प्रदीप सिंह
क्या किसी घोटाले की जांच में जानबूझकर गड़बड़ करने वाले अधिकारी से पूछताछ करने से लोकतंत्र, संविधान और संघीय ढ़ांचा खतरे में पड़ जाता है?पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का तो यही मानना है। पर सुप्रीम कोर्ट उनसे सहमत नहीं हुआ और कहा कि सीबीआई कोलकाता के पुलिस आयुक्त से पूछताछ करेगी। इसके साथ ही राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और कोलकाता पुलिस आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का नोटिस भी जारी कर दिया। इसके बावजूद ममता इसे अपनी नैतिक जीत बता रही हैं। देश कई विपक्षी दलों ने भी ममता के साथ खड़े हैं। किसी ने भी यह पूछना जरूरी नहीं समझा कि ममता भ्रष्टाचार की जांच में गड़बड़ करने के आरोपी को आखिर क्यों बचाना चाहती हैं?
भारत की राजनीति एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। जहां नेताओं का भ्रष्टाचार में लिप्त होना या भ्रष्टाचारियों का बचाव करना नया सामान्य( न्यू नार्मल) हो गया है। अभी पांच साल पहले ही राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेस में अपनी ही सरकार के एक विधेयक की कॉपी फाड़ दी। यह विधेयक भ्रष्ट और अपराधी नेताओं को तीन साल से ज्यादा की सजा होने पर चुनाव लड़ने से रोकने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए था। उसका तात्कालिक लाभ लालू प्रसाद यादव को मिलने वाला था। उन्हीं राहुल गांधी को अब लालू यादव से कोई परहेज नहीं है। उन्हें शारदा चिटफंड घोटाले की जांच में आरोपियों को बचाने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ करने के आरोपी कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को बचाने की ममता की कोशिश का समर्थन करने से भी गुरेज नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस की राज्य इकाई कह रही है कि राज्य में संवैधानिक ढांचा चरमरा गया है और वहां राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए।
कोलकाता में उन्नीस जनवरी की रैली में जो दलों के नेता आए थे उन सबने ममता के समर्थन में बयान दिया। सबने संविधान, लोकतंत्र और संघीय ढांचे पर खतरे की दुहाई दी। इनमें से किसी ने कभी पश्चिम बंगाल में हो रही विरोधी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की हत्या, पंचायत चुनावों में विरोधी दलों के उम्मीदवारों के नामांकन तक न करने देने और विपक्षी नेताओं की सभाओं के लिए इजाजत न देने के मुद्दे पर कभी मुहं नहीं खोला। उन्हें एक घोटाले की जांच को आरोपियों के पक्ष में प्रभावित करने वाले पुलिस अधिकारी से सीबीआई की पूछताछ पर भी एतराज है। जिस देश में पूर्व प्रधानमंत्री, तत्कालीन मुख्यमंत्री और पूर्व वायुसेना अध्यक्ष से पूछताछ हो सकती है, वहां एक पुलिस अधिकारी से पूछताछ पर इतना बड़ा वितंडा क्यों? पूछताछ के लिए गई सीबीआई की टीम को हिरासत में लेकर जबरन थाने ले जाया जाता है। सीबीआई के संयुक्त निदेशक के कोलकाता स्थित घर को और सीबीआई के दफ्तर को राज्य की पुलिस घेर लेती है। पर विपक्षी दलों की नजर में यह सब संविधान और संघीय ढांचे को बचाने वाले कदम हैं।
ममता बनर्जी का ऐसा करना तो समझ में आता है। यह उनके स्वभाव और राजनीति दोनों का अभिन्न अंग है। उन्होंने ऐसा पहली बार नहीं किया है। दिसम्बर 2016 में सेना के एक रुटीन अभ्यास को उन्होंने कह दिया कि केंद्र सरकार सेना भेजकर उनकी सरकार गिराना चाहती है। वे रातभर सचिवालय में बैठी रहीं। तब से अब में क्या बदल गया है? जाहिर है कि ममता तो नहीं बदली हैं। एक बड़ा बदलाव परिस्थिति का है। लोकसभा चुनाव सामने हैं। ममता नहीं चाहतीं कि शारदा घोटाले की जांच चुनाव तक आगे बढ़े। राजीव कुमार फंसते हैं तो तृणमूल कांग्रेस के लिए बहुत बुरी खबर होगी। क्योंकि सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राजीव कुमार ने अभियुक्तों के कॉल डेटा रेकार्ड( सीडीआर) से कई नम्बर मिटा दिए। सीबीआई ने जब फोन कंपनियों से फिर से डेटा लिया तो इसका खुलासा हुआ। इसके अलावा लैपटॉप और दूसरी कई चीजें जो तलाशी में मिली थीं, उन्हें सीबीआई को नहीं सौंपा गया। सीबीआई इसी सबका हिसाब राजीव कुमार से पूछना चाहती है, जिससे वे लगातार भाग रहे हैं।