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हिमालयी क्षेत्र के चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ …सैलानियों के लिए असीमित आकर्षण तो श्रद्धालुओं के ईश साक्षात्कार सदृश अनुभव। शास्त्रों में इसे पृथ्वी और स्वर्ग एकाकार होने का स्थल भी माना गया है। चारों धाम अक्षय तृतीया को खुलते हैं और दीपावली के दो दिन बाद भाईदूज के दिन बंद हो जाते हैं।


 

भगवान श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर एक सुरम्य प्रकृति की शोभा है, उसकी माँग का सिन्दूर है। नीचे मंदाकिनी का कल-कल निनाद, ऊपर पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादरें, रात को छिटकती चन्द्रमा की शीतल चाँदनी, मंदिर के घंटा घड़ियाल का मधुर संगीत, वेदमन्त्रों के घोष और बीच-बीच में हर-हर महादेव तथा ‘नम: शिवाय’ की ध्वनि, रोम-रोम में साक्षात शिवलोक का अनुभव कराती है।

A Complete Guide to Kedarnath Yatra in Uttarakhand

ऋषिकेश से कीर्ति नगर और फिर गुप्तकाशी के पास फाटा। गुप्तकाशी से थोड़ा आगे गौरीकुण्ड से 14 किलोमीटर कठिन चढ़ाई कर केदारनाथ पहुंचना होता है। यहां एक तिकोनी शिला के रूप में यहाँ भगवान् शिव विराजमान हैं। केदारनाथ में भगवान शिव को बिल्वपत्र अर्पण किया जाता है।

शिवजी जब पृथ्वी में समाये तो उनके हाथ जिस जगह निकले उसे तुंगनाथ कहते हैं, जहाँ शिवजी का मुख निकला वह जगह रुद्रनाथ कहलाती है। कल्पनाथ में भगवान शिव की जटाओं का पूजन होता है। मद्यमहेश्वर में अन्य अंगों का पूजन होता है। केदारनाथ, मद्यमहेश्वर, तुंगनाथ, कल्पेश्वर और रुद्रनाथ ये पंच केदार कहलाते हैं। केदारनाथ का मन्दिर पाण्डवों ने बनवाया था जिसके अब भग्नावशेष ही बाकी हैं। वर्तमान मंदिर शंकराचार्यजी ने लगभग 800 वर्ष पूर्व बनवाया था। इस मन्दिर के बाहर नन्दी की एक बहुत भव्य प्रतिमा है। मन्दिर के अन्दर गर्भगृह में तिकोनी शिला के रूप में भगवान् शिव विराजमान हैं।

कहा जाता है कि पाण्डव जब हिमालय की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो भगवान शिव ने एक बैल का रूप धरकर इस पहाड़ पर अन्य पशुओं में छिपने का प्रयास किया। भीमसेन ने भगवान शिव को वृषभ के रूप में भी पहचान लिया और उनको पकड़ने का प्रयास करने लगे। शिवजी धरती में समा गये, उनके सिर और सींग पशुपतिनाथ (नेपाल) में निकले, और उनके पैर जम्मू-कश्मीर में सीमावर्ती पुंछ क्षेत्र में निकले, पुंछ में बूढ़ा शिव का मंदिर है जहां अब भी पूजा अर्चना होती है। भीम का हाथ वृषभरूप शिव की पीठ पर पड़ा था। वही हिस्सा एक तिकोनी शिला के रूप में केदारनाथ मन्दिर में पूजा जाता है।

Madhyamaheshwar Temple in Rudraprayag - A Quick & Easy Travel Guide

शिवजी के धरती में समा जाने की एक प्रचलित कथा और भी है। शिवजी जब पृथ्वी में समाये तो उनके हाथ जिस जगह निकले उसे तुंगनाथ कहते हैं, जहाँ शिवजी का मुख निकला वह जगह रुद्रनाथ कहलाती है। कल्पनाथ में भगवान शिव की जटाओं का पूजन होता है। मद्यमहेश्वर में अन्य अंगों का पूजन होता है। केदारनाथ, मद्यमहेश्वर, तुंगनाथ, कल्पेश्वर और रुद्रनाथ ये पंच केदार कहलाते हैं। केदारनाथ का मन्दिर पाण्डवों ने बनवाया था जिसके अब भग्नावशेष ही बाकी हैं। वर्तमान मंदिर शंकराचार्यजी ने लगभग 800 वर्ष पूर्व बनवाया था। इस मन्दिर के बाहर नन्दी की एक बहुत भव्य प्रतिमा है। मन्दिर के अन्दर गर्भगृह में तिकोनी शिला के रूप में भगवान् शिव विराजमान हैं।

समुद्र तल से 3553 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मन्दिर अक्षय तृतीया को खुलता है, जो आमतौर पर अप्रैल के अन्त या मई के शुरू में होती है, और भाईदूज को (अक्तूबर/नवम्बर में) बन्द हो जाता है। भगवान् केदारनाथ की पालकी गुप्तकाशी के नजदीक उखिमठ में ले जायी जाती है। केदारनाथ मन्दिर के पास ही आदिगुरु शंकराचार्य जी की समाधि भी स्थापित है। मन्दिर के पास यात्रियों के रहने की अच्छी व्यवस्था है और एक छोटा सा बाजार भी है।

 


द्वादश ज्योतिर्लिंग

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केदारनाथ हमारे बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ‘हिमालये तु केदार’ (द्वादश ज्योतिर्लिंग) इसी ज्योतिर्लिंग के साथ बद्री विशाल क्षेत्र हमारे चार धामों में एक धाम है।

मुख्य चार धाम और ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग और उसके रहस्य -(12 JYOTIRLINGA NAMES AND PLACES) - YouTube

हमारे चार धाम और बारह ज्योतिर्लिंग हैं। हर धाम के साथ एक-एक ज्योतिर्लिंग है।

  1. उत्तर का धाम बद्रीविशाल और उसका ज्योतिर्लिंग केदारनाथ है।
  2. पश्चिम का धाम द्वारका और उसका ज्योतिर्लिंग सोमनाथ है।
  3. पूर्व का धाम श्रीजगन्नाथ पुरी और उसका ज्योतिर्लिंग श्री वैधनाथ है।
  4. दक्षिण का धाम है श्री रामेश्वरम् और यहीं भगवान् श्रीराम ने शिवजी को स्थापित किया। इस प्रकार श्री रामेश्वरम् धाम भी है और साथ में ज्योतिर्लिंग भी है।

चलते-चलते बाकी आठ ज्योतिर्लिंगों को भी याद कर लिया जाए। ये हैं: श्री शैलम-मल्लिकार्जुन, उज्जैन में महाकाल और उसी के पास ओंकारेश्वर, द्वारका के पास नागेश्वरम्, महाराष्टÑ में त्र्यंबकेश्वर, भीमा शंकर, और घुष्मेश्वर में ये तीन ज्योतिर्लिंग हैं। और काशी में विश्वनाथ तो हैं ही। इन बारह ज्योतिर्लिंगों का स्मरण मात्र सात जन्म के पाप नष्ट कर देता है।


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