4 महीने बाद पीएम मोदी ने की ’मन की बात’

डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्राचीन ज्ञान विज्ञान की समृद्ध भाषा संस्कृत को सम्मान देने और दैनिक जीवन में अपनाने का आह्वान करते हुए आज जो कहा है वह प्रत्‍येक भारतवासी के लिए विशेष महत्‍व रखती हैं। वास्‍तव में जो इस भाषा की व‍िशेषता और भारत के भारत होने के रूप में उसके योगदान को नहीं जानते हैं, उन्‍हें भी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इसके बारे में विस्‍तार से की गई बातचीत के बाद अवश्‍य जानना चाह‍िए।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इस प्राचीनतम एवं वैज्ञानिक भाषा से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। उन्होंने कार्यक्रम में संस्कृत में संवाद करते हुए कहा, “मम प्रिया: देशवासिन: अद्य अहं किञ्चित् चर्चा संस्कृत भाषायां आरंभे।” यानी मेरे प्रिय देशवासियों आज मैं संस्कृत भाषा पर कुछ चर्चा शुरू करता हूं।

मन की बात | भारत के प्रधानमंत्री

आकाशवाणी संस्कृत बुलेटिन के 50 साल पूरे

उन्होंने आकाशवाणी पर अपनी नियमित श्रृंखला ‘मन की बात’ के 111वें संस्करण में कहा, “आप सोच रहे होंगे कि ‘मन की बात’ में अचानक संस्कृत में क्यों बोल रहा हूँ ? इसकी वजह, आज संस्कृत से जुड़ा एक खास अवसर है। आज 30 जून को आकाशवाणी का संस्कृत बुलेटिन अपने प्रसारण के 50 साल पूरे कर रहा है। 50 वर्षों से लगातार इस बुलेटिन ने कितने ही लोगों को संस्कृत से जोड़े रखा है। मैं आकाशवाणी परिवार को बधाई देता हूँ।”

कब्बन पार्क

प्रधानमंत्री मोदी का कहना था, “संस्कृत की प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान की प्रगति में बड़ी भूमिका रही है। आज के समय की मांग है कि हम संस्कृत को सम्मान भी दें, और उसे अपने दैनिक जीवन से भी जोड़ें। आजकल ऐसा ही एक प्रयास बेंगलुरू में कई और लोग कर रहे हैं। बेंगलुरू में एक पार्क है- कब्बन पार्क ! इस पार्क में यहाँ के लोगों ने एक नई परंपरा शुरू की है। यहाँ हफ्ते में एक दिन, हर रविवार बच्चे, युवा और बुजुर्ग आपस में संस्कृत में बात करते हैं। इतना ही नहीं, यहाँ वाद- विवाद के कई सत्र भी संस्कृत में ही आयोजित किए जाते हैं। इनकी इस पहल का नाम है – संस्कृत सप्ताहांत ! इसकी शुरुआत एक वेबसाइट के जरिए समष्टि गुब्बी जी ने की है। कुछ दिनों पहले ही शुरू हुआ ये प्रयास बेंगलुरूवासियों के बीच देखते ही देखते काफी लोकप्रिय हो गया है। अगर हम सब इस तरह के प्रयास से जुड़ें तो हमें विश्व की इतनी प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।”

सांस्‍कृत‍िक पहचान

भारत की सांस्कृतिक पहचान अगर पूरी दुनिया में है, तो उनमें से एक संस्कृत भाषा भी है। जिसे हम देव भाष भी कहते हैं। क्योंकि इसको भगवान ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था। वेदों की रचना इसी भाषा में की गई क्योंकि यह शुद्धता का भी प्रमाण है। इसके आंचल से ही हिन्दी, पाली, प्राकृत आदि कई भाषाएं विकसित हुईं हैं, यह भाषा संस्कृति की तरह व्यापक है अनेक वेद, उपनिषद, वेदांग आदि की विषयवस्तु संस्कृत में ही वर्णित है। संस्कृत भाषा हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म में संचार का पारंपरिक साधन रही है। संस्कृत साहित्य को प्राचीन कविता, नाटक और विज्ञान के साथ-साथ धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में इस्तेमाल होने वाले विशेषाधिकार भी प्राप्त है।

Subhrajyoti on X: "4a)Alberuni (973-1048 CE) praises Kashmir as one of the  high schools of Hindu sciences in India and birth place of Siddham script  :- https://t.co/8aq542SWl6" / X

इतिहासकार अलब-ए-रूनी ने संस्कृत भाषा की विशेषता आदि पर खूब चार्चा की है। इसी प्रकार इतिहासकार विल डूरान्ट ने लिखा है कि ‘भारत की मातृभूमि कई प्रजातियों की जन्मदात्री रही है और संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी थी। इस प्रकार संस्कृत भाषा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। संस्कृत कंप्यूटर की कोडिंग के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। भारत की अधिकांश साहित्यिक रचनाएं, ग्रंथ, उपनिषद, संस्कृति, इतिहास और परम्परा से संबन्धित बाते संस्कृत में लिखी गईं हैं। इन ग्रंथों का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है मगर इसकी मौलिकता और जीवंतता संस्कृत भाषा में ही नीहित है। कालिदास की अद्भुत साहित्यिक कृतियां मेघदूतम, कुमारसंभव, बाणभट्ट की कादंबरी, पतंजलि के योग सूत्र, आध्यात्मिक ग्रंथ जैसे भगवद गीता, वेद, उपनिशद और बेशक दुनिया के महानतम महाकाव्य महाभारत और रामायण सभी मूल रूप से संस्कृत में लिखे गए थे।

