डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
युरोप में फ्रांस वह देश है, जो इस्‍लामिक आतंक का सबसे अधिक दंश झेल रहा है। बाहर से आए मुस्लिम, स्थानीय मुस्लिमों के साथ मिलकर सामुदायिक भावना गढ़ रहे हैं। हमले और हिंसक घटनाओं की संख्या बढ़ने के बाद फ्रांस की सरकार चेती है, लेकिन उसके लिए कुछ भी करना आसान नहीं है। नवंबर 2005 में फ्रांस में पेरिस के आसपास के शहरों, ल्योंस और टूलूज जैसे अन्य बड़े शहरों में दंगे हुए। मार्च 2006 में मोंटफरमील की घटनाओं में इनकी पुनरावृत्ति भी देखी गई। इसके बाद से फ्रांस में हिंसा और अराजकता में लगातार वृद्धि होती हुई दिखाई देती है। 2014 के बाद बढ़े हमलों के कारण आपरेशन सेंटिनेल, आपरेशन विजिलेंट गार्डियन और ब्रसेल्स लाकडाउन चलाए गए, फिर भी फ्रांस में इस्‍लामिक अतिवादियों का आतंक कम नहीं हुआ। आए दिन वहां किसी को चाकू मारा जा रहा है तो किसी पर गोली बरसाई जा रही है। फ्रांस की मूल महिलाएं लगातार यौन हिंसा की शिकार बनाई जा रही हैं।

द मिडल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट (मेमरी) ने 23 जून, 2023 को लिखा, ‘‘14 जून, 2023 को एक प्रो-इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) टेलीग्राम चैनल ने हिज्र (जिहाद छेड़ने के उद्देश्य से किया गया अप्रवास) को बढ़ावा देने और गंतव्य तक मार्ग को सुरक्षित करने संबंधी सुझाव देने वाली एक पोस्ट अरबी भाषा में प्रकाशित की है। इसमें जो युक्तियां सुझाई गई हैं, उनमें शामिल हैं- चोरी हुए मोबाइल फोन का नंबर हासिल करना, इसे दो-चरण वाले प्रमाणीकरण के साथ उपयोग करना, धीरे-धीरे अपना हुलिया बदलना और विश्वसनीय लोगों द्वारा बताए गए ऐसे व्यक्ति से संपर्क करना, जो आगे उनका मददगार रहेगा।’’ पोस्ट में संभावित भर्तीकर्ताओं से आग्रह किया गया है कि वे इस फैसिलिटेटर का फोन नंबर याद रखें और किससे क्या बात हुई, इसके विवरण का कभी खुलासा न करें।

यहां यह भी सामने आया है कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने जब हिजाब, कट्टरपंथी शिक्षण और प्रशिक्षण, विदेशों से मदरसों के लिए धन लेने, मस्जिदों में तकरीर पर प्रतिबंध और शिक्षण सामग्री पर सरकारी निगरानी आदि के लिए जैसे नियम बनाए, तभी से फ्रांस सरकार से या फ्रांस से मुसलमानों की नाराजगी बढ़ने लगी थी। फ्रांस सरकार की पाबंदी और कानून मुसलमानों को पसंद नहीं आया। इसके बाद से ही गुंडागर्दी, सामूहिक हिंसा, कट्टरपंथी घटनाएं बढ़ती गई।