ममता उनका सुरक्षा कवच बन कर खड़ी हो गईं और पूरे मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने फैसले से इस सुरक्षा कवच को तोड़ दिया है।
राजीव कुमार को बचाना तो ममता का एक मकसद था। दूसरा मकसद राजनीतिक था। भाजपा विरोधी खेमे में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की होड़ मची है। तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद से कांग्रेस टॉप गियर में है। यह बात प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों ममता बनर्जी और मायावती को रास नहीं आ रही। ममता ने इस धरने से संदेश दिया है कि राहुल और मायवती जितने दलों को जोड़ सकते हैं उससे ज्यादा दलों को वे एक साथ ला सकती हैं। इसके लिए उन्होंने देश के संघीय ढांचे जैसे नाजुक मुद्दे को दांव पर लगा दिया। जरा इस स्थिति पर गौर कीजिए कि राज्यों में केंद्रीय एजेंसियों और बलों के लोगों को राज्य पुलिस घेर ले, सेवारत पुलिस अधिकारी नेताओं के साथ धरने पर बैठे और अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के केंद्र सरकार के निर्देश को राज्य सरकार मानने से इनकार कर दे। क्या इससे संघीय ढ़ांचा मजबूत होगा?कोई पार्टी राज्य या केंद्र में हमेशा सत्ता में नहीं रहने वाली। यह किस तरह की व्यवस्था बनाने की कोशिश हो रही है। ज्यादा चिंता इस बात से होती है कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी जो सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में रही है और जिसके सत्ता में वापसी की संभावना हमेशा बनी रहेगी वह ऐसी राजनीति का समर्थन करती है। कल्पना कीजिए कि यूपीए के समय जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से दो दिन नौ नौ घंटे पूछताछ हुई उस समय गुजरात की पुलिस पूछताछ करने वालों को हिरासत में ले लेती तो क्या होता?
आमतौर पर भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के किसी भी कार्यक्रम में शामिल होने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी( सीपीएम) ममता के इस धरने से अलग रही। पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने जो कहा वह सच के काफी नजदीक है। उनके मुताबिक इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से ममता और भाजपा दोनों को राजनीतिक लाभ हो रहा है। हालांकि, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इसमें दोनों की मिलीभगत है। यह तो सही है कि इस लड़ाई से पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामदल हाशिए पर खिसकते जा रहे हैं। राज्य में अब तृणमूल और भाजपा की सीधी लड़ाई है। ममता इस राजनीतिक विमर्ष को बंगाल तक सीमित नहीं रखना चाहती हैं। वे इसे राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य देना चाहती हैं कि, भाजपा से लड़ना उन्हें ही आता है। वही भाजपा को शिकस्त दे सकती हैं। पर किसी एक मुद्दे का तात्कालिक लाभ लेने के लिए या कहें कि बहती गंगा में हाथ धोने के लिए तैयार होने का मतलब कतई नहीं है कि वे सब लोग ममता बनर्जी को राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का प्रतिद्वन्द्वी मानने को तैयार हो जाएंगे। यह लड़ाई अभी शुरू हुई है।