प्रदीप सिंह।
छह दिसंबर की तारीख किसी भी सनातनी को भूलनी नहीं चाहिए। आने वाली पीढ़ियों को हमेशा याद दिलाते रहना चाहिए क्योंकि यह वह तारीख है जिस दिन दुनिया के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब मुस्लिम आक्रांताओं का शिकार कोई समाज उठ खड़ा हुआ। मेरा मानना है कि 1 मार्च 1528 वह दिन था, जिस दिन मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत पर सबसे बड़ा हमला किया। उन्होंने हमारे सबसे बड़े आराध्य और इस सनातन संस्कृति की आत्मा भगवान श्री राम के जन्म स्थान पर बने मंदिर को तोड़ दिया और उसकी जगह आक्रांता के नाम पर बाबरी मस्जिद बनाई। तो 6 दिसंबर वह तारीख है  जिसने आक्रांताओं को नायक मानने वालों के दिलों में एक ऐसी कील ठोकी,जिसकी टीस आज तक सुनाई देती है।

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याद रखिए जब राम जन्मभूमि के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था तो मुस्लिम समाज के कई बड़े मौलवियों ने कहा था,आज आपका दांव है, कल हमारा दांव आएगा। यानी वे अब भी अपनी गलती को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि वे फिर से मंदिर को तोड़ेंगे। इस दुस्साहस से आप सिर्फ एक ही तरीके से लड़ सकते हैं जैसे 6 दिसंबर को लड़े। आप देखिए इस देश में लंबे समय से किस तरह का नैरेटिव चलाया गया। हिंदुओं का ही एक बड़ा वर्ग बाबरी मस्जिद को गिराए जाने को संविधान और कानून के विरुद्ध मानता है। इन लोगों में से एक भी आदमी आपको ऐसा नहीं मिलेगा जो यह कहे कि राम जन्म स्थान पर बना हुआ हिंदू मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। तो बात शुरू से शुरू होगी या बीच से शुरू होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इसी नैरेटिव की रीढ़ तोड़ दी। हाल ही में एक इंटरव्यू में पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ से किसी ने सवाल पूछा कि एक मस्जिद तोड़ दी गई तो उन्होंने कहा- नहीं, पहले मंदिर तोड़ा गया।

अपना खोया हुआ धार्मिक स्थल पाने के लिए बहुत से लोगों ने कुर्बानी दी है। 30 अक्टूबर 1990 के दृश्य का तो मैं चश्मदीद गवाह हूं। मुझे उस समय मालूम नहीं था कि वे कोठारी बंधु हैं। मैंने अपनी आंखों से दो युवकों को गोली लगकर गिरते हुए देखा था। उस वक्त कितने लोग मारे गए थे,उसका कोई हिसाब नहीं है। सरकार ने कभी बताया नहीं। मुलायम सिंह यादव ने हिंदू होते हुए भी कार सेवकों पर गोली चलवाई। इतना ही नहीं, घटना के कई सालों के बाद भी उन्होंने कहा था कि फिर ऐसी स्थिति आई तो फिर गोली चलवाएंगे। तो आप मुसलमान को दोष देंगे या ऐसे हिंदुओं को? 6 दिसंबर ने बताया कि अगर आप में साहस है,पुरुषार्थ है,बलिदान देने की क्षमता है,तो आप वह हासिल कर सकते हैं जो आपका है।

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अयोध्या में राममंदिर के शिखर पर आज जो धर्म ध्वजा लहरा रही है उसके लिए बहुत से लोगों ने बलिदान दिया है। उन्हें मालूम था कि यह दिन देखने के लिए वे नहीं होंगे। फिर भी वे अधर्म के विरुद्ध लड़े और हिंदुओं का यही साहस, बलिदान की यही भावना उसके दुश्मनों को डराती है। ऐसे ही बलिदानियों के कारण आज तक सनातन धर्म और हमारी संस्कृति बची हुई है। तो हिंदुओं को कायर बनाने का गांधी और नेहरू ने जो अभियान शुरू किया था और जो सपना दूसरे मजहब के लोगों यानी इस्लाम के मानने वालों को दिखाया था,उस सपने को 6 दिसंबर ने तोड़ दिया।

छह दिसंबर की घटना को इसलिए भी याद रखा जाना चाहिए कि पूरी दुनिया को सनातन समाज ने बताया कि हम कायर नहीं है। हम अपने अधिकार के लिए लड़ना जानते हैं। कौन हमारा साथ देता है,कौन नहीं देता है,इसकी परवाह नहीं है। जो हमारा है वह हमें मिलना चाहिए। बात केवल अयोध्या में राम जन्म स्थान पर एक मंदिर की नहीं है। जितने मंदिर जबरन तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई,वे सब वापस मिलने चाहिए। संगठित और एकजुट हिंदू सनातन विरोध के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है। तो जो लोग 6 दिसंबर के नाम पर आप में अपराध बोध पैदा करने की कोशिश करते हैं, मानकर चलिए कि वे सनातन के विरोधी हैं। जो उस सच्चाई को देखने को तैयार नहीं हैं, जिसके हर तरह के साक्ष्य और प्रमाण हैं। जो वेद,पुराण से लेकर इतिहास,पुरातत्व,साहित्य सब जगह विद्यमान हैं। जिसको सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया। तो यह बात अपने दिमाग से निकाल दीजिए कि 6 दिसंबर को कुछ गलत हुआ था। उस दिन दरअसल गलत को सही किया गया था।

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सनातन धर्म को मानने वाले कई लोग बाबर को अपना नायक क्यों मानते हैं। क्योंकि नेहरू नायक मानते थे। नेहरू की डिस्कवरी ऑफ इंडिया आप पढ़िए तो आपको पता चलेगा कि उन्होंने बाबर की किस तरह से तारीफ की है । बाबर में उन्हें एक दृष्टा दिखाई देता था। एक चार्मिंग प्रिंस दिखाई देता था। और बाबरनामा पढ़ लीजिए तो नेहरू के उस लिखे हुए पर आपको शर्म आएगी कि कोई भारतीय, कोई सनातनी ऐसा सोच भी सकता है? नेहरू की विचारधारा ने ही हिंदुओं के एक वर्ग में कूट-कूट कर भरा कि आक्रांताओं को नायक और नायकों को खलनायक मानो। ये मानसिकता तब तक नहीं बदलेगी,जब तक आप 6 दिसंबर 1992 को जो हुआ, उस पर गर्व करना नहीं शुरू करेंगे।

भारतीय जनता पार्टी,विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राम मंदिर के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। इसका राजनीतिक फायदा भाजपा को हुआ। लालकृष्ण आडवाणी को हुआ। लेकिन मुझे आज भी याद है 7 दिसंबर की सुबह बीबीसी से बात करते हुए आडवाणी जी की आवाज कांप रही थी। भाजपा का एक बड़ा वर्ग था, जो इस बात से सहमत था कि यह गलत हुआ। भाजपा में आज भी ऐसे लोग हैं जिनको हिंदू होने पर शर्म आती है। तो ऐसे लोगों की देश और सनातन को जरूरत नहीं है। आज अगर भव्य राम मंदिर पर शान से धर्म ध्वजा लहरा रही है तो उसमें सबसे बड़ा योगदान 6 दिसंबर 1992 की तारीख का और उस दिन की घटना का है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)