प्रदीप सिंह।
महिला आरक्षण विधेयक संसद से पास हो चुका है लेकिन इससे नरेंद्र मोदी और भाजपा को क्या हासिल हुआ और विपक्ष के साथ क्या हुआ? विपक्ष के साथ प्रधानमंत्री ने इतना बड़ा खेल कर दिया है कि मेरा मानना है कि अभी तक उसे समझ में नहीं आया कि हुआ क्या है। बात केवल इस विधेयक को पास कराने की नहीं है, इसकी टाइमिंग को देखिए। विपक्ष भी टाइमिंग पर सवाल उठा रहा है लेकिन गलत मुद्दे पर। विपक्ष सवाल उठा रहा है कि सरकार इसे जल्दी लागू नहीं करना चाहती, देर करना चाहती है। इसका कोई मतलब नहीं है और इससे उसे कोई फायदा नहीं होने वाला है। तो फिर सवाल यह है कि मुद्दा क्या है? क्या विपक्ष इसे रोक सकता था? विपक्ष संसद के अंदर और बाहर इस पर कुछ कर सकता था? संसद के बाहर की बात फिर कभी करेंगे अभी संसद में जो हुआ उसकी बात करेंगे। संसद में विपक्ष क्या कर सकता था यह आगे बताऊंगा लेकिन उससे पहले मोदी ने क्या किया उसे देखिए।
उन्होंने महिला आरक्षण को परिसीमन से जोड़ दिया। परिसीमन 2026 में होना है यह पहले से तय है। यह मोदी सरकार ने तय नहीं किया है। आपमें से बहुत लोगों को यह पता होगा कि 1971 में जो जनगणना हुई थी उसके आधार पर लोकसभा और अलग-अलग राज्यों में विधानसभा सीटों की संख्या तय की गई थी। उसके बाद इसे रोक दिया गया था क्योंकि परिवार नियोजन का अभियान चला था। उस समय यह माना गया कि अगर आबादी के हिसाब से आगे भी सीटों की संख्या तय होगी तो परिवार नियोजन अभियान के तहत जो राज्य अपनी आबादी कम करेंगे उनको नुकसान होगा और जो अपनी आबादी कम नहीं कर पाएंगे उनको फायदा होगा। इसलिए यह तय हुआ की सीटों की संख्या बढ़ाई नहीं जाएगी। सीटों की संख्या परिसीमन से बढ़ती है और परिसीमन दो तरीके का होता है। पहला, आबादी और दूसरा भौगोलिक स्थिति। भौगोलिक परिसीमन राज्य के अंदर की बात होती है जिसमें लोकसभा या विधानसभा की जो सीटें हैं उन पर मतदाताओं की संख्या का संतुलन बराबर रहे इसका ध्यान रखा जाता है। ऐसा न हो कि एक सीट पर दो लाख मतदाता हों और दूसरी सीट पर 8 लाख मतदाता हों। भौगोलिक क्षेत्र को बढ़ाकर या घटकर इसे तय किया जाता है। अब अगली जनगणना 2025 में होगी। जनगणना होनी चाहिए थी 2021 में लेकिन अब 2025 में होगी। बीच में कोरोना आ गया और अब 2024 में लोकसभा चुनाव है इसलिए इस समय जनगणना नहीं हो सकती तो 2025 में जनगणना होना तय है और 2026 में परिसीमन होना पहले से तय है जिसके आधार पर सीटों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

टाइमिंग महत्वपूर्ण
2026 में जब परिसीमन होगा तो लोकसभा और विधानसभा के सदस्यों की संख्या आबादी के मुताबिक बढ़ जाएगी। अब इस बात का अर्थ समझिए कि मोदी विरोधी उन पर जो आरोप लगाते हैं कि आप साढ़े नौ साल से सत्ता में हैं, इस दौरान क्यों नहीं किया। मोदी नासमझ नहीं हैं। उनको राजनीति की जितनी बारीक समझ है उतनी इस समय देश के किसी नेता के पास समझ नहीं है। कांग्रेस पार्टी में तो इस समय राजनीतिक नेतृत्व और राजनीतिक समझ का नितांत अभाव है। विपक्ष यह समझ नहीं पाया कि उन्होंने यह टाइमिंग क्यों तय की। मैं आपसे बार-बार कहता हूं कि मोदी जब कोई बड़ा कदम उठाते हैं, वह अपने टाइम टेबल से चलते हैं। उन्होंने तय कर रखा है कि कब कौन सा कदम उठाना है। कब कौन सा कदम उठाने से देश को, समाज को, उनकी सरकार को, उनकी पार्टी को फायदा होगा। मैं यह नहीं मानता कि वह अपनी पार्टी और सरकार के फायदे के बारे में नहीं सोचते हैं। निश्चित रूप से सोचते हैं लेकिन वह दूसरे नंबर पर आता है। उनकी पहली प्राथमिकता देश और समाज की होती है।
