अजय विद्युत।
असदुद्दीन ओवैसी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ये तीनों भाजपा से परेशान हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से परेशान हैं और यहां तक कि उन्हें भारत माता की जय का नारा भी परेशान करता है।
साल 2016 में एआईएमआईएम नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि भारत माता की जय नहीं बोलूंगा चाहे मेरी गर्दन पर चाकू रख दिया जाए। साल 2020 में इसी फरवरी महीने में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक पुस्तक के विमोचन समारोह में कहा था कि देश में भारत माता की जय नारे का गलत इस्तेमाल हो रहा है और इसके जरिये आतंक और भावना से ओतप्रोत ऐसे भारत का विचार पेश किया जा रहा है जिसमें करोड़ों नागरिकों के लिए ही कोई जगह ही नहीं है। यह और बात है कि इन्हीं मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। …और अब साल 2021 में बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भारत माता की जय का नारा लगा देने से परेशान हो जाती हैं। यहां तक कि अपनी एक जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी को कहना पड़ा कि भारत माता की जय का नारा भर लगा देने से ‘दीदी’ नाराज हो जाती हैं लेकिन देश के खिलाफ बोलने वाले कितना भी जहर उगल दें, ‘दीदी’ को गुस्सा नहीं आता। आइए, इन तमाम विवादों के बीच भारत माता के इतिहास पर एक नजर डाल लेते हैं, जो सदियों से भारतमूमि की करोड़ों संतानों का संबल बनी हुई हैं।
कौन हैं भारत माता
पहली बार 1873 में नजर आईं भारत माता
भारत माता की जो तस्वीर आज आप देखते हैं उसे 19वीं सदी के आखिरी में स्वतंत्रता संग्राम में तैयार किया गया था। किरन चंद्र बनर्जी ने एक नाटक लिखा था ‘भारत माता’। इस नाटक का प्रदर्शन 1873 में किया गया था। यहीं से ‘भारत माता की जय’ का नारा पहली बार गूंजा ऐसी मान्यता है।
वंदे मातरम की प्रेरणा
सन 1882 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘आनंदमठ’ नामक उपन्यास लिखा। इस उपन्यास के साथ उन्होंने पहली बार ‘वंदेमातरम’ जैसा गीत देश को दिया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसकी प्रेरणा कहीं न कहीं ‘भारत माता’ नाटक से उन्हें मिली थी।
बिपिन चंद्र पाल ने दिया अलग स्वरूप
बिपिन चंद्र पाल ने इसे विस्तृत रूप दे दिया। उन्होने भारत माता को हिंदू दर्शन और आध्यात्मिक कार्यों से जोड़ा। उन्होंने भारत माता को एक विश्व और एक देश जैसे विचारों के साथ जोड़ना शुरू किया था।
भारत माता की तस्वीर
भारत माता का तस्वीर में वर्णन करने का श्रेय अबनींद्रनाथ टैगोर को जाता है। उन्होंने भारत माता को चार भुजाओं वाली देवी दुर्गा के रूप की तरह दिखाते हुए एक पेंटिंग तैयार की थी। यह देवी एक हाथ में पुस्तिका पकड़े थी और सफेद रंग के कपड़े पहने थी। इस तस्वीर ने उन दिनों देशवासियों की भावनाओं को देश के लिए मजबूत करने का काम किया था।
सिस्टर निवेदिता ने दिया विस्तार
स्वामी विवेकानंद की शिष्या रहीं सिस्टर निवेदिता ने इस पेंटिंग को और विस्तृत किया। उन्होंने भारत माता को हरियाली से संपूर्ण धरती पर खड़ा दिखाया जिनके पीछे एक नीला आसमान था और उनके पैरों पर कमल के चार फूल थे। चार भुजाएं आध्यात्मिक ताकत का पर्याय बनीं।
इस पेंटिंग से सिस्टर निवेदिता ने यह दर्शाने की कोशिश की थी कि भारत माता ने देश के बच्चों को शिक्षा, दीक्षा, अन्न और वस्त्र जैसे उपहार दिए हैं।
मां गंगा
इसके बाद आजादी की लड़ाई में सक्रिय सुब्रहमण्यम भारती ने भारत माता की व्याख्या गंगा की धरती के तौर पर की और भारत माता को प्राशक्ति के तौर पर पहचाना। उन्होंने कहा था कि उन्होंने अपनी गुरु सिस्टर निवेदिता से मिलने के साथ ही भारत माता का दर्शन किया है।
1936 में पहला मंदिर
वर्ष 1936 में महात्मा गांधी ने वाराणसी स्थित काशी विद्यापीठ में भारत माता के मंदिर का उद्घाटन किया था। इसमें कोई तस्वीर या मूर्ति नहीं केवल भारतवर्ष का नक्शा बना है।
भारतमाता मंदिर का इंदिरा ने किया उद्घाटन
इसके बाद हरिद्वार में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की ओर से एक मंदिर का निर्माण वर्ष 1983 में किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था।
सेना ने अपनाया
भारतीय सेना को जोश देने वाला ‘भारत माता की जय’ अब इंडियन आर्मी का ध्येय वाक्य बन गया है।
गांधीजी का नारा
आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते थे।