अजय विद्युत।
हिमालयी क्षेत्र के चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ …सैलानियों के लिए असीमित आकर्षण तो श्रद्धालुओं के ईश साक्षात्कार सदृश अनुभव। शास्त्रों में इसे पृथ्वी और स्वर्ग एकाकार होने का स्थल भी माना गया है। चारों धाम अक्षय तृतीया को खुलते हैं और दीपावली के दो दिन बाद भाईदूज के दिन बंद हो जाते हैं। तीर्थयात्री सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) और गंगोत्री (गंगा) का दर्शन करते हैं। यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालु केदारेश्वर पर जलाभिषेक करते हैं।
यमुनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। यमुनोत्री का मंदिर बांदरपूंछ के पश्चिमी छोर पर है।
दिव्य शिला का पूजन
यमुनोत्री मंदिर के समीप गर्म पानी के कई सोते हैं। इनमें से सूर्य कुंड प्रसिद्ध है। कहा जाता है अपनी बेटी को आशीर्वाद देने के लिए भगवान सूर्य ने गर्म जलधारा का रूप धारण किया। श्रद्धालु इसी कुंड में चावल और आलू कपड़े में बांधकर कुछ मिनट तक छोड़ देते हैं, जिससे यह पक जाता है। पके हुए इन पदार्थों को तीर्थयात्री प्रसादस्वरूप घर ले जाते हैं। सूर्य कुंड के नजदीक ही एक शिला है। इसे ‘दिव्ये शिला’ के नाम से जाना जाता है। यमुना जी की पूजा करने से पहले इस दिव्य शिला का पूजन श्रद्धालु करते हैं।
नजदीक ही ‘जमुना बाई कुंड’ है, जिसमें पूजा से पहले पवित्र स्नान किया जाता है। इस कुंड का पानी हल्का गर्म होता है। यमुनोत्री के पुजारी और पंडा पूजा करने के लिए गांव खरसाला से आते हैं जो जानकी बाई चट्टी के पास है।
सख्ती नहीं बरतता यम
यहां स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दी में करवाया था। यमुना का उद्गम स्थिल यमुनोत्री से लगभग एक किलोमीटर दूर 4,421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री ग्लेशियर है।
पौराणिक कथा के अनुसार यमुना सूर्य की बेटी थी और यम उनका बेटा था। यही वजह है कि यम अपने बहन यमुना में श्रद्धापूर्वक स्नान किए हुए लोगों के साथ सख्ती नहीं बरतता है।
खुलने का समय:
मंदिर सुबह 6 बजे से लेकर रात 8 बजे तक खुला रहता है। सुबह 6:30 और शाम 7:30 बजे आरती होती है। जन्माष्टमी और दिवाली पर यहां विशेष पूजा की जाती है।
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