प्रदीप सिंह।
कहावत है कि मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की। कम से कम चार प्रदेशों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस में ऐसा ही हो रहा है। जैसे नाव में छेद होने पर एक जगह से पानी रोको तो दूसरी जगह से आने लगता है, वैसा ही हाल कांग्रेस का हो रहा है। अचानक जैसे सब क्षत्रपों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी है। सबको पता चल गया है कि कांग्रेस हाई कमान में अब न तो कुछ हाई रहा है और न ही कमान। तीन लोग सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा पार्टी चलाने का उपक्रम कर रहे हैं। पर पार्टी आगे बढ़ने की बजाय पीछे जा रही है।
उम्मीद का मर जाना
वैसे कांग्रेस की यह हालत कोई अचानक नहीं हुई है। चुनाव दर चुनाव हार से पार्टी अशक्त हो गई है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि उम्मीद नहीं रह गई है। और सबसे बुरा होता है उम्मीद का मर जाना। जो और इंतजार करने को तैयार नहीं हैं वे एक एक करके पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। जो रुके हुए हैं उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्यों रुके हुए हैं। वो तो भला हो ममता बनर्जी का जिन्होंने पश्चिम बंगाल में भाजपा को रोक दिया। और वह भी बड़े अंतर से। यदि भाजपा पश्चिम बंगाल जीत जाती तो अब तक कांग्रेस में भगदड़ मच गई होती। पर अब भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। मंगलवार को लम्बे इंतजार के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात हो गई। इससे पहले सिद्धू की राहुल गांधी और प्रियंका से लम्बी बातचीत हो चुकी थी।
चार साल बाद खुली हाईकमान की नींद
कांग्रेस में चल क्या रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि राहुल और प्रियंका से मिलने के बाद कैप्टन पर सिद्धू के हमले रुकने की बजाय और बढ़ गए। सारा देश जानता है कि पंजाब में समस्या सिद्धू और कैप्टन की लड़ाई है। पर सोनिया गांधी से एक घंटे की मुलाकात के बाद कैप्टन बाहर आए तो सिद्धू के बारे में पूछने पर कहा कि ‘उनके बारे में मुझे कुछ पता नहीं है।‘ वह तो कांग्रेस अध्यक्ष से सरकार और राजनीतिक स्थिति पर बात करने आए थे। वह जो तय करेंगी, मानेंगे। मतलब ये कि गेंद अब सोनिया गांधी के पाले में है। समस्या तो यही है कि पूरा गांधी परिवार मिलकर कुछ तय नहीं कर पा रहा है। पिछले दो महीने में कांग्रेस के नेताओं ने कैप्टन सरकार की जितनी कमियां गिनाई हैं, उतनी तो समूचा विपक्षा नहीं गिना पाया। चार साल बाद पार्टी हाई कमान की नींद खुली और कैप्टन को कुछ दिन पहले तीन सदस्यीय कमेटी की मार्फत आदेश दिया गया कि चुनाव घोषणा पत्र के अट्ठारह मुद्दों पर सरकार काम करके बताए। अब जो काम सवा चार साल में नहीं हुआ वह कुछ दिनों में हो जाएगा, ऐसे चमत्कार की उम्मीद कांग्रेसी ही कर सकते हैं। जब से मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में तीन सदस्यीय कमेटी बनी है, ऐसा लगता है कि कैप्टन अमरिंदर सरकार नहीं चला रहे बल्कि कोई मुकदमा लड़ रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस जीती हुई लग रही बाजी को हार में बदलने पर आमादा है।
हुड्डा रुकने वाले नहीं
