हर तरफ जब उत्तराखंड के हल्द्वानी की चर्चा हो रही है, तब आपको जोशीमठ के उन हजारों लोगों का दर्द भी जानना चाहिए जो हल्द्वानी के लोगों की तरह ही अपने मकानों को बचाने के लिए लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, कैंडल मार्च निकाल रहे हैं और सरकार और अदालतों से अपने वैध मकानों को बचाने की गुहार भी लगा रहे हैं।जोशमीमठ के संकट पर नजर डालना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि गुरुवार को दिल्ली-एनसीआर के इलाके में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे। अगर ऐसा ही कोई भूकंप उत्तराखंड में आ गया तो जोशीमठ में भयंकर तबाही मच सकती है। ऐसा ही दावा कांग्रेस पार्टी ने भी किया था। उनका कहना था कि 2 रिक्टर स्केल के भूकंप भी वहां हालात बिगाड़ सकता है। जोशीमठ के लोगों के सामने फिलहाल अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। वो हर समय किसी अनहोनी और आपदा के ख़तरे को लेकर डरे हुए हैं और अपने घर-परिवार और शहर को बचाने की गुहार लगा रहे हैं।

9 से ज्यादा इलाकों में 561 मकानों में दरारें

जोशीमठ के सभी नौ वार्ड- परसारी, रविग्राम, सुनील, अपर बाजार, नृसिंह मंदिर, मनोहर बाग, सिंहधार, मारवाड़ी और गांधी नगर में किसी न किसी मकान में दरारें आ गई हैं। साथ ही दरारें लगातार चौड़ी हो रही हैं। मतलब जोशीमठ के 9 से ज्यादा इलाकों के 561 घरों में दरारें आ गई हैं। कई जगहों पर जमीन धंस गई है तो कई जगह दीवारों से अचानक पानी निकल रहा है। जमीन धंसने की इन घटनाओं से लोग डरे हुए हैं। कई ऐसे हैं जो घर छोड़ने को मजबूर हैं।

जोशीमठ बद्रीनाथ नेशनल हाई-वे से लगे मारवाड़ी इलाके में दरारों से अचानक पानी निकलने लगा है। इसके अलावा जोशीमठ के मुख्य डाकघर में दरारें आ गई हैं, जिसके बाद उसे दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया है। ज्योतिर्मठ परिसर के भवनों और लक्ष्मी नारायण मंदिर के आसपास बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। इसके बाद आसपास रहने वाले लोगों ने अपने घरों को खाली कर दिया। प्रशासन ने कुछ परिवारों को सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया है। इसके बावजूद बहुत-से लोग इस कड़कड़ाती ठंड में खुले स्थानों पर रहने को मजबूर हैं।

प्रशासन ने 130 मकान चिह्नित किए हैं इनमें 700 से ज्यादा लोग रहते हैं। दरारें इतनी चौड़ी हो गई हैं कि देखकर ही लगता है, धरती कभी भी फट जाएगी। भूमि मांउट ब्यू होटल के आगे बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर दरारें बढ़ने के साथ भूमि के अंदर से डरावनी आवाजें सुनाई देने से लोग डर गए हैं।

फिलहाल स्थिति यह है कि 561 घरों में दरारे हैं। अबतक 34 परिवार शिफ्ट कराए जा चुके हैं। इसी के साथ जेपी कंपनी कॉलोनी को खाली कराया गया है। 66 परिवार ऐसे हैं जो पलायन कर चुके हैं। सरकार ने पहले ही कहा था कि पहले उन लोगों को शिफ्ट किया जाएगा जिनके घरों में बड़ी दरारे हैं। इस पूरी घटना को देखकर प्रशासन ने हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। 8171748602 में कॉल करके प्रभावित लोग मदद मांग सकते हैं।

NTPC की टनल को बताया जा रहा वजह

जोशीमथ के लोगों का कहना है कि उनके घरों में आ रही इन दरारों की वजह NTPC की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना की टनल है। लोग इसके निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए अब जोशीमठ में किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है। NTPC का काम भी बंद करवाया गया है। इसी के साथ एशिया की सबसे लंबी रोपवे सेवा को भी पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। इस रोप-वे के टॉवर नंबर-1 पर जमीन धंसने के बाद ये फैसला लिया गया।

