अजय विद्युत ।
यह निश्चित है कि हम जब भी और जिस भी संदर्भ में गोवा मुक्ति सत्याग्रह की बात करेंगे, गोवा की स्वतंत्रता की बात करेंगे, डॉ. राम मनोहर लोहिया के बिना बात शुरू नहीं की जा सकेगी। एक तरफ भारत में लोग अंग्रेजों का दमन झेल रहे थे, तो दूसरी तरफ गोवा में पुर्तगाल का शासन था। पुर्तगाली सरकार गोवा के आम नागरिकों पर तरह तरह के अत्याचार कर रही थी। उन्हें मूल अधिकारों से भी वंचित कर दिया गया था।
महात्मा गांधी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने में बहुत व्यस्त थे इसलिए गोवा की स्वतंत्रता की लड़ाई के बारे में वह ज्यादा कुछ नहीं कर सके। डॉ. लोहिया ने अपने कुछ साथियों के साथ गोवा जाकर वहां की जनता को अहिंसा का रास्ता अपनाते हुए पुर्तगाल से आजादी हासिल करने के लिए एकजुट किया। लोहिया जी को गोवा के लोगों का अभूतपूर्व समर्थन हासिल हुआ। जब महात्मा गांधी को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने मुक्त कंठ से डॉक्टर लोहिया की सराहना की। इतना ही नहीं 14 अगस्त 1946 को अपने अखबार हरिजन में महात्मा गांधी ने लिखा कि ‘लोहिया जी को बधाई दी जानी चाहिए’। गांधीजी ने गोवा के लोगों पर पुर्तगाली सरकार के दमन की कड़े शब्दों में आलोचना की और पुर्तगाल की सरकार द्वारा डॉ. लोहिया की गिरफ्तारी पर सख्त बयान दिया।
आगाज में अंजाम की इत्तिला
1946 में अपने मित्र डॉक्टर जूलियाओ मेनेजेस के निमंत्रण पर डॉ. लोहिया गोवा गए थे। 15 जून को पणजी के सभागार में डॉ. लोहिया ने एक बैठक बुलाई जिसमें लगभग 200 लोग शामिल हुए। बैठक में नागरिक अधिकारों के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने का निश्चय किया गया और 18 जून से आंदोलन शुरू करने की योजना बनी। गोवा में पुर्तगालियों ने किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा करने पर रोक लगा रखी थी। 18 जून 1946 को डॉ. लोहिया ने इस प्रतिबंध को चुनौती दी और तेज बारिश के बावजूद जनसभा को संबोधित किया।
पहली बार हजारों की भीड़ उतरी सड़कों पर
सभास्थल पर लगभग 20 हज़ार लोग इकट्ठा थे। जब डॉ. लोहिया भाषण देने के लिए खड़े हुए तो वहां का प्रशासक मिराड़ा रिवाल्वर लेकर सामने आ गया। डॉ. लोहिया ने उसको हटाया और अपना भाषण जारी रखा। पहली बार एक विदेशी शासक के साथ ऐसा व्यवहार देखकर जनता के उत्साह का कोई पारावार नहीं था। डॉ. लोहिया और उनके मित्र जूलियाओ गिरफ्तार कर लिए गए। हजारों लोगों ने पुलिस स्टेशन को घेर लिया और 19 जून को तो इतना जनसैलाब उमड़ा कि प्रशासन को डॉ. लोहिया और उनके मित्र को रिहा करना पड़ा। यह पहली बार था जब गोवा की जनता अपनी आजादी के लिए अहिंसा की लड़ाई लड़ने सड़कों पर उतरी थी
गांधी जी का समर्थन
महात्मा गांधी ने लोहिया जी के आंदोलन को अपना नैतिक समर्थन दिया। साथ ही लोहिया जी के कामों की प्रशंसा भी की। ध्यान देने वाली बात है कि गोवा के मुक्ति सत्याग्रह में डॉ. लोहिया की भूमिका का महात्मा गांधी ने भरपूर समर्थन किया था। लेकिन कांग्रेस पार्टी और उसके अन्य बड़े नेता जैसे नेहरू और पटेल अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता आंदोलन चलाने में ही व्यस्त थे और गोवा की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं था। यह भी कह सकते हैं कि जून 1946 में डॉ राम मनोहर लोहिया ने पुर्तगाली शासन के खिलाफ गोवा के लोगों में जो आजादी की लौ जगाई, नेहरू और पटेल के विचारों के खिलाफ जाकर गांधी जी ने उसका समर्थन किया।
