रमेश शर्मा।
इस वर्ष 2 अक्टूबर को पद रही पितृमोक्ष अमावस्या शरद ऋतु के समापन और हेमन्त के आरंभ की तिथि है। ऋतुओं के इस मिलन से मौसम परिवर्तन आरंभ होता है। इस ऋतु मिलन से उत्सर्जित अनंत ऊर्जा से समाज जीवन को समृद्ध बनाने की साधना का दिन है पितृमोक्ष अमावस्या।

प्रकृति में रहस्यमयी ऊर्जाओं से भरी हैं। जो धरती के प्राणियों के जीवन का आधार है। जो प्राणी प्रकृति से जितनी ऊर्जा ग्रहण करता है वह उतना ही समृद्ध और सशक्त होता है। मनुष्य ने प्रकृति से अतिरिक्त ऊर्जा ग्रहण करके अपने जीवन अधिक समृद्ध बनाना सीख लिया। प्रकृति के रहस्य को समझने और प्राकृतिक ऊर्जा से जीवन समृद्ध बनाने केलियै भारतीय ऋषि मनीषियों सैकड़ो हजारों वर्षों तक साधना की और प्रकृति की गति के अनुरूप बनाने केलिये जीवन शैली विकसित की। इसका दिनचर्या ही नहीं तीज, त्यौहार, उत्सव, उनके आयोजन का विधि विधान से जोड़ा ताकि समाज की जीवन यात्रा प्रकृति के अनुरूप बनी रहे। यही उद्देश्य अश्विन माह की पितृमोक्ष अमास्या के आयोजन में है। अश्विन माह का कृष्णपक्ष “पितृपक्ष” कहलाता है। यह भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होकर अश्विन माह की अमावस्या तक कुल सोलह दिन रहता है। इन सोलह दिनों में सभी दिवंगत कुटुम्ब जनों का स्मरण करके उन्हें श्रृद्धाँजलि अर्पित की जाती है। जिस तिथि को जिन परिजनों ने संसार से विदा ली थी  वह तिथि स्मरण तर्पण मानी जाती है। और अमावस्या के दिन सभी ज्ञात अज्ञात स्वजनों का स्मरण किया जाता है। इसीलिये इस अमावस्या का नाम “सर्व पितृमोक्ष अमावस्या” है। इस तिथि के आयोजन विधान में दो महत्वपूर्ण प्राकृतिक रहस्य छिपे हैं। एक ऋतु संगम से होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन से समाज को समद्ध बनाना और दूसरा पितृ स्मरण के माध्यम से सृष्टि की रहस्यमयी अनंत ऊर्जा से जीवन को सशक्त बनाना।