किसी का घाटा नहीं तो ऐतराज नहीं
परिसीमन को महिला आरक्षण से जोड़ने का मतलब समझिए। अभी लोकसभा के सदस्यों की संख्या 543 है। आज अगर महिला आरक्षण लागू हो जाए तो महिलाओं के लिए 181 सीटें आरक्षित होंगी और पुरुषों के लिए 362 सीटें बचेंगी। जो लोग यह कह रहे हैं कि इसे अगली लोकसभा से यानी 2024 से लागू नहीं किया जा रहा है उनको इस बात का अहसास नहीं है कि पिछले 30-35 साल से महिला आरक्षण में जो रोड़े अटकाए जा रहे थे वह ज्यादातर पुरुष सांसदों द्वारा अटकाए जा रहे थे। इनमें सभी पार्टियों के सांसद शामिल हैं क्योंकि उनको लग रहा था कि उनकी सीटों की संख्या कम हो जाएगी। मगर परिसीमन के बाद यह अनुमान है कि लोकसभा सीटों की संख्या 770 हो जाएगी। हालांकि, यह सिर्फ अनुमान है, वास्तविक संख्या तो अभी नहीं बताई जा सकती। यह तो परिसीमन आयोग ही तय करेगा। इस अनुमान के आधार पर जब 33 फीसदी आरक्षण होगा तो महिलाओं के लिए सीटों की संख्या 257 होगी और पुरुषों के लिए जो सीटें बचेंगी वह 530 होंगी। इस तरह पुरुषों के लिए भी सीटें बढ़ जाएगी और महिलाओं के लिए भी यानी दोनों के लिए प्रतिनिधित्व बढ़ जाएगा यानी किसी का घाटा नहीं होगा तो किसी को ऐतराज नहीं होगा। पुरुषों को जो यह डर सता रहा था कि महिला आरक्षण से उनकी सीटें कम हो जाएंगी वह डर परिसीमन को आरक्षण से जोड़ देने से खत्म हो गया।
बदल गया खेल
मगर बात सिर्फ इतनी सी होती तो शायद नरेंद्र मोदी ऐसा ना करते। यह एक बड़ा मुद्दा था और यह एक बहुत बड़ा रोड़ा बना हुआ था जिसका उन्होंने हाल कर दिया लेकिन परिसीमन के आधार पर जो सीटों की संख्या बढ़नी है वह एक तरह से टाइम बम की तरह था जो लगातार टिक टिक कर रहा था। सबको मालूम था कि जिस दिन यह होगा उस दिन बहुत बड़ा राजनीतिक बवाल होगा। उत्तर बनाम दक्षिण भारत की लड़ाई शुरू होगी। परिसीमन के आधार पर जब सीटों की संख्या बढ़ेगी तो आबादी के हिसाब से उत्तर के राज्यों में ज्यादा सीटें बढ़ेंगी क्योंकि यहां आबादी ज्यादा है और दक्षिण के राज्यों में कम सीटें बढ़ेंगी क्योंकि उन्होंने परिवार नियोजन किया और अपनी आबादी कम की है। दक्षिण के राज्यों का मानना है कि इससे उनका नुकसान होगा इसलिए वे काफी समय से इसका विरोध कर रहे थे। उनका मानना है कि यह उनके साथ अन्याय है। उनको एक तरह से आबादी घटाने की सजा मिली है। इस तर्क जवाब देना किसी भी सरकार या सत्तारूढ़ दल या भाजपा के मुश्किल होता। मगर अब महिला आरक्षण को परिसीमन से जोड़ देने से खेल बदल गया है।
मोदी ने 2026 की समस्या 2023 में हल कर दी
खेल इस तरह से बदल गया है कि परिसीमन के बाद महिला आरक्षण 2029 के लोकसभा चुनाव से लागू होगा। परिसीमन का विरोध करने का मतलब होगा महिला आरक्षण को रोकना। अब आप समझ सकते हैं कि राजनीतिक रूप से यह कितना विस्फोटक हो सकता है। कौन सी ऐसी पार्टी है जो इस बात का खतरा उठा सकती है कि उसके बारे में यह धारणा बने कि वह महिला आरक्षण को लागू नहीं होने देना चाहती है। परिसीमन को लेकर 2026 में जो समस्या आने वाली थी प्रधानमंत्री ने 2023 में ही उसका हल कर दिया। 