डॉ. मयंक चतुर्वेदी।

देश भर में इस समय ‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ पर राजनीति हो रही है। भारतीय जनता पार्टी को घेरने के लिए कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल इसे चंदे में सबसे बड़ा घोटाला बता रहे हैं। किंतु यह जानकर बड़ा ही आश्‍चर्य होता है कि जो सत्‍ता में नहीं हैं, उन्‍हें सत्‍ताधारी भाजपा से अधिक संयुक्‍त राशि मिली है। उसके बाद भी ये राजनीतिक दल पारदर्श‍िता की बात कर रहे हैं और हल्‍ला मचा रहे हैं!कांग्रेस पार्टी जो खुद ही ‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ के जरिए करोड़ों रुपए का चंदा प्राप्‍त करने में सफल रही, वह किस नैतिकता की बात कह रही है? यह फिलहाल समझ नहीं आ रहा है!  वैसे देखा जाए तो हर राजनीतिक पार्टी का यह हक है कि वह अपने दल को सुचारु रूप से चलाने के लिए चंदा ले सकती है। यहां भी जिन राजनीतिक पार्टियों को कंपनियों से चंदा मिला है, उस पर कानूनी तौर पर कोई कुछ भी प्रश्‍न नहीं उठा सकता है। क्‍योंकि यह किसी व्‍यक्‍ति, समूह, संगठन और कंपनी का अपना निर्णय है कि वह किसके समर्थन में है और उसके अनुसार किसके माध्‍यम से देश हित होगा। भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली और भारतीय संविधान यह अनुमति देता है कि वह (कोई भी नागरिक) देश हित के विचार से किसी भी राजनीतिक पार्टी को अपनी स्‍वैच्‍छानुसार कितना भी चंदा दे अथवा कितना नहीं ।

‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ की जानकारी सार्वजनिक

एक तरह से यह अच्‍छा ही हुआ कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने राजनीति में पारदर्शिता लाने के लिए ‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ को चुनाव आयोग की वेबसाइट के जरिए सार्वजनिक कराया है। इससे आगे के लिए कई अन्‍य महत्‍वपूर्ण निर्णय लेने के भी द्वार खुल गए हैं । मसलन, देश में जितने भी मंत्रालय, विभाग एवं सरकारी कार्य करनेवाले संस्‍थान हैं और वह भी, जहां कि सूचना का अधिकार लागू होता है। उन सभी जगहों में आगे उच्‍चतम न्‍यायालय यह लागू कर सकता है कि उन्‍हें अपनी सभी खरीद एवं बचत के साथ आय की जानकारी भी सार्वजनिक कर देनी चाहिए। किसी प्रोजेक्‍ट पर कितने का निर्माण हुआ, कितना अधिरिक्‍त धनराशि का खर्च आया, वह कार्य समयावधि में पूर्ण हुआ या अधिक समय में इत्‍यादि सभी कुछ । यानी कि हर छोटी-बड़ी जानकारी और उसके साथ बिल, बाउचर भी आगे सार्वजनिक कर देने के लिए न्‍यायालय द्वारा निर्देश दे ही देना चाहिए। न्‍यायालय द्वारा इस प्रकार का निर्णय लिए जाने पर देश के आम आदमी को अत्‍यधिक खुशी होगी।

वस्‍तुत: इससे होगा यह कि अभी सूचना के अधिकार के लिए जो बहुत समय खर्च होता है। कई बार अधिकारियों को जवाब देने में देरी होती है और कई बार वे जानबूझकर कोई जानकारी देना नहीं चाहते। ऐसे में फिर किसी भी इस प्रकार की जानकादी देने संबंधी ‘सूचना अधिकारी’ की आवश्‍यकता ही नहीं रहेगी। सभी खर्चों एवं आय की जानकारी विभागवार एवं संस्‍थागत रूप से उनके वेब माध्‍यम पर सार्वजनिक रूप से पड़ी रहेगी। अभी जो सूचना के अधिकार में आम आदमी का देश भर में करोड़ों रुपया खर्च होता है। वह बेचारा दर-दर भटकता है। परेशान होता है। सरकारी स्‍तर पर जो श्रम, समय एवं रुपया लगता है, उसकी भी बचत हो जाएगी।