ऋतु संगम से उत्पन्न अनंत ऊर्जा से जुड़ने का दिन

भारतीय काल गणना में प्रकृति परिवर्तन का अध्ययन करके वर्ष को छै ऋतुओं में बाँटा गया है। इसका आधार सूर्य सहित विभिन्न ग्रहों की गति और उनका पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव है। इसी से पृथ्वी का मौसम बदलता है। गर्मी सर्दी बर्षा तीन प्रमुख मौसम और तीन इनकी संधि ऋतु।  इस प्रकार कुल छै ऋतु। अश्विन माह की अमावस्या शरद और हेमन्त ऋतु का संगम है। यदि प्रथ्वी के खिलने की ऋतु बसंत को माना गया है तो हेमन्त ऋतु को पृथ्वी की अंगड़ाई लेने की ऋतु मानी जाती है। इसी ऋतु में फसल चक्र परिवर्तित होता है। वर्षा ऋतु में जल तत्व और पृथ्वी तत्व प्रभावी होता है। इसे हम किसी भी जलाशय और सरोवरों के पानी की मटमैली रंगत से ऑक सकते हैं लेकिन हेमन्त ऋतु में पाँचो तत्वों का संतुलन बनता है और जल धाराएँ निर्मल दिखने लगती हैं। पंछियों की चहक बढ़ती है। सबसे महत्वपूर्ण बात हेमन्त ऋतु में पड़ने वाली शरद पूर्णिमा को महासागर में लहरे उछाल मारने लगती है। यह सब प्रकृति की ऊर्जा के कारण ही। हैमन्त ऋतु में विखरने वाली यह ऊर्जा अश्विन माह की अमावस को उत्सर्जित होती है। इस अमावस को ब्रह्म मुहूर्त में उठना, किसी सरोवर या नदी तट पर जाकर स्नान, ऊषाकाल तक सूर्य को अर्ध्य देना लौटकर पूजन करना और प्रथम प्रहर समापन के साथ सभी ज्ञात अज्ञात पितरों का स्मरण करना। पितृ गायत्री से हवन करना। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग सात घंटे लग जाते हैं। इन सात घंटो में मन सहित सभी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ एकाग्र रहतीं हैं। यह एकाग्रता व्यक्ति के चेतन और अवचेतन को समत्व स्थापित करती है। यह माना जाता है कि दिवंगत परिजनों की आत्मा इसमें सहायक होती है। हमारा अवचेतन सृष्टि की अलौकिक ऊर्जा से जुड़ा होता है। और यही व्यक्ति में अलौकिक ऊर्जा अर्थात डिवाइन इनर्जी से जोड़ता है। आधुनिक विज्ञान की शैली मे यदि हम व्यक्ति के दृश्यमान स्वरूप को पदार्थ माने और अदृश्यमान को एनर्जी। जिस प्रकार किसी पदार्थ के नष्ट होने से उसमें केन्द्रीभूत एनर्जी नष्ट नहीं होती, वह दूसरे पदार्थ का रूप ले लेती है। उसी प्रकार अदृश्यमान आत्मा कभी नष्ट नहीं होती। वह नया शरीर धारण कर लेती है। लेकिन वह एनर्जी या अदृश्य केटेलिसिस कौन है जिससे किसी एनर्जी का एक पदार्थ के आकार लेने और नष्ट होकर दूसरे पदार्थ का रूप लेने की प्रक्रिया चलती है। निसंदेह व्यक्ति की आत्मा रूपी एनर्जी उस “परम शक्तिमान सुपर एनर्जी” से संबध्द रहती है। ऋतु संगम की तिथि को जब सृष्टि के पंच तत्वों के संतुलन की प्रक्रिया पुनः आरंभ होती है, वह सुपर डिवाइन एनर्जी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय होती है। उस समय यदि हमारे अवचेतन की ऊर्जा का संपर्क बना तो व्यक्ति भी उससे संपन्न हो सकता है।

Sarva Pitru Amavasya 2023 Date And Tarpan Shubh Time Sarva Pitru Amavasya  2023 Par Kya Karen In Hindi | अध्यात्म News, Times Now Navbharat

पितरों की महत्ता ऋग्वेद से रामचरितमानस तक

भारतीय वाड्मय में ऐसा कोई ग्रंथ  नहीं जिसमें पितरों की महत्ता का वर्णन न हो। ऋग्वेद से लेकर, श्रीमद्भागवत, सभी अठारह पुराण, महाभारत, श्रीमद्भगवत गीता और राम चरित मानस सहित सभी ग्रंथों में पितरों के आव्हान और उन्हें तृप्त करने का विवरण है। कहीं कथानक के रूप में वर्तमान पीढ़ी का कोई पात्र अपने पूर्वजों का तर्पण करता तो किसी ग्रंथ में पितरों आव्हान और उन्हें प्रसन्न करने की विधि एवं मंत्रों का विवरण है। पितरों की महत्ता का सबसे विस्तृत विवरण गरुड़ पुराण में है। इसमें पितृपक्ष की प्रत्येक तिथि के अनुसार पितरों का आव्हान और पूजन विधान है। सबसे पहला विवरण ऋग्वेद में है। न केवल पितृसूक्त अपितु भारतीय वाड्मय के लगभग सभी ग्रंथों में ऋग्वेद के ज्ञान का विस्तार है। जो समय के साथ विस्तृत होकर आया। कुछ ग्रंथों में ऋग्वेद का संदेश समाज को समझाने केलिये कथाओं के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन ऋग्वेद के पितृसूक्त और अन्य ग्रंथों के विवरण में एक अंतर है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में पन्द्रहवें सूक्त “पितृसूक्त” के नाम से जाना जाता है। इस सूक्त में कुल चौदह ऋचाएँ हैं। इन ऋचाओं में पितरों को विभिन्न देवों के समीप मानकर अग्नि देव के आमंत्रित किया गया है और पितरों से प्रार्थना की गई है कि वे अपने परिवार जनों का सुखी और क्लेष रहित जीवन देने की कृपा करें। पितरों से यह भी याचना की गई है कि देवताओं तक प्रार्थना पहुँचाएँ। एक ऋचा में अपने किये गये अपराध के लिये पितरों से क्षमा याचना की गई है, एक ऋचा में उनकी संपत्ति का उपयोग करने की अनुमति मांगी गई है। इसी प्रकार सभी ऋचाओं में विभिन्न प्रार्थना है।

