संसद टीवी के लिए प्रदीप सिंह की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से खास बातचीत-1 ।
आपका अख़बार ब्यूरो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सार्वजनिक जीवन- खासतौर से चुनावी राजनीतिक जीवन- के बीस साल पूरे किए हैं। वह 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। तब से ये यात्रा अनवरत जारी है। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने लंबे समय तक प्रधानमंत्री के सहयोगी और उनकी राजनीतिक यात्रा के सहयात्री रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ‘संसद टीवी’ के लिए खास बातचीत की, जिसके कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं।
प्रदीप सिंह- राजनीति में, सार्वजनिक जीवन में परसेप्शन का बड़ा रोल रहता है। मीडिया और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग है देश में जिसका मानना है कि मोदीजी अधिनायकवादी हैं, डिक्टेटरशिप में यकीन रखते हैं। किसी से सलाह मशविरा नहीं करते, अपनी चलाते हैं। तो आपको लगता है कि आप लम्बे समय से उनसे साथ जुड़े हुए हैं। आपका अनुभव इस पर क्या कहता है?
अमित शाह- मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे संगठन और सरकार दोनों में मोदीजी के साथ काम करने का मौका मिला। पहले गुजरात के संगठन में, फिर गुजरात सरकार में और यहां मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष था, तब मोदी जी प्रधान मंत्री थे, अब मैं उनकी सरकार का मैं मंत्री हूँ। मैंनें मोदीजी को नज़दीक से काम करते हुए देखा है।
मोदी जी जैसा श्रोता नहीं देखा
ये सारे लोग जो आरोप लगा रहे हैं, बिलकुल बेबुनियाद हैं। मैंने मोदी जी जैसा श्रोता देखा ही नहीं है। किसी भी समस्या के लिए बैठक हो, कम से कम मोदीजी बोलते हैं। सब लोगों को धैर्यपूर्वक सुनते हैं और फिर उचित निर्णय लेते हैं… और कई बार तो हमें भी लगता है कि इतना सोच विचार क्यों हो रहा है। एक बार बैठक- दो बार बैठक- वो बहुत धैर्यपूर्वक निर्णय लेते हैं। छोटे से छोटे व्यक्ति के सुझाव को वह गुणवत्ता के आधार पर महत्व देते है, व्यक्ति के आधार पर नहीं देते। तो ये कह देना कि वो निर्णय थोपने वाले नेता हैं, ये ज़रा भी सच नहीं है। जिन-जिन लोगों ने उनके साथ काम किया है- और काम करने वालों में भी क्रिटिक होते हैं- वो भी इतना ज़रूर कहेंगे कि इतने डेमोक्रेटिक तरीके से कैबिनेट कभी नहीं चलती होगी जितने डेमोक्रेटिक तरीके से मोदी जी के प्रधानमंत्री होने के नाते। मैंने उनके जैसा श्रोता नहीं देखा।
प्रदीप सिंह– ये परसेप्शन क्यों हैं? जानबूझ कर बनाया गया या किन्हीं घटनाओं की वजह से बना?
अमित शाह- देखिये…। जानबूझ कर ही बनाया जाता है और वो discipline (अनुशासन) के आग्रही हैं। फोरम में जो डिस्कशन होता है वो बाहर नहीं आएगा। एक ज़माने में आ जाता था सब, आप लोगों के उपयोग के लिए… अब नहीं आता है।
प्रदीप सिंह– लोगों को मुश्किल होती है
अमित शाह- लोगों को मुश्किल होती है, (फोरम में हुआ विचार विमर्श बाहर) बहुत कम आता है। तो लोगों को लगता है कि फैसला मोदीजी ने ले लिया। लोगों को और जर्नलिस्टों को भी मालूम नहीं है कि यह सामूहिक चिंतन का परिपाठ है। निर्णय तो बेशक प्रधानमंत्री लेते हैं। उनको ही करना चाहिए। जनता ने ही उन्हें ये अधिकार दिया है। बाकि सारे मंत्री को मोदी जी ने ही अधिकार दिया है। यही तो हमारा संविधान है। परन्तु सबके साथ चर्चा करके, सबको बोलने का मौका देकर, सबके प्लस- माइनस पॉइंट्स सुनकर, फिर फैसले होते हैं। (उनकी) ऐसी छवि इसलिए नहीं बनती कि वो डिसिप्लिन के आग्रही हैं। और.. बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है जो मैं बोलने जा रहा हूं… कुछ लोग जो हमारे वैचारिक विरोधी हैं- उनका, सत्य कुछ भी हो उसे तोड़- मरोड़ कर लोगों के सामने कैसा रखना है, वो भी प्रयास हम देख ही रहे हैं। आप भी शायद देखतें होंगे और इसके कारण छवि को आहत करने का भी सुनियोजित प्रयास तो हुआ है।