प्रदीप सिंह।
लोकसभा चुनाव 2024 कौन जीता? …जाहिर है कि बीजेपी अपने दम पर 240 सीटें लेकर आई और उसका गठबंधन यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 292 करीब सीटें लेकर आया। इस तरह एनडीए की जीत हो गई। लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा हुआ नहीं। जो जानकारियां सामने आ रही हैं, जो नतीजा है, अलग-अलग राज्यों में जिस तरह की बीजेपी और उसके विरोधियों की परफॉर्मेंस है, अलग-अलग सामाजिक समूहों में जिस तरह का वोटिंग पैटर्न रहा है… उन सबको देखते हुए अगर इस पूरे चुनाव की कोई एक थीम खोजना हो कि कौन जीता? तो मैं कहूंगा भाजपा विरोधी विमर्श जीता।
भाजपा विरोधी नैरेटिव सब पर भारी पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर भारी पड़ा। सरकार की जितनी योजनाएं थी जिसके जरिए उन्होंने एक लाभार्थी वर्ग बनाया था उस पर भारी पड़ा। भारतीय जनता पार्टी के संगठन पर भारी पड़ा। भारतीय पार्टी की चुनावी मशीनरी पर भारी पड़ा। भारतीय जनता पार्टी जो पन्ना प्रमुख का एक्सपेरिमेंट चला रही थी उस पर भारी पड़ा। भारतीय जनता पार्टी के पूरे चुनाव प्रचार पर भारी पड़ा… और यह कोई नई बात नहीं है। 1951 में जनसंघ का गठन हुआ। उसके बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी। बीच में 1977 से 1980 तक भारतीय जनता पार्टी का जनता पार्टी में विलय हो गया था। अगर आप देखेंगे तो जनसंघ के समय से ही, भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जो विमर्श है वह हमेशा जीतता रहा है। यह भारतीय जनता पार्टी और उसके पूरे तंत्र की एक गंभीर कमजोरी है।
नैरेटिव कैसे बनता है, उसको कैसे चलाया जाता है, कौन लोग बनाते हैं और कैसे उसको बढ़ाते हैं… इस पर पहले भी विस्तार से चर्चा कर चूका हूँ। भाजपा के खिलाफ जो इकोसिस्टम है वह जनसंघ के समय से आज तक उसी तरह से चलता है और वह अपनी बात को नीचे तक पहुंचाने में कामयाब होता है। उनके पास एक पूरा इकोसिस्टम है। एक पूरा इंटेलेक्चुअल क्लास है उसमें शिक्षक हैं, पत्रकार हैं, राजनेता हैं, सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर हैं। इस चुनाव में सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर की भूमिका कितनी बड़ी रही इस पर आगे बात करेंगे। इंटेलेक्चुअल क्लास में ज्यादातर लेफ्ट लिबरल इको सिस्टम के लोग हैं जो भाजपा विरोधी हैं।
जनसंघ के समय से एक विमर्श चल रहा है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी है। इस देश का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ और वह जनसंघ ने नहीं कराया। वह कांग्रेस पार्टी ने कराया। कांग्रेस पार्टी धर्म के आधार पर देश के दो टुकड़े करने को तैयार हो गई, मुसलमानों के लिए अलग देश देने को तैयार हो गई, लेकिन भारतीय जनता पार्टी कम्युनल है। देश में आजादी के बाद से जितने सांप्रदायिक दंगे हुए उसमें 90% से ज्यादा कांग्रेस शासित राज्यों में हुए हैं, कांग्रेस की सरकारों में हुए हैं। लेकिन भाजपा को सांप्रदायिक और कांग्रेस को सेकुलर बताया जाता है। कांग्रेस पार्टी के जमाने में बड़े-बड़े दंगे हुए हैं- मेरठ, मलियाना, भागलपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़। उसके अलावा 1984 का नरसंहार। वो दंगा नहीं था एक तरफा था। सिखों के गले में टायर बांधकर जिंदा जला दिया गया। फिर भी कांग्रेस पार्टी सेकुलर बनी रही। यह सिर्फ एक नैरेटिव के जरिए ही हो सका कि 1984 के बाद भी कांग्रेस पार्टी सिखों की भाजपा से बड़ी हितैषी बनकर उभरी। यह कल्पना आप कर सकते हैं कि जिस समाज के साथ ऐसा बर्बर अत्याचार हुआ हो वह कांग्रेस को वोट देने लगे। यह नैरेटिव की जीत है। यह सच्चाई की जीत नहीं है। यह झूठ पर खड़े किए गए नैरेटिव की जीत है।