अभी पिछले साल ही फ्रांस में अल्‍जीरियाई मूल के 17 वर्षीय किशोर नाहेल एम की पेरिस के पास पुलिस के हाथों मौत के बाद पूरा देश जला दिया गया। फ्रांस के कई शहरों में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे। कई दिनों तक चला ये हिंसक प्रदर्शन फ्रांस से होते हुए संपूर्ण यूरोप तक फैल गया था, जिसके परिणामस्‍वरूप कई और देशों में इस्‍लामिक आतंकवाद देखने को मिला, उसमें भी सबसे अधिक प्रभावित हुए बेल्जियम और स्विट्जरलैंड। दंगाइयों ने फ्रांस के पेरिस, मार्सिले और ल्योन सहित अन्य शहरों में जमकर उत्पात मचाया। एप्पल, जारा स्टोर्स और शॉपिंग मॉल में लूटपाट के वीडियो के बाद, मार्सिले में वोक्सवैगन डीलरशिप को लूटने जैसे अनेक वीडियो अलग-अलग स्‍थानों से वायरल होकर सभी के सामने आए, जिनमें लोगों को शोरूम में घुसकर सामान लेकर, यहां तक कि नई कारों तक को लूटकर भागते हुए देखा गया। आप इन वीडियो में दंगाइयों को मजहबी नारे लगाते हुए भी देख सकते हैं।

इस बीच, एक मौलवी शेख अबू तकी अल-दीन अलदारी का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह कह रहा था, ‘‘जिहाद के जरिए फ्रांस एक इस्लामिक देश बन जाएगा और पूरी दुनिया इस्लामी शासन के अधीन होगी। फ्रांसीसियो! इस्लाम में कन्वर्ट हो जाओ, नहीं तो जजिया का भुगतान करने के लिए मजबूर किए जाओगे।’’ मेमरी टीवी द्वारा अनुवादित वीडियो में कहा गया है, ‘‘ऐसा कहा जाता है कि 2050 में फ्रांस में मुसलमानों की संख्या फ्रांसीसियों से अधिक हो जाएगी। लेकिन हम फ्रांस को इस्लामिक देश बनाने के लिए इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। हम जिस पर भरोसा कर रहे हैं, वह यह है कि मुसलमानों के पास एक ऐसा देश होना चाहिए, जो अल्लाह की खातिर जिहाद के माध्यम से इस्लाम को अपना मार्गदर्शन, अपना प्रकाश, अपना संदेश और अपनी दया (पश्चिम के) लोगों तक पहुंचाए।’’ किशोर की हत्या पर पांच दिनों की हिंसा में ही 935 इमारतें क्षतिग्रस्त हुई, 5,354 वाहन जलाए गए, आगजनी की 6,880 घटनाएं हुईं। 41 पुलिस थानों पर हमला किया गया, 79 पुलिसकर्मी घायल हुए। अंतत: इस अराजकता को रोकने के लिए फ्रांस को विशिष्ट जीआईजीएन कमांडो की तैनाती करना पड़ी थी। उसके बाद सोशल मीडिया में मुस्लिम प्रवासियों से जुड़े वीडियो शेयर करके उन्‍हें यूरोप आने से रोकने की मांग तेज होती हुई देखी गई।

बढ़ती मुस्‍लिम आबादी 2: स्कैंडनेवियाई देशों में इस्लामीकरण का खतरा

वस्‍तुत: फ्रांस में हाल के दशकों में अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया और उप-सहारा अफ्रीका जैसे देशों से मुस्लिम प्रवासियों की लगातार आमद देखी गई है। इस जनसांख्यिकीय वृद्धि का श्रेय आप्रवासन, उच्च जन्म दर और रूपांतरण जैसे कारकों को दिया जाता है। इस गतिशील समुदाय में उत्तरी अफ्रीका, तुर्की, अरब दुनिया और उप-सहारा अफ्रीका में मूल के व्यक्ति शामिल हैं। सांख्यिकीय डेटा फ्रांस में मुस्लिम आबादी की पर्याप्त वृद्धि को रेखांकित करता है, जो अब लगभग 60 लाख है और कुल फ्रांसीसी आबादी का लगभग 8-9 प्रतिशत है। अनुमानों से पता चलता है कि फ़्रांस की मुस्लिम आबादी में वार्षिक 17 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।