26 जून को गांधीजी हरिजन में लिखते हैं गोवा के लोगों को उनकी नागरिक स्वतंत्रता दिलाने के लिए डॉ. लोहिया महान सेवा कर रहे हैं। मैं पुर्तगाल की सरकार को सुझाव देता हूं कि वह समय की आवाज सुनते हुए जनता पर दमन और अत्याचार तुरंत रोके और अपने लोगों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करे।
गांधीजी के लेख के जवाब में पुर्तगाली गवर्नर जनरल ने लिखा कि ‘गांधीजी अनावश्यक रूप से गोवा के आंतरिक मामलों में दखल दे रहे हैं। उसने गांधी जी से कहा कि पुर्तगाली समानता और भाईचारा फैलाने के लिए गोवा आए हैं।
लोगों को लोहिया का शुक्रगुजार होना चाहिए
2 अगस्त 1946 के ‘हरिजन’ में पुर्तगाली गवर्नर जनरल को जवाब देते हुए गांधी जी कहते हैं, ‘गोवा और दूसरी जगहों पर जहां जहां पुर्तगालियों ने कब्जा जमाया है- मुझे लोगों के साथ वैसा व्यवहार देखने को नहीं मिला- जिसका दावा आप कर रहे हैं। भले डॉ. लोहिया की राजनीति मुझ से भिन्न है, लेकिन गोवा में लोगों को नागरिक अधिकार और आत्म सम्मान वापस दिलाने के लिए वह जो कुछ कर रहे हैं उसे मेरा पूरा पूरा स्नेह और समर्थन प्राप्त है। डॉ. लोहिया ने संतप्त गोवा वासियों को दमन के इस भीषण अंधेरे में स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के उजाले की एक किरण दिखाई है। आप और गोवा के लोगों को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए।’
वादा निभाया
डॉ. लोहिया 28 सितंबर को गांधी जी से मुलाकात करते हैं और उन्हें गोवा में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन की प्रगति के बारे में बताते हैं। गोवा में लोगों से डॉ. लोहिया ने वादा कर रखा था कि वह कुछ समय बाद लौट आएंगे। डॉ. लोहिया को अपना वादा याद था। वह दोबारा गोवा गए। लेकिन इस बार तो उन्हें रेलवे स्टेशन पर ही गिरफ्तार कर लिया गया। 29 सितंबर से 8 अक्टूबर 1946 तक यानी 10 दिन जेल में रखे जाने के बाद डॉ. लोहिया को गोवा की सीमा से बाहर ले जाकर छोड़ दिया गया।
भारत की आत्मा गोवा की जेल में
महात्मा गांधी इस बार भी डॉ. लोहिया की गिरफ्तारी को लेकर लगातार बोलते और लिखते रहे। ऐसी हालत में डॉ. लोहिया की रिहाई किसी चमत्कार से कम नहीं थी। दिल्ली में पंडित नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार काम कर रही थी। गांधी जी ने नेहरू से कहा कि वह गोवा में डॉ. लोहिया की रिहाई सुनिश्चित करें। नेहरू ने इस मामले में हस्तक्षेप करने में अपनी असमर्थता जताई। शायद इसका एक कारण यह भी रहा हो कि उस समय पुर्तगाल की सरकार के साथ कोई प्रोटोकोल एग्रीमेंट नहीं था। गांधीजी ने घोषित किया कि डॉ. लोहिया कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि भारत की आत्मा गोवा की जेल में है।
वायसराय को पत्र
उसके बाद गांधीजी ने भारत के वायसराय लॉर्ड वावेल को पत्र लिखकर कहा कि वह डॉ. लोहिया की रिहाई के लिए पुर्तगाल की सरकार पर दबाव डालें। गांधी जी ने वायसराय और गोवा के चर्च से बार-बार अनुरोध किया। गांधीजी के प्रयास सफल हुए। 9 अक्टूबर 1946 को डॉ. लोहिया रिहा कर दिए गए। इस तरह कहा जा सकता है कि भले गोवा के मुक्ति सत्याग्रह से महात्मा गांधी सीधे तौर पर ना जुड़े रहे हों, लेकिन डॉ. राम मनोहर लोहिया के माध्यम से इस सत्याग्रह को उनका पूरा समर्थन हासिल था।