प्रदीप सिंह।
क्या अखिलेश यादव डरे हुए हैं? क्यों… किस बात का डर सता रहा है? उत्तर प्रदेश में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनाव का डर तो हर पार्टी के नेता के मन में होता है। लेकिन उसके अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को क्या डर है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर उनका आकलन या अपेक्षाएं पूरी नहीं होने वाली हैं?
गैंगस्टर के बड़े भाई से दोस्ताना
अभी कुछ दिन पहले अखिलेश यादव ने जेल में बंद गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतउल्ला अंसारी को लखनऊ में सपा में शामिल कर लिया। ये तीन भाई हैं। सिबगतउल्ला अंसारी जिन्हें अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी में शामिल किया है। दूसरे मुख्तार अंसारी जो जेल में हैं। तीसरे भाई अफजाल अंसारी बहुजन समाज पार्टी के गाजीपुर से सांसद हैं। तीनो भाई अलग-अलग समय पर सपा और बसपा में आते जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जब मायावती की सरकार थी तो बहुजन समाज पार्टी में थे। उसके बाद मायावती ने निकाल दिया उन्होंने एक नई पार्टी बनाई कौमी एकता दल।
एक अलग दुनिया में खोए थे तब
उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय करा दिया गया था। इस विलय को बलराम सिंह यादव ने कराया था जो उस समय अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री थे। लेकिन इस विलय के पीछे थे शिवपाल यादव। बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव की इसमें सहमति थी। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे और उस समय। वह एक अलग दुनिया में खोए थे। उनको लग रहा था कि अब वह हमेशा सत्ता में रहेंगे और उनको सत्ता से कोई हटा नही सकता। उस समय अखिलेश का अपने चाचा शिवपाल यादव से झगड़ा चल रहा था। उनको लगा कि यह विलय चाचा शिवपाल ने कराया है तो इसका विरोध होना चाहिए।
एक्शन में अखिलेश
अखिलेश यादव एकदम एक्शन में आ गए। विलय के तीन दिन बाद उन्होंने यह विलय कराने के लिए बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। फिर कौमी एकता दल के सपा में विलय को रद्द कर दिया। अखिलेश ने कहा कि मुझे इसके बारे में बताया नहीं गया था और इसकी कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने महत्वपूर्ण बात यह कही कि अगर पार्टी के कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाएंगे तो हमें किसी बाहरी पार्टी के सहयोग की जरूरत नहीं है। हालांकि बाद में उन्होंने बलराम यादव को मंत्रिमंडल में वापस ले लिया लेकिन कौमी एकता दल और समाजवादी पार्टी का विलय रद्द हो गया। उस समय मुलायम सिंह यादव पार्टी में सक्रिय थे और शिवपाल यादव पार्टी से बाहर नहीं हुए थे।
दो संदेश
इस फैसले से अखिलेश यादव ने दो संदेश दिए। एक संदेश था कि पार्टी में चाहे कोई छोटा फैसला हो या बड़ा, अगर उनकी मर्जी के खिलाफ होगा तो वह उसे रद्द कर देंगे। दूसरा संदेश उन्होंने यह दिया कि वह बहुत आत्मविश्वास से भरे हुए हैं और मुस्लिम वोटों को पाने के लिए उन्हें बाहर से किसी मुसलमान नेता की आवश्यकता नहीं है। उस समय अखिलेश यादव के मीडिया में बहुत से पैरोकार थे और अन्य जगहों पर भी सक्रिय थे। उन्होंने अखिलेश यादव के इन दोनों संदेशों का खूब प्रचार किया। उनका कहना था कि लोग आरोप लगाते हैं कि समाजवादी पार्टी अपराधियों को संरक्षण देती है लेकिन अखिलेश यादव ने इसे गलत साबित कर दिया और गैंगस्टरों को पार्टी में लेने से इनकार कर दिया।
यही अंदाज पहले भी
इसी तरह उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले भी अखिलेश यादव ने इसी प्रकार का कदम उठाया था। जब डीपी यादव को पार्टी में शामिल कराया जा रहा था। तब भी उन्होंने उसको रोक दिया था। उस समय उनकी 2017 से भी ज्यादा प्रशंसा हुई थी। कहा जाने लगा कि यह युवा नेता विदेश से पढ़ कर आया है। यह नई सोच का नेता है और समाजवादी पार्टी की कार्य संस्कृति और छवि बदलने जा रहा है। हालांकि बदलाव ऐसा हुआ कि पार्टी पहले से बदतर हो गई है पर वह अलग बात है।
क्यों शामिल कराया
