नामवर जी चाहते थे कि उन्हें कविता का आलोचक समझा जाए- डॉ. विभूति नारायण राय।
– इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में प्रो. नामवर सिंह स्मारक व्याख्यान का आयोजन
नई दिल्ली, 28 जुलाई, सोमवार।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के कलानिधि विभाग द्वारा ‘प्रो. नामवर सिंह स्मारक व्याख्यान’ का आयोजन किया गया। व्याख्यान का विषय था — ‘एक सार्वजनिक बुद्धिजीवी के रूप में नामवर सिंह’। वक्ता थे पूर्व आईपीएस अधिकारी, लेखक एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ. विभूति नारायण राय। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने की। आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) एवं कला निधि विभाग के अध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने स्वागत भाषण और धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर वरिष्ठ आलोचक महेन्द्र राजा जैन द्वारा रचित और प्रो. नामवर सिंह के पुत्र विजय प्रकाश सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ‘नामवर विचार कोश’ का लोकार्पण भी किया गया। यह ग्रंथ नामवर सिंह के वैचारिक अवदान को समर्पित है। कार्यक्रम का आयोजन आईजीएनसीए के समवेत सभागार में किया गया।
इस महत्वपूर्ण व्याख्यान के वक्ता के रूप में डॉ. विभूति नारायण राय ने नामवर सिंह पर गहन विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने प्रो. नामवर सिंह के सार्वजनिक चिंतन, अकादमिक योगदान और समकालीन हिन्दी साहित्य के निर्माण में उनकी भूमिका को विस्तार से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद, 1960 के दशक में भारत में मोहभंग का दौर शुरू हुआ और यह मोहभंग साहित्य में भी देखा गया। उसी दौरान नामवर सिंह का निर्माण हो रहा था। डॉ. राय ने रेखांकित किया कि नामवर सिंह कविता के आलोचक थे, लेकिन उन्हें कहानी के आलोचक के रूप में ज़्यादा जाना गया। नामवर सिंह नई कहानी के पुरोधा थे, उन्होंने निर्मल वर्मा को नई कहानी का पहला कहानीकार माना। हालांकि वे चाहते थे कि उन्हें कविता का आलोचक समझा जाए।
डॉ. विभूति नारायण राय ने यह भी बताया कि नामवर जी ने कहा था कि इमरजेंसी देश का, भारतीय लोकतंत्र का सर्वाधिक संकट का काल था। नामवर जी ने परिवर्तनों को समझने की कोशिश की और उसे लोगों को समझाने का प्रयास किया। नामवर जी की ख़ासियत थी कि उन्होंने ज़्यादातर जगहों पर जो स्टैंड लिया, वह मुख्यधारा के विपरीत था। यहीं नामवर जी के ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ बनने की शुरुआत हुई। नामवर जी का सारा बोला हुआ अगर छप जाए, तो वह 50 लाख या एक करोड़ पृष्ठ हो जाएगा। हिन्दी में हर आदमी चाहता था कि नामवर जी उसके कार्यक्रम में आएं और अपने भाषण में उसका उल्लेख कर दें। हालांकि डॉ. राय ने यह भी कहा कि नामवर जी में कुछ दिक्कतें भी थीं, जिससे वे नोम चॉम्स्की आदि जैसा बड़ा ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ बनते-बनते रह गए।
प्रो. नामवर सिंह के पुत्र विजय प्रकाश सिंह ने ‘नामवर विचार कोश’ पुस्तक और उसकी रचना प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। इस दौरान उन्होंने अपने पिता से जुड़े कई रोचक प्रसंग भी सुनाए। उन्होंने कहा कि अपने न लिखने के बारे में नामवर जी एक बार बड़ा रोचक स्पष्टीकरण दिया था। उन्होंने कहा- “मैं पहले हाथ से लिखता था, अब मुंह से (भाषण के ज़रिये) लिखता हूं।”
अध्यक्षीय भाषण में रामबहादुर राय ने कहा कि डॉ. विभूति नारायण राय का व्याख्यान हम सबको नामवर जी से परिचित कराने वाला व्याख्यान था। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी शब्द ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ का हिन्दी में ‘प्रज्ञा पुरुष’ से अच्छा अनुवाद कुछ और नहीं हो सकता। नामवर जी ‘प्रज्ञा पुरुष’ हैं। इस क्रम में उन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय का उल्लेख भी किया। उन्होंने यह भी कहा कि 2026 नामवर जी का जन्मशताब्दी वर्ष है और इसे हमें धूमधाम से मनाना चाहिए।
रामबहादुर राय ने यह भी कहा कि नामवर सिंह की पुस्तकें दो श्रेणी में रखी जा सकती हैं। एक, जो उन्होंने लिखीं और दूसरी, जो उन पर लिखी गईं। उन्होंने यह भी कहा कि एक तीसरी श्रेणी भी हो सकती है, और वह है उनके द्वारा दिए गए हज़ारों भाषण यानी बोली हुई पुस्तकें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नामवर जी के जन्मशताब्दी वर्ष पर हमें ‘नामवर सिंह रचनावली’ निकालनी चाहिए।
कार्यक्रम का स्वागत और वक्ताओं का परिचय प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने दिया और कार्यक्रम के अंत में वक्ताओं और आगंतुको के प्रति धन्यवाद भी ज्ञापित किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्वानों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों और साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति रही।