प्रदीप सिंह।
एक सामान्य से संत पंडित धीरेंद्र शास्त्री जिन्हें बाबा बागेश्वर धाम कहा जाता है कि इन दिनों बड़ी चर्चा है। उनको लेकर बहुत तरह के बयान आ रहे हैं। बिहार में पांच दिनों तक उनकी कथा चली। एक संत ने अपनी कथा से सेक्युलरिज्म और जाति की राजनीति करने वाले पुरोधाओं को हिला दिया है। हालांकि, उन्होंने एक बार भी किसी जाति की बात नहीं की, किसी और मजहब की बात नहीं की। सिर्फ हिंदुओं से एक अपील की कि अपने घर में सनातन धर्म का ध्वजा लगाओ और माथे पर तिलक लगाओ, हिंदू राष्ट्र अपने आप बन जाएगा। बस इतनी सी बात कही और सबमें खलबली मच गई है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि कोई ऐसे कैसे बोल सकता है, देश में संविधान है। इस बात से कौन मना कर रहा है कि देश में संविधान नहीं है। कौन कह रहा है कि संविधान में अपनी बात कहने की आजादी नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है या केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक खास तबके को है, एक खास तरह की राजनीति करने वालों को है। क्या उसके विरोधी विचारधारा वालों को बोलने का अधिकार नहीं है। यह वही बिहार है जहां 90 के दशक में जब पूरे देश में राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर बनाने का आंदोलन चल रहा था तो उस समय भी जय श्रीराम के इतने नारे सुनने को आपको नहीं मिले होंगे जितने इन पांच दिनों में सुनने को मिले। उनके भक्तों का दावा है कि रोज 5-7 लाख लोग उनको सुनने और देखने के लिए उनके दरबार में आ रहे थे। वह बार-बार रोज अपील करते रहे कि दरबार में मत आइए, घर में बैठकर टीवी पर देखिए, इसके बावजूद लोगों की बेताबी इतनी थी कि 40 डिग्री से ज्यादा की गर्मी में लोग आकर घंटों बैठने और इंतजार करने को तैयार थे। यह है बदलाव।
स्वतः स्फूर्त थी भीड़
बिहार का कोई भी कितना भी बड़ा नेता हो उसकी यह हैसियत नहीं है कि इतनी बड़ी भीड़ जुटा सके। यह स्वतः आने वाली भीड़ थी। यह भीड़ ढो कर, जबरदस्ती या दबाव डालकर नहीं लाई गई थी। वे अपनी स्वेच्छा से और अपने साधन से आए। यह है बाबा बागेश्वर धाम का चमत्कार। हालांकि, वह कोई चमत्कारी पुरुष नहीं हैं। बार-बार कहते भी हैं कि अंधविश्वास में मत आना, मुझसे चमत्कार की उम्मीद मत करना लेकिन उनको इस रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है कि वह संप्रदायवादी हैं। वह संप्रदायों के बीच मतभेद पैदा कर रहे हैं, सांप्रदायिक विद्वेष पैदा कर रहे हैं। इस तरह की राजनीति और इस तरह की सोच ने पिछले 75 सालों में देश का बड़ा नुकसान किया है। इसी सोच में पिछले 8-9 सालों में बदलाव आ रहा है। जिन लोगों ने यह परिपाटी चलाई थी उनको यह बदलाव बर्दाश्त नहीं हो रहा है। सेक्युलर, लेफ्ट-लिबरल बिरादरी को समझ में नहीं आ रहा है कि इस बाबा को देखने-सुनने के लिए लाखों लोग क्यों आ रहे हैं। उनकी समझ में आएगा भी नहीं। जो आ रहे हैं वह निःस्वार्थ भाव से आ रहे हैं, जो कथा सुना रहा है वह निःस्वार्थ भाव से सुना रहा है। वह कोई राजनेता नहीं है, उसको चुनाव नहीं लड़ना है, उसको किसी से टिकट नहीं मांगना है, किसी को टिकट नहीं देना है। वह कोई व्यापार नहीं चला रहा है, वह धर्म की बात कर रहा है।