इस देश में इस्‍लामिक आतंक किस तरह से हावी है, वह इससे भी पता चलता है कि पेरिस के करीब रामबौलेट में हमलावर ने पुलिस थाने में घुसकर एक महिला पुलिस अधिकारी स्टेफनी की गर्दन पर धारदार हथियार से ताबड़तोड़ वार किए, जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई। ट्यूनिशिया का यह 36 वर्षीय हमलावर इस दौरान अल्ला-हो-अकबर का नारा लगा रहा था।

फिलहाल, फ्रांस में बढ़ते कट्टरवाद और चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के प्रशासन ने विदेशी इमामों की देश में एंट्री पर रोक लगा दी है। हालांकि, नई नीति में ये प्रावधान भी किया गया है कि अगर कोई विदेशी इमाम फ्रांस में रहना चाहता है, तो वो विदेशों से फंड नहीं ले सकता है और अगर वो फ्रांसीसी मुस्लिम संगठनों से फंड लेकर फ्रांस में रहे, तभी वो देश में रह सकता है। दरअसल, विदेशी इमामों की एंट्री पर प्रतिबंध का ये फैसला साल 2020 में इमैनुएल मैक्रों के चुनावी वादे में था, जब उन्होंने कट्टरपंथी इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए कई उपायों की घोषणा की थी, जिसमें अन्य प्रस्तावों के साथ-साथ मस्जिदों की विदेशी फंडिंग को खत्म करना भी शामिल था।

मैक्रों ने फरवरी 2020 में एक भाषण के दौरान “इस्लामिक अलगाववाद” पर हमला बोलते हुए कहा भी था कि फ्रांस को अपने गणतंत्रीय मूल्यों को अन्य सभी से ऊपर बनाए रखना चाहिए। फ्रांस में “राजनीतिक इस्लाम का कोई स्थान नहीं है, इस्लामी अलगाववाद स्वतंत्रता और समानता के साथ असंगत है, गणतंत्र की अविभाज्यता और राष्ट्र की आवश्यक एकता के साथ असंगत है।” फ्रांस में हिजाब पहनने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है और मुस्लिम महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब नहीं पहन सकती हैं।

ब्रिटेन के सामने भी खड़ा है इस्‍लामीकरण का आसन्‍न संकट

ब्रिटेन में मुस्लिम आप्रवासन बड़े पैमाने पर हुआ है और यह लगातार जारी है। ज्‍यादातर मुस्लिम समुदाय यहां ग्रेटर लंदन, वेस्ट मिडलैंड्स, नॉर्थ वेस्ट, यॉर्कशायर और हंबरसाइड जैसे क्षेत्रों में आकर बसता है। ब्रिटिश अधिकारी इनकी लगातार हो रही आमद से कई समस्याओं को भी पैदा होते देख रहे हैं। इनके बारे में वे अपनी सरकार को भी बता रहे हैं। हाल के कुछ वर्षों में यहां जिहादी हिंसा में वृद्धि हुई है। द इंडिपेंडेंट ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और यूगॉव (YouGov) के शोधकर्ताओं द्वारा एक सर्वे किया गया था, जो उनके द्वारा प्रकाशित भी किया गया। इसके अनुसार, एक तिहाई ब्रिटिश मतदाताओं का मानना था कि मुसलमानों का आप्रवासन ब्रिटेन का इस्लामीकरण करने की गुप्त योजना का एक हिस्सा है। यहां इस्‍लामिक आप्रवासन से एक बहुत बड़ा वर्ग चिंतित है। वह इसे ईसाईयत के लिए ही नहीं, बल्‍कि जो बहुलतावाद में विश्‍वास करते हैं और जो नास्‍तिक हैं, उन सब के लिए भी खतरे के रूप में देखता है।

निगेल पॉल फराज रिफॉर्म यूके के मानद अध्यक्ष और जीबी न्यूज के प्रस्तुतकर्ता हैं। इनकी भूमिका यूनाइटेड किंगडम के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने तक में महत्‍वपूर्ण रही है और इन्‍होंने दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड के लिए यूरोपीय संसद (एमईपी) के सदस्य के रूप में कार्य किया है। वह कहते हैं, ‘‘इस्लामवाद के बारे में चिंता यह है कि जो लोग ब्रिटेन में इस्लाम को मानते हैं, वे ब्रिटेन की संस्कृति को स्वीकार नहीं करते हैं, ब्रिटेन के कानून को स्वीकार नहीं करते हैं। वे मेजबान देश पर अपनी विश्व दृष्टि थोपना चाहते हैं। यह हमें विनाश की ओर ले जाएगा। यह नहीं चलेगा। मैं बहुत स्पष्ट हूं कि मैं मजहब के खिलाफ नहीं हूं, मैं इस्लाम के खिलाफ नहीं हूं। …यहां आए कुछ लोगों के साथ एक विशेष समस्या है, जो मुस्लिम मजहब के हैं, जो हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं। हमारे इतिहास में ब्रिटेन में आने वाले किसी प्रवासी समूह का ऐसा कोई पिछला अनुभव नहीं है, जो मूल रूप से यह बदलना चाहता हो कि हम कौन हैं और हम क्या हैं।’’

हलाल सर्टिफिकेट: ईडी की एंट्री यानी दाल में कुछ बड़ा वाला काला  

इस्लामी परंपराएं यूरोपीय संस्कृति के अनुरूप नहीं – जॉर्जिया मेलोनी

जॉर्जिया मेलोनी इस वक्‍त इटली की प्रधानमंत्री हैं, वे कई बार इस्लाम की सच्‍चाइयों को उजागर कर चुकी हैं। मेलोनी का मानना है कि इस्लामी परंपराएं यूरोपीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है। वे साफ तौर पर कहती हैं, ‘मेरा मानना है कि इस्लामिक संस्कृति और हमारी सभ्यता के मूल्यों और अधिकारों के बीच अनुकूलता की समस्या है। हमारी सभ्यता अलग है।’ वह साफ़गोई से कह जाती हैं, कोई कुछ भी कर ले, वो इटली में शरिया कानून लागू होने नहीं दे सकती हैं। इसके साथ ही, मेलोनी एक वीडियो में ये कहती हुई नजर आती हैं, ‘ये मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रहा है कि इटली में ज्यादातर इस्लामिक कल्चर सेंटर को सऊदी अरब से फंडिंग मिलती है।’

वस्‍तुत: मुसलमानों को इतालवी में समाहित कर सकने में कठिनाई के कारण हैं। इटली में एक दक्षिणपंथी गठबंधन तेजी से उभर रहा है, जो कट्टरवाद से निपटने के लिए सख्त कदम उठाने का आह्वान कर रहा है। कारण फिर वही है- मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका से बिना दस्तावेज वाले प्रवासी भूमध्य सागर पार करके इटली और यूरोप के अन्य हिस्सों में प्रवेश कर रहे हैं, जो यहां के मूल निवासियों को अपने लिए किसी खतरे से कम नहीं लगता है।

पत्रकार एमी मेक लिखती हैं, ‘‘इस दुनिया में, यूरोप में, इस्लामी प्रवासी बच्चों की एक पूरी पीढ़ी ऐसी है, जिसके लिए डॉक्टर, पायलट या इंजीनियर बनने का सपना दूर की कौड़ी लगता है। इसके बजाय, उनका पालन-पोषण उन लोगों का महिमामंडन करते हुए किया गया है, जो पश्चिम से घृणा करते हैं, जो हरेक गैर-इस्लामिक चीज को जीतने और नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।’’

