समान नागरिक संहिता (यूसीसी) यानी एक देश एक कानून। अभी हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने विधानसभा में यूसीसी बिल पारित कर दिया है। यूसीसी का जिक्र आते ही देश में एक बहस छिड़ गई है। बिल में हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे कानूनी पहलुओं पर एक जैसे नियम बनाए गए हैं। फिलहाल भारत में ऐसा नहीं है और चर्चा है कि केंद्र सरकार जल्द इस दिशा में आगे बढ़ सकती है। यहां धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून है। भारत से पहले भी दुनिया के कई देश हैं जहां यूसीसी जैसे कानून पहले से ही लागू हैं। इनमें कई मुस्लिम देश भी शामिल हैं।यूसीसी को मानने वाले मुस्लिम देशों की लंबी लिस्‍ट है। इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्किए, इंडोनेशिया और मिस्र जैसे देश शामिल हैं जो समान नागरिक संहिता को मानते हैं। इन देशों में किसी विशेष धर्म या समुदाय के लिए अलग कानून नहीं है। सभी लोगों के लिए एक समान कानून है। इसके अलावा अमेरिका, आयरलैंड और दूसरे भी कई देश हैं जहां यह कानून लागू है। इस्लामिक देश सरिया कानून को मानते हैं और यहां अलग कानून नहीं है। सभी व्यक्तियों पर एक समान कानून लागू होता है।

तुर्किए –
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मुस्लिम बहुल देश तुर्किए ने 1926 से लागू पुराने कानूनों में साल 2002 में बदलाव किया है और कानून में लैंगिक समानता की बहाली की है। नए कानून के मुताबिक तुर्किए में विवाह, तलाक और संपत्ति के बंटवारे के मामले में महिलाओं और पुरुषों को बराबर अधिकार दिए गए हैं। तुर्किए में भी अब शादी की उम्र महिला और पुरुषों के लिए न्यूनतम 18 साल कर दी गई है।

इंडोनेशिया –
इंडोनेशिया ने भी शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करते हुए इसकी मंजूरी के लिए कोर्ट से परमिशन लेना जरूरी बना दिया है। अजरबैजान में भी एक दशक पहले ही शादी की उम्र न्यूनतम 18 साल कर दी गई है और महिलाओं एवं पुरुषों को संपत्ति में बराबर का अधिकारी बनाया है। सऊदी अरब ने 2022 से ही नागरिक कानूनों में बदलाव लाना शुरू किया है। वहां भी शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बना दिया गया है। इसके अलावा  बच्चे को गोद लेने के अधिकारों में महिलाओं की स्थिति मजबूत बनाई गई है।

नेपाल –
पड़ोसी देश नेपाल ने भी 2018 में अपने राष्ट्रीय नागरिक कानून में बदलाव किया है और बहुविवाह पर रोक लगाई है। नेपाल ने भी शादी और तलाक के मामलों का अनिवार्य पंजीकरण कर दिया है। इसके अलावा शादी और गोद लेने के मामलों में भी दोनों को बराबर अधिकार का प्रावधान किया है। इधर, कई मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और इसे अल्पसंख्यकों अधिकारों पर हमला करार दे रहे हैं।

भारत में मुस्लिम क्यों कर रहे विरोध?

ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने तर्क दिया है कि यूसीसी से भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन होगा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि समान नागरिक संहिता हिंदू-मुस्लिम एकता को नुकसान पहुंचाएगी। बिल के अनुसार अब मुस्लिम भी बिना तलाक दिए एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकेंगे, जबकि शरीयत के मुताबिक मुस्लिम कई शादियां कर सकते हैं। इतना ही नहीं, शरीयत के मुताबिक लड़की की शादी की उम्र माहवारी की शुरुआत को माना जाता है, लेकिन यूसीसी में लड़की की शादी की उम्र 18 साल कही गई है। समान नागरिक संहिता में हरेक शादी और तलाक का निबंधन अनिवार्य कर दिया गया है। तलाक पर महिला-पुरुष दोनों को बराबर अधिकार दिया गया है। यूसीसी लागू होते ही मुस्लिमों में तीन तलाक, हलाला और इद्दत जैसी प्रथा पर रोक लग जाएगी।

समानता और समरसता को साकार करेगा यूसीसी विधेयक

विपक्ष पर मुसलमानों को गुमराह करने का आरोप

प्रधानमंत्री मोदी की ओर से समान नागरिक संहिता का जिक्र करते ही भारत में इसको लेकर नई बहस छिड़ गई है। पीएम मोदी ने कहा कि विपक्षी दल यूसीसी के मुद्दे पर मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं। तीन तलाक और चार-चार शादियों जैसी कुरीतियां समाप्त होनी चाहिए। भारत में तो ट्रिपल तलाक को अभी बैन किया गया लेकिन कई मुस्लिम देशों में इस पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया है। बांग्लादेश, मलेशिया, इराक, संयुक्त अरब अमीरात, इडोनेशिया, कुवैत जैसे मुस्लिम देशों ने इस पर बहुत पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है।(एएमएपी)