प्रदीप सिंह।
“सिया राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी॥”
आज का दिन भारत के इतिहास में, सनातन और मानव सभ्यता के इतिहास में एक ऐतिहासिक दिन है। हम आप सब लोग बड़े भाग्यशाली हैं कि इतिहास को बदलते और बनते हुए देख रहे हैं। आज 22 जनवरी को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का दिन है। यह भारतीय संस्कृति के उन्नयन और उसके पुनरुद्धार का दिन है। यह एक प्रस्थान बिंदु है जहां से देश की राजनीति और संस्कृति उस रूप में नहीं रह जाएगी जिस रूप में आज है। उसमें बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है। दुनिया भर की निगाहें राम मंदिर और अयोध्या पर है।
सनातन के मानने वालोंके लिए आज का दिन बहुत बड़ा है। आज का दिन अगर आया है तो किन लोगों की वजह से आपाया है यह बताने की जरूरत नहीं है। देशभर में नारा लग रहा है कि जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे। राम को कौन लाए हैं यह अब बच्चे-बच्चे को पता है। राम मंदिर का आंदोलन 90 के दशक में शुरु हुआ, बल्कि इससे पहले अगर माहौल बना तो 80 के दशक में दूरदर्शन पर जो रामायण सीरियल का प्रसारण हुआ उससे बना। अगर आप भौगोलिक दृष्टि से देखेंगे तो बड़ी विचित्र बात दिखाई देगी। राम की पूजा-अर्चना करने की जो प्रथा है वह उत्तर और पश्चिम में ज्यादा है, दक्षिण और पूरब में कम है। इसके दो कारण है। एक सांस्कृतिक-धार्मिक कारण है और एक राजनीतिक कारण है। सांस्कृतिक और धार्मिक कारण यह है कि पूरब और दक्षिण में देवियों की पूजा ज्यादा होती है, जबकि देवताओं की पूजा अपेक्षाकृत कम होती है। केरल जैसे राज्य में भगवान राम की तुलना में भगवान कृष्ण ज्यादा पूजे जाते हैं। यह अलग बात है कि रामायण का अनुवाद सभी दक्षिण भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है। दक्षिण भारत में इसकी शुरुआत 12वीं शताब्दी में कंपन का जो रामावतारम है उससे हुई।
दक्षिण में क्यों कम पूजे जाते हैं राम
दक्षिण में राम दो रूप में स्वीकार किए जाते हैं। एक, उनको अवतार माना जाता है, दूसरा, यह मानते हैं कि वह मर्यादा पुरुषोत्तम थे यानी पुरुषों में सबसे उत्तम। इसलिए उनकी पूजा दो तरह से होती है। अब सवाल यह है कि दक्षिण में राम की पूजा कम क्यों होती है। मैंने इसका सांस्कृतिक कारण बताया कि यहां देवियों की पूजा ज्यादा करने का प्रचलन है।पूरबकी आप बात करें तो यहां भी देवियों के विभिन्न स्वरूपों की ज्यादा पूजा होती है। आपको पूरब में और दक्षिण में राम के मंदिर उस तरह से नहीं मिलेंगे या मंदिरों में राम की मूर्ति की स्थापना नहीं मिलेगी। इसका राजनीतिक कारण हैं पेरियार जिन्होंने तमिलनाडु में आर्य बनाम द्रविड़ का विभेद पैदा किया। पेरियार का मानना था कि रामचरितमानस दरअसल आर्य बनाम द्रविड़ का संघर्ष है। उनकी नजर में सनातन धर्म जाति व्यवस्था के लिए दोषी है। उसके लिए उन्होंने वाल्मीकि रामायण से कुछ प्रसंग उठाकर इस तरह का प्रचार करने की कोशिश की। जैसे, कहा गया कि राम ने शंबूक का वध इसलिए किया क्योंकि वह शूद्र था और तपस्या करता था। इसके अलावा एक और विभेद पैदा करने की कोशिश हुई कि रावण द्रविड़ था इसलिए उसका वध भगवान श्री राम ने किया। अब यह ऐसी कहानियां हैं जिसका कोई आधार नहीं है, लेकिन लोगों के मानस में यह बिठाया गया कि राम का संबंध ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज से है।
पूरी दुनिया में छा गए राम
पेरियार और उनकी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) पार्टी की नीति धर्म और जाति दोनों के विरोध में थी, लेकिन आज के डीएमके को देखें तो वह जाति और धर्म का कैसे इस्तेमाल करते हैं यह देखने को मिलेगा। मगर आज मैंइ समें जाना नहीं चाहता। आज बात हो रही है अयोध्या में राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की। मेरी नजर में यह बहुत बड़ा क्षण है। न्यूजीलैंड की कल्चर मिनिस्टर दुनिया भर के मूल भारतीय निवासियों को बधाई दे रही हैं कि आपके लिए 22 जनवरी का दिन बहुत बड़ा दिन है और आप सब इसके लिए बधाई के पात्र हैं। राम अयोध्या तो आ रहे हैं लेकिन अयोध्या से निकलकर पूरी दुनिया में छा गए हैं। राम हर उस चीज के प्रतीक हैं जो मानव सभ्यता में उत्कृष्ट है, अच्छा है। तमिलनाडु या दक्षिण भारत में इसका असर कम है तो उसका एक बड़ा कारण है पेरियार का आंदोलन। 