यह कहा जाता रहा कि जब बीजेपी सत्ता में आएगी तो मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देगी। बीजेपी कई राज्यों में सत्ता में आई। तब कहा गया कि नहीं, ये केंद्र में सत्ता में आएंगे तब ऐसा करेंगे। केंद्र में भी सत्ता में आ गए, दो-दो बार आ गए, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, तो कहा गया कि स्पष्ट बहुमत नहीं मिला ना… इसलिए। तो 2014 में स्पष्ट बहुमत भी मिल गया। तब कहा गया कि नहीं, यह पहला टर्म है इसलिए ऐसा नहीं कर रहे, दूसरे टर्म में अगर आ गए तो आप समझिए कि बहुत बुरा होने वाला है। दूसरे टर्म में भी सत्ता में आ गए। तो तीसरे टर्म से पहले एक नया नैरेटिव चलाया गया कि देश में लोकतंत्र खत्म हो गया है। अगर नरेंद्र मोदी तीसरी बार आ गए तो उसके बाद कभी चुनाव नहीं होगा, देश में तानाशाही की स्थापना हो जाएगी और नरेंद्र मोदी लाइफ टाइम प्राइम मिनिस्टर बन जाएंगे। यहां तक तो यह पॉलिटिकल नैरेटिव था। उसकी बात समझ में आती है।
अब आप देखिए कि जनतंत्र को खत्म करने वाला, बोलने की आजादी को खत्म करने वाला कौन है? अगर आप देखेंगे तो उसमें आपको कांग्रेस पार्टी शिखर पर नजर आएगी। इमरजेंसी आपको याद ही होगी। उसके अलावा संविधान में जो पहला संशोधन हुआ वह जवाहरलाल नेहरू के समय में हुआ। वह संशोधन हुआ था अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए। इसके बावजूद कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है, यह फासिस्ट पार्टी है, हिटलरशाही में यकीन करने वाली पार्टी है। भारतीय जनता पार्टी 16 साल केंद्र में सत्ता में रही और अभी भी है। उसने एक भी ऐसा कदम नहीं उठाया जिसे आप कह सकें कि लोकतंत्र विरोधी है। कांग्रेस पार्टी ने क्या किया? कांग्रेस पार्टी ही बिहार प्रेस बिल लेकर आई थी, पोस्टल बिल लेकर आई थी और कांग्रेस पार्टी ने ही इमरजेंसी लगाई थी जब लोगों का मौलिक अधिकार छीन लिया गया था, बोलने की आजादी छीन ली गई थी, संविधान को कुचल दिया गया था। फिर भी कांग्रेस पार्टी संविधान की रक्षक है और भारतीय जनता पार्टी संविधान की विरोधी है- यह नैरेटिव आज भी चल रहा है। इसके मानने वालों की संख्या कम नहीं है और इसका प्रचार करने वालों की संख्या काफी ज्यादा है जो दिन रात जब भी, जहां भी, जिस भी प्लेटफार्म पर उनको मौका मिलता है यह नैरेटिव चलाने की कोशिश करते हैं।
भारतीय जनता पार्टी के पास वैसा इको सिस्टम नहीं है। न तो उसने और न ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने इंटेलेक्चुअल्स का ऐसा इकोसिस्टम बनाया जो इसकी काट कर सके और कांग्रेस पार्टी को बल्कि भाजपा के विरोधियों को देश में ही नहीं, देश के बाहर से भी समर्थन मिलता है। भाजपा को हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी कहा जाता है। विदेशी मीडिया हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बताता है। कांग्रेस पार्टी की मुस्लिम परस्ती, मुस्लिम तुष्टीकरण पर कभी सवाल नहीं उठाया जाता। यानी मुस्लिम तुष्टीकरण ठीक है, लेकिन जिस देश में 78-80% हिंदू रहते हैं उसमें हिंदुओं की बात करना सांप्रदायिकता है… यह एक नैरेटिव सेट कर दिया गया है और इसको मानने वाले सबसे ज्यादा हिंदू ही हैं।
