शिवचरण चौहान।
दुनिया में गेहूं के संकट के बाद चावल का भी संकट आने वाला है। कई देशों के कृषि वैज्ञानिकों ने इस पर चिंता जताई है। इसी कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। गेहूं और चावल की बाद अब मोटा अनाज ही दुनिया के खाने के काम आएगा। मोटे अनाज में मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदों दुनिया भर में किसी न किसी रूप में मनुष्य के खाने के काम आते हैं। मोटे अनाज को ही गेहूं और चावल का विकल्प बनाया जाएगा।
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण भयंकर गर्मी पड़ रही है। यूरोप जैसे सर्दी वाले देश भी लोग भीषण गर्मी झेल रहे हैं। भारत में भी भयंकर जलवायु परिवर्तन देखने को मिल रहा है। पहाड़ों सहित कुछ प्रदेशों में बाढ़ आई हुई है तो उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल सहित सात राज्य पानी समय पर ना बरसने के कारण धान की रोपाई में पिछड़ गए हैं। राजस्थान में डेढ़ सौ प्रतिशत पानी बरसा तो उत्तर प्रदेश में 20 जुलाई के बाद बरसात हुई है और अभी तक कुल बरसात का 30 प्रतिशत पानी ही बरसा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब 30 प्रतिशत क्षेत्रों में ही धान की फसल हो जाए- यही बहुत है।
संस्कृत में बीहि, अंग्रेजी में राइस
समय पूर्व गर्मी पड़ने के कारण इस वर्ष पंजाब सहित पूरे देश में गेहूं की फसल कमजोर हो गई थी। गेहूं खरीद का सरकार ने जो लक्ष्य निर्धारित किया था उसका एक तिहाई भी गेहूं नहीं खरीदा जा सका। इस कारण सरकार गरीबों को खाद्यान्न में सिर्फ चावल ही बांट रही है। अब जब चावल भी नहीं होगा तो सरकार क्या बांटेगी- यह प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है। छत्तीसगढ़ जैसे धान के कटोरा कहे जाने वाले प्रदेश में भी भरपूर बरसात नहीं हुई। यद्यपि छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि वह 110 लाख कुंतल धान खरीदेगी। केंद्र सरकार ने धान का सरकारी खरीद मूल्य 2040 रु. प्रति कुंतल रखा है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में जहां खूब धान होता था- वहां भी धान रोपा नहीं जा सका। धान से ही चावल निकलता है और जब धान ही नहीं पैदा होगा तो चावल कहां से आएगा। दुनिया के सबसे अधिक धान उत्पादक देश चीन में भी इस बार संकट है। धान की खेती जितने बड़े पैमाने पर होती आ रही थी उतनी नहीं हो पाई है। चीन पूरी दुनिया को चावल का निर्यात करता है। भारत से सिर्फ बासमती चावल ही विदेशों को निर्यात किया जाता है। वहीं धान जिसको अभी तक मान्यता नहीं देते थे उसी की तरफ अब सब ललचाई नजरों से निहार रहे हैं। वही धान जिसके छिलके उतारने पर चावल निकलता है। चावल का भात सारी दुनिया में खाया जाता है। चावल को संस्कृत में बीहि तो अंग्रेजी में राइस कहा जाता है।
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भारत से गया दुनियाभर में
धान के पौधे की उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में ही हुई है। धान के बीज भारत से ही दुनिया भर के सैलानी, पर्यटक और व्यापारी अपने देशों में लेकर गए और बाद में दुनिया भर में धान उगाया जाने लगा। आज दुनिया के 65 प्रतिशत लोग चावल और चावल से बनी वस्तुओं का उपयोग करते हैं। इसके बाद मक्का और गेहूं का उपयोग मनुष्य खाने के लिए किसी ना किसी रूप में करता है। पर सबसे ज्यादा खाद्य रूप में आज भी चावल का प्रयोग किया जाता है।
