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हिमालयी क्षेत्र के चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ …सैलानियों के लिए असीमित आकर्षण तो श्रद्धालुओं के ईश साक्षात्कार सदृश अनुभव। शास्त्रों में इसे पृथ्वी और स्वर्ग एकाकार होने का स्थल भी माना गया है। चारों धाम अक्षय तृतीया को खुलते हैं और दीपावली के दो दिन बाद भाईदूज के दिन बंद हो जाते हैं।


 

बद्रीनाथ का मन्दिर अलकनंदा नदी के तट पर समुद्र तल से 19204 फीट की ऊँचाई पर है। अलकनंदा का पानी बर्फ के समान ठंडा है और इसी के तट पर आदि काल से दो तप्तकुण्ड बहुत गरम पानी से भरे हुए हैं। मन्दिर में दर्शन करने से पूर्व इन कुण्डों में स्नान करने का विधान है।

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बद्रीनाथ मन्दिर बहुत पुराना है। भागवत् पुराण में भी इसका वर्णन है, जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण उद्धव से कहते हैं कि कलियुग में सिर्फ बद्रीकाश्रम में मिलेंगे। उन्होंने अपनी पादुकाएं उद्धव को दीं और कहा कि इन्हें बद्रीनाथ मन्दिर में पूजा के लिये रख दें। इन पादुकाओं की पूजा आज भी बद्रीनाथ के मन्दिर में होती है। बद्रीनाथ के मन्दिर के बारे में कथा यह है कि शंकराचार्य जी ने शलीग्राम शिला में भगवान् बद्रीनारायण की गढित की हुई मूर्ति अलकनंदा नदी के पास एक गुफा में पाई। इस मूर्ति को उन्होंने तप्त कुण्ड के पास एक गुफा में स्थापित किया। यह गुफा अब भी नारद गुफा के नाम से जानी जाती है। 16वीं सदी में गढ़वाल के राजाओं ने इस मूर्ति को आज के भव्य मन्दिर में स्थापित किया। यह मन्दिर पत्थर से बना है, इसके मुख्य द्वार पर बहुरंगी अत्यन्त आकर्षक सजावट की गयी है। यह मन्दिर प्रकृति के उस भूखण्ड में बसा है जो स्वयं एक प्राकृतिक मन्दिर सा है। जहाँ हर स्थान पर भगवान् को देखा और पूजा जा सकता है। अरुंधती ने अपने पति महर्षि वशिष्ठ से बद्रीनाथ के महत्व के बारे में पूछा तो वशिष्ठ ऋषि ने कहा कि अरुंधती, बड़े-बड़े पापी भगवान बद्रीनारायण के दर्शन मात्र से पुण्य लोक को प्राप्त कर लेते हैं। इनका एक दर्शन ही सारे वेदों के ज्ञान को देने वाला है। जिसे प्राप्त करके मनुष्य अज्ञान के अंधकार से निकल कर दैविक ज्ञान प्राप्त कर लेता है।

हमारे सारे तीर्थों में यही तीर्थ है जिसे आश्रम कहा जाता है। इस स्थान को तीर्थ बनाने में और पुनीत पावनता प्रदान करने में नर नारायण, महर्षि वशिष्ठ, कण्य, वेद व्यास, श्री गणेश और अनगिनत ऋषि मुनियों ने हजारों वर्षों तपस्या की।

Interesting Facts About Badrinath Dham | Char Dham Yatra Blog

इस मन्दिर के गर्भगृह में भगवान् विष्णु की शालिग्राम में बनी हुई मूर्ति है, भगवान् पद्मासन में बैठे हैं।

तुलसीदासजी विनय पत्रिका में लिखते हैं,

पुण्य वन शैलसरि बद्रिकाश्रम सदासीन पद्मासन एक रूपं।

सिद्ध योगिन्द्र वृन्दारकानंदप्रद, भद्रदायक दरस अति अनूपं।।

अर्थात्, जो पवित्र वन, पर्वत और नदियों से पूर्ण बद्रिकाश्रम में सदा पद्मासन लगाये एक रूप में बैठै (अटल) विराजमान हैं, जिनका अत्यन्त अनुपमदर्शन सिद्ध, योगीन्द्र और देवताओं को भी आनन्द और कल्याण देने वाला है।

बद्रीनाथ में शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा के अनुसार केरल के नम्बूदरी ब्राह्मण ही मुख्य पुजारी का काम करते हैं।

Uttarakhand Packages From Badrinath| Uttarakhand Tourism Development Board  | Department of Tourism, Government Of Uttarakhand, Indiaइन्हें रावल कहा जाता है।

कर्नल ए.के. गौड़ ने बताया कि हमने कर्पूर सिन्दूर आरती की थी और उसके बाद ‘स्वर्ण’ आरती हुई। यह भी आधे घंटे की थी। तभी गर्भ-गृह का दरवाजा खुला। वहाँ से एक पुजारी आरती लेकर जहाँ हम पाठ कर रहे थे वहाँ आया, उसने हम सभी को आरती दी। आरती के रूप में विष्णु कृपा का ये दृश्यरूप आश्चर्यजनक तो था ही बल्कि विश्वास परक भी था, भगवान् की महत्ता, प्रेम और अनुकंपा से पूर्ण था, कुछ ऐसा विश्वास होने लगा कि हम अगर सादगी से भगवान् पर भरोसा करें तो वो स्वयं ही हमारी रक्षा करते हैं।


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