सत्यम शिवम सुंदरम की बात
धर्म की बात मतलब नैतिकता की बात, मतलब सच्चाई की बात, सत्यम शिवम सुंदरम की बात। इस सत्यम शिवम सुंदरम से बहुत से लोगों को बड़ी परेशानी हो रही है। आने वाले दिनों में उनकी परेशानी और बढ़ने वाली है क्योंकि अगस्त में बागेश्वर धाम बाबा का दरबार गया में लगने वाला है। तीन दशक से ज्यादा की जाति की और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की राजनीति को चुनौती दी है बाबा बागेश्वर धाम ने। उनके कार्यक्रमों में जिस तरह के लोग आ रहे हैं वह किसी एक जाति के नहीं हैं। वह यह सोच कर नहीं आ रहे हैं कि इसमें जाएं या न जाएं। बागेश्वर धाम बाबा के दरबार में जाने के लिए वह अपनी जाति को भूलकर जा रहे हैं। उनके लिए जाति का कोई मतलब नहीं है। यह असर होता है धर्म का। अब जरा आप इसकी तुलना दूसरे पक्ष से कीजिए।
बाबा का विरोध, तब्लीगी का समर्थन
इन्हीं लेफ्ट-लिबरल्स का तौर तरीका देखिए, तर्क देखिए। एक संस्था है तब्लीगी जमात जिसका नाम आपने कोरोना के दौरान जरूर सुना होगा। उसका इस्तेमा दिल्ली में चल रहा था। इस्तेमा होता है सम्मेलन जिसमें देश और दुनिया भर से लोग आए हुए थे। उसी दौरान कोरोना हो गया। सब वहां से भागने लगे और देशभर में फैलने लगे। तब्लीगी जमात के दिल्ली स्थित मुख्यालय के डेटाबेस से नाम और नंबर निकाल कर 7,000 लोगों को देश के अलग-अलग हिस्सों से ट्रेस किया गया और क्वारंटीन किया गया। जो लोग विदेश से आए थे उनको कुछ दिन रखने के बाद डिपोर्ट किया गया और उन पर रोक लगा दी गई कि किसी तरह के इस्तेमा में नहीं आ सकते। उनको ब्लैक लिस्ट किया गया। जो नेता तब्लीगी जमात के इस्तेमा का स्वागत करते हैं, उसमें जाने में कोई शर्म महसूस नहीं करते, कोई संकोच नहीं करते वह बाबा बागेश्वर धाम के कार्यक्रम में न जाने के बावजूद उनकी आलोचना करते हैं। पटना में उनके जो पोस्टर लगे थे उस पर कालिख पोत दी गई और 420 लिख दिया गया।
हिल गई जाति की राजनीति
जो लिबरल अपने को सहिष्णु बताते हैं वह इस देश में सबसे ज्यादा असहिष्णु हैं। अपने विरोध में या अपने विचार से इतर कोई बात सुनने को ही तैयार नहीं हैं, मानने की तो बात ही छोड़ दीजिए। उनके लिए उनसे अलग विचार रखने वालों, उनके खिलाफ बोलने की आजादी हासिल नहीं है। उनको बोलने का कोई अधिकार नहीं है। उनको संविधान से कोई अधिकार नहीं मिला है। उनका संविधान से मिला अधिकार उसी समय छिन जाता है जब वह उनसे अलग राय रखने लगते हैं। बाबा बागेश्वर धाम ने उस पूरी राजनीति को हिला दिया है जो जाति में लोगों को बांट कर रखना चाहते हैं। उनके कार्यक्रम में जाने वालों ने कम से कम जाति के बंधन को तो तोड़ ही दिया है। उनके कार्यक्रम में जाने वालों ने यह नहीं सोचा कि हम किस जाति के हैं और हम किस जाति का समर्थन किसको करते हैं, किसको नहीं करते हैं।
तब्लीगी देश विरोधी संगठन