मंगल पर्वों और धार्मिक उत्सवों में पवित्र अनाज
सदियों से भारत में रोली कुमकुम के साथ चावल हल्दी से रोचना किया जाता था और आज भी किया जाता है। ‘पहली कियरिया में जौ बोयेव बाबुल, दुसरी मा बोएव धान…।’ गा कर महिलाएं बेटी की शादी के मंगल गीत गाती हैं। वेदों में भी धान का वर्णन है। धान को ‘ब्रीहि’ और ‘शालि’ कहा जाता था। जौ और चावल ही भारत के प्रमुख अन्न थे। जो मनुष्य खाने के प्रयोग में लाता था। मंगल पर्वों और धार्मिक उत्सवों में पवित्र अनाज के रूप में चावल प्रयोग किया जाता था। तब भी चावल को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था और आज भी माना जाता है। अथर्ववेद की एक प्रार्थना में अन्नप्राशन के समय शिशु के दांतों से चावल, जौ और तिल खाने को कहा गया है।
इस तरह शुरू हुई धान की खेती
हजारों साल पहले हिमालय के तलहटी क्षेत्र में दलदली भूमि में धान के जंगली पौधे उगते थे। एक बार एक मनुष्य ने जब जंगली धान के पौधे के बीज चबाए तो उसे मीठे लगे। आदमी को वे बीज बहुत पसंद आए। तब चुन-चुन कर मनुष्य ने जंगली जातियों के धान के बीज बटोरे और उन्हें बोने लगा। इस तरह उसने धान की खेती शुरू कर दी और धान उसकी फसल बन गई। धान बीजों का छिलका छुड़ाकर मनुष्य चावल निकालने लगा और उन्हें कच्चा या पकाकर खाने लगा। धीरे-धीरे उत्तर भारत में दाल-भात, पूर्वी भारत में माछ-भात और दक्षिण भारत में सांभर-भात और इडली का स्वाद लेने लगा। मनुष्य के मुंह चावल का ऐसा स्वाद चढ़ा कि आज संसार में सभी अनाजों की तुलना में धान की सबसे अधिक खेती की जाती है। धान की खेती हजारों साल पहले से की जा रही है। दुनिया में धान के पुराने बीज उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हस्तिनापुर के पास खुदाई में मिले हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में भी भी कम से कम 5,000 वर्ष पुराने धान के बीज मिले हैं।
प्राचीन ग्रंथों में धान/चावल के बारे में खूब लिखा गया है। धान की सबसे उपजाऊ भूमि, शालि भूमि कहलाती थी। आज से करीब 2,300 वर्ष पहले कौटिल्य.ने लिखा था कि ब्रीहि और शालि की बुवाई वर्षा ऋतु के आरंभ होते ही कर देनी चाहिए। उससे भी पहले लगभग 3,300 वर्ष पूर्व महर्षि पाराशर ने ‘कृषि संग्रह’ ग्रंथ की रचना की। उन्होंने धान की खेती का विस्तार से वर्णन किया है। महर्षि कश्यप ने शालि जाति की 26 किस्मों के बारे में लिखा है और धान खेती के तरीके बताए हैं। इस तरह धान की खेती बढ़ती गई और फिर पूरे भारत में फैल गई। पानी में खूब पनपी और.सिंधु नदी से लेकर गंगा-जमुना और तमाम नदियों के तटों पर धान की फसल लहलहा उठी। भारत से बौद्ध भिक्षुओं के साथ धान के बीज चीन पहुंचे।
एक पवित्र उत्सव
चीन में 4,800 वर्ष पहले भी धान की खेती की जा रही थी। वहां धान की खेती एक पवित्र उत्सव के रूप में की जाती थी। वहां के एक प्राचीन सम्राट शुन-नुडू ने चीन के निवासियों को धान की खेती सिखाई। करीब साढ़े चार हजार वर्ष तक चीनी सम्राट हर वर्ष राजकुमारों और दरबारियों के साथ राजमहल के पास खेतों में हल चला कर धान की खेती का शुभारंभ करते रहे। उस हल से सम्राट तीन, राजकुमार छह, दरबारी नौ और राज्यपाल धरती में बारह कूंड़ें खोदते थे। उसके बाद लोग धरती की कोख से निकली नई मिट्टी ले जाते और उसकी धूल अपने खेतों पर बिखेर देते। वे मानते थे कि इससे धान कि बढ़िया फसल मिलेगी।
