दिव्य अयोध्या- भव्य राममंदिर
—प्रकाश शर्मा
1990 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलवाकर आंदोलन को रक्तरंजित किया। संयोग ऐसा कि जिस बाबरी मस्जिद की वकालत में मुलायम ने अपनी पूरी राजनीति झोंक दी, उसे ही सुप्रीम कोर्ट ने अस्तित्वहीन करार दिया। लगभग 30 साल पुराना दृश्य फिर से जीवंत कर रहे हैं तीन दशक से अधिक समय से श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक और विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे प्रकाश शर्मा।
भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने संकल्प लिया कि 25 सितम्बर 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन पर सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाल कर 30 अक्टूबर को अयोध्या में कारसेवा के समय उपस्थित रहेंगे। रथयात्रा ने सम्पूर्ण देश में व्यापक जनजागरण किया।
इधर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने अपने अहंकार को तुष्ट एवं मुस्लिम वोटों की राजनीति को और मजबूत करने के लिए पूरे उप्र को ही जेलखाना बना डाला। प्रवेश की सारी सीमाएं शील कर दी गर्इं। अयोध्या जाने वाली सभी ट्रेनें, बसें रद्द कर दी गर्ईं। 40 बटालियन पैरामिलीट्री फोर्स अयोध्या में तैनात की गई। जाने वाले मार्गों पर बड़ी-बड़ी खाई खोद दी गर्इं। जलमार्ग से लोग अयोध्या में प्रवेश न कर जाएं अत: सरयू में नावें पलट दी गर्इं। कंटीले तार लगा दिए गए, सारे पुल बंद कर दिए गए। स्थान-स्थान पर गिरफ्तारी हुई। फिर भी हजारों की संख्या में कारसेवक बचते हुए अयोध्या की ओर बढ़ते रहे। 30 अक्टूबर को कारसेवा कार्यक्रम के लिए विहिप ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से गांव-गांव तक कार्यकर्ता सुनिश्चित किए थे। ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं को व्यवस्था की जिम्मेदारियां सौंपी गई जिससे कि पैदल चलने वाले यात्रियों को मार्ग में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। कारसेवकों को बताया गया था कि प्रमुख मार्गों को छोड़कर ग्रामीण मार्गों का उपयोग करें। प्रत्येक जिले की जेलें कारसेवकों से भर गर्इं। इंटर कालेज, मण्डी समिति जेलों में तब्दील फिर भी स्थान का अभाव। 23 अक्टूबर को बिहार में आडवाणी जी की यात्रा रोककर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जिसकी पूरे देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। प्रयाग से ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य वासुदेवानन्द सरस्वती जी कारसेवा के लिए निकल पड़े। समाज के मन में जिज्ञासा थी कि 30 अक्टूबर को क्या कारसेवा का सन्तों का संकल्प पूर्ण होगा। तभी सूचना आई कि इस आन्दोलन के सेनापति श्री अशोक सिंहल जी, श्री श्रीशचन्द्र दीक्षित जी एवं प्रमुख सन्तगण अयोध्या पहुंच गए हैं। श्री अशोक सिंहल को पूूरे देश की पुलिस ढूंढ़ रही थी। वह सड़क मार्ग से ग्रामीण रास्तों से होते हुए मोटरसाइकिल से अयोध्या पहुंचे।
30 अक्टूबर : कारसेवा
