प्रदीप सिंह।
भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ समय से नैरेटिव सेट करने में लगातार विफल हो रही थी, पिछड़ रही थी। उसके विरोधी कांग्रेस पार्टी और अन्य दल आगे चल रहे थे। बल्कि ऐसा लग रहा था कि विरोधी जो नैरेटिव सेट कर रहे हैं भारतीय जनता पार्टी उसको फॉलो कर रही है, अपना बचाव कर रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक आक्रामक नैरेटिव सेट किया। आक्रामक से मेरा मतलब किसी पर हमला, कोई हिंसा की बात से नहीं है। बल्कि चेतावनी की बात से है। जो लोगों के मन में है, उस बात को अभिव्यक्ति देने का काम उन्होंने किया है।
‘बंटोगे तो कटोगे’ इसमें किसी के खिलाफ हिंसा की कोई बात नहीं है, किसी के खिलाफ नफरत की कोई बात नहीं है। यह चेतावनी है हिंदू समाज को कि एक रहोगे तो नेक रहोगे। अब आप इतिहास के पन्ने पलट कर देख लीजिए कि जब जब बंटे हैं तब तब क्या हुआ है। कितना बड़ा देश था और आज कितना बच गया है- इसी से अंदाजा लगा लीजिए। आजादी से पहले हिंदू समाज की कितनी आबादी थी और आज कितनी है- इससे अंदाजा लगा लीजिए। योगी आदित्यनाथ ऐसा कुछ नहीं कह रहे कि आप किसी के खिलाफ हो जाइए या किसी के खिलाफ खड़े हो जाइए या किसी युद्ध के लिए तैयार हो जाइए। आप मानसिक रूप से तैयार हो जाइए, मानसिक दृढ़ता की जरूरत है, वैचारिक दृढ़ता की जरूरत है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को एक नैरेटिव दे दिया है।
इसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी पर हमला किया। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंदी है। इस समय उसके हौसले बढ़े हुए हैं 37 लोकसभा सीटें जीतकर सपा मुखिया अखिलेश यादव को लग रहा है कि वह चक्रवर्ती सम्राट बन गए हैं। अब उनका रथ रोकने वाला कोई नहीं है। जैसे अश्वमेघ यज्ञ जीत गए हो वह उस मुद्रा में हैं। आजकल उनको लगता है वह जिस राज्य को चाहें उसको हासिल कर सकते हैं। खैर उनको उस गलतफहमी में जीने का कुछ समय मिलना चाहिए, हमें उनकी खुशी में खलल नहीं डालना चाहिए, लेकिन उनका चरित्र भी बताना चाहिए। यही बात योगी जी कह रहे हैं। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यह पहनते तो लाल टोपी हैं लेकिन इनके कारनामे काले हैं। इनके राज में और लंबे समय तक अलग-अलग पार्टियों के राज में भी उत्तर प्रदेश अपनी पहचान के लिए तरसता था। उत्तर प्रदेश की पहचान गुंडा राज से हो गई थी जहां कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी। कब किसके मकान पर कब्जा हो जाए- कब किसके परिवार की बहन बेटियां उठा ली जाएं- इसका कोई भरोसा नहीं था। लोग इन्वेस्टमेंट करने से डरने लगे थे, उनसे रंगदारी वसूली जाती थी। उन पर दबाव डाला जाता था कि ये हमारे आदमी हैं इनको आपको नौकरी में रखना पड़ेगा, उनकी योग्यता हो चाहे ना हो। यह एक तरह का गुंडा टैक्स था जिसकी वसूली हो रही थी। जो इन्वेस्टमेंट करके फंस गया वह किसी तरह से चला रहा था। जिससे नहीं चल पाया वह छोड़ के जा रहा था। नया इन्वेस्टमेंट आने को तैयार नहीं था। एक ही सवाल होता था कि क्या कानून व्यवस्था की कोई गारंटी है। दूसरी बात, सड़क। पानी और बिजली की व्यवस्था ऐसी थी अखिलेश यादव के राज तक, यानी 2017 मार्च से पहले तक, कि जो चार पांच वीआईपी जिले हैं वहां 24 घंटे बिजली आती थी। इसका श्रेय अखिलेश यादव को जरूर दिया जाना चाहिए कि अपने और अपने घर वालों के अपने रिश्तेदारों के, अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के चार पांच जिलों में 24 घंटे बिजली आती थी। बाकी प्रदेश में कहीं 8 घंटे, कहीं 10 घंटे, कहीं 12 घंटे बिजली आती थी। जहां 12 घंटे बिजली आ गई वहां लोग मानते थे कि बहुत बिजली आ रही है।