प्रदर्शनकारियों और प्रशासन के बीच हुई झड़प

जोशीमठ में आज जोशीमठ बंद रहा। चक्काजाम को खत्म करवाने के लिए प्रशासन के लोग पहुंचे। इनको देखकर लोगों का गुस्सा सातवें आस्मांन पर पहुंच गया क्योंकि पीछले एक साल से अधिक समय से यहां भू धसाव हो रहा है लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। भीड़ का आक्रोश देखने के बाद प्रसाशन भी पीछे हट गया और आज अभी भी आंदोलन जारी है। लोग सरकार की कार्यशैली से नाराज हैं और प्रशासन के कामों पर सवाल उठा रहे हैं।

बिगड़ती जा रही स्थिति

इस बीच जमीन फाड़कर निकलने वाले पानी का जलस्तर कल से दोगुना हो चुका है। जोशीमठ मारवाड़ी वार्ड में दोपहर बाद जमीन फाड़कर पानी निकलने से जहां लोग दहशत में हैं। छह से सात जगहों पर जमीन के अंदर से पानी निकलता हुआ दिखाई दे रहा है।

धार्मिक, सामरिक, पर्यटन और पर्यावरण के दृष्टि से महत्वपूर्ण जोशीमठ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में सीमांत गांव माणा को देश का पहला गांव घोषित किया है। यह जोशीमठ तहसील में आता है। उस लिहाज से जोशीमठ देश का पहला शहर हुआ। जोशीमठ में आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश के चार कोनों में बनाईं 4 पीठों में से एक ज्योतिर्पीठ है। ये उत्तराखंड की प्राचीन राजधानी है, जहां से कत्यूरी वंश ने शुरू में अपनी सत्ता चलाई थी। यहीं से सर्वोच्च तीर्थ बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा की औपचारिकताएं पूरी होती हैं क्योंकि शंकराचार्य की गद्दी यहीं विराजमान रहती हैं।

फूलों की घाटी और नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व का बेस भी यही नगर है। हेमकुंड यात्रा भी यहीं से नियंत्रित होती है। नीती-माणा दर्रे और बाड़ाहोती पठार पर चीनी हरकतों पर इसी नगर से नजर रखी जाती है। चीनी सेना बाड़ाहोती की ओर से घुसपैठ करने का प्रयास करती रहती है। उस पर नजर रखने के लिए भारत तिब्बत पुलिस की बटालियन और उसका माउंटेंन ट्रेनिंग सेंटर यहीं है।

पहले हुए सर्वे में क्या बातें सामने आई थीं?

राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने साल 2022 में वैज्ञानिकों की टीम गठित कर जोशीमठ शहर का भूगर्भीय सर्वेक्षण कराया था, जिसमें राज्य सरकार के पास रिपोर्ट भेजी गई। उसमें घरों में दरारें पड़ने का कारण भू-धंसाव है। वैज्ञानिकों ने कहा कि जोशीमठ शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं है। यह शहर ग्लेशियर के रॉमेटेरियल पर है। ग्लेशियर या सीवेज के पानी का जमीन में जाकर मिट्टी को हटाना, जिससे चट्टानों का हिलना, ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने से जोशीमठ का धंसाव बढ़ा है।

उत्तराखंड के ज्यादातर ऊंचाई वाले क्षेत्रों के गांव ग्लेशियर के मटेरियल पर बसे हुए हैं। आज जहां उत्तराखंड के गांव मौजूद हैं। वहां कभी करोड़ों साल पहले ग्लेशियर थे। रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ। डोभाल के मुताबिक, जोशीमठ शहर की अगर बात करें तो यह शहर भी ग्लेशियर के रॉ मटेरियल पर बसा शहर है।

डॉक्टर डोभाल कहते हैं कि जोशीमठ शहर के नीचे एक तरफ अलकनंदा तो दूसरी तरफ धौली गंगा बह रही है और दोनों ही लगातार नीचे से जमीन काट रही हैं तो वहीं विद्युत परियोजनाओं की बनने वाली सुरंगें भी यहां जमीन धंसने की एक वजह है।

भूवैज्ञानिक, इंजीनियर और अफसरों की 5 सदस्यीय टीम ने पहले भी दरारों की जांच थी। इस पैनल ने पाया कि जोशीमठ के कई हिस्से मानव निर्मित और प्राकृतिक कारणों से डूब रहे हैं। (एएमएपी)