अब इस चुनाव पर आते हैं। दो-तीन चीजें हुई इस चुनाव में। एक सरासर झूठ नैरेटिव चलाया गया कि भारतीय जनता पार्टी को तीसरा टर्म मिला तो वह ‘400 पार’ का जो नारा लगा रही है वह इसलिए कि वह संविधान खत्म कर देगी, आरक्षण को खत्म कर देगी। उसका असर यह हुआ कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता, उसके वोटर पूछने लगे कि क्या ऐसा होगा कि हमारी सरकार आएगी तो आरक्षण खत्म हो जाएगा। भाजपा इसका कोई जवाब, इसकी कोई काट नहीं खोज पाई। आप कहेंगे कि बड़ा ढिंढोरा पीटा जाता है कि भाजपा का संगठन बड़ा मजबूत है, अगर किसी पार्टी का जमीन तक संगठन है तो भारतीय जनता पार्टी का ही है। वह संगठन कहां गया, उस संगठन की ताकत कहां गई।
दो चीजें हुई 2019 से 2024 के बीच में। पहली चीज यह हुई कि भारतीय जनता पार्टी ने मान लिया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वह अब अपराजेय हो गई है। कोई भी परिस्थिति हो, कितनी भी हमारे खिलाफ नाराजगी हो, लोग कितना भी असंतुष्ट हों, वोट हम ही को देंगे। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ इसको मान लिया गया कि ‘मोदी है तो वोट है’। भाजपा के पूरे संगठन ने कहा कि काम करने की जरूरत ही नहीं है, सारा काम तो मोदी जी कर ही रहे हैं- वह अपील करेंगे और वोट मिल जाएगा। जो उम्मीदवार थे, सांसद और विधायक, उन्होंने कहा हमको काम करने की क्या जरूरत है। आपको भाजपा के ऐसे-ऐसे एमपी और एमएलए मिल जाएंगे जो अपने वोटर्स को झिडकते हैं और कहते हैं कि वोट हमको दिया था कि हमसे काम के लिए आए हो- मोदी को वोट दिया था मोदी से बात करो। इस तरह का व्यवहार जब आपके सांसद, विधायक करेंगे तो लोग उनको वोट क्यों देंगे। एक तो यह भावना पूरे संगठन में आ गई कि हमको काम करने की जरूरत नहीं है। दूसरी चीज कोरोना के दौरान यह परिवर्तन हुआ कि वर्क फ्रॉम होम और पढ़ाई मोबाइल से होने लगी। हर गरीब के घर में भी मोबाइल फोन पहुंच गया। उसने सोशल मीडिया के नैरेटिव को घर-घर पहुंचा दिया… चाहे अमीर हो- चाहे गरीब हो- चाहे मध्यम वर्ग हो- सबके यहां पहुंचा दिया। जो बात, जो काम बीजेपी ने 2014 और 2019 में किया था वह काम कांग्रेस पार्टी ने 2024 में किया। सारा ध्यान सोशल मीडिया पर दिया ,सोशल मीडिया के जरिए अपना नैरेटिव बनाने की कोशिश की और इस बात को नीचे तक पहुंचा दिया कि अगर बीजेपी फिर से आ गई तो आरक्षण खत्म हो जाएगा।
बीजेपी जवाब में इसकी कोई काट पेश नहीं कर पाई। प्रधानमंत्री ने इसको मुस्लिम आरक्षण से जोड़ने की जो कोशिश की उस पर लोगों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उनके मन में यह डर बैठ गया। विपक्ष 2015 में बिहार विधानसभा के चुनाव में इस हथियार का सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर चुका था। उसको मालूम था कि अगर यह नैरेटिव हमने नीचे तक पहुंचा दिया तो सफलता तय है। पूरे देश का चुनाव परिणाम देखें तो सब जगह एक जैसा नतीजा नहीं दिखता। ऐसा नहीं होगा कि हर प्रदेश में उसी तरह का ट्रेंड है। अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग ट्रेंड है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ देख लीजिए और बगल में उत्तर प्रदेश देख लीजिए। फर्क क्या है? फर्क है संगठन की नीचे तक पहुंच, संगठन के लोगों का सजग होना और विपक्ष के नैरेटिव को काटने की कोशिश करना। जहां यह कोशिश हुई वहां यह नैरेटिव नहीं चला। जहां संगठन बेफिक्र रहा, संगठन ने अपनी अक्षमता दिखाई, आपसी मतभेद आपसी लड़ाई दिखाई वहां नुकसान उठाना पड़ा। कोढ़ में खाज साबित हुए वे सांसद जिनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी। भाजपा ने जो अपना सर्वे कराया उसमें 35 उम्मीदवारों के बारे में फीडबैक आया कि वे हार जाएंगे, उनसे लोग बहुत नाराज हैं। अपनी कांस्टेंसी में उन्होंने कुछ नहीं किया। इसके बावजूद उन 35 का टिकट