चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने न्यायपालिका पर संसद की ‘सर्वोच्चता’ के दावों के बीच स्पष्ट किया कि ‘भारत का संविधान’ ही सर्वोच्च है।
सीजेआई ने कहा, “यह पूछे जाने पर कि न्यायपालिका, कार्यपालिका या संसद सर्वोच्च कौन है? मैं कह सकता हूं कि भारत का संविधान ही सर्वोच्च है और देश के तीनों स्तंभों – न्यायपालिका, संसद और कार्यपालिका को संविधान के लिए मिलकर काम करना होगा।” नवनियुक्त सीजेआई मुंबई में महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल द्वारा उनके सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।
‘लॉ लाइव’ की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई गवई की यह टिप्पणी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा न्यायपालिका पर किए गए ‘तीखे हमले’ के जवाब में प्रतीत होती है, जब सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समयसीमा निर्धारित की थी। धनखड़ ने कहा था कि न्यायपालिका “सुपर संसद” बनने की कोशिश कर रही है। वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद धनखड़ ने कहा कि “संसद सर्वोच्च है” और “संविधान में संसद से ऊपर किसी भी प्राधिकरण की कल्पना नहीं की गई है।”
गौरतलब है कि सीजेआई गवई के पूर्ववर्ती सीजेआई संजीव खन्ना ने भी न्यायपालिका और सीजेआई पर हमला करने वाली टिप्पणियों के लिए भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना कार्यवाही की मांग करने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए स्पष्ट किया था कि केवल संविधान ही सर्वोच्च है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “लोकतंत्र में राज्य की प्रत्येक शाखा, चाहे वह विधायिका हो, कार्यपालिका हो या न्यायपालिका, विशेष रूप से संवैधानिक लोकतंत्र में, संविधान के ढांचे के भीतर काम करती है। यह संविधान ही है जो हम सभी से ऊपर है। यह संविधान ही है जो तीनों अंगों में निहित शक्तियों पर सीमाएं और प्रतिबंध लगाता है। न्यायिक समीक्षा की शक्ति संविधान द्वारा न्यायपालिका को प्रदान की जाती है। क़ानून अपनी संवैधानिकता के साथ-साथ न्यायिक व्याख्या के लिए न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं। इसलिए, जब संवैधानिक न्यायालय न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं, तो वे संविधान के ढांचे के भीतर काम करते हैं।”
दुर्दैव बघा… एक मराठी माणूस न्यायाधीश होतो, महाराष्ट्रात पहिल्यांदा येतो, आणि त्यावेळी राज्याचे मुख्य सचिव, DGP, CP अनुपस्थित! जेव्हा प्रमुखाचं मन संकुचित असतं, तेव्हा इतर अधिकाऱ्यांवर दोष देऊन काय उपयोग?
– बी. आर. गवई, भारताचे मुख्य न्यायाधीश (CJI B. R. Gavai)#BRGavai… pic.twitter.com/62rA8VYoQo— Maharashtra Bandhu News (@BandhuNews_in) May 18, 2025
मुख्य न्यायाधीश गवई ने जोर देकर कहा कि केशवानंद भारती मामले में ऐतिहासिक फैसले ने हमारे देश की रक्षा की है। उन्होंने कहा, “मैं कह सकता हूं कि इसने देश के तीन स्तंभों – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को सुचारू रूप से काम करने में मदद की है।” महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक छोटे से गांव से नई दिल्ली (सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में) तक की अपनी यात्रा के बारे में बोलते हुए, सीजेआई गवई ने खुलासा किया कि वह एक आर्किटेक्ट बनना चाहते थे, लेकिन अपने पिता रामकृष्ण गवई की वजह से उन्होंने कानून की पढ़ाई की।
उन्होंने कहा, “मैं आज जो कुछ भी हूं, वह डॉ. बीआर अंबेडकर की विचारधारा और अपने माता-पिता से मिले ‘संस्कारों’ की वजह से हूँ। चूँकि मेरा परिवार संयुक्त था, इसलिए मैंने वहाँ से समावेशिता सीखी। मैंने अपने पिता दादासाहेब गवई से बहुत कुछ सीखा और मैं उनके साथ कई जगहों पर जाता था और सामाजिक मुद्दों को जानने की आदत डाल ली थी। उन्होंने ही मुझे न्यायाधीश बनने के लिए सहमति देने पर जोर दिया और कहा कि यह नौकरी मुझे डॉ. अंबेडकर की विचारधारा को आगे बढ़ाने में मदद करेगी, यानी नागरिकों को आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाना।”
इस कार्यक्रम में शामिल हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय ओका ने सीजेआई गवई के दिवंगत पिता की यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि ‘लोकतंत्र को जीवित रखना’ सीजेआई गवई के खून में है। न्यायमूर्ति ओका ने पूर्व सीजेआई खन्ना द्वारा प्रणाली में लाई गई ‘पारदर्शिता’ की ओर इशारा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि सीजेआई गवई इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। जस्टिस ओका ने कहा, “आज के कार्यक्रम का विषय संवैधानिक न्याय के 75 गौरवशाली वर्ष हैं। हमें इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि केशवानंद भारती के उल्लेखनीय निर्णयों में से एक ने भारत के लोकतंत्र को बचाया है। हमें यह देखना चाहिए कि भारत के दोनों ओर क्या हो रहा है। इस निर्णय ने हमारे लोकतंत्र की रक्षा की है।”
कार्यक्रम में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने संविधान को अधिक से अधिक जीवंत बनाने में सीजेआई गवई और बॉम्बे उच्च न्यायालय के योगदान की सराहना की। जज ने कहा, “देश के विकास के लिए हमें एक मजबूत कानून की आवश्यकता होगी और मुझे यकीन है कि आप इसी तरह योगदान देते रहेंगे। मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि सर्वोच्च न्यायालय बहुत मजबूत हाथों में है।”