दयानंद पांडेय
विनायक दामोदर सावरकर (28 मई 1883 – 26 फरवरी 1966) का लिखा कभी पढ़ा है आप ने? सिर्फ़ सावरकर का माफ़ीनामा ही जानते हैं या कुछ और भी? या सिर्फ़ लतीफ़ा बन चुके राहुल गांधी के मार्फ़त जानते हैं सावरकर को?
कभी इंदिरा गांधी के मार्फ़त भी सावरकर को जानिए। कभी पता कीजिए कि इंदिरा गांधी ने संसद में सावरकर का चित्र क्यों लगाया? इंदिरा गांधी ने सावरकर के नाम पर डाक टिकट क्यों जारी किया। इंदिरा गांधी ने 1970 में डाक टिकट जारी करते हुए सावरकर को वीर योद्धा क्यों कहा था। कभी महात्मा गांधी की क़लम के मार्फ़त भी जानिए सावरकर को। कई मुद्दों पर असहमति के बावजूद दोनों एक दूसरे का और एक दूसरे के विचारों का बहुत सम्मान करते थे। कभी पता कीजिए कि एक सावरकर को छोड़ कर, दो-दो बार किसी दूसरे आदमी को भी काला पानी का आजन्म कारावास मिला क्या?
अंग्रेजों की धरती पर उनके खिलाफ हुंकार
भारत का तिरंगा झंडा बनाने में सावरकर का योगदान भी जानते हैं क्या आप? या सिर्फ़ मैडम कामा का ही नाम जानते हैं? जानिए कि जिस तिरंगे को लहराते हुए अपनी शान समझते हैं वह सावरकर की कल्पना है। जानिए कि 1857 को पहला स्वतंत्रता संग्राम सावरकर ने ही बताया और इस बाबत सावरकर ने ही पहली किताब लिखी है। सावरकर ने ही लंदन में पहली बार सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन संगठित कर सक्रिय किया। बाल गंगाधर तिलक और श्याम कृष्ण वर्मा ने उन्हें बैरिस्टर की शिक्षा लेने के बहाने 1906 में क्रांतिकारी आंदोलन को हवा देने की दृष्टि से लंदन भेजा था। तिलक उनसे इसलिए प्रभावित थे, क्योंकि सावरकर 1904 में ही ‘अभिनव भारत’ नाम से एक संगठन अस्तित्व में ले आए थे। लंदन जाने से पहले इसका दायित्व उन्होंने अपने बड़े भाई गणेश सावरकर को सौंप दिया था। अंग्रेजों की धरती पर उन्हीं के विरुद्ध हुंकार भरने वाले पहले भारतीय थे सावरकर।
ख्यातिलब्ध क्रांतिकारी
वैचारिक स्तर पर हम परिपक्व हो रहे हैं। आप कोई स्कूल के विद्यार्थी नहीं रहे। सो अधकचरे वामपंथी ‘लड़कों’ की तरह- या लतीफ़ा राहुल गांधी की तरह- सावरकर को ट्रीट करना आपको शोभा नहीं देता। नहीं जानते तो अब से जान लीजिए सावरकर समाजवादी भी थे। जर्मनी के स्टूटगार्ट में समाजवादियों का वैश्विक सम्मेलन आयोजित था। सावरकर की इच्छा थी कि इसमें कामा द्वारा भारत के ध्वज का ध्वजारोहण किया जाए। सावरकर इस उद्देश्य की पूर्ति में सफल हुए। इस समय तक सावरकर तिलक के बाद सबसे ज्यादा ख्यातिलब्ध क्रांतिकारी हो गए थे।
खुदीराम बोस समेत तीन अन्य क्रांतिकारियों को दी गई फांसी से सावरकर बहुत विचलित हुए और उन्होंने इन फांसियों के लिए जिम्मेदार अधिकारी एडीसी कर्जन वायली से बदला लेने की ठान ली। मदनलाल ढींगरा ने उनकी इस योजना में जान हथेली पर रखकर शिरकत की। सावरकर ने उन्हें रिवॉल्वर हासिल कराई। एक कार्यक्रम में मौका मिलते ही ढींगरा ने कर्जन के मुंह में पांच गोलियां उतार दीं और आत्मसमर्पण कर दिया। इस जानलेवा क्रांतिकारी गतिविधि से अंग्रेज हुकूमत की बुनियाद हिल गई। इस घटना के फलस्वरूप समूचे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध माहौल बनने लगा।
