नरेन्द्र भदौरिया।
ये विचार मोहन दास करम चन्द गांधी के हैं, जो उन्होंने यंग इण्डिया पत्रिका में 23 अप्रैल 1931 को लिखे थे- ‘मेरे पास शक्ति है तो सबसे पहले भारत में संगठित धर्मान्तरण को रोकना होगा। मेरा तो मानना है कि किसी का मतान्तरण करना घोर पाप है। धर्म मेरी अपनी शक्ति है। धर्म हमारे हृदय को छूता है। मैं उस डॉक्टर की बात मान कर अपना धर्म क्यों बदल दूँ जिसने मुझे इलाज देकर ठीक किया है। ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं को बातों में उलझा कर अपनी आस्था, अपना धर्म बदलने के लिए दबाव डालना अनुचित है। मेरे लिए पीड़ा देने वाली बात है कि कोई मुझसे मेरा धर्म बदलने को कहे।’
ये विचार मोहन दास करम चन्द गांधी के हैं, जो उन्होंने यंग इण्डिया पत्रिका में 23 अप्रैल 1931 को लिखे थे- ‘मेरे पास शक्ति है तो सबसे पहले भारत में संगठित धर्मान्तरण को रोकना होगा। मेरा तो मानना है कि किसी का मतान्तरण करना घोर पाप है। धर्म मेरी अपनी शक्ति है। धर्म हमारे हृदय को छूता है। मैं उस डॉक्टर की बात मान कर अपना धर्म क्यों बदल दूँ जिसने मुझे इलाज देकर ठीक किया है। ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं को बातों में उलझा कर अपनी आस्था, अपना धर्म बदलने के लिए दबाव डालना अनुचित है। मेरे लिए पीड़ा देने वाली बात है कि कोई मुझसे मेरा धर्म बदलने को कहे।’
मिशनरियों के षडयन्त्र
गाँधी जी भारत में धर्मान्तरण के कुचक्र के विरुद्ध स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय ही सभी को सावधान कर रहे थे। उन्होंने 30 जनवरी 1937 को हरिजन पत्रिका में जो लिखा उससे ब्रिटिश राज के समय भारत में काम कर रही ईसाई मिशनरियां बहुत चिढ़ गयी थीं। गाँधीजी ने लिखा- ‘हिन्दू परिवारों में किसी ईसाई मिशनरी का प्रवेश उस परिवार का विघटन करना होता है। ये मिशनरी खान-पान, वेश-भूषा और अंग्रेजी शिक्षा तथा इलाज का प्रलोभन देते हैं। हिन्दू परिवार इससे टूट रहे हैं। यह हिन्दू समाज और देश के लिए बड़ी विपत्ति का कारण बनेगा।’ अहिंसावादी गाँधीजी ने मिशनरियों के षडयन्त्रों के विरुद्ध बहुत कठोर भाषा में अपना मत रखा। उन्होंने लिखा- मेरे हाथ में शक्ति आ जाय तो मैं इसे रोकने के लिए उसका प्रयोग अवश्य करूँगा। आज भारत में या अन्य कहीं भी धर्मांतरण की शैली के साथ सामंजस्य बिठाना मेरे लिए असम्भव है। यह मेरी गलती होगी। जिससे शान्ति और प्रगति में बाधा आएगी। कोई ईसाई किसी हिन्दू को ईसाई मत में धर्मान्तरित क्यों करना चाहता है। हिन्दू भला आदमी है और धर्मपरायण है। तो इससे ईसाई मिशनरी असन्तुष्ट क्यों है। उससे अपनी आस्था बदलने के लिए क्यों कहते हैं। यह गतिविधि अन्यायपूर्ण है।
हिन्दुओं की एकजुटता पर प्रहार
गाँधीजी की बातें आज बहुत प्रासंगिक हैं। भारत में धर्मान्तरण या कहें मतान्तरण को लेकर जनवरी 2021 में प्यू रिसर्च सेंटर ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्मान्तरण कराने में सर्वाधिक सफलता मिल रही है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत के हिन्दू समाज को अन्तरराष्ट्रीय संगठित सशक्त शक्तियों के सहयोग से चलाये जा रहे धर्मान्तरण अभियान को तत्काल रोकने की आवश्यकता है। भारत के भीतर धर्मान्तरण के माध्यम से एक बड़ी शक्ति खड़ी की जा चुकी है जिसकी कमान विदेशी षड्यन्त्रकारियों के हाथों में है। ऐसी शक्तियां भारत के हिन्दुओं की एकजुटता पर निरन्तर प्रहार कर रही हैं।
मिशनरियों के संगठित अभियान
ये शक्तियां हिन्दू धर्म के कुछ सम्प्रदायों, जातियों को मजहब और रिलीजन के आधार पर बनाये जा रहे गठजोड़ में शामिल करने में जुटी हैं। जिससे भारत में बड़ा राजनीतिक बदलाव लाया जा सके। अनेक मिशनरियों के संगठनों का लक्ष्य भारत को अपनी मुट्ठी में कसना है। मिशनरियों ने भारत की बहुत बड़ी हिन्दू जनसंख्या को अपने में समेट लिया है। यह काम मिशनरियों द्वारा बहुत नियोजित ढंग से 1947 के बहुत पहले से किया जा रहा है। स्वतन्त्रता के बाद कांग्रेस की सरकारें पूरी तरह मतान्तरण को बढ़ावा देती रहीं। हिन्दू समाज में धर्मान्तरण की सेंध मुसलिम संगठन भी पूरी शक्ति से करते आ रहे हैं। पर अब सबसे अधिक लाभ मिशनरियों के संगठित अभियानों को मिल रहा है।
संरा प्रावधानों की आड़
