—प्रदीप सिंह

भौतिक शास्त्र में गुप्त ऊष्मा के बारे में पढ़ाया जाता है। गुप्त ऊष्मा तापमान बदले बिना पदार्थ की अवस्था बदल देती है। सामाजिक, राजनीतिक जीवन में भी कई ऐसे मुद्दे, घटनाएं और आयोजन होते हैं जो ऊपरी तौर पर सामान्य लगते हैं लेकिन उनकी गुप्त ऊष्मा कई तरह के बदलाव लाने में सक्षम होती है। प्रयागराज में इस वर्ष मकर संक्रांति से महाशिवरात्रि तक हुए कुम्भ के आयोजन को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। जिस आयोजन में चौबीस करोड़ लोग आएं और बिना किसी विघ्न बाधा के अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक आस्था के अनुसार स्नान-ध्यान, पूजा, कल्पवास करके चले जाएं, यह सामान्य बात नहीं है। ज्यादातर कुम्भ किसी न किसी विवाद के कारण याद किए जाते हैं। दशकों में शायद पहला कुम्भ है जो सफलता के नए कीर्तिमानों के लिए याद किया जाएगा।

दो साल पुरानी योगी आदित्यनाथ सरकार की यों तो बहुत सी उपलब्धियां है। पर कुम्भ का इतने बड़े पैमाने पर और ऐसा शानदार आयोजन करने के लिए वे हमेशा याद रखे जाएंगे। कोई कह सकता है कि कुम्भ का आयोजन पहले भी होता रहा है और उसमें लोग बड़ी संख्या में आते रहे हैं तो इसमें नई बात क्या है? तो पहली बात तो यह कि ऐसी बात वही कह सकता है जिसने पहले के कुम्भ और 2019 का कुम्भ नहीं देखा। पहले उन बातों का जिक्र कर लें जो पहली बार हुईं। यूनेस्को ने इसे ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ की सूची में सम्मिलित किया। चौबीस करोड़ लोगों ने संगम में डुबकी लगाकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया। इकहत्तर देशों के राजदूतों ने इसकी तैयारी देखी और अपने राष्ट्रध्वज मेले में लगाए।

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प्रदेश सरकार के प्रयास और रक्षा मंत्रालय के सहयोग से साढ़े चार सौ साल बाद लोगों ने अक्षय वट और सरस्वती कूप के दर्शन किए। पहली ही बार हुआ कि कुम्भ जैसे इतने वृहद स्तर पर हुए आयोजन में स्वच्छता के स्तर की चर्चा देश ही नहीं दुनिया भर में हुई। इस आयोजन को सांस्कृतिक कुम्भ, सुरक्षित कुम्भ और डिजिटल कुम्भ की अवधारणा से जोड़ा गया। सड़क व रेल मार्ग के अलावा वायुमार्ग( इतने बड़े पैमान पर पहली बार) और जलमार्ग से जोड़ा गया। प्रयागराज में चित्रकारी, स्वच्छता और शटल बसों के संचालन के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड के रूप में दर्ज किया गया। यह भी पहली बार हुआ कि देश के प्रधानमंत्री ने स्वच्छता कर्मियों के पैर धोए। पचास दिन के इस पूरे आयोजन पर करीब चार हजार तीन सौ करोड़ रुपए खर्च हुए। सत्तर हजार करोड़ रुपए खर्च करके हुए राष्ट्रकुल खेलों के आयोजन से इसकी तुलना, शासनकौल की कई बातें कहती है।