अंग्रेजभक्तों के प्रस्ताव का विरोध
इस बीच कुछ अंग्रेज भक्त भारतीयों ने इस घटना की निंदा के लिए लंदन में आगा खां के नेतृत्व में एक सभा आयोजित की। इसमें आगा खां ने कहा कि ‘यह सभा आम सहमति से एक स्वर में मदनलाल ढींगरा के कृत्य की निंदा करती है।’ किंतु इसी बीच एक हुंकार गूंजी, ‘नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता। मैं इस प्रस्ताव का विरोध करता हूं।’ यह हुंकार थी वीर सावरकर की। इस समय तक आगा खां सावरकर को पहचानते नहीं थे। तब उन्होंने परिचय देने को कहा। सावरकर बोले, ‘जी मेरा नाम विनायक दामोदर सावरकर है और मैं इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करता हूं।’ अंग्रेजों की धरती पर उन्हीं के विरुद्ध हुंकार भरने वाले वे पहले भारतीय थे। एक बात और बताऊं ? गांधी को समझने के लिए पहले सावरकर को समझना ज़रुरी है।
सावरकर की बहुत सारी बातें गांधी ने दोनों हाथ से स्वीकार किया है। ख़ास कर हिंदुओं में छुआछूत ख़त्म करने की बात को। सावरकर को पढ़िए कभी तो जानिए कि अंगरेजों से लड़ाई में मुस्लिम राजाओं की कितनी तो तारीफ़ करते मिलते हैं सावरकर। जब कि सिंधिया जैसे हिंदू राजा और सितारा की रानी आदि की कितनी निंदा करते हैं। कहते हैं कि इनको कीड़े पड़ें। अंगरेजों से जैसे और जितनी लड़ाई लड़ने वाले सावरकर अप्रतिम हैं।
जो केवल आलोचना में जुटे हैं…
सावरकर को बिना जाने केवल उनकी आलोचना करने वाले लोगों से मेरा इतना ही कहना है कि हम किसी सभा में, संगठन में अपनी छोटी सी उपेक्षा या सम्मान को लगी चोट से इतने आहत हो जाते हैं। और सावरकर दो-दो बार काला पानी का आजीवन कारावास पा कर विचलित न होते- ऐसा कैसे सोच लेते हैं। फिर यह माफ़ीनामा भी गांधी की सलाह पर दिया था सावरकर ने। क्या इस तथ्य से भी आप परिचित नहीं हैं। द्विराष्ट्र की परिकल्पना और माफ़ीनामा- बस दो ही बातें सावरकर का काला अध्याय हैं। सावरकर की बाक़ी सारी बातें सुनहरा अध्याय हैं। लेकिन सावरकर को धाराप्रवाह गरियाने वालों को जिन्ना नाम सुनते ही लकवा मार जाता है। वह जिन्ना- जिसने सचमुच दो राष्ट्र बना देने का पाप किया। वह जिन्ना- जिसने डायरेक्ट ऐक्शन यानी हिंदुओं को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया था। इस डाइरेक्ट ऐक्शन पर बोलना भी पाप मान लिया गया है। इस दोगली सोच पर अब विराम लग जाना चाहिए। लेकिन कहां और कैसे भला! कुछ बीमार लोगों का पथ्य है यह। सो कैसे मुमकिन है भला।
वह रूस है, यह भारत है
रूस में युद्ध का विरोध करना अब अपराध घोषित हो गया है। आज दो हज़ार से अधिक लोग रुस में इस कारण गिरफ़्तार हो गए हैं। यहां भारत में तो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला’ नारे लगते हैं। और लोग इस पर रजाई ओढ़ कर सो जाते हैं- यह क्या है भला ! सावरकर को पढ़िए। असहमत रहिए – सहमत रहिए यह आप का विवेक है। लेकिन एकतरफा कोई गुड बात नहीं। राम की भी निंदा होती ही है हमारे यहां। दिक़्क़त क्या है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार हैं)