पंजाब की गुत्थी सुलझी नहीं थी कि हरियाणा में भूपेन्दर सिंह हुड्डा ने मोर्चा खोल दिया। यहां सरकार नहीं है तो प्रदेश अध्यक्ष ही सही। प्रदेश अध्यक्ष शैलजा को हटाने का अभियान शुरू हो गया है। यह जानते हुए कि शैलजा गांधी परिवार की पसंद हैं। हरियाणा में कांग्रेस विधायकों पर कांग्रेस हाईकमान का नहीं हुड्डा हुकुम चलता है। जानते हैं क्यों? क्योंकि उन्हें पता है कि चुनाव जिताकर वही लाए थे और फिर वही जिताने की क्षमता रखते हैं। इसीलिए विधायक कह रहे हैं कि चुनाव जीतना है तो पार्टी की कमान हुड्डा को देना पड़ेगा। हाईकमान की क्षमता नहीं है कि वह हुड्डा को रोक सके। रोकना चाहे भी तो हुड्डा रुकने वाले नहीं हैं।
गहलोत को भी हाईकमान की कोई चिंता नहीं
राजस्थान में तो जादूगर अशोक गहलोत का जादू का खेल चल रहा है। हाईकमान से मिलने की बात हो, उनके हरकारों से या असंतुष्टों से मुख्यमंत्री को डाक्टर घर में आराम करने की सलाह दे देते हैं। पर राज्यपाल के पुस्तक विमोचन समारोह में जाने के लिए वे बिल्कुल चंगे हैं। सचिन पायलट को समझ में नहीं आ रहा है कि अब किसके पास जाएं। वैसे टेलीफोन टैपिंग की तलवार गहलोत के सिर पर अभी लटकी ही हुई है। साथ में बहुजन समाज पार्टी के जिन छह विधायकों का कांग्रेस में विलय कराया था, उस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभी आना है। वहां से झटका लगा तो जादूगर का जादू भी काम नहीं आएगा। पर एक बात तो है कि अशोक गहलोत को कैप्टन की तरह हाईकमान की कोई चिंता नहीं है।
बघेल कर गए खेल
साल 2018 में कांग्रेस को तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दुर्लभ चुनावी सफलता मिली थी। उनमें से मध्य प्रदेश, ज्योतिरादित्य सिंधिया लेकर भाजपा के खेमे में चले गए। राजस्थान में नैया डगमग-डगमग कर रही है। सबसे मजबूत जनादेश छत्तीसगढ़ में मिला था। वहां भी नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री का फैसला बड़ी मुश्किल से हो पाया था। भूपेश बघेल मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव इस बात पर माने थे कि ढ़ाई साल बाद मुख्यमंत्री की गद्दी उन्हें मिलेगी। कहते हैं यह वादा तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया था। अब राहुल गांधी तो सारी जवाबदेही से मुक्त हो चुके हैं। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की याददाश्त उन्हें धोखा दे रही है। उन्हें याद ही नहीं है कि ऐसी कोई बात हुई थी।
देश की सबसे पुरानी पार्टी की दुर्दशा अविवर्णनीय है। अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। जो रिटायरमेंट से लौटकर आने को मजबूर हुईं। सिर्फ इसलिए कि बेटे के लिए पद को बचाए रख सकें। पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हैं, जो पार्टी चला रहे हैं पर अध्यक्ष की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते। प्रियंका वाड्रा हैं जिनकी राजनीतिक उपलब्धि यह है कि महामंत्री के नाते उत्तर प्रदेश का प्रभार मिला तो कीर्तिमान स्थापित किया। पहली बार ऐसा हुआ कि गांधी परिवार का कोई सदस्य (राहुल गांधी) अमेठी से चुनाव हार गया। उनकी रहनुमाई में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अस्सी में से एक सीट मिली। उसके बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उमीदवारों की जमानत बचाना मुश्किल हो गया। पंचायत चुनाव में पार्टी का हाल खोजते रह जाओगे वाला है। पर वे मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों का भविष्य तय करती हैं। फिल्म अमर प्रेम में आनन्द बख्शी का लिखा गीत है- ‘चिन्गारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए, सावन जो अगन लगाए उसे कौन बुझाए।’ तो कांग्रेस में सावन ही आग लगा रहा है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं। दैनिक जागरण से साभार)