अजय विद्युत।
कम्बोडिया में हिंदू धर्म ध्वजा जिस शान के साथ लहरा रही है आपको सिर्फ उसका एक अनुभव लेने के लिए ही वहां जाना चाहिए। दुनिया में कहीं भी आपको ऐसा नजारा देखने को नहीं मिलेगा। दुनिया का सबसे बड़ा धर्मस्थल एक हिंदू मंदिर है जो कम्बोडिया में है और वह मंदिर वहां का राष्ट्रीय चिह्न होने के साथ वहां के राष्ट्रीय ध्वज पर भी अंकित है।
सांस्कृतिक पर्यटन का असली आनंद यही है जहां हिंदुत्व सर्वस्वीकार्य ‘वसुधैव कुटुम्बकं’ के भाव में साकार होता दीखता है, जो कि उसका मूल स्वभाव है। और प्रकृति की छटा तो सैलानियों का मन मोहने में कोई कसर नहीं छोड़ती, खासकर सूर्योदय और सूर्यास्त।
दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण
कम्बोडिया का राष्ट्रीय चिह्न अंगकोरवाट का प्राचीन हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर अपने आकार के कारण दुनिया का सबसे बड़ा धर्मस्थल है। इसका चित्र वहाँ के ध्वज के बीच में लगा है। अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के शासनकाल में हुआ था।
मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में स्थान दिया गया है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच अमृत मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है।
विश्व धरोहर
विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है।
पर्यटक यहाँ केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। सनातनी लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।
यह मंदिर कंबोडिया के अंगकोर में है जिसका पुराना नाम ‘यशोधरपुर’ था। यह विष्णु मन्दिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्राय: शिवमंदिरों का निर्माण किया था।
कम्बोडिया में हजारों प्राचीन हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं। गौरतलब है कि एएसआई कम्बोडिया स्थित ‘ता प्रोहम मंदिर’ का जीर्णोद्धार कर रहा है। कम्बोडिया में ही भगवान विष्णु का सबसे पुराना मंदिर है। अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग एक हजार वर्ष पहले भारत से कई लोग कम्बोडिया गए और वहां मंदिरों का निर्माण कराया।
खमेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित स्थापत्य वाले इस मंदिर का निर्माण सूर्यवर्मन द्वितीय ने प्रारम्भ किया, परन्तु वे इसे पूर्ण नहीं कर सके। मंदिर का कार्य उनके भानजे एवं उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में सम्पूर्ण हुआ। मिश्र एवं मेक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह यह सीढ़ी पर उठता गया है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊँचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ था, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर बाहर 190 मीटर चौडी खाई है। विद्वानों के अनुसार यह चोल वंश के मन्दिरों से मिलता जुलता है। दक्षिण पश्चिम में स्थित ग्रन्थालय के साथ ही इस मंदिर में तीन वीथियां हैं जिसमें अन्दर वाली अधिक ऊंचाई पर हैं। निर्माण के कुछ ही वर्ष पश्चात चम्पा राज्य ने इस नगर को लूटा। उसके उपरान्त राजा जयवर्मन-7 ने नगर को कुछ किलोमीटर उत्तर में पुनर्स्थापित किया। 14वीं या 15वीं शताब्दी में थेरवाद बौद्ध लोगों ने इसे अपने नियन्त्रण में ले लिया।
रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र
मंदिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहाँ के शिलाचित्रों में रूपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की शृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, बालि और सुग्रीव के द्वंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं। अंगकोरवाट के शिलाचित्रों में रूपायित राम कथा यद्यपि अत्यधिक विरल और संक्षिप्त है, परंतु यह महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति आदिकाव्य की कथा के अनुरूप हुई है।
कम्बोडिया में हजारों प्राचीन हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं। गौरतलब है कि एएसआई कम्बोडिया स्थित ‘ता प्रोहम मंदिर’ का जीर्णोद्धार कर रहा है। कम्बोडिया में ही भगवान विष्णु का सबसे पुराना मंदिर है। अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग एक हजार वर्ष पहले भारत से कई लोग कम्बोडिया गए और वहां मंदिरों का निर्माण कराया।