया इसके चार इलाक़ों- ईसाई, इस्लामी, यहूदी और अर्मेनियाईं- को परिभाषित करती हैं। इसके चारों ओर एक किलेनुमा सुरक्षा दीवार है जिसके आसपास दुनिया के सबसे पवित्र स्थान स्थित हैं. हर इलाक़ें की अपनी आबादी है। ईसाइयों को दो इलाक़ें हैं क्योंकि अर्मेनियाई भी ईसाई ही होते हैं. चारों इलाक़ों में सबसे पुराना इलाक़ा अर्मेनियाइयों का ही है। ये दुनिया में अर्मेनियाइयों का सबसे प्राचीन केंद्र भी है. सेंट जेंम्स चर्च और मोनेस्ट्री में अर्मेनियाई समुदाय ने अपना इतिहास और संस्कृति सुरक्षित रखी है।

खुला होली शेपल्कर

ईसाई इलाक़े में ‘द चर्च आफ़ द होली सेपल्कर’ है. ये दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है. ये जिस स्थान पर स्थित है वो ईसा मसीह की कहानी का केंद्रबिंदू है। यहीं ईसा मसीह की मौत हुई थी, उन्हें सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं से वो अवतरित हुए थे. दातर ईसाई परंपराओं के मुताबिक, ईसा मसीह को यहीं ‘गोलगोथा’ पर सूली पर चढ़ाया गया था। इसे ही हिल ऑफ़ द केलवेरी कहा जाता है. ईसा मसीह का मक़बरा सेपल्कर के भीतर ही है और माना जाता है कि यहीं से वो अवतरित भी हुए थे। इस चर्च का प्रबंधन ईसाई समुदाय के विभिन्न संप्रदायों, ख़ासकर ग्रीक ऑर्थोडॉक्स पैट्रियार्केट, रोमन कैथोलिक चर्च के फ्रांसिस्कन फ्रायर्स और अर्मेनियाई पैट्रियार्केट के अलावा इथियोपियाई, कॉप्टिक और सीरियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च से जुड़े पादरी भी संभालते हैं। दुनियाभर के करोड़ों ईसाइयों के लिए ये धार्मिक आस्था का मुख्य केंद्र हैं. हर साल लाखों लोग ईसा मसीह के मक़बरे पर आकर प्रार्थना और पश्चाताप करते हैं।

मस्जिद की कहानी?

मुसलमानों का इलाक़ा चारों इलाक़ों में सबसे बड़ा है और यहीं पर डोम ऑफ़ द रॉक और मस्जिद अल अक़्सा स्थित है. यह एक पठार पर स्थित है जिसे मुस्लिम हरम अल शरीफ़ या पवित्र स्थान कहते हैं। मस्जिद अल अक़्सा इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है और इसका प्रबंधन एक इस्लामिक ट्रस्ट करती है जिसे वक़्फ़ कहते हैं। मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद ने मक्का से यहां तक एक रात में यात्रा की थी और यहां पैगंबरों की आत्माओं के साथ चर्चा की थी. यहां से कुछ क़दम दूर ही डोम ऑफ़ द रॉक्स का पवित्र स्थल है यहीं पवित्र पत्थर भी है. मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने यहीं से जन्नत की यात्रा की थी। मुसलमान हर दिन हज़ारों की संख्या में इस पवित्र स्थल में आते हैं और प्रार्थना करते हैं. रमज़ान के महीने में जुमे के दिन ये तादाद बहुत ज़्यादा होती है।

पवित्र दीवार

यहूदी इलाकडे में ही कोटेल या पश्चिमी दीवार है. ये वॉल ऑफ़ दा माउंट का बचा हिस्सा है. माना जाता है कि कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था। इस पवित्र स्थल के भीतर ही द होली ऑफ़ द होलीज़ या यूहूदियों का सबसे पवित्र स्थान था। यहूदियों का विश्वास है कि यही वो स्थान है जहां से विश्व का निर्माण हुआ और यहीं पर पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी. कई यहूदियों का मानना है कि वास्वत में डोम ऑफ़ द रॉक ही होली ऑफ़ द होलीज़ है। आज पश्चिमी दीवार वो सबसे नज़दीक स्थान है जहां से यहूदी होली ऑफ़ द होलीज़ की अराधना कर सकते हैं। इसका प्रबंधन पश्चिमी दीवार के रब्बी करते हैं. यहां हर साल दुनियाभर से दसियों लाख यहूदी पहुंचते हैं और अपनी विरासत के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं।

क्यों हैं तनाव?

यरूशलम की स्थिति में ज़रा सा भी बदलाव हिंसक झड़पों की वजह बनता रहा है फ़लस्तीनी और इसराइली विवाद के केंद्र में प्राचीन यरूशलम शहर ही है. यहां की स्थिति में बहुत मामूली बदलाव भी कई बार हिंसक तनाव और बड़े विवाद का रूप ले चुका है. यही वजह है कि यरूशलम में होने वाली हर घटना महत्वपूर्ण होती है। इस प्राचीन शहर में यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्म के सबसे पवित्र स्थल हैं. ये शहर सिर्फ़ धार्मिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि कूटनीतिक और राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम है। अधिकतर इसराइली यरूशलम को अपनी अविभाजित राजधानी मानते हैं. इसराइल राष्ट्र की स्थापना 1948 में हुई थी. तब इसराइली संसद को शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थापित किया गया था. 1967 के युद्ध में इसराइल ने पूर्वी यरूशलम पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था। प्राचीन शहर भी इसराइल के नियंत्रण में आ गया था. बाद में इसराइल ने इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। यरूशलम पर इसराइल की पूर्ण संप्रभुता को कभी मान्यता नहीं मिली है और इसे लेकर इसराइल नेता अपनी खीज जाहिर करते रहे हैं।

यरूशलमइमेज स्रोत

ज़ाहिर तौर पर फ़लस्तीनियों का नज़रिया इससे बिलकुल अलग है. वो पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में मांगते हैं. इसराइल-फ़लस्तीन विवाद में यही शांति स्थापित करने का अंतरराष्ट्रीय फ़ॉर्मूला भी है।  इसे ही दो राष्ट्र समाधान के रूप में भी जाना जाता है. इसके पीछे इसराइल के साथ-साथ 1967 से पहले की सीमाओं पर एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र के निर्माण का विचार है. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों में भी यही लिखा गया है। यरूशलम की एक तिहाई आबादी फ़लस्तीनी मूल की है जिनमें से कई के परिवार सदियों से यहां रहते आ रहे हैं. शहर के पूर्वी हिस्से में यहूदी बस्तियों का विस्तार भी विवाद का एक बड़ा का कारण है. अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत ये निर्माण अवैध हैं पर इसराइल इसे नकारता रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय दशकों से ये कहता रहा है कि यरूशलम की स्थिति में कोई भी बदलाव शांति प्रस्ताव से ही आ सकता है. यही वजह है कि इसराइल में दूतावास रखने वाले सभी देशों के दूतावास तेल अवीव में स्थित हैं और यरूशलम में सिर्फ़ कांसुलेट हैं। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ज़ोर दे रहे हैं कि वो अपने दूतावास को यरूशलम में स्थानांतरित करना चाहते हैं. ट्रंप का कहना है कि इसराइलियों और फ़लस्तीनियों के बीच शांति के अंतिम समझौतों के तौर पर ऐसा कर रहे हैं। वो दो राष्ट्रों की अवधारणा को नकारते हैं. ट्रंप कहते हैं कि मैं एक ऐसा राष्ट्र चाहता हूं जिससे दोनों पक्ष सहमत हों। (एएमएपी)