50 के दशक के बाद दक्षिण भारत में, खासतौर से तमिलनाडु की पीढ़ियों ने रामायण नहीं पढ़ा। उनको रामायण के बारे में जानकारी नहीं है। उनको रामायण के बारे में जो जानकारी दी गई है वह सब नकारात्मक है। वह सब रामायण और सनातन विरोधी है। उदयनिधि स्टालिन जो बोल रहे हैं वह उसी शिक्षा का परिणाम है क्योंकि उन्हें वही पढ़ाया गया है, वही बताया गया है। सनातन धर्म के विरोध में उदयनिधि स्टालिन ने जो कुछ बोला वह निहायत शर्मनाक है लेकिन यह उनकी शिक्षा का असर है। यह उस वातावरण का असर है जिसमें उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई,जिसमें उनका राजनीतिक शिक्षण हुआ। इस परिस्थिति में बदलाव शुरू हुआ 90 के दशक में जब अयोध्या का आंदोलन शुरू हुआ। तब से उत्तर भारत से दक्षिण भारत में राम को एक पूज्य देवता के रूप में पहुंचाने का सिलसिला शुरू हुआ।
राम भक्ति का नया दौर
भारतीय जनता पार्टी का भौगोलिक विस्तार उन इलाकों में ज्यादा हुआ जहां राम की पूजा होती है। जहां राम की पूजा नहीं होती है वहां भारतीय जनता पार्टी कमजोर है यानी दक्षिण और पूरब में। नरेंद्र मोदी ने क्या परिवर्तन किया है इसका अंदाजा आपको इस बात से लगेगा कि उन्होंने इन दोनों भौगोलिक क्षेत्र यानी दक्षिण और पूरब में राम की पुनर्स्थापना की है। यह कहना ज्यादा सही होगा कि राम भक्त की पुनर्स्थापना की है। राम भक्ति का एक नया दौर पूरा देश देख रहा है। दक्षिण भारत में आप केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश चले जाइए आपको राम भक्ति का जो ज्वार इस समय दिखाई देगा इससे पहले शायद उत्तर भारत में भी उस तरह का असर दिखाई न दिया हो। राम केवल अयोध्या में नहीं लौट रहे हैं, राम पूरे भारतवर्ष में लौट रहे हैं। राम के पूरे भारतवर्ष में लौटने का मतलब है, अगर आज की शब्दावली में कहा जाए तो गुड गवर्नेंस की वापसी हो रही है, सुशासन की वापसी हो रही है। जीवन में जो कुछ नैतिक है, पारदर्शी है उसकी वापसी हो रही है। राम का अयोध्या में आना यह केवल अयोध्या, उत्तर प्रदेश या भारत के लिए ही नहीं, पूरी मानव सभ्यता के लिए एक बहुत बड़ा संकेत है। सवाल यह है कि राम पर इतना विशेष बल क्यों?क्योंकि राम भारतीय संस्कृति की पहचान हैं।
ऐतिहासिक क्षण के हम गवाह
यह जो कार्यक्रम हो रहा है वह एक अवधारणा की स्थापना कर रहा है कि राम भक्ति में ही राष्ट्र शक्ति है। यह मामला केवल भक्ति का नहीं है, देश को मजबूत करने और ताकतवर बनाने का भी है। राम भक्ति का चलन जितना बढ़ेगा राष्ट्र की शक्ति उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी। इसको समग्र रूप में देखिए। इसको केवल धर्म से जोड़कर, एक मंदिर से जोड़कर, भगवान राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम से जोड़कर मत देखिए। इसको अगर आप समग्रता मेंदेखेंगे तो भारत के कल्याण की, भारत को एक बार फिर से सोने की चिड़िया बनाने की ओर आगे बढ़ाने की और पूरे विश्व के कल्याण की दिशा में एक बड़ा कदम है। इस ऐतिहासिक क्षण के हम आप गवाह बन रहे हैं। यह हमारा आपका सौभाग्य है। हम आने वालीपीढ़ियों को बता सकते हैं कि हमने मर्यादा पुरुषोत्तम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम देखा था। हममें से ज्यादातर लोग जो भगवान राम और सनातन में विश्वास करते हैं, किसी ने कल्पना नहीं की थी कि एक दिन ऐसा आएगा जब हम अयोध्या में राम मंदिर बनते हुए देखेंगे। आज वह सपना साकार हो रहा है। आज राम अयोध्या लौट कर आए हैं तो हमको आपको आज दीपावली मनानी चाहिए।आप अपने घरों में दिए जरूर जलाएं। मेरा तो मानना है कि आज के बाद से हर साल देश में दो बार दीपावली का त्योहार मनाना चाहिए। एक बार जब दीपावली आती है और दूसरी बार 22 जनवरी को।
22 जनवरी की तारीख भारत और सनातन संस्कृति के इतिहास में वह तारीख होगी जिसका वर्णन आने वाली शताब्दियों तक किया जाएगा।चूंकि हम इस परिवर्तन के गवाह हैं, इसके प्रत्यक्षदर्शी हैं इसलिए शायद हमें यह परिवर्तन उतना बड़ा न लग रहा हो, लेकिन आने वाली पीढ़ियों को पता चलेगा कि कितना बड़ा परिवर्तन हुआ है। आज के दिन का उत्सव मनाइए और आज के दिन को अपने हृदय में बसा लीजिए। यह क्षण बार-बार देखने को नहीं मिलता। जो भाग्यशाली होते हैं उन्हीं को देखने को मिलता है। अयोध्या आंदोलन के लिए जितने लोगों ने बलिदान दिया, जिन लोगों ने आंदोलन किया, यह उनके बलिदान और उनकी तपस्या का फल है जो हमको आपको इस रूप में आज देखने को मिल रहा है। इस उत्सव का आनंद लीजिए और इस अनुभूति को अपने अंदर गहरी बैठने दीजिए कि हम इतिहास को बनते और बदलते हुए देख रहे हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)