apka akhbarप्रदीप सिंह ।

भारत के प्रधानमंत्री का पद बहुत बड़ा होता है। क्या कोई ऐसा राजनीतिक व्यक्ति हो सकता है जिसे प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया जाय और वह मना कर दे।


 

हालांकि इस बात की कल्पना थोड़ी कठिन है लेकिन ऐसा हो चुका है। जी हां, बात साल 1991 की है। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसकी सरकार बनी। प्रधानमंत्री बने पीवी नरसिंहराव। पर एक शख्स के इनकार करने के बाद।

Sonia Gandhi, Narasimha Rao had strained relations, says Congress minister | India News – India TV

कांग्रेस पार्टी ने नहीं किया था प्रधानमंत्री पद का फैसला

इस बात से जाहिर है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरसिंहराव कांग्रेस पार्टी की पहली पसंद नहीं थे। पर ऐसा कहना पूरी तरह से ठीक नहीं होगा। क्योंकि उस समय कांग्रेस अध्यक्ष और फिर प्रधानमंत्री पद किसे मिलेगा इसका फैसला कांग्रेस पार्टी ने नहीं किया था। कांग्रेस पार्टी को तो फैसले की सूचना दी गई थी। उस समय पार्टी में दिग्गज नेताओं की कमी नहीं थी जो प्रधानमंत्री बनने का दावा कर सकें। शरद पवार,  नारायण दत्त तिवारी, माधव राव सिंधिया और अर्जुन सिंह प्रबल दावेदार थे। पर इसे भारतीय लोकतंत्र की विडम्बना कहें या कुछ और कि देश के प्रधानमंत्री के पद का फैसला एक गैर राजनीतिक व्यक्ति की सलाह से एक गैर राजनीतिक व्यक्ति ने किया।

पीवी नरसिंहराव दिल्ली से अपना बोरिया बिस्तर बांध कर हैदराबाद जा चुके थे। वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़े थे। राजीव गांधी ने उन्हें राज्यसभा में भेजने से मना कर दिया था। वे नाराज होकर एक तरह से सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। पर कहते हैं न कि भावी को कौन रोक सकता है। पार्टी और वरिष्ठ नेताओं को इसकी सूचना दी गई कि पीवी नरसिंहराव भारत के अगले प्रधानमंत्री होंगे। शरद पवार अध्यक्ष पद के लिए, अर्जुन सिंह प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ना चाहते थे। एक समझौता हुआ जिसके तहत शरद पवार मैदान से हट गए और अर्जुन सिंह को पार्टी अध्यक्ष बनाने का आश्वासन दिया गया। राव इसके लिए मान गए। पर प्रधानमंत्री बनने के बाद वे इस वादे से मुकर गए। उसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई और उसमें पीवी नरसिंहराव को कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया।

जी हां, आपने ठीक सुना। चुनाव नतीजे आने के बाद नटवर सिंह ने सोनिया गांधी से कहा कि समय आ गया है कि वे इशारा करें कि देश का प्रधानमंत्री कौन होगा। फिर नटवर ने उन्हें सलाह दी कि वे पीएन हक्सर से बात करें। सोनिया ने कहा वे बताएंगी। उसके बाद उन्होंने कई कांग्रेस नेताओं से मशविरा किया। फिर नटवर सिंह से कहा कि वे पीएन हक्सर को लेकर दस जनपथ आएं।  पीएन हक्सर को दस जनपथ बुलाया गया। उन्होंने कहा कि इस पद के लिए वर्तमान उप राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा सबसे उपयुक्त होंगे। सोनिया ने मान लिया। उसके बाद नटवर सिंह और अरुणा आसफ अली को शंकर दयाल शर्मा के पास भेजा गया। अरुणा आसफ अली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं और शंकर दयाल शर्मा को अच्छी तरह जानती थीं। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी भूमिका के कारण देश में उनका बड़ा सम्मान था।

जो कहा वह अप्रत्याशित था

दोनों नेता डा. शंकर दयाल शर्मा के यहां पहुंचे। अरुणा आसफ अली ने उन्हें सोनिया गांधी के प्रस्ताव की जानकारी दी। डा. शर्मा ने दोनों की बात ध्यान से सुनी। पर उसके बाद उन्होंने जो कहा वह सामने बैठे दोनों नेताओं के लिए अप्रत्याशित था। उन्होंने कहा कि सोनिया जी का बहुत आभार कि उन्होंने मुझपर इतना भरोसा किया। उन्होंने कहा कि  भारत के प्रधानमंत्री का पद पूर्णकालिक काम है। मेरी उम्र और स्वास्थ्य ऐसा नहीं है कि मैं पूरा समय दे सकूं। इसलिए मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ हूं। दोनों नेता सुन्न से हो गए। लौटते समय रास्ते में भी उनकी यही स्थिति रही। नटवर सिंह अपनी किताब ‘वन लाइफ इज़ नॉट एनफ’ में इस पूरी घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि हम दोनों उपराष्ट्रपति का जवाब सुनकर स्तब्ध रह गए।