यहां सवाल है कि अखिलेश यादव ने सिबगतउल्ला अंसारी को पार्टी में क्यों शामिल कराया। कौमी एकता दल तीनों अंसारी भाइयों की पार्टी थी। उनमें से एक मुख्तार अंसारी इस समय उत्तर प्रदेश की जेल में है। पहले का पंजाब में भागकर जेल में छुपा हुआ था। वहां पंजाब की कांग्रेस सरकार उसे बचा रही थी। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद उसे उत्तर प्रदेश की जेल में ट्रांसफर किया गया। वह रोज बयान दे रहा है कि मुझे मार दिया जाएगा, मुझे मारने की सुपारी दी गई है। उधर उसके अवैध आर्थिक साम्राज्य को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानूनी तरीके से नेस्तनाबूद कर रहे हैं। इसमें कुछ भी गैर कानूनी तरीके से नहीं हो रहा है।
भाजपा बनाम सपा
भाजपा की तरफ से यह संदेश दिया जा रहा है कि अपराधी गिरोह चलाने वालों के खिलाफ उसकी जीरो टॉलरेंस नीति है और गैंगस्टरों से कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। उत्तर प्रदेश में इस बात के प्रशंसा हो रही है कि योगी सरकार ने चार – सवा चार साल में संगठित अपराध को बड़ी सीमा तक ध्वस्त कर दिया है। इसका ठीक उल्टा संदेश दे रहे हैं अखिलेश यादव कि उनको अपराधियों और अपराधी गिरोहों से कोई एतराज नहीं है। तर्क यह दिया जा रहा है कि सिबगतउल्ला के खिलाफ बहुत ज्यादा केस नहीं हैं। सच तो यह है कि हालांकि उन पर मुख्तार अंसारी जैसे मामले नहीं है लेकिन उनके खिलाफ आपराधिक तो मामले हैं ही। वहीँ अफजाल अंसारी बहुजन समाज पार्टी में हैं।
सबसे कमजोर कड़ी लेकर ऐसा जश्न
तीनों भाइयों में यह फर्क करना कि यह कम अपराधी है- यह ज्यादा अपराधी हैं- अपने आप को बेवकूफ बनाने जैसा ही होगा। फिर अखिलेश यादव ने ऐसा क्यों किया? अंसारी बंधुओं में से एक तिहाई को क्यों ले आए। तीनों भाई जब एक साथ थे और ताकतवर थे, तब उनको नहीं लिया गया। अब उनमें से उस भाई को जिसका राजनीतिक आधार या पकड़ सबसे कम है- उसको इतनी शानो शौकत और बैंड बाजे के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल कराया गया। आखिर क्या वजह है? तो इसकी पहली वजह तो यह है कि 2017 में अखिलेश यादव जिस आत्मविश्वास का प्रदर्शन कर रहे थे वह टूट चुका है। अब वह डरे हुए हैं।
मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को
2022 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सामने सबसे मजबूत विपक्ष समाजवादी पार्टी है। यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि किसी भी राज्य में- और इस समय उत्तर प्रदेश के चुनाव हो रहे हैं तो वहां के संदर्भ में- मुसलमान उसी पार्टी को वोट देगा जो भाजपा से मुकाबला करने की स्थिति में होगी। उत्तर प्रदेश में वह पार्टी समाजवादी पार्टी है। स्वाभाविक रूप से मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को जाएगा। बहुजन समाज पार्टी की स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब हुई है। बसपा को लेकर मुसलमानों के मन में यह संदेह हमेशा बना रहता है कि बीजेपी से उनका समझौता हो सकता है, वे बीजेपी के साथ जा सकते हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती को भी यह मुगालता नहीं है कि मुसलमान किसी प्रेम या विचारधारा के चलते उनको वोट देता है। उनको पता है कि उनके पास एक अपना पक्का वोट है और जब मुसलमान उन्हें वोट देता है तो उम्मीदवार की जीत पक्की हो जाती है। लेकिन 2014 के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने कुछ ऐसा कर दिया है कि अब मुस्लिम वोट का वीटो खत्म हो गया है। इससे फर्क यह पड़ा कि अब इस बात की गारंटी नहीं रह गई है कि जिस पार्टी को मुसलमानों के एकमुश्त वोट मिलेंगे वह पार्टी जीतने की स्थिति में या सबसे आगे होगी।
कुल जनाधार
अखिलेश यादव के पास कुल जनाधार यादव और मुस्लिम वोट का है। यादव वोट कहीं जाने वाला नहीं है। कम से कम इस चुनाव तक तो यादव वोट पूरी तरह से समाजवादी पार्टी के साथ रहेगा। तो क्या अखिलेश यादव को मुस्लिम वोटों के खिसकने का डर है? किससे डर है? मायावती से तो नहीं है। कांग्रेस पार्टी कहीं गिनती में नहीं है उत्तर प्रदेश में। भाजपा को मुस्लिम वोट मिलना नहीं है। उत्तर प्रदेश में भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस यही चार बड़ी पार्टियां हैं। …लेकिन कहानी बस इतनी ही नहीं है- बल्कि यहाँ से एक नए ट्विस्ट के साथ शुरू होती है। यह जानने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें… तब पता चलेगा अखिलेश का आत्मविश्वास इस बार अब तक के सबसे निम्न स्तर पर क्यों है?