इस तरह से आप पूरे युरोप की वर्तमान स्‍थ‍िति देख सकते हैं। सच्‍चाई यही है कि स्वीडन, फ्रांस, बेल्जियम, स्पेन जर्मनी, इटली, यहां तक कि ब्रिटेन में इस्‍लाम का दुष्प्रभाव साफ तौर पर देखा जा सकता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जर्मनी, बेल्जियम समेत कई देशों ने खुले दिल से शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोले और आज गलती का अहसास कर रहे हैं। यूरोप में मुस्लिम शरणार्थी अपना कुनबा तेजी से बढ़ा रहे हैं, जिसमें अधिकांश अपने ही तौर-तरीकों के साथ अलग कॉलोनी बनाकर रहते हैं। यूरोप में ऐसी मुस्लिम कॉलोनियों की संख्या बहुत बढ़ी है। इन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में शरिया कानून थोपा जाता है। यह समुदाय कथित तौर पर लोगों, खासकर महिलाओं के पहनावे और तौर-तरीकों पर नियंत्रण करने के लिए बेजा दबाव बनाता है। यहां तक कि संगीत और नृत्य को भी हराम बताकर रोकने की बात होती है। पुलिस ने इस क्षेत्र को अति संवेदनशील, कानून-व्यवस्था के लिए खतरा व समानांतर समाज बनाने की साजिश माना है।

युरोप में यह अनेक बार और बार-बार देखने में आ रहा है कि इस्‍लामिक पहचान बनाए रखने के लिए यहां मुस्‍लिम जनसंख्‍या कानून और मानवाधिकारों का सहारा लेकर किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है। कई बार कोर्ट में जाकर, अपने हिसाब से मनमाना निर्णय आए, इसके लिए भी प्रयास किए जाते हैं। किंतु न्‍यायालय तो न्‍यायालय है, वह साक्ष्‍यों और उस देश के संविधान के आधार पर निर्णय देता है लेकिन ये हैं कि छोटी से छोटी बात पर भी न्‍यायालय जाने से नहीं चूकते, ताकि स्‍थानीय प्रशासन, सरकार और उस देश की राजनीतिक पार्ट‍ियों पर प्रभाव जमाया जा सके।

आप देखिए, कैसे एक मामूली सा मामला था, जिसे इस्‍लामवादियों ने तूल दिया। दरअसल, जब बेल्जियम की एक कंपनी ने मुस्लिम महिला को हिजाब पहनकर आने से मना कर दिया तो इसके खिलाफ महिला कोर्ट पहुंच गई। तब कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर ये नियम सभी कर्मचारियों पर लागू है, तो इससे कोई भेदभाव पैदा नहीं होता। यूरोपियन यूनियन की कोर्ट ऑफ जस्टिस ने फैसला दिया था कि यूरोपियन कंपनियां चाहें तो रिलिजियस सिम्बल पर बैन लगा सकतीं हैं, जिसमें हिजाब भी शामिल था। फिर भी, इस्‍लामवादी इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने से नहीं चूके।

युरोप को डरा रहे हैं आतंकवादी हमले

डर पैदा करने और हिंसा के आंकड़े भी डरा रहे हैं। 2013 के बाद यूरोप में आतंकी घटनाओं में वृद्धि होती हुई दिखाई देती है। इसके पहले के हमलों में आईएस और अलकायदा शामिल रहे, लेकिन बाद में वहां लोन वोल्फ हमले यानी अकेले एक व्यक्ति द्वारा गोलीबारी, चाकूबाजी या गाड़ी चढ़ाने के मामले बढ़ गए हैं। बेल्जियम में यहूदी संग्रहालय पर हुआ हमला, सीरिया से लौटे जिहादी करते हैं, फिर पेरिस हमले में 130 लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। इसके बाद फ्रांस के नाइस शहर में ट्रक से हुए हमले में 86 लोगों को मार दिया जाता है। इस्लामिक स्टेट ने हत्या की जिम्मेदारी ली। अतातुर्क एयरपोर्ट हमले में 45 की मौत हुई। ब्रसेल्स में बम धमाकों में 32 लोग मारे जाते हैं। मैनचेस्टर एरीना में बम विस्फोट कर आतंकवादी 22 लोगों को मौत की नींद सुला देते हैं।

