(19 अगस्त पर विशेष)
प्लासी युद्ध में जीत के बाद कंपनी ने बंगाल के नवाब के साथ एक संधि की। इस संधि में कंपनी को सिक्के बनाने का अधिकार मिल गया। कंपनी ने कोलकाता में टकसाल खोली। इसके बाद 19 अगस्त 1757 को एक रुपये का पहला सिक्का जारी किया गया। कंपनी ने इससे पहले सूरत, बॉम्बे और अहमदाबाद में भी टकसाल की स्थापना की थी, लेकिन एक रुपये का सिक्का पहली बार कोलकाता में ही बनाया गया। सूरत टकसाल की स्थापना सबसे पहले की गई थी, लेकिन वहां डिमांड के मुताबिक सिक्के नहीं बन पा रहे थे। इसलिए 1636 में अहमदाबाद में टकसाल की स्थापना की गई। 1672 में बॉम्बे में भी सिक्के बनाने की शुरुआत हुई। बॉम्बे में यूरोपियन स्टाइल के गोल्ड, सिल्वर और कॉपर के सिक्के बनाए जाते थे। गोल्ड के सिक्कों को कैरोलिना, सिल्वर के सिक्कों को एंजलीना और कॉपर के सिक्कों को कॉपरून कहा जाता था।
हालांकि अभी तक पूरे भारत में एक जैसे सिक्कों का चलन नहीं था। बंगाल, मद्रास और बॉम्बे प्रेसिडेंसी में अलग-अलग तरह के सिक्के चलते थे। इनका आकार, वजन और वैल्यू भी अलग-अलग होती थी। व्यापार के लिए ये बड़ी समस्या थी। इसलिए 1835 में यूनिफॉर्म कॉइनेज एक्ट पारित किया गया। इस एक्ट के लागू होने के बाद एक जैसे सिक्के जारी किए जाने लगे। इन सिक्कों पर एक तरफ ब्रिटिश किंग विलियम चतुर्थ का हेड छपा होता था और दूसरी तरफ इंग्लिश और पर्शियन में सिक्का कितनी कीमत का है, ये छपा होता था। 1857 के विद्रोह के बाद भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन के पास चला गया। इसके बाद सिक्कों पर ब्रिटिश मोनार्क की तस्वीर छपने लगी। पहले विश्वयुद्ध में चांदी की कमी होने की वजह से कागज के नोट जारी किए गए। 1947 में भारत आजाद हुआ, लेकिन 1950 तक यही सिक्के देश में चलते रहे।(एएमएपी)