डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘अयोध्या दर्शन’ में ‘कल्याण’ के आदि सम्पादक श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार (1892-1971) का एक लेख है ‘दशरथ के समय की अयोध्या’। इस लेख में यह बताया गया है कि दशरथजी के समय में इस नगर का नाम इसलिए ‘अयोध्या’ पड़ गया था, क्योंकि वहां कोई भी शत्रु युद्ध के लिए नहीं आ सकता था।
सभी 10,000 अतिथियों को प्रसाद के साथ दी जाएगी
इस पुस्तक में अयोध्या के शास्त्रीय महत्त्व और ऐतिहासिक विवरण दिए ही गए हैं। साथ-साथ वहां के प्रमुख दर्शनीय तीर्थ स्थानों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है। 128 पेज की इस पुस्तक में अनेक रंगीन मनमोहक चित्र भी हैं। यह पुस्तक 22 जनवरी 2024 को राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सभी दस हजार अतिथियों को प्रसाद के साथ दी जाएगी।
‘अयोध्या दर्शन’ पुस्तक का प्रथम संस्करण संवत् 2078 को निकला था। आज जनवरी 2024 में संवत् 2080 चल रहा है। तब से अब तक इस पुस्तक के कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और लगभग एक लाख प्रतियाँ छप चुकी हैं।
हनुमान गढ़ी की महिमा
इस पुस्तक में अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी के बारे में श्री भागीराथरामजी मिश्र ‘ब्रह्मचारी’ और श्री रामजी दुबे का एक लेख है। इस लेख में बताया गया है कि एक बार लखनऊ और फैजाबाद के प्रशासक नवाब मंसूर अली का एक पुत्र किसी भयंकर रोग से अत्यन्त पीड़ित हो गया. कई बड़े-बड़े वैद्यों और हकीमों के इलाज से भी जब वह ठीक नहीं हुआ, तब वह हनुमान गढ़ी कि श्री हनुमानजी के शरण में आया तब उसे उस भीषण रोग से मुक्ति मिल गई। नवाब ने हनुमानजी की श्रद्धा में 52 बीघा जमीन मन्दिर को दान कर दी थी और साधुओं की सुविधा के लिए एक विशाल इमली का बाग लगवा दिया था। आज तक हिन्दुओं के साथ-साथ मुसलमान बन्धु भी इस मन्दिर में आकर श्रद्धापूर्वक पूजा भेंट अर्पित करते हैं।
हनुमान गढ़ी की स्थापना स्वामी अभयारामदस जी ने की थी, जो कि एक सिद्ध महात्मा थे।
अयोध्या फैसला: कुछ अनकही बातें
‘अयोध्या दर्शन’ पुस्तक में इस लेख के लेखक का भी एक लेख है ‘अयोध्या फैसला – कुछ अनकही बातें’. अयोध्या में विवादित मस्जिद का क्षेत्रफल मात्र 1500 वर्ग गज ही था। 9 नवम्बर 2019 को भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के पृष्ठ संख्या 922 पर यह 1500 वर्ग गज वाली बात कही गयी है। परन्तु इस फैसले से मुस्लिम पक्षकारों को पाँच एकड़ जमीन मिली है। एक एकड़ में 4840 वर्ग गज होते हैं। अर्थात इस फैसले से उन्हें 5X4840=24,200 वर्ग गज जमीन मिली है। साथ ही इस जमीन पर उनको मालिकाना हक भी मिला है। बाबर या औरंगजेब जिस किसी ने भी जब रामजन्मभूमि पर मस्जिद बनवाने का प्रयास किया था, तो उन्हें उस स्थान का मालिकाना हक कभी नहीं दिया था। रामजन्मभूमि पर अपने मालिकाना हक के बारे में मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर पाया।
बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेज सरकार ने भी उस जमीन पर मालिकाना हक मुस्लिमों को कभी नहीं दिया था। परंतु हाँ, उसके रखरखाव के लिए कुछ पैसा दिया जाता था। वह जमीन नजूल की भूमि थी अर्थात सरकार की जमीन थी। किसी वक्फ की प्रापर्टी नहीं थी। वहाँ मुस्लिमों का शांतिपूर्ण कब्जा कभी भी नहीं रहा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में पृष्ठ संख्या 637 पर हाई कोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल के निर्णय का जिक्र है। जस्टिस अग्रवाल ने कहा था कि मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि विवादित बिल्डिंग के अंदर और बाहर जो स्तम्भ लगे हैं उन पर मानव आकृतियाँ बनी हैं और कुछ जगह तो वे हिन्दू देवी देवता जैसी लगती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित स्थान पर इस्लामिक चिन्ह हैं और वे आकृतियाँ भी हैं जिनकी हिन्दू पूजा करते हैं। दोनों ही एक साथ मौजूद हैं।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रामजन्म भूमि का विरोधी पक्ष ऐसा कोई सबूत नहीं दे सका कि जिससे यह साबित हो सके कि मस्जिद निर्माण के बाद से 1856-57 तक (अर्थात 325 वर्ष के कालखण्ड में) वहाँ कोई नमाज पढ़ी जाती थी (देखें सुप्रीम कोर्ट फैसले के पृष्ठ संख्या 900-901)।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उक्त पृष्ठों में कहा गया है कि अयोध्या में 1856-57 और 1934 में इन्हीं विवादों को लेकर सांप्रदायिक दंगे भी हुए थे।
वर्ष 1934 के दंगे में इस विवादास्पद ढांचे के गुम्बद का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त भी हुआ था। निहंग सिखों ने मस्जिद के अंदर घुस कर एक झण्डा गाड़ा था और हवन पूजा की थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि 1856-57 से 16 दिसंबर 1949 तक वहाँ जुमे की नमाज पढ़ी तो जाती थी, परन्तु इसमें बीच-बीच में व्यवधान भी आते रहे। अंतिम बार जुमे की नमाज 16 दिसंबर 1949 को पढ़ी गई।
अयोध्या में कई मंदिर हैं, परन्तु रामजन्मभूमि अकेला ऐसा मंदिर है जहां गर्भ गृह है। अन्य किसी मंदिर में गर्भ गृह नहीं है। इस विवाद को निपटाने के लिए पाँच सदस्यीय खण्डपीठ बधाई की पात्र है, जिसने सर्वसम्मत से अपना फैसला दिया। खण्डपीठ के सदस्य थे: मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबोडे, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर।
श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के लिए चले वर्षों पुराने लम्बे संघर्ष में कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। कई लोगों ने अपने स्वजन खोए हैं। यह लेख उन सभी को समर्पित है।
गीता प्रेस की पुस्तकों की मांग बढ़ती जा रही है
128 पृष्ठों की ‘अयोध्या दर्शन’ पुस्तक का मूल्य मात्र 25 रुपए है। यह देश भर में गीता प्रेस के सभी बुक स्टालों पर उपलब्ध है। पुस्तक की रोचकता और उपयोगिता के कारण ही यह लोकप्रिय हुई है। गीता प्रेस बुक स्टालों पर कभी-कभी यह यह पुस्तक नहीं भी मिल पाती है। कारण यह है कि गीता प्रेस की किताबों की मांग इतनी अधिक बढ़ गई है कि उनके लिए उतनी सप्लाई कर पाना मुश्किल हो रहा है। उदहारण के लिए अभी हाल में गुजरात से भगवद्गीता की पचास लाख प्रतियाँ सप्लाई करने की मांग आई, तो गीता प्रेस ने हाथ खड़े कार दिए। इतनी प्रतियाँ तुरन्त छाप पाना और बाइंडिंग करा कर भेजना किसी भी प्रेस के लिए एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा मुश्किल काम है। इसी प्रकार राजस्थान से गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरित मानस (गुटका आकार) की पौने दो लाख प्रतियों की मांग आई है, आदि, आदि।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)