पूरे सिस्‍टम में होनी चाहिए पारदर्श‍िता

सुप्रीम कोर्ट जब पारदर्श‍िता की बात कर ही रहा है तो वह पूरे सिस्‍टम पर होनी चाहिए। इसमें फिर न्‍यायालय को भी क्‍यों छोड़ा जाए । किस न्‍यायाधीश के पास नौकरी पाने से पूर्व कुल सम्‍पत्‍त‍ि कितनी थी और नौकरी में आने के पश्‍चात कितनी हो गई है। वेतन के अलावा उनके क्‍या आय के स्‍त्रोत हैं कि अचानक से उनमें से कई जजों की आय बहुत अधिक बढ़ गई। इस तरह की सभी कुछ जानकारियां न्‍याय व्‍यवस्‍था से जुड़े लोगों सहित हर विभाग एवं सरकारी कर्मचारी का डाटा सार्वजनिक कर देना चाहिए। संविधान जिनमें गोपनीयता रखने की अनुमति देता है, उन्‍हें छोड़कर किसी भी विषय में गोपनीयता की आवश्‍यकता ही क्‍या है ? कम से कम हम जैसे पत्रकारों को जिस भी डाटा से जो सूचना लेकर खबर बनानी होगी और आम जनता को साधारण भाषा में उसके पक्ष से परिचित कराना होगा, वह भी आसान हो जाएगा। हम जैसे पत्रकार ही क्‍यों, देश के हर खास और आम आदमी के पास विभागवार नाम सहित सही जानकारी हर समय मौजूद होगी। जैसा कि अभी हम ‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ के संदर्भ में सार्वजनिक कंपनी, व्‍यक्‍ति नाम, राजनीतिक पार्टी को दिए गए चंदे के रुपयों की सर्वव्‍यापकता देख रहे हैं !

विषय पर वापिस आते हैं । यहां बात हो रही है डोनेशन के साथ जुड़ी सुचिता की । वास्‍तव में समझ नहीं आ रहा है कि किसने ‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ खरीदकर राजनीतिक सुचिता को बर्बाद कर दिया है! जिसके लिए कांग्रेस के राहुल गांधी, कपिल सिब्बल समेत तमाम नेता और अन्‍य विपक्षी दल के प्रमुख घी- पी-पी कर भाजपा को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं ? क्‍योंकि इससे जुड़े आंकड़ें देखें तो यह योजना भारतीय राजनीति में काले धन के वर्चस्व को खत्म करने की एक पहल के रूप में सरकार लेकर आई थी। कुल 22,000 करोड़ रुपये से कुछ ऊपर के चुनावी बान्ड खरीदे जाने का आंकड़ा सार्वजनिक है।

साढ़े 22 हजार से अधिक के खरीदे गए चुनावी बॉन्ड

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सुप्रीम कोर्ट को जो जानकारी दी है उसके अनुसार साढ़े 22 हजार से अधिक के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए। इनमें राजनीतिक दलों ने 22,030 बॉन्ड को कैश कराया। जिसमें भाजपा को 6,986.5 करोड़ और अन्‍य राजनीतिक पार्टियों को 14,000 करोड़ रुपये से अधि‍क चंदे के रूप में मिले हैं । इनमें प्रमुख तौर पर टीएमसी (1,397 करोड़ रुपये), कांग्रेस (1,334 करोड़ रुपये), बीआरएस को 1,322 करोड़ रुपये, बीजेडी को 944.5 करोड़ रुपये, डीएमके को 656.5 करोड़ रुपये मिले हैं।

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इन राजनीति पार्टियों के अतिरिक्‍त वाईएसआर कांग्रेस को 442.8  करोड़, टीडीपी, शिवसेना, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, जनता दल सेक्युलर, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, जनसेना पार्टी, समाजवादी पार्टी, जेडीयू, जेएमएम, शिरोमणि अकाली दल, एआईएडीएमके, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और राष्ट्रीय जनता दल जैसी राष्‍ट्रीय एवं क्षेत्रीय पार्टियों को कई करोड़ रुपए का चंदा दिया गया है। वहीं, इस सभी के अलावा महाराष्ट्र गोमंतक पार्टी, जेके नेशनल कॉन्फ्रेंस, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र प्रदेश को मिलनेवाली राशि एक करोड़ से कम रही है। कुल मिलाकर राष्‍ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के अलावा क्षेत्रीय दलों को इसमें साढ़े 5 करोड़ रुपए मिले हैं ।

‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ का मुद्दा बनाकर भ्रमित करने का प्रयास

यहां यह बड़ा प्रश्‍न है कि जब अधिकांश राजनीतिक दलों ने ‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ के माध्‍यम से चुनावी चंदा जुटाया है, तब वे   क्‍यों इस विषय पर हल्‍ला मचा रही हैं ? क्‍यों विपक्ष द्वारा यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि अरे! ये तो बहुत बड़ा भ्रष्‍टाचार है? एक तरह से गृहमंत्री अमित शाह आज कोई अनुचित नहीं कह रहे हैं, जो वह पूछ रहे हैं कि कुल 20,000 करोड़ रुपए से अधिक के इस चुनावी बांन्ड में से बीजेपी को छह हजार करोड़ से अधिक रुपये मिले हैं। बाकी बॉन्ड कहां गए? 303 सांसद होने के बावजूद हमें सात हजार करोड़ रुपये से भी कम मिलते हैं और बाकियों को 242 सांसदों के बावजूद 14,000 करोड़ रुपये से अधि‍क मिलते हैं। शाह पूछ रहे हैं कि यह किस बात को लेकर हंगामा है? निश्‍चित ही ऐसे में कहना यही होगा कि देश में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। लोकतंत्र के इस महाउत्‍सव में आम जनता को ‘इलेक्टरोल बॉन्ड’ का मुद्दा बनाकर भ्रमित करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा कोई कर रहा है तो माननीय न्‍यायालय इसे भी संज्ञान में लेवे तो अच्‍छा हो। (एएमएपी)