कुम्भ के आयोजन से भारतीय जनता पार्टी और उसकी राज्य सरकार ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को यह बता दिया कि जब वह हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करती है तो उसका अभिप्राय क्या होता है। कुम्भ का आयोजन उसका जीता जागता है उदाहरण है। संगम के तट पर बगल में डुबकी लगाने वाले की जाति धर्म कोई नहीं पूछता। यहां आकर उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम का भेद मिट जाता है। भाषा कोई बाधा नहीं है। यहां राजा प्रजा के पैर पखारता है। असली भारत अपनी इसी संस्कृति में बसता है।कुम्भ का सम्बन्ध सागर मंथन से है यह सबको पता है। यह भी कि सम्राट हर्षवर्धन ने कुम्भ को वर्तमान स्वरूप दिया। पर योगी आदित्यनाथ इसे नई ऊंचाई पर ले गए हैं। उन्होंने इस आयोजन के जरिए साबित किया है कि सन्यासी केवल धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में ही नहीं शासन कला में भी पारंगत हो सकता है। योगी आदित्यनाथ जैसी शख्सियत को देखकर कहा जा सकता है कि राजनीति धर्म निरपेक्ष कैसे हो सकती है? राजनीति के धर्म निरपेक्ष होने का  मतलब है कि जीवन में जो भी श्रेष्ठ और नैतिक है, राजनीतिक का उससे कोई सरोकार नहीं है।

उन्होंने कुम्भ के आयोजन को केवल हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृतिक तक सीमित नहीं रखा। योगी ने इसके जरिए स्वच्छता के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभियान को मूर्त रूप में उतार कर दिखाया। उन्होंने दिखाया कि इतने बड़े आयोजन में सफाई के उच्चतम स्तर को बनाए रखा जा सकता है। यही कारण है कि कुम्भ के बाद हर बार होने वाली बीमारी की इस बार कोई चर्चा तक नहीं है। उन्होंने यह भी दिखाया कि इतने बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजन को क्षेत्र के विकास से भी जोड़ा जा सकता है। कुम्भ के कारण प्रयागराज और आस पास के क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर का बड़े पैमैने पर विकास हुआ है। सड़क, पुल,फ्लाईओवर के साथ ही प्रयाग में हवाई अड्डे का विस्तार जलमार्ग का शुरू होने की मोदी सरकार की उपलब्धि को पूरे देश ने देखा।

सामाजिक- राजनीतिक जीवन में लोगों पर नेताओं की बातों का असर कितना और कितने समय तक रहता है, इस पर विवाद- बहस हो सकती है। पर जमीनी स्तर हुए काम का असर देर तक रहता है, इसमें कोई शक नहीं है। कुम्भ में जो चौबीस करोड़ लोग संगम में डुबकी लगाने आए, वे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बारे में क्या धारणा बनाकर गए होंगे इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुए इस आयोजन का चुनाव पर असर न पड़े यह कहना कठिन है। ये चौबीस करोड़ श्रद्धालु दरअसल योगी सरकार के ब्रांड अम्बेडसर बनेंगे। इनमें से सब भाजपा को वोट देंगे यह कहना अतिशयोक्ति होगी। पर उनके लिए सरकार का विरोध करना आसान नहीं होगा।

इस बार के कुम्भ के आयोजन में एक और बात पहली बार हुई। इस पूरे आयोजन में कहीं से भ्रष्टाचार का आरोप सरकार के विरोधियों ने भी नहीं लगाया। कोई सरकार विभिन्न परियोजनाओं पर चार हजार करोड़ रुपए खर्च करे औऱ भ्रष्टाचार की चर्चा तक न हो यह आज के राजनीतिक माहौल में अजूबे से कम नहीं है। कुम्भ के सफल आयोजन से योगी सरकार ने न केवल अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक प्रतिबद्धता को दिखाया बल्कि यह बताया कि धर्म, संस्कृति और विकास एक दूसरे के पूरक हैं। कुम्भ के इस आयोजन ने योगी सरकार के शासनकौशल की क्षमता का भी परिचय दिया है। ये सब बातें लोगों ने सरकार के प्रचार के बिना खुद अनुभव की हैं। इसलिए इसका असर काफी समय तक रहेगा। यही कुम्भ की गुप्त राजनीतिक ऊष्मा है।

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