दुनिया में कोरोना के संक्रमण बढ़ने से भारत में भी इसके संभावित खतरे को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि प्राकृतिक और टीकाकरण से प्राप्त हाईब्रीड इम्यूनिटी के चलते भारत को खतरा न्यूनतम होगा लेकिन यदि कोई नया वेरिएंट जन्म लेता है, तो फिर चुनौती बढ़ सकती है। भारत कोरोना की तीन लहरों का सामना कर चुका है, जिसके लिए अल्फा, डेल्टा और ओमीक्रोन वरिएंट जिम्मेदार थे।भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन बताते हैं कि जब भी कोई लहर देश में आई तो करीब 65-70 फीसदी लोग उससे प्रभावित हुए हैं। कई राज्यों में यह आंकड़ा 90 फीसदी तक रहा है। मोटे तौर पर देश में आज 80-90 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो कोरोना की किसी न किसी लहर का सामना कर चुके हैं। यानी उनमें प्राकृतिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता आ चुकी है। इसी प्रकार 102 करोड़ से अधिक लोग कोरोना टीके की पहली और 95 करोड़ दूसरी खुराक ले चुके हैं। इसका मतलब यह हुआ कि यदि पांच साल से छोटे बच्चों को छोड़ दिया जाए तो करीब 95 फीसदी आबादी का टीकाकरण हो चुका है।

प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा जरूरी

लांसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना संक्रमण के बचाव में प्राकृतिक रूप से हासिल प्रतिरोधक क्षमता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। कुछ अध्ययनों में यह दावा किया गया था कि प्राकृतिक और टीके दोनों की मिलीजुली हाइब्रीड प्रतिरोधक क्षमता लंबे समय तक टिकाऊ रहती है। भारतीय आबादी ने दोनों तरीकों से यह क्षमता हासिल की है। इस हिसाब से भारतीयों में कोरोना के नए संक्रमणों का खतरा न्यूनतम हो सकता है।

चीन में कम लोगों में प्रतिरोधक क्षमता

वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ प्रोफेसर जुगल किशोर के मुताबिक, अभी चीन में तेजी से कोरोना के फैलने की एक वजह यह है कि उनकी जीरो कोविड नीति के चलते पूर्व में बहुत कम लोगों में संक्रमण की वजह से प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो सकी है। टीकाकरण से उत्पन्न प्रतिरोधक क्षमता अब एक साल बाद घटने लगी है। ऐसे में चीन को इस चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका, जापान और अन्य देशों में भी करीब-करीब यही स्थिति है। प्रोफेसर किशोर के अनुसार अभी चीन में ओमीक्रोन के सब-वेरिएंट बीएफ.7 के चलते ही संक्रमण हो रहा है। हमारे देश में 93-94 फीसदी आबादी ओमीक्रोन से पहले ही प्रभावित हो चुकी है, इसलिए ओमिक्रोन या उसके किसी सब-वेरिएंट से ज्यादा खतरे की आशंका नहीं है। हालांकि, अभी हमारे लिए असल चुनौती वायरस में आ रहे बदलावों पर पैनी निगाह रखने की है।

क्या है चुनौती?

प्राकृतिक और टीकाकरण की इम्यूनिटी महत्वपूर्ण है लेकिन यह कितने समय तक रहेगी, इसे लेकर कोई ठोस अनुसंधान नहीं हुए हैं। इसलिए एक-दो साल के भीतर इसके कमजोर पड़ने की आशंका है। जिन लोगों ने 2021 के शुरू में टीके लिए होंगे, उनकी इम्यूनिटी अब कमजोर होने को होगी। ऐसी स्थिति में इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए तीसरी खुराक लेने की जरूरत है। हमारे देश में जहां 95 करोड़ लोग दोनों खुराक ले चुके हैं और वह तीसरी खुराक लेने के योग्य हैं, उनमें से महज 22.19 करोड़ ने ही तीसरी खुराक ली है। इसलिए अभी सही वक्त है कि लोग जल्दी तीसरी खुराक लें। इससे जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता गिर रही होगी, उसे फिर से मजबूती मिलेगी।

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चौथी लहर का खतरा कितना

यदि कोई नया वेरिएंट आता है और वह अब तक मिले वरिएंट से काफी ज्यादा अलग होता है तो फिर चौथी लहर का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, महामारी को लेकर हुए अध्ययन तीन लहरों का ही इशारा करते हैं। यदि चीन की घटना को अनदेखी भी कर दें तो अमेरिका, फ्रांस में कोविड मामलों का बढ़ना चिंताजनक है क्योंकि वहां पहले भी बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए थे। इन देशों ने ज्यादातर फाइजर के टीके का इस्तेमाल किया था जो एमआरएनए तकनीक पर था। यह तकनीक टीके में पहली बार प्रयुक्त हुई थी, इसलिए इसकी प्रभावकारिता को लेकर भी पुराने अध्ययन नहीं हैं। भारत में इस्तेमाल टीकों में समूचे निष्क्रिय वायरस का इस्तेमाल किया गया है जो सबसे पुरानी और प्रभावी टीका पद्धति है।