2029 से महिला आरक्षण लागू होगा, तो एक तरह से दक्षिण के राज्यों को भी मानसिक रूप से तैयार कर लिया है कि परिसीमन भी होगा, 2025 में जनगणना भी होगी और उसके आधार पर ही परिसीमन होगा। परिसीमन के बारे में आपको थोड़ा सा संक्षेप में बता दें कि परिसीमन का प्रावधान संविधान में है। संविधान में प्रावधान है कि हर 10 साल पर जनगणना होगी और उसके आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन होगा। उनकी संख्या या उनका आकार बड़ा छोटा किया जा सकता है लेकिन 1971 में सीटों की संख्या बढ़ने पर रोक लग गई थी, इसलिए अभी तक सिर्फ भौगोलिक आधार पर ही परिसीमन हो रहा था और हर 10 साल पर होता था।
परिसीमन आयोग तय करता है आरक्षित सीटें
परिसीमन कैसे होगा यह सरकार तय नहीं करती है। इसके लिए आयोग बनता है। आयोग के पास अर्ध न्यायिक अधिकार होते हैं और इस आयोग का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का रिटायर्ड जज ही हो सकता है। उससे नीचे कोई नहीं हो सकता। यह आयोग बहुत पारदर्शी तरीके से काम करता है। सारे स्टेकहोल्डर से बात करता है और उसके बाद जनता की राय लेता है। जनसुनवाई होती है और अगर किसी को कोई ऐतराज है, किसी को कोई मुद्दा उठाना है तो वह उठा सकता है। इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद ही परिसीमन आयोग तय करता है की कौन सी सीट किसके लिए आरक्षित होगी। विपक्ष लगातार जो मांग कर रहा था, मेरा मानना है कि राहुल गांधी को संविधान की समझ नहीं है या फिर वह जानबूझकर ऐसी बातें करते हैं जिससे लगे कि उनको इसकी समझ नहीं है वह केवल इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहते हैं उसके लिए बोल देते हैं। जिसका कोई मतलब है इसकी वह परवाह नहीं करते हैं।
पिछड़ा महिलाओं को आरक्षण और संवैधानिक व्यवस्था
उन्होंने दो बातें कहीं, एक तो यह कि इसे 2024 से क्यों नहीं लागू कर देते हैं, दूसरी बात उन्होंने कही कि इसमें पिछड़े वर्ग की महिलाओं को शामिल क्यों नहीं करते, उनको क्यों नहीं आरक्षण देते। उनको कोई बताए कि परिसीमन का अधिकार सरकार के पास नहीं है, परिसीमन आयोग के पास है। परिसीमन आयोग बनेगा जनगणना के बाद, जनगणना होगी 2025 में और लोकसभा का चुनाव होने वाला है 2024 में, तो 2024 के चुनाव से कैसे लागू हो सकता है। दूसरा, पिछड़ा वर्ग को आरक्षण को लेकर कांग्रेस का ट्रैक रिकॉर्ड सबसे खराब है। कांग्रेस पार्टी जब 2004 से 2014 के बीच सरकार में थी और तब वह महिला आरक्षण का बिल लेकर आई थी तो राहुल गांधी से कोई पूछे कि उसमें पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को आरक्षण देने की बात को क्यों नहीं शामिल किया गया था। उनसे जब बाद में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हां गलती हो गई, उस समय करना चाहिए था। उनको यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह गलती नहीं थी, सही फैसला था और आज जो हो रहा है वह भी सही फैसला है क्योंकि भारतीय संविधान में पिछड़ा वर्ग के लिए राजनीतिक आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर सरकार यह प्रस्ताव संसद से पास करा लेती तो कोई भी सुप्रीम कोर्ट चला जाता और सुप्रीम कोर्ट चार दिन में उसे खारिज कर देता कि संविधान में जिस बात की व्यवस्था ही नहीं है वह आप कैसे दे देंगे।