तब्लीगी जमात की शुरुआत हुई कन्वर्टेड मुसलमान को कट्टर मुसलमान बनाने की ट्रेनिंग देने के लिए। कन्वर्टेड मुसलमानों की संख्या बहुत बड़ी थी। भारत में ज्यादातर कन्वर्टेड मुसलमान ही हैं। जो हिंदू से मुसलमान बने वो अपना रीति रिवाज नहीं भूले। शादी के रीति रिवाज, महिलाओं का उसी तरह से चूड़ी पहनना, बिंदी लगाना और उसके अलावा पुरुषों का धोती पहनना, उन सबको रोकने के लिए, उनको कट्टर मुसलमान बनाने के लिए तब्लीगी जमात का जन्म हुआ और इसकी शुरुआत हरियाणा से हुई। देश और दुनिया भर में इसकी शाखाएं हैं। इनके खिलाफ कुछ बोलिए, इनकी आलोचना कीजिए, इनसे कुछ सवाल पूछिए तो कहते हैं कि हम तो सिर्फ दीन की बात करते हैं। यह मान भी लें कि आप सिर्फ दीन की बात करते हैं तो फिर यह बताइए कि इस्लामी राज्य सऊदी अरब में तब्लीगी जमात पर प्रतिबंध क्यों लगा हुआ है। क्या सऊदी अरब के लोग इस्लाम को नहीं मानते, क्या सऊदी अरब के लोग दीन की बात नहीं सुनना चाहते। दरअसल, तब्लीगी जमात इस्तेमा के जरिये मुस्लिम रेडिकलाइजेशन का कार्यक्रम चलाता है। यह एक देश विरोधी संगठन है जो समाज को तोड़ने, समाज में सांप्रदायिक विभेद पैदा करने, सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने, मुसलमानों में कट्टरता भरने, हिंदुओं के खिलाफ जहर बोने का काम करता है। इस संगठन का समर्थन सेक्युलर और लेफ्ट-लिबरल बिरादरी के लोग करते हैं।
सिर्फ सनातन की करते हैं बात
बाबा बागेश्वर धाम ने पांच दिन के अपने कार्यक्रम में एक बार भी मुसलमान शब्द का जिक्र नहीं किया। उन्होंने बात की तो सिर्फ हिंदू धर्म की, सनातन धर्म की, सनातन धर्म के रीति-रिवाजों की। एक सनातनी को कैसा आचरण करना चाहिए, उसका आचार-विचार और व्यवहार कैसा होना चाहिए, सनातनी लोगों के लिए क्या वर्जित है और क्या स्वीकार्य है इसका जिक्र किया। बाबा बागेश्वर धाम छत्तीसगढ़ भी गए थे। वहां बड़े पैमाने पर ईसाईकरण का अभियान चल रहा है। खासतौर से आदिवासियों और दलितों को ईसाई बनाने का काम चल रहा है। इसके लिए उनकी एक चंगाई सभा होती है जिसमें धर्म परिवर्तन होता है। उसमें चमत्कार दिखाने की कोशिश करते हैं जो पहले से तय किया हुआ रहता है। एक व्यक्ति व्हीलचेयर पर आएगा और वहां मौजूद पादरी उसके ऊपर पानी छिड़केगा, मंत्र पढ़ेगा और उसके बाद वह उठकर मंच पर दौड़ने लगेगा। कम पढ़े लिखे और अशिक्षित लोगों को ऐसे चमत्कारों से लुभा कर, भरमा कर, धन देकर, प्रलोभन देकर, दबाव डालकर, डर दिखाकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है। उस चंगाई सभा का पूरा कार्यक्रम बिगाड़ दिया बाबा बागेश्वर धाम ने।
यह जो कहावत है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, उस कहावत को पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने गलत साबित कर दिया कि एक व्यक्ति भी परिवर्तन ला सकता है। शर्त सिर्फ इतनी है कि उसका इरादा नेक हो, निष्ठा हो, ईमानदारी हो और उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट हो जो बाबा बागेश्वर धाम कर रहे हैं। वह सनातन धर्म की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं। उनके खिलाफ जो प्रचार हो रहा है उस बहकावे में मत आइए। उस बड़े लक्ष्य को देखिए जिसे हासिल करने की वह कोशिश कर रहे हैं। आप जहां भी हैं, जिस रूप में भी हो सकता हो उनके विरोध में कही गई बातों का प्रतिकार कीजिए।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं ।