#pradepsinghप्रदीप सिंह।

झूठ और फरेब की राजनीति से भी सत्ता हासिल की जा सकती है- इसको साबित किया है अरविंद केजरीवाल ने। आप झूठ पर झूठ बोलते रहें- लोगों के साथ फरेब करते रहें- फिर भी आप सत्ता में आ सकते हैं- सरकार बना सकते हैं- यह उनहोंने करके दिखाया है। दो राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार है। भ्रष्टाचार के आरोप में चौतरफा घिरे होने के बावजूद आप अपने को कट्टर ईमानदार होने का सर्टिफिकेट दे सकते हैं। आप का एक मंत्री जेल में है जो मालिश करवाता है… किससे? एक रेपिस्ट से, एक बलात्कारी से- और उसको आप भारत रत्न देने की सिफारिश कर सकते हैं। आप में इतना साहस या दुस्साहस (जो भी कहना चाहिए)- या कौन सी वह वह भावना या चरित्र होता है, जिसके तहत- यह बोलने की हिम्मत कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिन में 24 घंटे में से 18 घंटे इस बात को सोचने में लगाते हैं कि अरविंद केजरीवाल को कैसे काम करने से रोका जाए।

यह है अरविंद केजरीवाल का चरित्र जो आपके सामने है। जिसे पूरा देश देख रहा है- पूरी दुनिया देख रही है। जिस तरह से एक के बाद एक तिहाड़ जेल से वीडियो निकल रहे हैं वे रोज-रोज अरविंद केजरीवाल को एक्सपोज कर रहे हैं। लेकिन उनको कोई फर्क नहीं पड़ता। वह एक दिन कहते हैं कि सीबीआई से हमको क्लीन चिट मिल गई है- कट्टर ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिल गया है। दूसरे दिन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिल गया है। जिन प्रधानमंत्री पर इतने आरोप लगाते हैं उन्हीं से सर्टिफिकेट लेकर गर्व से बोलते हैं टेलीविजन पर आकर।

परिस्थितियों की पड़ताल

आज मैं इस पर बात नहीं कर रहा हूं कि अरविंद केजरीवाल क्या कर रहे हैं- उनकी किस तरह की राजनीति है। आज जो मैं बात करने जा रहा हूं उसका मुद्दा यह है कि वह कौन सी राजनीतिक परिस्थितियां होती हैं जिनके चलते राज्य में तीसरी पार्टी… यह कोई नई पार्टी भी हो सकती है और पुरानी पार्टी भी हो सकती है- वह सत्ता के गलियारे तक पहुंचती है- सत्ता के सिंहासन तक पहुँचती है- या सरकार बनाती है। वह राजनीतिक परिस्थितियां विशेष होती हैं। खासतौर से जहां टू पार्टी सिस्टम है- जिन राज्यों में दो राजनीतिक दलों के बीच टक्कर है। उन राज्यों में खासतौर से यह फिनोमिना देखने को आपको मिलेगा। उसके आधार पर मैं बताऊंगा कि वह कैसे है- किन राज्यों में है- किसको फायदा मिला है इसका- किसको फायदा नहीं मिलेगा। उसके आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं और बड़े दृढ़ निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि आम आदमी पार्टी की किसी तीसरे राज्य में निकट भविष्य में सरकार नहीं बनने वाली है।

अब आप कह सकते हैं कि आप क्या ज्योतिषी हैं- आपको मालूम है कि किस पार्टी की सरकार बनेगी- किसकी नहीं? नहीं… मुझे नहीं मालूम कि किसकी, कहां, कब सरकार बनेगी या नहीं बनेगी। लेकिन मैं आम आदमी पार्टी के बारे में कह सकता हूं कि उसकी दिल्ली और पंजाब के अलावा किसी तीसरे राज्य में सरकार नहीं बनने वाली। आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है। दिल्ली के लोग भुगत रहे हैं। पंजाब के लोगों ने भुगतना शुरू किया है। दिल्ली के लोग भुगतते रहेंगे- दिल्ली में अरविंद केजरीवाल तब तक सत्ता में रहेंगे- जब तक भाजपा ईद हालत में रहेगी। जब तक भाजपा के हालात नहीं सुधरते तब तक अरविंद केजरीवाल को कोई हरा नहीं सकता है। पंजाब के बारे में अभी कुछ बोलना जल्दी होगी। पर वहां हालात जिस तेजी से बिगड़ रहे हैं उसको देखते हुए वहां पर कुछ भी हो सकता है।

