अजय विद्युत।
भारत की पवित्र और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण गंगा नदी का उद्गम स्थल है गंगोत्री। समुद्र तल से 3,140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री से ही भागीरथी नदी निकलती है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है।
भागीरथी नदी के बाएं किनारे पर सफेद पत्थरों से बने गंगोत्री मंदिर की ऊंचाई लगभग 20 फीट है। फिर 1935 में राजा माधोसिंह ने इस मंदिर का पुनरुद्धार किया। फलस्वरूप मंदिर की बनावट में राजस्थानी शैली की झलक मिल जाती है। मंदिर के समीप ‘भागीरथ शिला‘ है जिसपर बैठकर उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस मंदिर में देवी गंगा के अलावा यमुना, भगवान शिव, देवी सरस्वती, अन्नपूर्णा और महादुर्गा की भी पूजा की जाती है।
भारतीय संस्कृति में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म के लोग चंद्र पंचांग के अनुसार अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिण्डदान करते हैं। मंदिर में प्रार्थना–पूजा के बाद श्रद्धालु भगीरथी नदी के किनारे बने घाटों पर स्नान आदि के लिए जाते हैं। तीर्थयात्री भागीरथी नदी के पवित्र जल को अपने साथ घर ले जाते हैं। शुभ कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। गंगोत्री से लिया गया गंगा जल केदारनाथ और रामेश्वरम के मंदिरों में भी अर्पित किया जाता है।
पौराणिक कथाएं
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ के नाम पर इस नदी का नाम भागीरथी रखा गया। कथाओं में यह भी कहा गया है कि राजा भागीरथ ही कठिन तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। गंगा नदी गोमुख से निकलती है।
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि सूर्यवंशी राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ कराने का फैसला किया। उनका घोड़ा जहां–जहां गया उनके 60,000 बेटों ने उन जगहों को अपने कब्जे में लेते गए। इससे देवताओं के राजा इंद्र चिंतित हो गए। ऐसे में उन्होंने इस घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के बेटे मुनिवर का अनादर करते हुए घोड़े को छुड़ा ले गए। इससे कपिल मुनि को काफी दुख पहुंचा। उन्होंंने राजा सगर के सभी बेटों को शाप दे दिया जिससे वे राख में तब्दील हो गए। राजा सगर के क्षमा याचना करने पर कपिल मुनि द्रवित हो गए और उन्होंने राजा सगर को कहा कि अगर स्वर्ग में प्रवाहित होने वाली नदी पृथ्वी पर आ जाए और उसके पावन जल का स्पर्श इस राख से हो जाए तो उनका पुत्र जीवित हो जाएगा। लेकिन राजा सगर गंगा को जमीन पर लाने में असफल रहे। बाद में राजा सगर के पुत्र भागीरथ ने गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल हो गए। गंगा के तेज प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया। फलत: भगवान शिव ने गंगा को अपने जटा में लेकर उसके प्रवाह को नियंत्रित किया। इसके उपरांत गंगा जल के स्पर्श से राजा सगर के पुत्र जीवित हुए।
पूजा के कार्यक्रम
मंदिर की गतिविधि तड़के चार बजे से शुरू हो जाती है। सबसे पहले ‘उठन’ (जागना) और ‘श्रृंगार’ की विधि होती है जो आम लोगों के लिए खुला नहीं होता है। सुबह 6 बजे की मंगल आरती भी बंद दरवाजे में की जाती है। 9 बजे मंदिर के पट को ‘राजभोग’ के लिए 10 मिनट तक बंद रखा जाता है। सायं 6.30 बजे श्रृंगार हेतु पट को 10 मिनट के लिए एक बार फिर बंद कर दिया जाता है। इसके उपरांत शाम 8 बजे राजभोग के लिए मंदिर के द्वार को 5 मिनट तक बंद रखा जाता है। ऐसे तो संध्या आरती शाम को 7.45 बजे होती है, लेकिन सर्दियों में 7 बजे ही आरती करा दी जाती है। तीर्थयात्रियों के लिए राजभोग, जो मीठे चावल से बना होता है, सशुल्क उपलब्ध रहता है।
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