P V Narasimha Rao: An undermined and unsung reformer

प्रधानमंत्री बनने के बाद वादे से मुकर गए

नटवर सिंह और अरुणा आसफ अली ने लौटकर पूरी बात सोनिया गांधी को बताई। तो एक बार फिर हक्सर को बुलाया गया। इस बार उन्होंने पीवी नरसिंहराव का नाम सुझाया। पीवी नरसिंहराव दिल्ली से अपना बोरिया बिस्तर बांध कर हैदराबाद जा चुके थे। वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़े थे। राजीव गांधी ने उन्हें राज्यसभा में भेजने से मना कर दिया था। वे नाराज होकर एक तरह से सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। पर कहते हैं न कि भावी को कौन रोक सकता है। पार्टी और वरिष्ठ नेताओं को इसकी सूचना दी गई कि पीवी नरसिंहराव भारत के अगले प्रधानमंत्री होंगे। शरद पवार अध्यक्ष पद के लिए, अर्जुन सिंह प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ना चाहते थे। एक समझौता हुआ जिसके तहत शरद पवार मैदान से हट गए और अर्जुन सिंह को पार्टी अध्यक्ष बनाने का आश्वासन दिया गया। राव इसके लिए मान गए। पर प्रधानमंत्री बनने के बाद वे इस वादे से मुकर गए। उसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई और उसमें पीवी नरसिंहराव को कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया। याद दिला दें कि मृत्यु से पहले तक राजीव गांधी ही संसदीय दल के नेता के साथ साथ कांग्रेस अध्यक्ष भी थे।

‘सोनिया के व्यवहार का मेरे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है’

सोनिया गांधी ने नरसिंहराव को प्रधानमंत्री तो बना दिया लेकिन उन पर कभी विश्वास नहीं किया। इस बात से राव काफी परेशान रहते थे। परेशानी जब हद से ज्यादा हो गई तो उन्होंने दिसम्बर 1994 में नटवर सिंह को बुलाकर अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने कहा कि वे चाहें तो सोनिया से निपट सकते हैं पर वे ऐसा करना नहीं चाहते। नटवर सिंह लिखते हैं कि प्रधानमंत्री ने कहा कि सोनिया के व्यवहार के कारण मेरे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। तुम पता करो कि सोनिया गांधी मुझसे क्यों नाराज हैं।

राव ने सोनिया की हर इच्छा पूरी की पर…

Narasimha Rao felt 'insulted' by Sonia, says Natwar Singh - India News

नटवर सिंह लिखते हैं कि उन्हें इतना पता था कि राजीव गांधी हत्या की जांच की धीमी रफ्तार से सोनिया नाराज थीं। राव ने जांच से सम्बन्धित कागजों के साथ पी चिदम्बरम को उनके पास भेजा। फिर गृहमंत्री एसबी चह्वाण को जांच की प्रगति के बारे में बताने के लिए भेजा। उसके बाद खुद सारी फाइलें लेकर गए और बताया कि क्या कानूनी अड़चनें आ रही हैं। सोनिया गांधी सुनती रहीं, बोलीं कुछ नहीं। नटवर ने सुझाव दिया वे मोहम्मद युनुस से बात करें। उनसे  गांधी परिवार के करीबी रिश्ते हैं। राव तैयार हो गए। एक दिन रात नौ बजे सारी सुरक्षा छोड़कर राव मोहम्मद युनुस के घर पहुंचे। नटवर सिंह भी वहां थे। राव ने अपनी समस्या बताई। पर बात बनी नहीं। मोहम्मद युनुस ने क्या बात की यह तो पता नहीं लेकिन सोनिया गांधी और चिढ़ गईं।

राव और सोनिया के रिश्ते कभी सामान्य नहीं हो पाए। राव के मुताबिक उन्होंने सोनिया की हर इच्छा पूरी की। वे जो कहती थीं वे करते थे। पर सोनिया पर कोई असर नहीं पड़ा। सोनिया गांधी की इस बेरुखी का स्वाद तिवारी कांग्रेस के नेताओं को भी चखना पड़ा। पर उसका और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने का किस्सा फिर कभी।


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