सबकी नजरें रेडियो पर समाचार में थीं। टीवी उस समय बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं था। समाचार प्राप्त हुआ कि वामदेव जी महाराज, महन्त नृत्यगोपालदास, श्री अशोक सिंहल और श्रीशचन्द्र दीक्षित कारसेवा के लिए निकल पड़े हैं। पूरी अयोध्या छावनी में तब्दील थी, चारों ओर सन्नाटा था। लग ही नहीं रहा था कि आज कारसेवा हो पाएगी किन्तु जैसे ही छावनी से अशोक सिंहल जी और पूज्य सन्तगण कारसेवा के लिए आगे बढ़े, कुछ ही कदम चल पाए होंगे कि वानर सेना की तरह हजारों की संख्या में कारसेवक गलियों से निकलकर उनके साथ हो लिए। इसी बीच जिस बस में गिरफ्तार कारसेवक बैठाए गए थे दैव योग से उसका चालक उतरकर कहीं चला गया। और उसमें बैठे हुए एक महन्त ने ड्राइविंग सीट संभाली और तेजी के साथ हनुमान गढ़ी वाले रास्ते से बैरीकेटिंग तोड़ते हुए अन्दर पहुंच गया। पीछे हजारों कारसेवक भी विवादित ढांचे तक पहुंच गए। लोग विवादित ढांचे के गुम्बद पर चढ़ गए। केसरिया ध्वज फहरा करके विजय का जयघोष किया। पूरी दुनिया ने देखा कि हिन्दू समाज ने अपने संकल्प को पूरा कर दिया है मुलायम सिंह की किले बन्दी ध्वस्त हुई। कारसेवा के इस प्रयास में अशोक सिंहल घायल हुए, चारो ओर से गोलियों की बैछारें होने लगीं। उस दिन कुछ कारसेवकों का बलिदान हुआ, किन्तु कारसेवा कर लोग वापस आ गए। प्रशासन ने अशोक सिंहल सहित प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करने का बहुत प्रयास किया किन्तु सफल नहीं हुए।
श्रीराम कारसेवा समिति ने 30 अक्टूबर 1990 को सम्पन्न कारसेवा में हुई जनहानि को देखते हुए 2 दिन के विश्राम की घोषणा की। 2 नवम्बर को पुन: कारसेवा का निश्चय हुआ। इधर अनेक सन्तों ने आमरण अनशन की घोषणा कर कहा कि अगर 6 नवम्बर को कारसेवा प्रारम्भ नहीं की गई तो वे आत्मदाह कर लेंगे। 2 नवम्बर की कारसेवा का दिन रक्तरंजित रहा और इतिहास में काले दिन के रूप में लिखा जाएगा। कारसेवक जैसे ही हनुमान गढ़ी तक पहुंचे भीषण गोलियों की बौछार से उनके सीने छलनी कर दिए गए। रामधुन कर रहे निहत्थे कारसेवकों को घरों से खींचकर के मार दिया गया। 30 अक्टूबर को कलकत्ता को आए हुए रामकुमार कोठारी (23 वर्ष), शरद कोठारी (20 वर्ष) जिन्होंने कारसेवा में प्रमुखता से भाग लिया था, घर से बाहर खींचकर के सड़क पर गोलियों से भून दिया गया। कारसेवकों के आत्म बलिदान की स्मृति में सारा हिन्दू समाज नतमस्तक हो गया और सदा रहेगा।
घटना देखकर लगता था कि यह पूर्व नियोजित है और 30 अक्टूबर की कारसेवा का बदला लेने के लिए किया गया है।
देश में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था। भाजपा ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि सरकार आडवाणी की यात्रा रोकती है तो वह केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लेगी। भाजपा ने ऐसा ही किया और वीपी सिंह सरकार का पतन हो गया। नवम्बर के अन्त में अयोध्या में सरयू के तट पर विशाल सम्मेलन हुआ जिसमें अशोक सिंहल और लालकृष्ण आडवाणी सहित सभी पूज्य संतों ने श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का संकल्प पुन: दोहराया। पूरी अयोध्या राममय थी। 4 अप्रैल 1990 को संसद के घेराव का कार्यक्रम था किन्तु केन्द्र सरकार का पतन हो जाने के कारण वोट क्लब पर विराट रैली का आयोजन किया गया। लाखों रामभक्त कारसेवक दिल्ली पहुंचे। रैली में ही यह सूचना मिली कि उप्र की मुलायम सिंह सरकार का पतन हो चुका है।
(प्रस्तुति- अजय विद्युत)
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