विलियम कुक टेलर ने बड़ी उपलब्‍धि‍ माना

William Cook (British industrialist) - Wikipedia

 

प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक विलियम कुक टेलर के अनुसार ‘इस भाषा की महारत हासिल करना लगभग जीवनभर का श्रम है, इसका साहित्य अंतहीन लगता है’ जर्मनी जैसे कई देशों में इस विषय को लेगर गहन विचार मंथन हो रहा है। भाषाविद आज भी इसके शोध में लगे हैं। महर्षी श्री अरबिंदों के शब्दों में ‘अगर मुझसे पूछा जाए कि भारत के पास सबसे बड़ा खजाना क्या है और उसकी सबसे बड़ी विरासत क्या है, तो मैं बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दूंगा कि यह संस्कृत भाषा और साहित्य है और इसमें वह सब कुछ है। यह एक शानदार विरासत है, और जब तक यह हमारे लोगों के जीवन को प्रभावित करती है, तब तक भारत की मूल प्रतिभा बनी रहेगी।’

स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘भाषा ही उन्नत्ति का प्रतीक है। संस्कृत ही वह एक मात्र पवित्र भाषा है जिसके अंतस से अन्य भाषाओं का आविर्भाव हुआ है। भाषा शास्त्र में संस्कृत भाषा को एक सार्वभौमिक भाषा तथा सभी यूरोपीय भाषाओं की नींव के रूप में स्वीकार किया गया है।’ इस प्रकार संस्कृत का ज्ञान प्राचीन भारत में सामाजिक वर्ग और शैक्षिक उपलब्धी का प्रतीक था, और यह मुख्य रूप से उच्च जातियों के सदस्यों को पढ़ाया जाता था।

‘संस्कृत’ उपसर्ग ‘सम’ अर्थात ‘सम्यक’ के संयोजन से बना है जो ‘संपूर्ण’ को इंगित करता है, और ‘कृत’ जो ‘पूर्ण’ को इंगित करता है। आज भी पवित्र ग्रंथों और भजनों को पढ़ने में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। संस्कृत भषा को देववाणी के रूप में जाना जाता है यह मान्यता है कि यह भगवान ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न की गई भाषा थी, जिन्होंने इस भाषा का ज्ञान आकाशीय द्वीपों में रहने वाले ऋषियों (ऋषि) ने प्रदान किया था। ऋषियों से शिष्यों तथा शिष्यों से यह भाषा पृथ्वी पर फैल गई। इस प्रकार इसका पदार्पण हस सब के बीच हुआ।

उच्चारण के लिए सबसे उत्तम

संस्कृत को साहित्य की दृष्टि से दो अलग-अलग अवधियों, वैदिक और शास्त्रीय में वर्गीकृत किया गया है। वैदिक संस्कृत वेदों के पवित्र ग्रंथों, विशेषरूप से ऋग्वेद, पुराणों और उपनिशदों में पाई जाती है, जहां भाषा का सबसे मूल रूप इस्तेमाल किया गया था। वेदों की रचना 1000 से 500 ईसा पूर्व की अवधि तक मानी जाती है, उस समय संस्कृत को मौखिक संचार के रूप में लगातार उपयोग किए जाने की जोरदार परंपरा थी। प्रारंभिक संस्कृत शब्दावली, ध्वन्यात्मकता, व्याकरण और वाक्य-विन्यास में काफी समृद्ध है, जो आज भी उसी रूप में विद्यमान है। इसमें कुल 52 अक्षर, 16 स्वर और 36 व्यंजन हैं। इन 52 अक्षरों को कभी भी संशोधित या परिवर्तित नहीं किया गया है और माना जाता है कि यह शुरुआत से ही स्थिर रहे हैं, इस प्रकार यह शब्द निर्माण और उच्चारण के लिए सबसे उत्तम भाषा है।

वर्तमान समय में दुनियाभर में संस्कृत के प्रति बहुत रुचि जगी है। इसके अनेक कारण हैं यह प्राचीन है और इसमें लगभग सभी विषयों का साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यही कारण भी रहा है क‍ि  नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने बहुत पहले ही (1985) में अपने पेपर नॉलेज रिप्रेजेनटेशन इन संस्कृत एंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चर्चा की थी कि संस्कृत कंप्यूटर में उपयोग के लिए सबसे अच्छी भाषा है। उनके अनुसार संस्कृत वह प्राकृतिक भाषा है, जिसमें कम्प्यूटर द्वारा कम से कम शब्दों में संदेश भेजे जा सकते हैं। संसार की महान भाषाओं में संस्कृत सबसे प्राचीन और उत्तम श्रेणी की भाषा है।

न‍िश्‍चि‍त ही भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति को समृद्ध बनाए रखने में इस भाषा का योगदान अतुलनीय है। यह जितनी प्राचीन है उतनी आधुनिक और वैज्ञानिक भी। संस्कृत भाषा के सार्वभौमिक स्वरूप एवं व्यापकता के कारण वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के आम जनमानस जो अपेक्षा संस्‍कृत को जानने, सीखने और समझने के संदर्भ में कर रहे हैं, उसे लेकर यही कहना होगा कि देश के प्रत्‍येक नागरिक को उनकी कही इस बात को गंभीरता से लेना चाह‍िए और संस्‍कृत को जानकर अपने प्राचीन ज्ञान को भी जानने का प्रयत्‍न करना चाहिए।

(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)