सिकंदर भी ले गया था धान के बीज
3000 वर्ष पहले चीन से धान की फसल जापान पहुंची। वहां भी लोगों ने चावल का स्वागत किया। गांव-गांव में ‘आइनारी’ देवता के मंदिर बनाए। उन मंदिरों में वे हर वर्ष धान की बढ़िया फसल के लिए प्रार्थना करते। सामंत शाही के दिनों में तो वेतन के रूप में धान अथवा चावल ही दिया जाता था। धान से निकला चावल जापानियों के जीवन में रस-बस गया। जापान के साथ ही कोरिया में भी धान की खेती तेजी से फैल गई। ईसा से तीन सौ छब्बीस वर्ष पूर्व सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया। यहां से लौटते समय वह अपने साथ धान के बीज भी ले गया। इस तरह धान की फसल यूनान पहुंची और वहां खूब फली-फूली। और, समुद्री रास्ते से धान अफ्रीका पहुंचा। उन दिनों भारत के पालदार जहाज सुदूर देशों की यात्रा पर जाते थे। ऐसे ही पालदार जहाजों के नाविकों और सौदागरों के साथ धान के बीज वहां पहुंचे।.सबसे पहले वहां मेडागास्कर में धान की खेती शुरू हुई। अफ्रीका की जलवायु धान की फसल को बहुत रास आई और जल्दी ही वहां धान से निकली चावल की धूम मच गई।
धान पर पड़ी अंग्रेजों की नजर
तभी धान पर अंग्रेजों की नजर पड़ी। वे धान से चावल निकालकर विलायत ले जाने लगे। कुटाई में चावल महंगा पड़ने के कारण वे धान के साबुत बीज ले जाने लगे। लंबे समुद्री मार्ग में तूफान के कारण कई बार उनके जहाज भटक जाते। एक बार मेडागास्कर से चला जहाज भटककर.विलायत के बदले अमेरिका के चार्ल्सटन बंदरगाह में पहुंच गया। जहाज का कप्तान वहां एक व्यापारी को धान के बीज दे गया। अमेरिका में वे धान के पहले बीज थे। उन्हीं बीजों से वहां कैरोलिना में पहली बार धान की फसल लहलहाई। अरब सौदागरों के साथ धान की खेती भारत से ईरान पहुंची और वहां से मिस्र। नील नदी की घाटी में धान की फसल खूब लहलहाई। अफ्रीका और अरब देशों के बाद धान यूरोप पहुंचा। सबसे पहले स्पेन, फिर पुर्तगाल- और उसके बाद इटली, युगोस्लाविया और यूरोप के दूसरे देशों में धान की खेती की जाने लगी। रूस में भी धान की खेती शुरू हो गई। उधर आस्ट्रेलिया में धान की खेती पिछली सदी में शुरू हुई। आज धान की फसल दुनिया के 100 से भी अधिक देशों में लहलहाती है और दुनिया की आधी आबादी धान के चावलों से अपना पेट भर रही है। धान की सबसे अधिक खेती चीन और उसके बाद भारत में की जाती है। भारत और पाकिस्तान की धान के बासमती चावल दुनिया भर में अपनी खुशबू फैला रहे हैं। भात हो या पुलाव, खिचड़ी हो या बिरयानी, खील हो या खीर अथवा इडली-दोसा सब धान/चावल की ही देन है। याद है, बचपन में मुंह पर दधि-ओदन अर्थात् दही और भात लिपटाए रहने वाले श्रीकृष्ण ने दो मुट्ठी तंदुलों पर अपने बाल सखा सुदामा को दो लोक दे दिए थे।
कहीं पर आलू और भात कहीं पर मछली और भात गरीब लोगों द्वारा खाया जाता है। पश्चिम बंगाल और असम में धान की साल भर में तीन फसलें उगाई जाती हैं। पश्चिम बंगाल में धान के खेत की मेड पर नारियल के पेड़ लगाए जाते हैं। धान और नारियल तथा खेत में ही मछली पाल कर बंगाली अपना जीवन यापन करते हैं। उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में खिचड़ी और भात का ही भोग लगाया जाता है।
(लेखक लोक संस्कृति, लोक जीवन और साहित्य व समाज से जुड़े विषयों के शोधार्थी हैं)