बात दिल्ली-पंजाब की

अब आप देखिए कि कौन सी परिस्थितियां हैं। दिल्ली से बात शुरू करते हैं। दिल्ली में  2013 में 4 महीने के लिए आए थे अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन से। उसके बाद 2015 में आए पूर्ण बहुमत से- कुल 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें लेकर। उन परिस्थितियों पर गौर कीजिए कि कांग्रेस पार्टी जो नंबर एक पार्टी थी। उसने अपने 15 साल तक यानी 3 टर्म मुख्यमंत्री रही (स्व.) शीला दीक्षित को अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया। कैंपेन तक नहीं करने दिया। जिस सरकार की उपलब्धियों को गिना गिना कर कांग्रेस पार्टी ने तीन-तीन चुनाव जीते उस मुख्यमंत्री को- सरकार की मुखिया को- उन्होंने बिल्कुल पब्लिक सीन से हटा दिया। उसका नतीजा पराजय के रूप में सामने आया। हालांकि उसका कारण और भी था। कॉमनवेल्थ गेम्स में जो घोटाला हुआ वह एक कारण था। और उस समय कांग्रेस के नेतृत्त्व वाली जो यूपीए की केंद्र सरकार थी- उसका भ्रष्टाचार एक कारण था। इन दोनों के बोझ के नीचे शीला दीक्षित की सरकार दब गई वरना संभवतः चौथी बार भी उनकी सरकार बनती। तो यह परिस्थिति बनी कि पार्टी पूरी तरह से धराशाई हो गई। उधर जो नंबर दो की पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी थी- वह जहां गिरी हुई थी वहां से उठ नहीं पाई। ऐसे में एंट्री मिली अरविंद केजरीवाल को। जब ऐसी परिस्थिति बनती है तो लोग किसी को भी मौका देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

यही परिस्थिति बनी पंजाब में। पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने अपने सबसे वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को- जो मुख्यमंत्री थे- बार बार सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। दिल्ली से अपमानित कराया गया। गांधी परिवार के सदस्यों ने अपमानित कराया… और किससे अपमानित करवाया नवजोत सिंह सिद्धू से, जो आज जेल में हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया। जैसे गधे के सिर से सींग गायब होते हैं- उसी तरह से चन्नी पूरे राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो चुके हैं। जिन चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने पर कांग्रेस दावा कर रही थी कि पूरे देश का दलित समाज जब उसके साथ आ गया है- यह उसका मास्टरकार्ड है जो पंजाब में ही नहीं अगले लोकसभा चुनाव में भी उसको सत्ता दिला सकता है- वह मास्टर कार्ड कहां गया, वह किस नाली में या गड्ढे में पड़ा है -किसी को पता नहीं। तो यह एक परिस्थिति बनी। वहां अकाली दल की स्थिति आप जानते ही हैं। अकाली दल इस समय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। कांग्रेस से लड़ने या नंबर एक से लड़ने की बात तो छोड़ दीजिए। ऐसे में आम आदमी पार्टी जो लगातार वहां जमीन पर बनी हुई थी उसको मौका मिल गया।

बाकी जगह ‘झाड़ू’ पर ही झाड़ू क्यों फिरी

जो परिस्थिति दिल्ली और पंजाब में थी, वह उत्तर प्रदेश में नहीं थी- उत्तराखंड में नहीं थी- वह गोवा में नहीं थी… इसलिए आम आदमी पार्टी की दाल वहां गली नहीं। उनके उम्मीदवारों की गिनती इस बात के लिए हुई कि कितनों की जमानत बची है। जिन तीन राज्यों की बात मैं कर रहा हूं कम से कम फिलहाल वहां जीतना तो छोड़ दीजिए- सरकार बनाने के सपने भी नहीं देखने चाहिए अरविंद केजरीवाल को।