नहीं चली दोहरी चाल
कुछ लोगों का मानना है कि यह कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों की चाल थी कि सरकार दबाव में आ जाए और ऐसा फैसला कर दे जो खारिज हो जाए और यह कह सके कि सरकार इसे लागू नहीं करना चाहती थी, उन्हें संवैधानिक व्यवस्था का पता था तो फिर क्यों लागू किया। यह दोहरी चाल चली नहीं और लोगों को सब समझ में आता है। पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को आरक्षण क्यों नहीं दिया गया, तो सवाल यह है कि आपकी अपनी पार्टी को कौन रोकता है। जब यूपीए के समय में महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से पास हुआ तो बीबीसी के संवाददाता ने सोनिया गांधी से सवाल पूछा था कि आपके साथी पार्टी के लोग कह रहे हैं कि पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए तो उनका जवाब था कि उनको रोक कौन रहा है। उनका मतलब था कि अगर वह लागू करना चाहते हैं तो अपनी पार्टी में लागू कर दें और उस हिसाब से महिलाओं को टिकट दें। अब वही सोनिया गांधी, वही कांग्रेस पार्टी और वही दूसरे विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं कि मोदी सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही है, तो पहले अपने गिरेबां में भी झांक कर देख लीजिए।
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विपक्ष ने मौका गंवा दिया
मैंने शुरुआत में एक बात कही थी कि क्या विपक्ष कुछ कर सकता था, जी हां, कर सकता था। राजनीति में धारणा बनाना बहुत महत्वपूर्ण है। संसदीय राजनीति में विपक्ष के पास सबसे बड़ा हथियार होता है संशोधन का। विपक्ष को किसने रोका था कि वह लोकसभा और राज्यसभा में यह संशोधन प्रस्ताव लाता कि महिला आरक्षण 2024 के लोकसभा चुनाव से लागू किया जाए। अगर वह यह संशोधन प्रस्ताव लेकर आता तो जाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी उसका विरोध करती और विपक्षी पार्टियां इसके समर्थन में वोट करतीं। राज्यसभा में भाजपा को विपक्ष के इस प्रस्ताव को नकारने के लिए बहुमत जुटाना पड़ता, वह परेशान होती। दूसरा, यह धारणा भी विपक्ष बन सकता था कि देखिए मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी इसे लटकाना चाहती है, महिला आरक्षण को 2024 में लागू नहीं करना चाहती, यह नैरेटिव वह खड़ा कर सकते थे। वह चलता या नहीं चलता, कितना असर होता नहीं होता, वह सब बाद की बात है लेकिन ऐसा कर सकते थे जो उसने नहीं किया। जब आपको राजनीति की मूलभूत समझ ही नहीं है, संसदीय जनतंत्र में आपको जो अधिकार मिले हैं उसका उपयोग करना भी नहीं जानते तो आप किस तरह की राजनीति करते हैं।
मोदी का मास्टर कार्ड
दूसरी बात, कपिल सिब्बल ने जो बयान दिया है उससे आपको पता चलेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की मानसिकता को किस तरह से बदल दिया है। उनका बयान था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद में आकर या बयान दें कि 2029 के लोकसभा चुनाव से महिला आरक्षण लागू होगा। 2029 में लागू नहीं हुआ तो वह इस्तीफा दे देंगे। अब आप इस बात का निहितार्थ समझिए। वह मान कर चल रहे हैं कि बीजेपी 2024 तो जीत ही रही है, 2029 में भी जीतेगी। इस्तीफा देने का सवाल और लागू न होने का सवाल तो 2029 में आएगा। 