प्रदीप सिंह
पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के बेड़े पर आतंकवादी हमले के बाद देश में भारी आक्रोश है। पर साथ ही लोगों ने अभी तक धैर्य का भी परिचय दिया है। इस जन आक्रोश और धैर्य का देश के हुक्मरानों को एक ही संदेश है कि सुविधाजनक तटस्थता का समय चला गया है। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता क्रांतिगीत बन गई थी। उसकी एक पंक्ति है- ‘दो राय, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो।‘ जन आक्रोश का घर्घर नाद पूरे देश में गूंज रहा है। सबको प्रतीक्षा और अपेक्षा है कि सरकार कुछ करेगी। जिस दिन यह प्रतीक्षा और अपेक्षा निराशा और हताशा में बदलेगी उस दिन दिनकर की कविता की अगली पंक्ति सुनाई देगी- ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।‘
भारत पाक के रिश्ते में पिछले सत्तर साल में कई उतार चढ़ाव आए हैं। दोनों देश चार युद्ध भी लड़ चुके हैं। शांति वार्ता के कितने दौर चले इसकी गिनती करना कठिन है। पर हालात में सुधार तो छोड़िए ठहराव भी नहीं आया। अब हमें इस नीति को तिलांजलि दे देना चाहिए कि पाकिस्तान में स्थिरता और उसकी समृद्धि हमारे लिए अच्छी बात है। एक बार फिर दिनकर जी की कविता का सहारा लें तो ‘वीरता नहीं तो सभी विनय क्रंदन है।‘सीआरपीएफ के जवानों पर आत्मघाती हमला करके पाकिस्तान ने युद्ध की घोषणा की है। अब हमें तय करना है कि क्रंदन करेंगे या पाकिस्तान का मानमर्दन। यह समय आश्वासनों और धमकियों का नहीं है।यही नहीं सरकार के पास समय भी ज्यादा नहीं है। कुछ ही दिन में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी। उसके बाद आज के राजनीतिक माहौल में यह अपेक्षा करना बेमानी होगा कि विपक्षी दल सरकार के प्रति इस मुद्दे पर हमलावर नहीं होंगे।
दरअसल आम लोगों से ज्यादा विपक्षी दलों को इंतजार है कि सरकार का अगला कदम क्या होगा? चुनाव का समय है इसलिए विपक्षी दल थोड़ा संयम दिखा रहे हैं। अभी सारे दल कह रहे हैं कि यह देश की सुरक्षा और सम्मान का मसला है इसलिए इस पर राजीनति नहीं होना चाहिए। पर तय मानिए कि अगले तीन महीने इसी पर राजनीति होगी। भारत की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई तो विपक्ष इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ेगा। पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई हो गई तो सत्तारूढ़ दल इसे मुद्दा बनाएगा और विपक्ष कहेगा यह नैतिक है। जहां तक मतदाता की बात है तो कार्रवाई न होने की हालत में वह सरकार के खिलाफ और विपक्ष के साथ होगा। कार्रवाई हो गई तो वह सत्तारूढ़ दल के अलावा किसी की ओर देखेगा भी नहीं। भाजापा और सरकार के समर्थकों में एक वर्ग है जो राम मंदिर निर्माण शुरू करने, संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने और समान नागरिक संहिता लागू करने के मुद्दे पर पांच साल में कुछ न होने से निराश है। उसे नहीं लगता कि भारत पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई करेगा।
ऐसे भी लोग हैं जो मानते हैं कि सरकार ने देर कर दी है। साल 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ही सरकार को समझ लेना चाहिए था कि पाकिस्तान उसकी सेना और वहां बैठे आतंकी संगठन इसका जवाब देंगे। यदि पहले से तैयारी होती तो सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के कुछ ही घंटों में भारत जवाबी कार्रवाई कर सकता था। उस समय पाकिस्तान को तैयारी का मौका नहीं मिलता। दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो हमले के बाद से प्रधानमंत्री की बातों और उसमें झलकते आत्मविश्वास से मुतमइन हैं कि जल्दी ही कुछ बड़ा होगा। जब प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंच से यह बोलें कि जो आग आपके दिल में जल रही है वही मेरे दिल में भी जल रही है। यह भी कि यह हमला करके पाकिस्तान ने बहुत बड़ी गलती कर दी है।