बरकरार रखा। यह कहा जा रहा था कि या तो टिकट काट दीजिए या बदल दीजिए। तो यह हाल था संगठन का। मैं यह उत्तर प्रदेश के टिकटों की बात कर रहा हूं। उत्तर प्रदेश में सांसदों की एंटी इनकंबेंसी सबसे ज्यादा थी और बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अपने सिटिंग एमपीज के सबसे कम टिकट काटे। उत्तर प्रदेश को निकाल दें तो बाकी देश में लगभग 45% से 50% सांसदों के टिकट काट दिए गए। उत्तर प्रदेश में 20% भी नहीं काटे गए। इससे आप अंदाजा लगाइए कि विपक्ष का जो नैरेटिव था उसके सफल होने की जमीन भारतीय जनता पार्टी ने ही तैयार की।
एक- संगठन की नाकामी, निष्क्रियता, अक्षमता… दूसरी- उस तंत्र का अभाव जो नैरेटिव गढ़ता है और अपने विरोधी नैरेटिव को काटता है… यह दोनों चीजें भारतीय जनता पार्टी के पास नहीं हैं और पिछले 10 साल में वह इसे डेवलप करने में सफल नहीं हुई है। उसका नतीजा है कि बीजेपी 303 से घटकर 240 पर आ गई। बताते हैं कि मतदान के चौथे फेज के बाद या चौथे फेज में संघ को लगा कि चीजें हाथ से निकल रही हैं तो संघ के लोगों ने प्रयास करना शुरू किया। वे जमीन पर उतरे। तो यह जो बचत हो गई है वह उसकी वजह से हो गई। आप देखिए किस तरह की सोच बीजेपी के नेताओं की हो गई। पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बीच चुनाव इंटरव्यू दे रहा है और कह रहा है कि “हमें अब संघ की जरूरत नहीं है। हम बहुत सक्षम हो गए हैं। हम जब कमजोर हुआ करते थे तब संघ की जरूरत पड़ती थी। आज हमें संघ की जरूरत नहीं है।” यह कल्पना से परे है। भाजपा का विरोधी भी यह नहीं बोलेगा कि भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। यह बात आपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी नहीं सुनी होगी कि हमें संघ की जरूरत नहीं है, लेकिन जगत प्रकाश नड्डा ने यह बात बोली। क्यों बोली, किसके कहने पर बोली, किसकी सहमति लेकर बोली, किससे सलाह करके बोला- किसी को नहीं मालूम। लेकिन उसका जो नुकसान होना था वह हो गया। बीच चुनाव में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम करें तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि संगठन की हालत क्या है।
फिर तमाम चीजें जुड़ती चली गईं। इतना बड़ा वोट शिफ्ट हो रहा है इसकी जानकारी न सरकारी तंत्र को लगी और न संगठन को- यह कल्पना से परे है। इतना बड़ा तंत्र आपके पास हो, इतना बड़ा संगठन आपके पास हो जो जमीन पर काम करता हो और आपको हवा तक न लगे कि इतना बड़ा परिवर्तन हो रहा है… इसका मतलब आप गाफिल थे कहीं। आपको इन चीजों की परवाह ही नहीं थी। इन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझी। ऐसे में अगर इस चुनाव के नतीजे को आप विपक्ष की कामयाबी के रूप में देखेंगे तो गलत निष्कर्ष पर पहुंचेंगे। यह भाजपा के संगठन की कमजोरी, अक्षमता, उसके सांसदों और संगठन के बहुत से नेताओं के अहंकार, उसके मंत्रियों की अक्षमता, लोगों से संपर्क न होना, लोगों की परेशानी से कोई वास्ता न होना- ये भी कारण बने इन परिणामों का। लेकिन सबसे बड़ा कारण बना विपक्ष के गढ़े विमर्श का नीचे तक पहुंचना और इसको रोक पाने में असफलता। एक झूठी बात, एक झूठे नैरेटिव ने पार्टी की सीटें घटा दीं। उत्तर प्रदेश में सीटें आधी हो गई क्योंकि संविधान बदलने का विपक्ष का एक झूठ चल गया और भारतीय जनता पार्टी का सच नहीं चल पाया कि हम संविधान में कोई परिवर्तन नहीं करने जा रहे हैं, हम आरक्षण बिल्कुल खत्म करने नहीं जा रहे हैं।
विस्तार से जानने के लिए इस वीडियो लिंक पर क्लिक करें
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं।