आपकी पांच-छह फुट की काया में समाया है पूरा ब्रह्माण्ड।

श्री श्री रविशंकर।
कुदरत ने हमें दो नासिका क्यों दे रखी हैं। कभी देखा… सोचा? कुछ रहस्य भी दिया है इसके साथ? तुम देखो कि तुम्हारी साँस दायीं नासिका से चल रही है या बायीं नासिका से चल रही है। कितने लोगों को दाईं नासिका से सांस चल रही है- अब इस वक्त। कितने लोगों को बायीं नासिका से साँस चल रही है इस समय। और कितने लोगों को दोनों तरफ चल रही है इस वक्त। बराबर… अच्छा… ठीक है।

हमारे शरीर में 1 लाख 72 हजार नाड़ी हैं। इसमें से एक नाड़ी है जिसको कहते हैं ज्ञान नाड़ी। जब ज्ञान नाड़ी खुलती है तभी ज्ञान पकड़ में आता है।
आपको याद है जीवन में कईं बार कोई व्यक्ति कुछ बोल रहा है, आप सुन रहे हैं, मगर कुछ अंदर नहीं जा रहा है। ऐसा कितने लोगों को अनुभव हुआ है?  You are listening but nothing gets in. Has it happened to you all. पता है क्या हुआ था। उस समय ज्ञान नाड़ी बंद थी।

इसी तरह एक दिल की नाड़ी होती है। वह जब बंद हो जाती है तो किसी तरह की फीलिंग ही नहीं आती है। किसी की तरफ कुछ होता ही नहीं है। ऐसा भी हुआ है? कोई संवेदना होती ही नहीं है। ऐसा भी होता है। और कभी ऐसी भी नाड़ी होती है जो शक ही शक पैदा करती है। हर चीज में शक होता है। एक नाड़ी खुल जाती है जो शक की नाड़ी है। इसके लिए हम लोग नाड़ी शोधन प्राणायाम करते हैं। नाड़ी शोधन माने नाड़ी को साफ़ करना, प्यूरीफाई करना।

जब सांस दाहिनी नासिका से चलती हो तब भोजन करना चाहिए। जब दाहिनी नासिका चलती है तब बायीं तरफ का मस्तिष्क चलता है। और बायीं नासिका चलती हो तो दायां मस्तिष्क चलता है। कैलकुलेशन करना हो, कुछ लॉजिकली सोचना हो, लिखना हो, सुनना हो, समझना होगा तो दाहिना स्वर (नासिका) चलना चाहिए। भोजन करके बाएं तरफ लेटते हैं। पता है क्यों? उस वक्त हमारा पेट ऐसा है न, तो अच्छे से पाचन होता है। नींद… सोने में भी दाहिने स्वर से सोना चाहिए। बाईं तरफ लेट के सोते हो तो अच्छे से नींद आएगी। दाहिनी तरफ सोओगे तो नींद थोड़ी मध्यम, मेडिओकर रहेगी।

तो दाहिनी तरफ नाड़ी चलती हो तो भोजन करना चाहिए और बायीं तरफ नाड़ी चलती हो तो पानी पीना चाहिए। मल-मूत्र विसर्जन के लिए भी दाहिनी नासिका ठीक होती है। जिनको कब्ज हो जाता है वो दाहिनी नाड़ी चलाएं तो पेट साफ़ हो जाएगा। बायीं तरफ स्वर चल रहा हो उस वक्त आप शौचालय में जाते हो तो भी एक बार में पेट साफ़ नहीं हो सकता, तीन-चार बार जाना पड़ेगा। लेकिन दाहिनी तरफ की नासिका चल रही हो अगर उस समय आप शौच में जाते हैं तो बस एक बार में काम पूरा। आधे दिन के लिए तो अब छुट्टी है। एकदम साफ़ होता है पेट। इसलिए दाहिना सुर चलाना चाहिए शौच में भी, भोजन में भी और नींद में भी।

बायीं नासिका कब चलना चाहिए। जब म्यूजिक सुनना हो, कुछ लेना हो, कुछ देना हो, पानी पीना हो, योग करना हो – तब बायां स्वर चलना चाहिए। कई बार आप ध्यान में बैठते हैं और दाईं नासिका चल रही हो तो आपकी आँखें बंद रहेंगी लेकिन पीछे से आपको कई प्रकार के विचार आने लगेंगे और ध्यान ठीक से नहीं लग पाता। वहीँ बायां स्वर चलता हो तो तुम बैठोगे और एकदम ध्यान लगने लगता है। इसलिए ध्यान से पहले प्राणायाम करना चाहिए।

एक और रहस्य की बात है। जब भी आप बाहर कहीं जाते हो तो जो स्वर चल रहा है उसी पांव को पहले रखकर जाना चाहिए। दाहिनी नासिका चल रही हो तो दाहिना कदम पहले रखो। अगर बायां स्वर चल रहा हो तो बाएं कदम को पहले बाहर रखो। देखिए प्राण के एक सागर में हम हैं। We are floating in a ocean of prana. इसलिए अगर हम अपने को देखते हैं तो सारी दुनिया जान जाएगी।

इसमें और गहराई की बात है। यदि हम अपने भीतर झांक के देखेंगे तो जो कोई व्यक्ति आ रहा है वह गुस्से में है तो हमको पता चलता है। उसमें प्रेम है तो पता चल जाएगा। धोखेबाज आदमी हो तो हमें महसूस हो जाएगा बैठे-बैठे। हमारा यह जो पांच-छह फुट का शरीर है, काया है, इसमें ब्रह्मांड समाया हुआ है। इसे देखो और देखते जाओ। तो बहुत सा ज्ञान हमें जीवन में होने लगेगा।

इसमें और गहराई में है रहस्य। मगर थोड़ा ध्यान करो, साधना करो तो फिर आगे बता सकते हैं… नहीं तो! नियम यह होता है कि सबको बताना नहीं है ज्ञान। देखिए, ज्ञान पकड़ में आता है तो कोई रावण भी बन सकता है। इसलिए अच्छे से ज्ञान में, प्रेम में सधे हुए व्यक्ति को ही इसका आगे ज्ञान देते हैं, सबको नहीं देते। तो जीवन में सबसे पहले शील (character building होना चाहिए… और वह होता है ध्यान से, प्राणायाम से।

(लेखक प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु और द आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक हैं)