अजय विद्युत ।
इंटरनेट की बढ़ती पहुंच के साथ ही सोशल मीडिया समाज में बदलाव का हथियार बनकर आया। लगा कि महिलाएं समाज की अपेक्षा यहां अधिक मुक्त अनुभव कर सकेंगी। जो करना चाहती हैं उसके लिए खुले आकाश में अपनी आकांक्षा और भावों के रंग बिखेर सकेंगी। लेकिन हुआ यह कि जितनी पाबंदियां, गालियां, अपमान समाज में उनके हिस्से में आता रहा, सोशल मीडिया में उसका प्रतिशत कम होने के बजाय बढ़ता गया।
समाज के गुंडे तत्व सोशल मीडिया पर अधिक मुखरता से सक्रिय हो गए हैं क्योंकि यहां किसी भी महिला को निशाना बनाना उनके लिए अपेक्षाकृत आसान है।
एक आनलाइन वेबसाइट के सर्वे के अनुसार 40% महिलाओं की तुलना में केवल 17 % पुरुषों को ही आनलाइन हमले झेलने पड़ते हैं। महिलाओं के लिए की गयी टिप्पिणियां भी अधिक भद्दी व अश्लील होती हैं। कई महिलाएं अपने बुरे अनुभवों के बाद सोशल मीडिया से विदा हो चुकी हैं और तमाम अभी भी मौजूद हैं। लेकिन एक बात उन सभी में समान हैं। वह यह कि वे सभी गारंटी के साथ कहती हैं कि सोशल मीडिया पर आने वाली कोई भी लड़की-चाहे वह छोटी बच्ची हो, किशोरी हो, युवती, गृहिणी या वृद्धा हो-अश्लीलता, असभयता, गंदी मानसिकता, मानसिक अत्याचार से नहीं बच पाती। क्या महिलाएं सोशल मीडिया विशेषकर फेसबुक और ट्विटर से हट जाएं। विकल्प क्या हैं उनके पास। हालांकि कई भाग्शाली महिलाओं के अनुभव काफी सकारात्मक भी रहे हैं।
महिलाएं प्राय: परिचित पुरुषों के कमेंट का भी शिकार बनती हैं। एतराज जताने पर यह घिसा घिसाया जवाब होता है, ‘गुस्सा क्यों होती हो यह हंसी मजाक था। इसका मतलब यह नहीं कि मैं भी ऐसा ही सोचता हूं।’… या फिर ‘इतना तो चलता है’, ‘सब करते हैं’, ‘और सब भी तो कह रहे थे’, ‘तुम कुछ ज्यादा सोचती हो’। महिलाओं को टारगेट करते चुटकले, अभद्र शब्द, गालियां और अश्लील टिप्पिणियां बड़ी असानी से कह-सुन ली जाती हैं। इसे आप रोजाना की बात भी कह सकते हैं। यह हल्का फुल्का हमला है।
ज्यादातर गालियां महिलाओं की देह को लेकर
भारत में जहां ज्यादातर गालियां महिला रिश्तेदारों या महिलाओं की देह को लेकर दी जाती है, वहीं आनलाइन गालियों के मामले में भी केंद्र में महिलाओं और उनकी देह का होना स्वाभाविक है। साइबर गुंडागर्दी से समाज के किसी भी तबके की महिला प्रभावित हो सकती है। केंद्रीय मंत्री से लेकर सोशलाइट और टीवी एंकर से लेकर अभिनेत्री तथा आम लड़की, कोई भी। हालांकि नारीवादी महिलाओं को गालियों का सामना अधिक करना पड़ता है।
‘तुम कुछ ज्यादा सोचती हो’
महिलाओं के साथ सोशल मीडिया पर प्रताड़ना के कई तरीके हैं। जैसे उनकी तस्वीरों से छेड़छाड़, गाली-गलौज, धमकी, ब्लैकमेलिंग, फेक प्रोफाइल बनाकर अभद्र सामग्री डालना, स्पाई कैम से उतारी गई तस्वीरों और वीडियो को वायरल करना तथा अश्लील मैसेज आदि आदि।
महिलाएं प्राय: परिचित पुरुषों के कमेंट का भी शिकार बनती हैं। एतराज जताने पर यह घिसा घिसाया जवाब होता है, ‘गुस्सा क्यों होती हो यह हंसी मजाक था। इसका मतलब यह नहीं कि मैं भी ऐसा ही सोचता हूं।’… या फिर ‘इतना तो चलता है’, ‘सब करते हैं’, ‘और सब भी तो कह रहे थे’, ‘तुम कुछ ज्यादा सोचती हो’। महिलाओं को टारगेट करते चुटकले, अभद्र शब्द, गालियां और अश्लील टिप्पिणियां बड़ी असानी से कह-सुन ली जाती हैं। इसे आप रोजाना की बात भी कह सकते हैं। यह हल्का फुल्का हमला है।
पार्टनर ही बना विलेन
महिलाओं के एक्स पार्टनर आॅनलाइन दुर्व्यवहार और साइबर बुलिंग में आगे हैं। हालांकि विमेंस ऐड ने ब्रिटेन में एक सर्वे कराया तो 45% मामलों में महिलाएं रिलेशनशिप में रहते हुए अपने पार्टनर्स के दुर्व्यवहार की शिकार बनीं। भारत में भी इस तरह की खबरें लगातार अखबारी सुर्खियां बनती रही हैं। इसका कारण है। पार्टनर्स के पास एक दूसरे के ढेर सारे डिजिटल फुलप्रिंट रह जाते हैं। पुराने चैट के स्क्रीन शॉट या किसी संवेदनशील जानकारी को सबके सामने लाकर महिलाओं को परेशान किया जाना आसान हो जाता है। भारत में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े पहले ही बता चुके है कि यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों में ज्यादातर अभियुक्त परिचित या रिश्तेदार ही होते हैं। एम्नेस्टी इंटरनेशनल के सर्वे में पाया गया कि हर पांच में से एक महिला सोशल मीडिया पर दुर्व्यवहार से प्रभावित है। वहीं 18-24 साल की उम्र की युवतियां दुर्व्यवहार की ज्यादा शिकार हुर्इं।
ऐसे गुंडों में ‘परम धार्मिक ’ भी…
आखिर ये लोग कौन हैं जो महिलाओं पर निहायत आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं। उनकी सामाजिकता का पैमाना क्या है, समाज में उनको कैसा देखा जाता है- यह जानने का एक सुलभ तरीका है उनकी टाइमलाइन खंगाली जाए। तस्लीमा नसरीन ने ट्विटर और फेसबुक पर इन नारीविद्वेषी लोगों की टाइमलाइन पर गयीं तो उन्हें पता चला ये समाज के प्रतिष्ठित लोग हैं, सुखी परिवार है, अच्छी नौकरी या व्यवसाय में हैं तथा परम धार्मिक हैं और पुरुषवर्चस्ववाद में यकीन करते हैं। समाज की रीति-नीतियों से बेहतर तालमेल बनाकर चलते हैं। गलत तरीके से, अश्लील लहजे में गाली-गलौज करने पर इन्हें समाज में, दोस्तों में या फिर अपने परिवार में ही किसी को किसी को जवाब तो नहीं ही देना पड़ता, उल्टे इनके नारी विद्वेष को तार्किक बताया जाता है।
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