#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी।
जिन लोगों ने गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरित मानस और वाल्मिकीजी की रामायण पढ़ी है, वे जानते हैं कि श्री रामजी जब अयोध्या से चौदह वर्ष के वनवास के लिए निकले तो किस-किस स्थान से गुजरे थे। इसमें एक लम्बा रास्ता उत्तर प्रदेश से गुजरता है। आज कल प्रदेश सरकार की अयोध्या से चित्रकूट तक राम वन गमन पथ बनवाने की योजना पर कार्यान्वन चल रहा है। इस पर चार हजार करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा।

श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के महामंत्री और प्रबंध न्यासी डॉ. राम अवतार का कहना है कि राम वन गमन पथ के बारे में उत्तर प्रदेश सरकार का जो मौजूदा नक्शा है वह थोड़ा सही है और थोड़ा गलत है। महंत श्री नृत्य गोपाल दासजी इस शोध संस्थान के अध्यक्ष हैं। डॉ. राम अवतार का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार के नक्शे में अयोध्या से श्रृंगवेरपुर तक का तो मार्ग सही है, परन्तु श्रृंगवेरपुर से चित्रकूट तक जाने वाला मार्ग वह नहीं है जिससे भगवान श्रीराम गुजरे थे।
दोनों में विरोधाभास कहाँ है
डॉ. राम अवतार का कहना है कि श्रृंगवेरपुर से भगवान श्रीरामजी प्रयागराज, नैनी, मुरका, रामनगर, वाल्मीकि आश्रम होते हुए चित्रकूट गए थे। उत्तर प्रदेश सरकार की योजना के अनुसार भगवान श्रीराम श्रृंगवेरपुर मंझनपुर, राजापुर होते हुए चित्रकूट गए थे।
राज्य सरकार के नक्शे में उस स्थान को भी नहीं दिखाया गया है जहां श्री रामजी ने अक्षयवट का पूजन किया था। गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचारित मानस के अयोध्या काण्ड में कहा गया है:

चौपाई
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा॥
चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दु:ख दारिद भंगा॥

भावार्थ
गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम ही उसका अत्यन्त सुशोभित सिंहासन है। अक्षयवट छत्र है, जो मुनियों के भी मन को मोहित कर लेता है। यमुनाजी और गंगाजी की तरंगें उसके (श्याम और श्वेत) चँवर हैं, जिनको देखकर ही दुःख और दरिद्रता नष्ट हो जाती है॥

इसमें तापस हनुमान मन्दिर को भी दर्शाया नहीं गया है। यहाँ तापस वेश में हनुमानजी आए थे। अयोध्या काण्ड में कहा गया है:
तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुंज लघुबयस सुहावा॥
कबि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी॥

भावार्थ
उसी अवसर पर वहाँ एक तपस्वी आया, जो तेज का पुंज, छोटी अवस्था का और सुंदर था। उसकी गति कवि नहीं जानते (अथवा वह कवि था जो अपना परिचय नहीं देना चाहता)। वह वैरागी के वेष में था और मन, वचन तथा कर्म से श्री रामचन्द्रजी का प्रेमी था॥

सरकारी नक्शे में उस स्थान को भी दर्शाया नहीं गया है जहां भगवान श्री रामजी भारद्वाज मुनि से मिले थे। इसमें वाल्मिकी आश्रम को भी दर्शाया नहीं गया है। इसी आश्रम में भगवान श्रीरामजी की वाल्मिकीजी से भेंट हुई थी। अयोध्या काण्ड में चौपाई है:

चौपाई
देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीकि आश्रम प्रभु आए॥
राम दीख मुनि बासु सुहावन। सुंदर गिरि काननु जलु पावन॥

भावार्थ
सुंदर वन, तालाब और पर्वत देखते हुए प्रभु श्री रामचन्द्रजी वाल्मीकिजी के आश्रम में आए। श्री रामचन्द्रजी ने देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है, जहाँ सुंदर पर्वत, वन और पवित्र जल है॥

डॉ. राम अवतार के अनुसार ऐसे कुछ और प्रकरण भी हैं जिनकी वजह से सरकारी नक्शे को तुरन्त सुधारने की आवश्यकता है।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)