त्रिपुरा, हरियाणा, महाराष्ट्र के सबक

वो और कौन सी पार्टियां हैं जिनको इस तरह का फायदा हुआ? क्या मैं केवल अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की बात कर रहा हूं- उनके खिलाफ बोलना है इसलिए बोल रहा हूं- नहीं। यह एक फिनोमिना की तरह है। अगर आप राजनीति के विद्यार्थी हैं- मैं अपने को राजनीति का विद्यार्थी, एक ऑब्जर्वर मानता हूं जो राजनीतिक परिघटनाओं पर नजर रखता है- उनको देखता है- समझने की कोशिश करता है- उसके आधार पर कुछ विश्लेषण करता है- उसमें निष्कर्ष निकालता है। उसी के आधार पर मैं बता रहा हूं कि यही परिस्थिति 2018 में त्रिपुरा में बनी थी, जब भारतीय जनता पार्टी शून्य से सीधे सत्ता में आ गई। वहां नंबर एक पार्टी थी सीपीएम जो 15 साल से सत्ता में थी। कांग्रेस उसकी प्रतिद्वंद्वी थी जो उससे पहले सत्ता में रह चुकी थी। कांग्रेस की क्रेडिबिलिटी (साख) पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी और सीपीएम लगातार नीचे जा रही थी गड्ढे, तेज ढलान की ओर। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को लोगों ने मौका दिया। उससे पहले भारतीय जनता पार्टी का कोई एमएलए भी नहीं था। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं। यह फिनोमिना ,मैं जो कह रहा हूं, उसके पुख्ता और अकाट्य साक्ष्य हैं- तब कह रहा हूं।

दूसरा राज्य हरियाण। 2014 के चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी। वह लगातार नीचे जा रही थी जिसका एक कारण उसके आपसी झगडे भी थे। उधर उसकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल में परिवार के झगड़े इतने थे कि पार्टी टूटने की कगार पर थी और आखिर में टूट भी गई। ऐसे में बीजेपी को मौका मिला जिसकी 2009 के चुनाव में केवल चार सीटें थीं।

इसी तरह महाराष्ट्र में 2018 में चुनाव के समय नंबर एक की पार्टी नहीं नंबर एक का गठबंधन था कांग्रेस और एनसीपी का, जो 15 साल से सत्ता में था। वह पूरी तरह से भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ था। डिस्क्रेडिट होकर बाहर हो गया। सामने दूसरा गठबंधन था भाजपा और शिवसेना का जिसमें शिवसेना नंबर 1 की पार्टी थी बीजेपी नंबर 2 की थी। इस तरह राज्य में बीजेपी नंबर 4 के पार्टी थी और सीधे नंबर एक की पार्टी बन गई। सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बन गई। बहुमत से थोड़ा ही दूर रह गई वरना अकेले भी बहुमत पा सकती थी।

ये परिस्थितियां न तो गुजरात में हैं और न ही हिमाचल प्रदेश में। इसी आधार पर कह रहा हूं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी का कुछ भी नहीं होना है। हिमाचल में अगर उसको दो-तीन फीसदी वोट मिल जाए तो बड़ी बात होगी… और गुजरात में- जहाँ उसका इतना प्रचार हो रहा है- इतने विज्ञापन और बयान आ रहे हैं अरविंद केजरीवाल के-  और मीडिया का एक वर्ग जिस तरह से उसको बढ़ाने में लगा है- उस सब से होने वाले अधिकतम लाभ को जोड़ते हुए वहां अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत दहाई के अंकों में भी नहीं पहुँच पाएगा ऐसा लगता है। यानी आम आदमी पार्टी गुजरात में दस फीसदी 10 फीसदी से कम ही वोट हासिल कर पाएगी।

दावे बनाम जमीनी हकीकत

अब अरविन्द केजरीवाल का अगला निशाना होगा हरियाणा जहां के वे रहने वाले हैं। लेकिन वहां उनका हश्र वही होगा जो गोवा और उत्तराखंड में हुआ- जो अभी गुजरात और और हिमाचल में होने जा रहा है। लेकिन दावा…! आप देखिए जब हिमाचल का प्रचार उन्होंने शुरू किया था तो कहा कि हमारी सरकार बन रही है, बनने ही वाली है। फिर आधे चुनाव में भाग खड़े हुए। गुजरात में उनको लग रहा है कि अगर कोशिश करेंगे तो हम शायद कांग्रेस पार्टी को रिप्लेस कर लें। या लोगों के मन में यह आ जाए कि कांग्रेस पार्टी की जगह आम आदमी पार्टी को आजमाना चाहिए और उसको मौका देना चाहिए। हालांकि मुझे नहीं लगता कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस को रिप्लेस करने की स्थिति में है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं कि निकट भविष्य में भी दो राज्यों के अलावा किसी राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं बनेगी, उसकी वजह यही है कि किसी और राज्य में ऐसी परिस्थिति नहीं बनी है। ऐसी परिस्थितियां बनने में समय लगता है। उसके अलावा वहां आपको पहले से मौजूद होना होता है। जमीन पर आपका संगठन होना जरूरी है जो दिल्ली में भी था और पंजाब में भी था। याद कीजिए 2012 में पार्टी बनने के बाद 2014 का लोकसभा चुनाव हुआ। पहला चुनाव आम आदमी पार्टी लड़ी और पंजाब में उसको 13 में से 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। तब से उसका संगठन था पंजाब में। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को अकाली दल से दो सीटें ज्यादा मिलीं। आम आदमी पार्टी को 20 और अकाली दल को 18 सीटें मिली थीं। वहां आम आदमी पार्टी का संगठन था- कार्यकर्ता थे- और पार्टी नीचे जमीन तक, गांव तक पहुंच चुकी थी। इसलिए दिल्ली में, पंजाब में जब अवसर आया तो लोगों ने मौका दिया। लेकिन किसी अन्य  प्रदेश में आम आदमी पार्टी का कोई संगठन नहीं है।