लेकिन बाद के ग्रथों में प्रार्थना तो है पर साथ ही कुछ पितरों के नर्क से मुक्ति के लिये भी प्रार्थना है। सभी पितरों का मोक्ष हो, इसीलिए इस अमावस का नाम “सर्व पितृमोक्ष अमावस” पड़ गया। ऐसा वर्णन श्रीमद्भागवत में भी है और महाभारत में भी। इनमें देवस्थान में पहुँचे पितरों से प्रार्थना तो है, लेकिन इसके साथ यह वर्णन भी आया कि अपने जीवन में पापकर्म के कारण कोई पातर अधोगति में पहुँच गये तो सर्व पितृमोक्ष अमावस के दिन उनके वंशजों द्वारा किये तर्पण से उनकी पाप मुक्ति का वर्णन है। श्रीमद्भागवत भागवत में ऐसी कथा गोकर्ण और धुंधुकारी की है। कथा के अनुसार धुंधुकारी अपने जीवन में किये गये पापकर्म के कारण नर्क में चला गया। जिसकी मुक्ति के लिए गोकर्ण ने श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया और धुंधुकारी को मुक्ति मिली।

समाज जीवन को संदेश

सभी पितरों का एक साथ स्मरण करने की तिथि सर्व पितृमोक्ष अमावस की दिनचर्या और पूजन आव्हान विधान से सृष्टि की अलौकिक शक्ति से जुड़ने की प्रक्रिया है वहीं प्रकृति और प्रकृति के प्राणियों से समन्वय बनाने और अपनी जीवन शैली आदर्श बनाने का संदेश भी है। इसदिन पहले पितरों का प्रतीक पिण्ड बनाकर पूजन फिर मछलियों, चीटियों, गाय, कुत्ता अभ्यागत केलिये पाँच ग्रास निकाले जाते हैं। यह पिण्ड और मछली केलिये ग्रास जल में डाला जाता है। मछलियाँ जल को शुद्ध रखती हैं। गाय की महत्ता हम जानते हैं, कुत्ते की संघर्षशीलता, शत्रु मित्र को पहचानने की शक्ति और स्वामी भक्ति सै परिचित हैं। चीटियों की परिवार और समूह व्यवस्था अनुकरणीय है। अभ्यागत का ग्रास पीपल पर रखा जाता है। पीपल की महत्ता भी हम जानते हैं। प्रकृति और प्राणियों से समन्वय के साथ वे कथाएँ जिनमें पाप कर्म के कारण नर्क की प्रताड़ना मिलती है। और वे कथाएँ जिनमें अच्छे आचरण से स्वर्ग मिलता है। मनुष्य के समाज जीवन को आदर्श बनाने का सूत्र है। और इसके साथ अपने सभी पितरों से लगाव का यही संदेश है कि हम अपने घर में माता पिता का सम्मान करेंगे उनके अनुभव से सीखें। पितरों के स्मरण, उनकी कृपा प्राप्त करने की अवधारणा से कुटुम्ब सशक्त होगा। पाँच ग्रास से जल और पीपल के माध्यम से पर्यावरण सुरक्षा और सभी प्राणियोंके प्रति संरक्षण का भाव जाग्रत होता है। इसलिये विज्ञान, समाज शास्त्र और संसार ने सर्व पितृमोक्ष अमावस को एक अद्भुत तिथि मानी और संसार भर के समाज शास्त्रियों ने इस शोध भी किये हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) 

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