किसी देश में धर्मान्तरण के लिए ईसाई मिशनरियों और मजहबी संगठनों द्वारा संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से निर्देशित किये गये प्रावधानों की आड़ ली जाती है। ईसाई देशों के प्रभाव के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस विषय को मानवाधिकार प्रावधानों से जोड़ दिया। यदि कोई देश धर्मान्तरण को रोकता है तो संसार के मानवाधिकारवादी संगठन एकजुट होकर पूरी शक्ति लगाकर हल्ला बोल देते हैं। ईसाई प्रभुत्व की पश्चिमी देशों की सरकारें तुरन्त उस देश के विरुद्ध सक्रिय हो जाती हैं। सम्बन्धों को यह देश मिशनरियों को दी जाने वाली छूट और सुरक्षा से जोड़ देते हैं। इसी बात के आधार पर डरा धमका कर भारत की अब तक की सरकारों से यह छूट मिली हुई है।
इस्लामी देशों में मुसलिम को धर्मान्तरित करने पर कठोर सजा
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के धर्मान्तरण को मानवाधिकार से जोड़ने के प्रावधान से संसार के सभी देश बंधे हैं। पाकिस्तान जैसा कमजोर इस्लामी देश भी इसे नहीं मानता। सभी इस्लामी देशों में किसी मुसलिम को धर्मान्तरित करने का प्रयास करने वाले को कठोर सजा दी जाती है। मिशनरी संगठन वहां ताक झांक करने का दुस्साहस कदापि नहीं करते। चीन में धर्मान्तरण तो बहुत दूर की बात है। वहां की कम्युनिस्ट तानाशाही का नियन्त्रण हॉन जातीय समुदाय के हाथों में है। चीन का यह समुदाय अधार्मिक स्वरूप से सन्तुष्ट है। यही कारण है कि संसार के साम्यवादी समूह अधार्मिकता के लिए अभियान चलाते हैं। ईसाई मिशनरियां चीन में नहीं घुस सकतीं। वहां इस्लाम को मानने वालों की दुर्गति अब किसी से छिपी नहीं है।
अपने समाज को बचाने के लिए एकजुट नहीं होते हिन्दू
मिशनरियों और मजहबी संगठनों को धर्मान्तरण के माध्यम से अपनी राजनीतिक शक्ति खड़ी करने में अब तक सबसे बड़ी सफलता भारत में मिली है। इस्लाम ने बलपूर्वक अखण्ड भारत की भूमि पर 52 करोड़ मुसलिम मतावलम्बी पैदा कर लिये। इनमें से सर्वाधिक 21 करोड़ वर्तमान भारत में 16 करोड़ पाकिस्तान में और 15 करोड़ बांग्लादेश में बसे हैं। यह सम्पूर्ण मुसलिम जनसंख्या मूलतः हिन्दू है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की सबका डीएनए एक ही होने की बात का यही तर्क है। भारत में अंग्रेजी शासन पूरी तरह स्थापित होने के पहले से ईसाई मिशनरियां हिन्दू समाज को कुतर रही हैं। अब तक कोई राजनीतिक या सामाजिक सुरक्षा कवच उन हिन्दू परिवारों को नहीं मिल पाया है जो समाज की सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर अटके हैं। मिशनरी संगठन हिन्दू समाज के उच्च वर्ग से अधिक नीचे की विषम परिस्थितियों में रहने वाली जातियों वर्गों को तोड़ने में बहुत तीव्र गति से जुटे हैं। कई राज्यों केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र, ओडीसा तथा पूर्वोत्तर के राज्यों मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणांचल प्रदेश में धर्मान्तरित ईसाई समाज एक बड़ी शक्ति है जो हिन्दू संगठनों के लिए चुनौती बनकर खड़ी हो चुकी है। झारखण्ड, छत्तीसगढ़ की अशान्ति के कारणों की समीक्षा कोई खुलकर नहीं करता। वास्तविकता सब जानते हैं कि मतान्तरण ही मुख्य कारण है। भारत में हिन्दुओं को शक्तिहीन नहीं कह सकते किन्तु वह अपने समाज को बचाने के लिए एकजुट नहीं होते।
विभाजन के समय हिन्दुओं का एकतरफा संहार
भारत विभाजन के समय हिन्दुओं का एकतरफा संहार हुआ। इसका मुख्य कारण यह था कि हिन्दुओं का नेतृत्व शान्ति और अहिंसा के विचारों के पुजारी राजनीतिक महात्मा के हाथों में था। जबकि मुसलिम समाज की अगुआई मुहम्मद अली जिन्ना के हाथ में थी। जिन्ना ने भारत में नरसंहार के पिछले कीर्तिमान तोड़ने का बीड़ा उठा लिया था। भारत में गाँधी नेहरू खानदान के हाथों में आयी सत्ता ने मिशनरियों को पनपने का पूरा अवसर दिया। गांघीजी के धर्मान्तरण रोकने के विचार नेहरू ने ठुकरा दिये थे।
अब क्या बाधा है धर्मान्तरण रोकने में
भारत में धर्मान्तरण रोकने में अब ऐसी कोई बाधा नहीं है जिसे बहुमत वाली निर्वाचित सरकार पार नहीं कर सकती। पहले की भाँति अब संसार में कोई महाशक्ति नहीं है जो भारत के सशक्त नेतृत्व को निर्णय लेने से रोक सके। मतान्तरण या धर्मान्तरण रोकने के लिए कठोर विधान शीघ्र बनने चाहिए। ऐसा करने में देरी से भारत को और विखण्डित करने के षडयन्त्रों को बल मिलता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)