कांग्रेस में चुनाव के खिलाफ लहर!
कहा जाता है कि कई बार पार्टी के जानकार राहुल गांधी को बता चुके हैं कि सीडब्ल्यूसी के लिए चुनाव आगामी चुनावों में एकता की भावना को चोट पहुंचा सकते हैं। ऐसे समझें- अगर डीके शिवकुमार या सिद्धारमैया जीतते हैं या हार जाते हैं, तो इसका असर कर्नाटक के सियासी समीकरण पर पड़ेगा। यही हालात राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर भी पड़ सकते हैं।

इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि सीडब्ल्यूसी चुनाव के खिलाफ खड़े नेता अलग ही आशंका जता रहे हैं। उनका मानना है कि चुने गए सीडब्ल्यूसी सदस्य पॉवर सेंटर के तौर पर उभर सकते हैं और खड़गे की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। खास बात है कि खड़गे पहले ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से दबे होने के आरोप झेलते रहे हैं।
इतिहास समझें
सीडब्ल्यूसी के बीते दो चुनाव यानी तिरुपति 1992 के दौरान पीवी नरसिम्हा राव पार्टी प्रमुख थे। वहीं, कलकत्ता 1997 के समय सीताराम केसरी पार्टी की कमान संभाल रहे थे। उस दौरान चुने गए अर्जुन सिंह, शरद पवार, अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता ताकतवर के तौर पर उभरे। हालांकि, राव ने चुने नेताओं को नामित बताकर एक सियासी दांव खेला, जिससे उनका कद कम किया जा सके।
कहा जाता है कि यह उपाय भी ज्यादा दिन चल नहीं सका और इसकी वजह अयोध्या में विध्वंस और बाद में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को बताया गया। कांग्रेस में ही जंग छिड़ गई और 1995 में पार्टी टूट गई। उस दौरान अर्जुन सिंह, एनडी तिवारी, शीला दीक्षित समेत कई दिग्गजों ने कांग्रेस (तिवारी) का गठन किया था।
दोगुने हैं उम्मीदवार
माना जा रहा है कि सीडब्ल्यूसी की 23 सीटों के लिए उम्मीदवारों की संख्या 50 से ज्यादा है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि अगर गांधी परिवार के तीन सदस्यों को सीडब्ल्यूसी में लाया जाता है, तो यह गिनती घटकर 20 पर आ जाएगी। उम्मीदवारों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कमलनाथ, जयराम रमेश, तारिक अनवर, अंबिका सोनी, दिग्विजय सिंह, मीरा सिंह, पवन बंसल, सिद्दारमैया, रमेश चेन्नीथला, ओमान चंडी, मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद, शैलजा समेत कई नाम शामिल हैं।
इनके अलावा G23 में शामिल रहे नेता शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा और पृथ्वीराज चव्हाण जैसे दिग्गजों का नाम भी है। 50 से कम उम्र के मामले में सचिन पायलट, दीपेंद्र हुड्डा, जितेंद्र सिंह और रणदीप सिंह सुरजेवाला भी दौड़ में हो सकते हैं। (एएमएपी)