अब 20 से 24 घंटे बिजली आ रही है। यह परिवर्तन हुआ है। आप सोचिए कि इससे उद्योग का कितना फायदा हो रहा है, इससे आम लोगों का कितना फायदा हो रहा है, इससे विद्यार्थी जगत का कितना फायदा हो रहा है। गरीब आदमी का कितना फायदा हो रहा है। आप कहेंगे बिजली आने से गरीब आदमी का क्या मतलब? जब फैक्ट्री चलेगी तभी तो गरीब आदमी को रोजगार मिलेगा, काम धंधा चलेगा, रोजी रोटीकमाने का मौका मिलेगा।
अब अगर किसी गरीब की छोटी मोटी जमीन है तो उस पर कोई माफिया कब्जा नहीं कर पाता। तब माफिया की सामानांतर सरकार हो गई थी। वह सरकार पर भी भारी पड़ता था। पुलिस के अधिकारी के खिलाफ कारवाई करवा सकता था, नौकरी से निकलवा सकता था गिरफ्तार करवा सकता था। पुलिस वालों की हिम्मत नहीं थी कि हाथ भी लगा सकें। माफिया को छोड़ दीजिए माफिया के जो गुंडे थे, गुर्गे थे, उन पर हाथ लगाने की हिम्मत नहीं थी पुलिस की। पुलिस गुंडों से डरती थी। यह था उत्तर प्रदेश योगी आदित्य नाथ के आने से पहले। अब क्या है? गुंडे पुलिस से डरते हैं। उनको मालूम है कि गुंडागर्दी की तो उसके बाद बच जाएंगे इसकी गारंटी लेने वाला आज देश में कोई नहीं है। कोई यह दावा नहीं कर सकता कि उत्तर प्रदेश में किसी गुंडे को हम शासन और कानून की कार्रवाई से बचा लेंगे।
दूसरी बात, भ्रष्टाचार। बहुत से लोग मुझसे मिलते हैं और कहते हैं कि नीचे के स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ है। मैं भी नहीं कहता कि उत्तर प्रदेश में राम राज्य आ गया है, भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो गया है। लेकिन योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बने हुए सात साल हो गए। उनका बड़े से बड़ा विरोधी भी सार्वजनिक रूप से या निजी तौर पर भी यह कहने की हिम्मत यह नहीं कर सकता कि फलां आदमी ने योगी आदित्यनाथ के यहां पैसा पहुंचाया।
जिस तरह का फ्री हैंड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मिलना चाहिए था, वैसा मिला होता तो शायद स्थिति और ज्यादा बेहतर होती। इस मुद्दे पर मैं विस्तार में नहीं जाऊंगा कि कैसे फ्री हैंड नहीं मिला, क्यों नहीं मिला, किन लोगों की वजह से नहीं मिला। वो एक अलग विषय है। लेकिन जितना अधिकार मिला हुआ है उसमें जितना संभव हो सकता है उससे ज्यादा मुख्यमंत्री कर रहे हैं।
चाहे विकास के काम हो आपको इस तरह का सामंजस्य इससे पहले कभी देखने को नहीं मिलेगा
सुशासन, विकास, कानून व्यवस्था… और एक विजन- उत्तर प्रदेश कैसा होना चाहिए, उत्तर प्रदेश का विकास कैसा होना चाहिए, उत्तर प्रदेश के विकास का राष्ट्रीय विकास में क्या योगदान होना चाहिए… मुझे लगता है ऐसा सोचने वाला मुख्यमंत्री दशकों बाद आया है। पिछले कम से कम तीस चालीस सालों में तो ऐसा