अभिव्यक्ति की आजादी के तहत कक्षा में मुहम्मद का कार्टून दिखाने पर पेरिस में इतिहास के शिक्षक सैमुअल पैटी का सिर काटा गया। हमलावर 18 वर्षीय चेचेन शरणार्थी अब्दुल्लाह एंजोरोव था। पेरिस में पत्रिका शार्ली एब्दो के पुराने मुख्यालय के बाहर एक पाकिस्तानी ने दो लोगों को चाकू मारा। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के एक आतंकी ने पेरिस के चैंप्स-एलिसीज पर एक पुलिस अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। दक्षिणी फ्रांस में फ्रांसीसी-मोरक्कन मूल के हमलावर ने गोलीबारी की। लोगों को बंधक बनाकर सुपरमार्केट में ले गया। अल्जीरियाई मूल के नागरिक ने नॉट्रेडैम कैथेड्रल के सामने गश्त कर रहे पुलिसकर्मी पर हथौड़े से हमला किया। हमलावर ने इस्लामिक स्टेट के प्रति निष्ठा जताई। एक इस्लामी कट्टरपंथी ने एयर गन से एक पुलिस अधिकारी को घायल किया, पेरिस के ओर्ली हवाई अड्डे पर सैनिकों पर हमला किया। फिर अल्लाह के नाम कुर्बान होने की बात कही। मिस्र के एक मुस्लिम ने अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाते हुए पेरिस के लूव्र संग्रहालय की सुरक्षा में तैनात फ्रांसीसी सैनिकों पर चाकू से हमला किया।

26 वर्षीय दो इस्लामी कट्टरपंथियों ने चर्च में प्रार्थना कर रहे 85 वर्षीय पादरी जैक्स हामेल की गला रेत कर हत्या कर दी। प्रोफेट मोहम्मद का कार्टून छापने पर शार्ली एब्दो के पेरिस कार्यालयों पर हुए हमलों में 17 लोग मारे गए। शार्ली एब्दो द्वारा पत्रिका के आवरण पर मुहम्मद का कार्टून छापने पर पेरिस स्थित उसके कार्यालयों में आगजनी की गई। दक्षिणी फ्रांस के तालोसे शहर में अल-कायदा के आतंकी ने तीन यहूदी बच्चों, एक रबाई और तीन पैराट्रूपर्स की हत्या कर दी।

2021 में फ्रांस को पांच आतंकवादी हमलों का सामना करना पड़ा, जो यूरोपीय संघ के किसी भी देश में सबसे अधिक है। इस वर्ष के दौरान, जर्मनी दूसरे स्थान पर रहा, जहां सबसे अधिक तीन हमले हुए, जबकि स्वीडन में दो आतंकवादी हमले हुए। इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने इस साल के 22 मार्च को मॉस्को के बाहर क्रोकस सिटी कॉन्सर्ट हॉल पर हमले के नए वीडियो जारी किए, जिसमें 137 लोग मारे गए थे। ऐसे छोटे-बड़े कई आतंकी हमले अब तक पूरे युरोप में हो चुके हैं और इन सब के पीछे इस्‍लामिक आतंकवाद दोषी है। पिछले कुछ महीनों में फ़्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड और स्वीडन के अधिकारियों ने इस्लामी आतंक के खतरे का हवाला देते हुए अपने अलर्ट स्तर को बढ़ा दिया है।