जमीन तैयार किए बिना नहीं जीते जाते चुनाव

मेरा मानना है कि राजनीतिक दलों को भूल जाना चाहिए कि वे संगठन बनाए बिना, जमीन पर काम किए बिना चुनाव जीत सकते हैं। चुनाव जीतने को लेकर कांग्रेस पार्टी को यही गलतफहमी है। उसको लगता है कि हम पांच-दस या पंद्रह साल से सत्ता से बाहर हैं, तो लोग सत्तारूढ़ दल से नाराज होकर हम को मौका दे देंगे। गुजरात में इसी सोच के चलते तीन दशक से ज्यादा बीत गए- कांग्रेस पार्टी कुछ नहीं कर पाई। अपना संगठन नहीं खड़ा कर पाई- अपना कोई नेतृत्व नहीं खड़ा कर पाई। वरना तो इतने समय में एक पीढ़ी तैयार हो जाती है। पूरे 20 साल तक गुजरात में कांग्रेस का प्रमुख चेहरा शंकर सिंह वाघेला थे जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और भाजपा से आए हुए थे। इससे आप कांग्रेस की सोच की कंगाली का अंदाजा लगा सकते हैं। हिमाचल में यही हुआ। वीरभद्र सिंह के बाद कौन होगा नेता यह कांग्रेस पांच साल तक तय नहीं कर पाई। उसका खामियाजा कांग्रेस को हिमाचल में भुगतना पड़ेगा। हालांकि हिमाचल में लड़ाई बहुत नजदीकी है। मेरा मानना है कि वहां भाजपा की सरकार बन रही है- वोट पड़ चुका है। मतदाता का फैसला मशीन में बंद हो चुका है।

इन्हीं परिस्थितियों और तथ्यों के आधार पर मैं कह रहा हूं कि आम आदमी पार्टी की दाल किसी और राज्य में फिलहाल नहीं गलने वाली है। पंजाब और दिल्ली यही दो राज्य उसके पास हैं। जिस तरह से भ्रष्टाचार के आरोपों में पार्टी और उसके नेता घिरते जा रहे हैं उसमें यह कहना मुश्किल है उनका भविष्य कितना लंबा है- कितनी दूर तक चलेगा। दिल्ली में आम आदमी पार्टी गिरेगी तो अपनी करतूत से गिरेगी- बीजेपी के गिराने से नहीं गिरेगी। पंजाब में भी अपनी करतूत से गिरेगी। पंजाब बॉर्डर स्टेट है इसलिए वहां की परिस्थिति ज्यादा चिंताजनक है। वहां जिस तरह से क्राइम बढ़ रहा है- सांप्रदायिक माहौल बिगड़ रहा है- आतंकवादी या अलगाववादी तत्व हावी हो रहे हैं- जिस तरह से सरकार नाम की कोई चीज नजर नहीं आती है… यह सब चिंता की बात है। तो आम आदमी पार्टी का आज किसी राज्य में सत्ता में आना देश के लिए चिंता की बात है। बात यह नहीं कि एक और पार्टी आ गई बल्कि यह पार्टी ऐसी है जिसका राष्ट्रीय एकता, अखंडता- इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है। वह सत्ता के लिए किसी से भी समझौता कर सकती है। वे आज जहां तक पहुंचे हैं वह इन्हीं समझौतों के जरिए पहुंचे हैं। इसलिए मैं फिर कह रहा हूं कि निकट भविष्य में आम आदमी पार्टी पंजाब और दिल्ली से बाहर कहीं सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगी।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)