इस हमले के बाद सरकार ने कई कदम उठाए हैं। पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया गया है। पूरी दुनिया में पाकिस्तान को घेरने के लिए कूटनीतिक कदम उठाए गए हैं। भारत को चीन के अलावा ज्यादातर देशों से समर्थन मिल रहा है। न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका ने अपनी संसद में पाकिस्तान के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया है। इजरायल ने कहा कि वह पाकिस्तान के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के लिए भारत को बिना शर्त और असीमित समर्थन देगा। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और जर्मनी जैसे बड़े देश भी भारत के समर्थन में आगे आए हैं। ज्यादातर ने कहा है कि भारत को इस हमले का जवाब देने का अधिकार है। इसके अलावा कश्मीर में अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा और सरकारी सुविधाएं खत्म कर दी गई है। सेना ने कहा कि जो बंदूक उठाएगा वह मारा जाएगा। पर देश का जनमानस इससे संतुष्ट होने वाला नहीं है।
सवाल है कि इस अविश्वास और कुछ न होने की आशंका की वजह क्या है? वजह यह है कि इस देश के लोग 26 नवम्बर, 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले और दिसम्बर, 2001 में संसद पर हुए हमले की घटना भूले नहीं हैं। उस समय भी बदले की कार्रवाई और आर-पार की लड़ाई की बात हुई थी। पर उसके बाद कुछ हुआ नहीं। एक हमले के समय कांग्रेस की सरकार थी और दूसरे हमले के समय भाजपा की। तब और अब में ऐसा क्या बदल गया है कि लोग कुछ होने की उम्मीद करें। तो दो बड़े बदलाव हुए हैं। एक, दुनिया की भू-राजनीतिक परिस्थिति में बड़ा बदलाव आया है। उस समय भारत पाक के बीच किसी भी तनाव की घटना के बाद दुनिया के देश तुरंत सक्रिय हो हो जाते थे कि दोनों देश परमाणु हथियार सम्पन्न देश हैं, इसलिए बात बढ़ने न पाए। इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। दूसरा, बदलाव मोदी की छवि और उनसे अपेक्षा है। साल 2016 में हुई सर्जिकल स्ट्राइक ने अपेक्षा का स्तर बढ़ा दिया है। देश एक बड़े वर्ग को उम्मीद है कि पाक के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई होगी। इसी उम्मीद के कारण धैर्य बना हुआ है।
जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है, मां के किरीट पर ही यह वार हुआ है।
अब जो सिर पर आ पड़े नहीं डरना है, जनमें हैं तो दो बार नहीं मरना है।
ये पंक्तियां दिनकर की ‘परशुराम की परीक्षा’ की हैं। यह युद्धोन्माद पैदा करने के लिए नहीं है। पर सम्मान और शांति से जीने का अधिकार हर देश को है। सीआरपीएफ के चालीस जवानों की चिता की आग देश के हुक्मरानों से सवाल पूछ रही है कि हम कब तक कुर्बानी देते रहेंगे। यह भी कि हमारी कुर्बानी का हासिल क्या है? यह समय हमारे वीर जवानों की कुर्बानी का हिसाब लेने का समय है। चुनाव आएंगे-जाएंगे पर देश रहेगा। इस समय चुनाव की चिंता छोड़कर सिर्फ और सिर्फ देश के बारे में सोचने का समय है। यह बात आम लोगों को समझ में आ रही है, राजनीतिक दल भी समझ जांय तो अच्छा होगा।