मुस्‍लिम जनसंख्‍या का इससे बड़ा प्रभाव क्‍या होगा कि तुर्की के राष्‍ट्रपति ने एक बेजांटाइन कालीन चर्च को भी मस्जिद में बदल दिया। अभी हाल ही में तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान ने एक बेजांटाइन कालीन प्राचीन सेंट सेवियर चर्च को मस्जिद में बदल दिया है। सोचिए, ये घटना 21वीं सदी के 2024 में घट रही है। यह चर्च इस्‍तांबुल में है। तुर्की के राष्‍ट्रपति के इस फैसले की पड़ोसी ग्रीस और ईसाई देशों ने कड़ी आलोचना भी की और साथ ही, उन्‍होंने अपील भी की कि एर्दोगान सरकार बेजांटाइन कालीन स्‍मारकों का संरक्षण करे। इससे पहले, तुर्की ने दुनियाभर में चर्चित हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद में बदल दिया था। ये दोनों ही चर्च संयुक्‍त राष्‍ट्र के व‍िश्‍व व‍िरासत स्‍थलों में शामिल हैं। लेकिन इस आलोचना से होगा क्‍या, उनकी (मुसलमानों की) संख्‍या अधिक है, वह जो चाहे कर सकते हैं। ये हैं जनसंख्‍या बढ़ने के खतरे।

जहां अधिक वहां मनमानी, जहां कम वहां मानवाधिकार की बात

वैसे मानवाधिकार और मुसलमान खतरे में हैं की बात कर गैर-इस्‍लामिक देश के विरुद्ध आवाज बुलंद करनेवाले इस्‍लामिक देशों के संगठन ओआईसी की इस मामले में बेशर्मी देखिए कि भारत में हिन्‍दू समाज द्वारा अपने आराध्‍य का अयोध्‍या में राम मंदिर बनाने पर हायतौबा मचाने वाला यह संगठन तुर्की की दूसरे रिलिजन के साथ ज्‍यादती करने पर यह अब तक चुप्‍पी मारकर बैठा हुआ है। इसी तरह की अनेक घटनाएं पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश में सामने आई हैं, जहां प्राचीन सांस्‍कृतिक महत्‍व के मंदिरों को तोड़ दिया गया और कहीं शॉपिंग सेंटर, तो कहीं अन्‍य कुछ निर्माण कर दिया गया है। कुछ को मस्‍जिदों में बदलकर रख दिया।

लम्‍बी है इस्‍लामिक आतंकवादी संगठनों की सूची

संयुक्त राष्ट्र ने अभी कुछ द‍िन पूर्व ही इस्‍लाम‍िक आतंकवाद पर च‍िंता जताते हुए कहा भी है कि इस्लामिक स्टेट समूह मिडिल-ईस्ट में ही नहीं, अब मिडिल-ईस्ट के करीब में अफ्रीका महाद्वीप पर भी अपना प्रभाव जमाने की कोशिश में लगा हुआ है। यही कारण है कि अफ्रीका में इस्लामिक स्टेट समूह का खतरा बढ़ रहा है। व्लादिमीर वोरोन्कोव ने संयुक्त राष्ट्र के निष्कर्षों को दोहराया कि खतरे का मुकाबला करने में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, आईएस खासकर संघर्षरत क्षेत्रों में, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बना हुआ है। समूह ने इराक और सीरिया के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने पूर्व गढ़ों में भी अभियान तेज कर दिया है। सिर्फ जिहाद के नाम पर दूसरे मत, पंथ, धर्म, रिलिजन को समाप्‍त करने पर तुला ये संगठन आज अकेला नहीं है।

अल कायदा, तालिबान, बोको हराम, हिज्बुल्ला, हमास, लश्कर-ए-तोइबा, जमात-उद-दावा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जैश-ए-मुहम्मद, हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, अल शबाब, हिजबुल मुजाहिदीन, अल उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), दीनदार अंजुमन, अल बदर, जमात उल मुजाहिदीन, दुख्तरान-ए-मिल्लत और इंडियन मुजाहिदीन और भी न जाने कितने नए-नए इस्‍लामिक चरमपंथी और आतंकी संगठन आज दुनिया में हिंसा, षड्यंत्र एवं माइंडवॉश करके पूरी दुनिया को इस्‍लामिक बनाने के लिए कार्य करते हुए देखे जा सकते हैं।

(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)