2029 के लोकसभा चुनाव में जब लागू नहीं होगा तो जीत कर आएंगे तो इस्तीफा दे देंगे। इस तरह की मांग कर रहे हैं। इससे आपको पता चलेगा कि बाहर जो कुछ बोला जा रहा है और अंदर जो हो रहा है उसमें कितना बड़ा फर्क है। परिसीमन का जो मास्टर कार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चला है उसका फायदा उन्हें और उनकी पार्टी को होना ही होना है। मैं बार-बार कहता हूं कि राजनीति में टाइमिंग का बहुत महत्व होता है। एक ही फैसला अगर आप सही समय पर करते हैं या गलत समय पर करते हैं तो उसका परिणाम अलग-अलग आता है। केवल टाइमिंग से आपकी सफलता या असफलता तय होती है। महिला आरक्षण विधेयक की टाइमिंग भी ऐसी है कि उसका फायदा होना ही होना है।
भाजपा को लंबे समय तक मिलेगा फायदा
दूसरा, परिसीमन के बाद उत्तर भारत में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ेगी जो लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में होगी। परिसीमन से सीटों की संख्या बढ़ना और उसमें महिला आरक्षण होना, इसका श्रेय अगर किसी को मिलेगा तो वह सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा। इस एक तीर से मोदी ने कई निशाने साध लिए हैं और अगले कई दशक तक भारतीय जनता पार्टी की चुनावी जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। विपक्ष को अभी तक पूरी तरह से यह बात समझ में नहीं आ रही है। अभी तक वह इसी बात पर अटके हैं कि 2024 से इसे लागू क्यों नहीं कर रहे हैं, पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को इसमें शामिल क्यों नहीं कर रहे हैं। उनको यह समझ में नहीं आ रहा है कि परिसीमन के बाद जो महिला आरक्षण लागू होगा उसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। उसका राजनीतिक लाभ जाहिर है कि बीजेपी को होगा। विपक्ष अभी इस पूरे खेल को समझने में ही नाकाम है। दूसरा, विपक्ष की यह जो योजना थी कि 2026 में परिसीमन के साथ उत्तर और दक्षिण भारत के झगड़े को खड़ा करना, उस गुब्बारे की हवा मोदी ने अभी निकाल दी है। 2026 के परिसीमन का विरोध करना किसी भी पार्टी के लिए बहुत कठिन होगा। एक तीर से कई निशाने साधते हुए मोदी ने विपक्ष को न सिर्फ निरुत्तर कर दिया बल्कि निहत्था भी कर दिया।
एक तीर से कई निशाने
परिसीमन के जरिये सीटों की संख्या बढ़ना और महिला आरक्षण लागू होना भाजपा के लिए हर तरह से लाभप्रद है और सबसे ज्यादा नुकसानदेह है कांग्रेस पार्टी के लिए। विपक्ष की ताकत ज्यादातर पूर्व में या दक्षिण में है। भारतीय जनता पार्टी के लिए 2026 का परिसीमन एक तरह से बहुत बड़ा राजनीतिक तोहफा लेकर आएगा। परिसीमन और महिला आरक्षण को जोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो राजनीतिक रणनीति बनाई है उसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को कितना बड़ा होने वाला है इसका अहसास विपक्ष को नहीं हो पाया है। मोदी जो भी कदम उठाते हैं उसमें आपको जो भी लक्ष्य दिखाई देता है उसके अलावा और कई लक्ष्य भेदे जाते हैं। वह सिर्फ एक लक्ष्य को भेदने के लिए तीर नहीं छोड़ते हैं। जब वह तीर छोड़ते हैं तो उससे कई लक्ष्यों का संहार होता है। इसलिए मोदी की रणनीति को समझना है तो उनकी राजनीति को समझना होगा। जो लोग मोदी की राजनीति को नहीं समझते वह उनकी रणनीति को नहीं समझ पाते।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं।)