कोई मुख्यमंत्री नहीं आया।
योगी आदित्यनाथ ने पिछले कुछ दिनों में जो बयान दिए हैं ये भाजपा का केवल उत्तर प्रदेश नहीं बल्कि राष्ट्रीय नैरेटिव सेट करने वाले बयान हैं। उनको उस तरह से पार्टी का साथ नहीं मिला। उनका बयान बंटोगे तो काटोगे राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनना चाहिए था। आप बताइए भारतीय जनता पार्टी के कितने नेताओं ने इसके समर्थन में बयान दिया। कितने नेता इसके समर्थन में उतरे। उत्तर प्रदेश से शुरू कर लीजिए और पूरे देश में घूम आइए बताइए कितने लोग इसके समर्थन में खड़े हुए। यह ऐसा बयान/मुद्दा था जिस पर विपक्ष की बोलती बंद हो गई। अखिलेश यादव राहुल गांधी मुंह से शब्द नहीं निकल रहे। समझ में नहीं आ रहे कि इसका विरोध कैसे करें।
इतना बड़ा नैरेटिव हाथ लगा है जो सनातन, राष्ट्रवाद, देश की संस्कृति और सभ्यता को मजबूत करता है। जो इतिहास में हुई गलतियों से सबक सीखने के लिए प्रेरित करता है। उस नैरेटिव को जितना बड़ा आकार लेना चाहिए था, उसका जितना बड़ा विस्तार होना चाहिए था, वह नहीं हुआ अभी तक। आखिर क्यों? यह सोचने की बात है। कोई नेता नैरेटिव सेट करने के लिए उसकी शुरुआत कर सकता है, जो योगी जी कर रहे हैं। लेकिन उसको ग्राम सभा से लेकर
राष्ट्रीय स्तर तक विस्तार देने के लिए पूरे संगठन की शक्ति की जरूरत होती है। यह किसी एक मुख्यमंत्री का मुद्दा नहीं है। यह राष्ट्र का मुद्दा है। राष्ट्रवाद का मुद्दा है। देश को एक रखने का मुद्दा है। देश की एकता और अखंडता का मुद्दा है। इस मुद्दे पर हमने अगर विचार किया होता, चले होते, तो आज देश का आकार बहुत बड़ा होता। यह जो घटते घटते इतने से रह गए हैं, यह न होता। और इससे भी छोटा होने की आशंका नजर आ रही है। योगी जी उससे सावधान करने की कोशिश कर रहे हैं। जो भविष्य में आने वाला खतरा सामने दिखाई दे रहा है उससे सावधान कर रहे हैं, लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं। सवाल यह है कि उनके साथ कौन है, कितने लोग हैं। इसका प्रभाव कहां तक जा रहा है। आम आदमी पर निश्चित रूप से इसका प्रभाव पड़ रहा है लेकिन भारतीय जनता पार्टी को जिस तरह से इस मुद्दे को अपनाना चाहिए था, बड़े अफसोस की बात है कि उस तरह से अपनाया नहीं गया।
हर बात का एक संदर्भ होता है। योगी जी जब अपनी बात रखते हैं तो संदर्भ के साथ रखते हैं। यह फर्क है उनमें और दूसरे नेताओं में। उन्होंने बांग्लादेश के संदर्भ से यह बातें शुरू कीं कि बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है वह गलती यहां नहीं दोहराई जानी चाहिए। वह सावधान कर रहे हैं। सिर्फ आपको जगा रहे हैं- नींद से उठिए, जागिए और देखिए आपके आसपास क्या हो रहा है। वह जगाने की कोशिश ही कर सकते हैं, जगा नहीं स सकते। जागना हम-आप पर निर्भर
है कि हम-आप जागते हैं कि नहीं, इस दिशा में सोचते हैं कि नहीं।
योगी आदित्यनाथ जैसे नेता बदलाव की कोशिश कर सकते हैं लेकिन वह बदलाव आम लोगों को ही लाना पड़ेगा। जब तक आम व्यक्ति नहीं जागेगा, इस बात को नहीं समझेगा तब तक कोई बदलाव, कोई परिवर्तन आने वाला नहीं है।
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(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)